समकालीन जनमत

Category : स्मृति

जनमतशख्सियतस्मृति

“यह थी भूमिका हम-तुम मिले थे जब” मुक्तिबोध स्मरण (जन्मदिन 13 नवम्बर)

रामजी राय
मुक्तिबोध और उनकी कविता के बारे में लोग कहते हैं कि वो विकल-बेचैन, छटपटाते कवि हैं. लेकिन देखिये तो दरअसल, मुक्तिबोध कविता की विकलता के...
जनमतशख्सियतस्मृति

गांधी और उनके हत्यारे

इन्द्रेश मैखुरी
आज जब महात्मा गांधी की पैदाइश के 150 साल पूरे हो रहे हैं,तब लगता है कि एक चक्र पूरा हो कर दुष्चक्र की ओर बढ़...
शख्सियतसाहित्य-संस्कृतिस्मृति

वीरेन डंगवाल की याद: अचानक यह हुआ कि मैं रिसेप्शन में अकेला पड़ गया

समकालीन जनमत
अशोक पाण्डे जब उनसे पहली बार मिला वे नैनीताल के लिखने-पढ़ने वालों के बीच एक सुपरस्टार का दर्जा हासिल चुके थे. उनकी कविताओं की पहली...
ख़बरशख्सियतस्मृति

पाकिस्तान के साम्यवादी और ट्रेड यूनियन नेता तुफ़ैल अब्बास की मृत्यु पर शोक संदेश

समकालीन जनमत
विजय सिंह तुफ़ैल अब्बास (1927 – 9/9/2019) 9 सितंबर को काराची मे काॅमरेड तुफ़ैल अब्बास का निधन हो गया। वे 92 वर्ष के थे। वे...
जनमतस्मृति

‘ फ़िराक़ ’ गोरखपुरी : एक बुजुर्ग बालक

समकालीन जनमत
‘बचा के रखी थी मैंने अमानते-तिफ़ली’ …… ‘फ़िराक़’ साहब के भीतर एक बच्चा रहता रहा है। वे इस हयात, कायनात, उसके रहस्य-रोमांच और सौंदर्य को,...
जनमतशख्सियतस्मृति

दलित साहित्य को शिल्प और सौंदर्यबोध देने वाले भाषा के मनोवैज्ञानिक थे मलखान सिंह

सुशील मानव
परसों शाम को फोन पर बात हुई, मैंने पूछा था, सर नया क्या लिख रहे हैं इन दिनों। उन्होंने जवाब में कहा था- “ये मेरे...
जनमतशख्सियतस्मृति

उजले दिनों की उम्मीद का कवि वीरेन डंगवाल

समकालीन जनमत
मंगलेश डबराल ‘इन्हीं सड़कों से चल कर आते हैं आततायी/ इन्हीं सड़कों से चल कर आयेंगे अपने भी जन.’ वीरेन डंगवाल ‘अपने जन’ के, इस...
जनमतशख्सियतस्मृति

कटरी की रुक्मिनी: कविता का अलग रास्ता

डॉ रामायन राम
वीरेन डंगवाल 70 के दशक की चेतना के कवि हैं। कविता के क्षेत्र मे उनका प्रवेश 70 के दशक में हुआ । यह वह समय...
जनमतशख्सियतस्मृति

नायक विहीन समय में प्रेमचंद

समकालीन जनमत
प्रो. सदानन्द शाही कुछ तारीखें कागज के कैलेण्डरों पर दर्ज होती हैं और याद रखी जाती हैं या पर कुछ तारीखें ऐसी भी होती हैं...
जनमतशख्सियतस्मृति

प्रेमचंद की दलित स्त्रियाँ: वैभव सिंह

समकालीन जनमत
वैभव सिंह प्रेमचंद जितना पुरुष-जीवन का अंकन करने वाले कथाकार हैं, उतना ही स्त्रियों के जीवन के भी विविध पक्षों को कथा में व्यक्त करते...
जनमतशख्सियतस्मृति

