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राजग के स्वर्णिम दिन बीत चुके हैं ?

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। मई 1998 में 12 वीं लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए भाजपा ने अन्य दलों के साथ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन (राजग) कायम किया। इसके पहले 11 वीं लोकसभा के चुनाव में समता पार्टी ने, जिसकी स्थापना जार्ज फर्नांडीज और नीतीश कुमार ने 1994 में की थी, भाजपा से गठबन्धन कायम किया था, पर राजग का गठन 1998 में ही किया गया।

भाजपा का जन्म 1980 में हुआ था और आठवीं लोकसभा के चुनाव में उसे केवल दो सीटें मिली थीं। 1986 में लालकृष्ण अडवाणी पार्टी के अध्यक्ष बने और नौवीं लोकसभा के चुनाव, 1989 में भाजपा को 85 सीटें प्राप्त हुईं। इसके बाद भाजपा चमकी और 1989 से 1996 के बीच बहुत कुछ घटा। 1990 में अडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक की रथयात्रा की और 10 वीं लोकसभा में 120 सांसद हुए। बीसवीं सदी के अन्तिम दशक में भाजपा का सितारा चमका। उस समय सही अर्थों में उसके मार्ग दर्शक लालकृष्ण आडवाणी ही थे।

11 वीं लोकसभा में दो वर्ष में तीन प्रधानमंत्री बने थे – अटल बिहारी वाजपेई 16 मई 1996 से 01 जून 1996 तक, देवगौड़ा 01 जून 1996 से 21 अप्रैल 1997 तक और इन्द्रकुमार गुजराल 21 अप्रैल 1997 से 19 मार्च 1998 तक। 11 वें लोकसभा में मात्र 13 दिन अटल बिहारी वाजपेई की सरकार बनी रही थी। यह समय अस्थिर सरकारों का था।

12 वीं लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर भाजपा ने अन्य कई दलों के सहयोग से राजग का गठन किया। इसके पहले दलीय गठबन्धन का ऐसा उदाहरण भारतीय राजनीति में नहीं था। भाजपा ने जिन दलों के साथ गठबन्धन कायम किया था, उसमें हिन्दुत्व विचारधारा की पार्टी केवल शिवसेना थी। अन्य दलों का भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचारधारा से कोई सम्बन्ध नहीं था। जिसे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन या एन डी ए कहते हैं, उनमें शामिल सभी दलों में भाजपा से वैचारिक साम्य शिवसेना को छोड़कर और किसी का न पहले था और न अभी है।

गठबन्धन की राजनीति का एक अहम सवाल यह है कि वैचारिक असमानता के बाद भी सभी राजनीतिक दल दक्षिणपंथी राजनीति (हिन्दुत्व की राजनीति) के साथ क्यों हैं ? क्या गठबन्धन की राजनीति का एकमात्र संबंध अवसरवाद नहीं है ? गठबन्धन की राजनीति से विचारधारा की राजनीति की विदाई आरम्भ होती है। सरकार बनाने के लिए ही गठबन्धन की राजनीति का जन्म हुआ और वह भी पहले राजग (एनडीए)  का। संप्रग (संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन) का गठन बाद का है।

1998 में भाजपा ने तेरह दलों के साथ गठबन्धन कायम किया था। जार्ज फर्नांडीज 2008 तक राजग के संयोजक रहे। वे समाजवादी और लोहियावादी थे। बाद में शरद यादव संयोजक बने। गठबन्धन से निकलने के बाद 16 जून 2013 को शरद यादव ने राजग के संयोजक पद से त्याग पत्र दिया। उनके बाद आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री तेदेपा के अध्यक्ष चन्द्रबाबू नायडू संयोजक बने थे। 2013 के बाद आधिकारिक रूप से राजग का कोई संयोजक नहीं है।

भारतीय राजनीतिक दलों का सत्ता-मोह किसी से छुपा नहीं है। चुनाव के समय अक्सर गठबन्धन की चर्चा की जाती है और सरकार बनने के बाद जोड़-तोड़ के तहत सरकारें कायम रहती हैं या फिर अस्थिर की जाती हैं। इस समय केन्द्र में राजग की तीसरी सरकार है। यद्यपि इसे राजग-2 ही कहा जाता है क्योंकि 12 वीं लोकसभा में यह सरकार 13 महीने तक चली थी। उस समय अन्ना द्रमुक ने अपना समर्थन वापस ले लिया था और सरकार गिर गयी थी।

