समकालीन जनमत
सिनेमास्मृति

रवीन्द्रनाथ और हिंदुस्तानी सिनेमा

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के जन्मदिवस पर

प्रदीप दाश


रवीन्द्रनाथ टैगोर ने साहित्य की सभी विधाओं में लिखा लेकिन सबसे पहले वह एक कवि ही थे. उन्होंने अपनी कविताओं, संगीत और निबंधों के जरिये न सिर्फ़ बंगालियों को बल्कि सारी दुनिया के लोगों को प्रभावित किया. 1913 में ‘गीतांजलि’ के लिए साहित्य का नोबल पुरस्कार पाने वाले वह पहले गैर यूरोपीय व्यक्ति थे. बंगाल के सांस्कृतिक पुनर्जागरण में उनकी महती भूमिका थी.

35 वर्ष की उम्र में रवीन्द्रनाथ ने ‘बांग्ला वर्ष 1400 (यह तारीख़ 1993 ईसवी हुई)’ नाम से कविता लिखी . कविता इस तरह है – आजी होते शतबरश परे, के तुमि पोड़ीचो बोसी आमार कोबिताकहानी –कौतुहल भरे – आजी होते शतबरश परे. हिंदी में यह इस तरह कही जायेगी –आज  से सौ साल बाद, कौन हो तुम पढ़ते हुए मेरी कविता – कौतुहल में – आज से सौ साल बाद ?

ऐसा लगता है कि उन्हें इस बात का पूरा यकीन था कि सौ साल बाद भी लोग उनके साहित्य को पढ़ेंगे. हम देख सकते हैं कि उनकी मृत्यु के कई वर्षों के बाद भी (उनकी मृत्यु 1941 में हुई) उनके उपन्यासों और कहानियों में लोगों की रूचि बनी हुई है. समकालीन फ़िल्म और थिएटर निर्देशक यह मानते हैं कि रवीन्द्रनाथ का साहित्य आज सोशल मीडिया के अति आधुनिक समय में भी प्रासंगिक बना हुआ है.

हिन्दुस्तानी सिनेमा के विकास में रवीन्द्रनाथ के जुड़ाव का अब तक ढंग से मूल्यांकन दर्ज नहीं हुआ है. जब वह 25 साल के हो चुके थे तब ही पहली मूक फ़िल्म हिन्दुस्तान में बनी और जब वह उमरदराज हुए तब बोलता हुआ सिनेमा देश में बनना शुरू हुआ. 1930 में सोवियत संघ की यात्रा के दौरान उन्हें सर्गेई आइसेन्स्टाइन की कालजयी फ़िल्म ‘बैटलशिप पोटेमकिन’ देखने का मौका मिला. इसी दौरान उन्होंने रूसी फ़िल्मकारों के साथ मानवजाति के इतिहास पर एक फ़िल्म बनाने के विचार पर चर्चा की. 1929 में जर्मनी के म्यूनिख शहर में ईसा मसीह पर एक नाटक देखने के बाद रवीन्द्रनाथ ने  ‘चाइल्ड’ नाम की एक फ़िल्म की पटकथा भी लिखी जिसका दुर्भाग्य से निर्माण ही नहीं हुआ.

मूक फ़िल्मों के ज़माने में कुछ फ़िल्में रवीन्द्रनाथ के साहित्य से प्रभावित होकर निर्मित हुई थीं. उनमें से कुछ का विवरण इस तरह है : मनभंजन ( 1929 ) – निर्देशक: नरेश मित्र ; गृहबाला ( 1929 ) – निर्देशक: मधु बोस – इस फ़िल्म में रवीन्द्रनाथ ने पटकथा लिखने में मदद की थी ; मुक्ति ( 1935 ) – निर्देशक: प्रथमेश चन्द्र बरुआ – पहली बार इस फ़िल्म में रवीन्द्र संगीत का सफलतापूर्वक इस्तेमाल हुआ था ; बलिदान (1927 ) – निर्देशक: नवल गांधी- यह फ़िल्म रवीन्द्रनाथ द्वारा लिखे नाटक ‘विसर्जन’ पर आधारित थी. नेशनल फ़िल्म आर्काइव के संस्थापक निदेशक और हिंदुस्तान में फ़िल्म सरंक्षण के शीर्ष व्यक्ति पी. के. नायर ने इस फ़िल्म को दस सबसे जरुरी फ़िल्मों में शामिल किया है जिनके प्रिंट नष्ट हो गए थे. 1932 में निर्मित ‘नटीर पूजा’ एकमात्र फ़िल्म है जिसमें रवीन्द्रनाथ को निर्देशन का क्रेडिट मिला. यह फ़िल्म उनके द्वारा तैयार नृत्य नाटिका की रिकॉर्डिंग है.