प्रेमचंद के स्त्री पात्र: प्रो.गोपाल प्रधान

गोपाल प्रधान
प्रेमचंद का साहित्य प्रासंगिक होने के साथ साथ ज़ेरे बहस भी रहा है । दलित साहित्य के लेखकों ने उनके साहित्य को सहानुभूति का साहित्य...
जनमतशख्सियतस्मृति

किसान आत्म-हत्याओं के दौर में प्रेमचंद – प्रो. सदानन्द शाही

समकालीन जनमत
 प्रो.सदानन्द शाही किसानों की आत्म हत्यायें हमारे समाज की भयावह सचाई है। भारत जैसे देश में किसान आत्महत्यायें कर रहे हैं यह शर्मशार कर देने...
जनमतशख्सियतस्मृति

सदगति : ‘ग़म क्या सिर के कटने का’*

समकालीन जनमत
प्रो. सदानन्द शाही सदगति दलित पात्र दुखी की कहानी है। दुखी ने बेटी की शादी तय की है। साइत विचरवाने के लिए पं0. घासीराम को बुलाने...
जनमतसाहित्य-संस्कृतिस्मृति

बच्चों की निगाह में प्रेमचंद

समकालीन जनमत
[2016 में 31 जुलाई को जसम के कार्यक्रम  ‘मशाल-ए-प्रेमचंद’ में बच्चों द्वारा बनाए गए चित्रों की प्रदर्शनी से  कुछ तस्वीरें ]...
जनमतशख्सियतस्मृति

मेरी माँ ने मुझे प्रेमचन्द का भक्त बनाया : गजानन माधव मुक्तिबोध

समकालीन जनमत
एक छाया-चित्र है । प्रेमचन्द और प्रसाद दोनों खड़े हैं । प्रसाद गम्भीर सस्मित । प्रेमचन्द के होंठों पर अस्फुट हास्य । विभिन्न विचित्र प्रकृति...
जनमतशख्सियतस्मृति

प्रेमचंद ने ‘अछूत की शिकायत’ को कथा-कहानी में ढाला

डॉ रामायन राम
  1914 में हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिका सरस्वती में हीरा डोम की कविता अछूत की शिकायत प्रकाशित हुई थी,जिसमे कवि ने अछूतों के साथ होने...
जनमतशख्सियतस्मृति

नई पीढ़ी को भी उम्दा साहित्य के संस्कार देने वाले प्रेमचंद

अभिषेक मिश्र
कहा जाता है ‘साहित्य समाज का दर्पण है’। साहित्यकारों से भी यही अपेक्षा रखी जाती है। पर धीरे-धीरे आजादी मिलने से पूर्व और इसके बाद...
जनमतशख्सियतस्मृति

रेलवे स्टेशन पर प्रेमचन्द

समकालीन जनमत
डॉ. रेखा सेठी अभी हाल ही में नयी दिल्ली के रेलवे स्टेशन पर मुझे प्रेमचन्द की लोकप्रियता का नया अनुभव हुआ। स्टेशन के लगभग हर...
शख्सियतसाहित्य-संस्कृतिस्मृति

महाजनी सभ्यता : प्रेमचंद

समकालीन जनमत
महाजनी सभ्यता मुज़द: ए दिल कि मसीहा नफ़से मी आयद; कि जे़ अनफ़ास खुशश बूए कसे मी आयद। ( हृदय तू प्रसन्न हो कि पीयूषपाणि...
साहित्य-संस्कृतिस्मृति

‘जीवन और साहित्य में घृणा का स्थान’ से कुछ अंश: प्रेमचंद

समकालीन जनमत
निंदा, क्रोध और घृणा ये सभी दुर्गुण हैं, लेकिन मानव जीवन में से अगर इन दुर्गुणों को निकल दीजिए, तो संसार नरक हो जायेगा। यह...
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