12 वीं और 13 वीं लोकसभा में भाजपा के 182 सांसद थे। 13 वीं लोकसभा में भाजपा के साथ कुछ और क्षेत्रीय दल शामिल हुए और राजग ने बड़े बहुमत से चुनाव जीता। अटल बिहारी वाजपेई तीसरी बार प्रधानमंत्री 1999 में बने। उस समय भाजपा के साथ बीस से अधिक क्षेत्रीय दल थे। पूरे पांच वर्ष तक राजग सरकार चली।

चौदहवीं लोकसभा का चुनाव भाजपा ने समय पूर्व कराया और ‘इंडिया शाइनिंग’ के चमकीले स्लोगन के बाद भी भाजपा चुनाव हार गयी। उसके सांसदों की संख्या 182 से घटकर 138 रह गयी। सोलहवीं लोकसभा, 2014 में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने एक लम्बी छलांग लगाई और उसकी सीट 282 हो गयी। इसके पहले उसकी अधिकतम सीट 182 थी – 12 वीं और 13 वीं लोकसभा में। स्पष्ट बहुमत के बाद भी भाजपा ने अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ अपना गठबन्धन बनाये रखा।

इस गठबन्धन में उसके साथ शामिल दलों की संख्या पहले के गठबन्धन से अधिक है। इनमें से मात्र ग्यारह दलों की ही संसद में उपस्थिति है। आरम्भ में तेदेपा और रालोसपा गठबन्धन में शामिल थे, जिनके सांसदों की संख्या क्रमशः 16 और 3 है। अब ये दोनों दल गठबन्धन से बाहर हैं। 18 सांसदों के साथ शिवसेना, 6 सांसदों के साथ लोजपा, 4 सांसदों के साथ शिरोमणि अकाली दल, 2 सांसदों के साथ अपना दल और नगा पीपुल्स फ्रन्ट, नेशनल पीपुलस पार्टी (मेघालय), पट्टालि मक्कल काच्चि (पी एम के, तमिलनाडु) , स्वाभिमानी पक्ष (राजू शेट्टी, महाराष्ट्र) और आल इंडिया एन आर कांग्रेस (पाडुचेरी)  का एक-एक सांसद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन में है। इनमें से अभी भाजपा के साथ अपना दल का थोड़ा मन-मुटाव चल रहा है। अब संसद में भाजपा के साथ मात्र 10 क्षेत्रीय दल हैं।

16 वीं लोकसभा में राजग की कुल सांसद संख्या 334 थी, जो तेदेपा और रालोसपा के बाहर होने के बाद 321 रह गयी है। राजग के सहयोगी 14 दल ऐसे हैं जिन्हें लोकसभा चुनाव में एक भी सीट प्राप्त नहीं हुई थी। इन दलों में से अधिसंख्य ने 16 वीं लोकसभा का चुनाव लड़ा था पर उन्हें एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई। तेलुगु अभिनेता पवन कल्याण की पार्टी जन सेना, तमलिनाडु के अभिनेता-राजनेता विजयकांत की पार्टी डी एम डी के, कुलदीप बिश्नोई की पार्टी हरियाणा जनहित कांग्रेस, तमिलनाडु के वैयापुरी गोपाल स्वामी वाइको की पार्टी एम डी एम के, तमिलनाडु की टी आर पचमुत्थू की पार्टी आइ जे के , तमिलनाडु की ई आर रसवारन की पार्टी के एम डी के (कोनगुनाउ मक्कल देसियआ काच्ची) , रामदास अटावले (महाराष्ट्र)  की पार्टी रिपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया (आर), तेलुगु अभिनेता पवन कल्याण की पार्टी जनसेना, मिजोरम का युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रन्ट, विमल गुरांग का गोरखा जनमुक्ति मोर्चा, एन सोनकिल की पार्टी मणिपुर पीपुल्स पार्टी, ए भी थगारक्षन की पार्टी आर एस पी (रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, बोल्शेविक) नोबल मैथ्यू की पार्टी केरल कांग्रेस (नेशनलिस्ट) और महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी (गोवा)  भाजपा के साथ है।

फिलहाल राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन मजबूत स्थिति में नहीं है। जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन है। वहां भाजपा-पीडीपी का संबंध विच्छेद हो चुका है। 17 राज्यों में भाजपा के सहयोगी दलों की सरकार है। 10 राज्यों – अरुणांचल प्रदेश, असम, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखण्ड, मणिपुर, त्रिपुरा, उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश में भाजपा की अपनी सरकार है। गोवा और महाराष्ट्र की सरकार में वह प्रमुख दल है। पांच राज्यों – बिहार, मेघालय, नगालैण्ड, सिक्किम और मिजोरम की सरकार में वह कनिष्ठ सहयोगी दल है।