फिर बोलती हुई फ़िल्मों का दौर आया. इस युग के शुरुआती चरण में बनी कुछ ख़ास फ़िल्में रवीन्द्रनाथ के साहित्य पर आधारित थीं . इनका विवरण इस तरह है :

गोरा ( 1938 ) – निर्देशक : नरेश मित्र. ‘गोरा’ नाम से ही लिखे रवीन्द्रनाथ के उपन्यास पर आधारित जिसका संगीत काज़ी नजरुल इस्लाम ने तैयार किया था.

गोरा फ़िल्म का लिंक : https://www.youtube.com/watch?v=4J69kBzdWdM

मिलन ( 1946  ) – निर्देशक : नितिन बोस . यह हिंदी फ़िल्म रवीन्द्रनाथ के उपन्यास नौकाडूबी पर आधारित है.

नितिन बोस की फ़िल्म मिलन का लिंक : https://www.youtube.com/watch?v=N5Py1dcTCbY

2011 में नितिन बोस की मिलन के बाद ऋतुपर्णो घोष ने भी नौकाडूबी का निर्माण किया. रवीन्द्रनाथ ने यह उपन्यास 1906 में लिखा था. यह अलग बात है कि ऋतुपर्णो यह कहते थे कि उन्होंने अपनी फ़िल्म में रवीन्द्रनाथ की कहानी का सिर्फ़ ढांचा लिया है.

ऋतुपर्णो घोष की नौकाडूबी का लिंक : https://www.youtube.com/watch?v=Wh-WbcZMYvI

1957 में रवीन्द्रनाथ की कहानी पर बांग्ला में ‘काबुलीवाला’ फ़िल्म का निर्माण तपन सिन्हा ने किया . इस फ़िल्म को बांग्ला में सर्वश्रेष्ठ फ़ीचर फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और सातवें अंतर्राष्ट्रीय बर्लिन फ़िल्म फ़ेस्टिवल में सिल्वर बीयर पुरस्कार मिला.

तपन सिन्हा निर्देशित काबुलीवाला का लिंक : https://www.youtube.com/watch?v=f1tnX_Vh36I

1961 में फिर से हेमेन गुप्त के निर्देशन में काबुलीवाला का निर्माण हुआ जिसमे बलराज साहनी ने काबुलीवाला का यादगार अभिनय किया.

हेमेन गुप्त की काबुलीवाला का लिंक : https://www.youtube.com/watch?v=f1tnX_Vh36I

ख़ुदित पाषाण – निर्देशक : तपन सिन्हा. यह फ़िल्म रवीन्द्रनाथ की कहानी पर आधारित थी. 1960 में निर्मित इस फ़िल्म को दूसरी सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरूस्कार मिला. उस्ताद अली अकबर खान ने इसका संगीत दिया था.

ख़ुदित पाषाण का लिंक : https://www.youtube.com/watch?v=1Ny_aU6rkiU

1961 में सत्यजित राय ने रवीन्द्रनाथ की तीन कहानियों – पोस्टमास्टर, मोनिहारा और समाप्ति  – के आधार पर ‘तीन कन्या’ के नाम से फ़िल्म बनाई जिसे सर्वश्रेष्ठ बांग्ला फ़ीचर फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और 13 वें बर्लिन अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के लिए सेज्निक गोल्डन लौरेल पुरस्कार से नवाजा गया.

तीन कन्या का लिंक : पोस्टमास्टर https://www.youtube.com/watch?v=B6OhpsIxVB8

मोनीहारा https://www.youtube.com/watch?v=2uIrUOE4xzI

समाप्ति https://www.youtube.com/watch?v=8xl169sWixA

चारुलता ( 1964 ) – निर्देशक : सत्यजित राय. रवीन्द्रनाथ की उपन्यासिका पर आधारित राय साहब की सबसे मशहूर फ़िल्मों में से एक है. इस फ़िल्म के लिए उन्हें 15 वें बर्लिन फ़िल्म फेस्टिवल श्रेष्ठ निर्देशन के लिए सिल्वर बीयर पुरस्कार मिला और सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के रूप में गोल्डन लायन के राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया.