2014 से 2019 की स्थिति भिन्न है। पहले दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार थी। आंध्रप्रदेश, जम्मू कश्मीर, पंजाब और पाड्डुचेरी में वह गठबन्धन की सरकार में थी। गठबन्धन अब भी है और 2019 के चुनाव के पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन में कितने दल शामिल रहेंगे, नहीं कहा जा सकता। राजग के स्वर्णिम दिन बीत चुके हैं। अटल बिहारी वाजपेई में सहयोगी दलों को साथ लेकर चलने की काबिलियत थी, जो नरेन्द्र मोदी में नहीं है।

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन में असन्तोष कम नहीं है। मात्र चार प्रमुख क्षेत्रीय दल उसके साथ हैं – शिवसेना, अकाली दल, जदयू और लोजपा। वैसे राजग में भाजपा के अलावा छोटे-बड़े राजनीतिक दलों की कुल संख्या 42 है – महाराष्ट्र में चार, बिहार में दो, केरल में आठ, उत्तर प्रदेश में दो, तमिलनाडु में चार, पंजाब में एक, पुड्डुचेरी में एक, नगालैण्ण्ड में दो, पश्चिम बंगाल में दो, गोवा में तीन, असम में दो, झारखण्ड में एक, मणिपुर में दो, सिक्किम में एक, मेघालय में चार, मिजोरम में एक, अरुणांचल प्रदेश में एक और त्रिपुरा में एक।

जिन 18 राज्यों के क्षेत्रीय दलों के साथ भाजपा का गठबन्धन है, उनमें सभी पूर्वोत्तर राज्यों के क्षेत्रीय दल है। केरल में ऐसे क्षेत्रीय दलों की संख्या सर्वाधिक आठ है। केवल लोकसभा चुनाव को ही ध्यान में रखकर भाजपा ने क्षेत्रीय दलों के साथ गठबन्धन नहीं किया है। राजग – 2 का दौर पहले के दौर से भिन्न है। भाजपा के समक्ष पूरा देश है और बड़े सुनियोजित ढंग से छोटे से छोटे दलों को उसने अपने साथ लिया है। अक्सर इस ओर कम ध्यान दिया जाता है और लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर बने गठबन्धन पर ही सारा ध्यान केन्द्रित किया जाता है। तमिलनाडु के चार क्षेत्रीय दल भाजपा के साथ हैं और बिहार के केवल दो। बिहार के इन दो क्षेत्रीय दलों – जदयू और लोजपा का साथ संसदीय चुनाव में प्रमुख है, पर तमिलनाडु में 4 क्षेत्रीय दलों को अपने साथ लेकर भाजपा वहां अपना आधार क्षेत्र बना रही है। केरल पर उसका ध्यान सर्वाधिक है क्योंकि वहां वाममोर्चे की सरकार है। भाजपा की हिन्दुत्व विचारधारा को केवल मार्क्सवादी विचारधारा से खतरा है। इसीलिए उसने जेएनयू को बर्बाद किया और केरल में 8 क्षेत्रीय दलों से उसकी मैत्री है।

जिन क्षेत्रीय दलों की हैसियत उनके अपने राज्य में अधिक नहीं है, भाजपा ने उसे भी अपने साथ ले लिया है। यह एक नया गठबन्धन है जिसके चुनावी परिणाम विविध रूपों में बाद के चुनावों में दिखाई देंगे। वोटों को प्रभावित करने में कमोबेश उनकी भूमिका निश्चित रूप से बऩी रहेगी।

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन (राजग) का गठन संसदीय चुनाव को ध्यान में रखकर किया गया था। राज्य स्तर पर भी इसकी भूमिका रही। इससे एक निष्कर्ष यह निकलता है कि मतदाता अब स्पष्ट बहुमत किसी भी एक दल को सदैव नहीं देना चाहता। 70 वर्ष के स्वतंत्र भारत में उसने सभी दलों को देख-परख लिया है। जहां तक राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन का सवाल है, भाजपा कठिन स्थिति में है। बिहार में सीटों को लेकर हुआ समझौता प्रमाण है। 2014 के लोकसभा चुनाव में जदयू को केवल दो सीट मिली थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में उसने 17 सीटें ली हैं और भाजपा को कम सीटों पर समझौता करना पड़ा है। सत्तरहवें लोकसभा चुनाव, 2019 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन पहले की तरह प्रभावशाली नहीं रहेगा।

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