चारुलता का लिंक : https://www.youtube.com/watch?v=gq3h4jSKWNw

अतिथि (1965 ) – तपन सिन्हा द्वारा निर्देशित यह फ़िल्म रवीन्द्रनाथ की इसी नाम की कहानी पर आधारित है. इसने दूसरी सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता. 1975 में हीरेन नाग ने इसी कहानी पर हिंदी में ‘गीत गाता चल’ बनाई.

1984 में सत्यजित राय ने रवीन्द्रनाथ के उपन्यास ‘घरे बाईरे’ ( घर और संसार) पर इसी नाम से फ़िल्म बनाई. इस फ़िल्म की पटकथा उन्होंने अपनी पहली फ़िल्म ‘पाथेर पांचाली’ से पहले ही 1940 के दशक में लिख ली थी.

‘घरे बाईरे’ का लिंक : https://www.youtube.com/watch?v=NNdEZEFrG7Y

1997 में कुमार शाहनी ने रवीन्द्रनाथ के उपन्यास के आधार पर ‘चार अध्याय’ फ़िल्म का निर्माण किया.

चोखेर बाली (2003) – ऋतुपर्णो घोष द्वारा निर्देशित यह फ़िल्म रवींद्रनाथ के उपन्यास पर आधारित है. बाद में यह हिंदी में डब होकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रिलीज़ की गयी. इस फ़िल्म को बंगाली भाषा में सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. इसे लोकार्नो फ़िल्म फेस्टिवल के गोल्डन लेपर्ड पुरुस्कार के लिए भी नामित किया गया था.

ताशेर देश – निर्देशक : क्यू (कौशिक मुखर्जी ) – यह 2002 में निर्मित हुई थी. यह रवीन्द्रनाथ द्वारा लिखी गई नृत्य नाटिका का उत्तर आधुनिक रूपांतरण है.

ताशेर देश का लिंक : : https://www.youtube.com/watch?v=9HGNHt6VV8g

इसके अलावा बहुत सी दस्तावेज़ी फ़िल्में भी रवींद्रनाथ पर बनी हैं जिनमें से दो प्रमुख फ़िल्में मुझे अभी याद आ रही हैं. पहली फ़िल्म उनकी जन्मशती पर 1961 में फ़िल्म प्रभाग द्वारा निर्मित की गयी जिसका निर्देशन सत्यजित राय ने किया. इसका नाम रवीन्द्रनाथ टैगोर ही था . दूसरी फ़िल्म ‘जीवन स्मृति’ के नाम से 2013 में ऋतुपर्णो घोष ने बनायी.

दोनों के लिंक इस तरह हैं :

रवीन्द्रनाथ टैगोर : https://www.youtube.com/watch?v=SPqQ7-XuLeA&feature=youtu.be

जीवन स्मृति : https://youtu.be/5TfPoq3lkso

मैं यहाँ अपनी बात को विराम देना चाहता हूँ . मैं जानता हूँ कि कम से कम 10 से 15 और फ़िल्में रवीद्रनाथ के साहित्य पर आधारित थीं लेकिन मैंने अपनी रूचि के हिसाब से इन फ़िल्मों का चयन किया है .

जन्मदिन मुबारक हो गुरुदेव !!

(दिल्ली में पले -बढ़े प्रदीप दाश नाटक विधा के गहरे जानकार हैं . उन्होंने लम्बे समय तक  दिल्ली में ‘नील प्रत्यूष’ नाम से एक रंग समूह भी संचालित किया . उनका एकमात्र नाटक ‘अप्रासंगिक’ दिल्ली  के बांगला नाटय प्रेमियों के बीच खासा चर्चित रहा है. अपने मित्रों के साथ मिलकर 2007 के इलाहाबाद के अर्द्द्ध कुम्भ पर उन्होंने ‘कॉफ़ी हॉउस टू कुम्भ ‘ डाक्यूमेंट्री का निर्माण और निर्देशन भी किया है . इंडिया टुडे समूह के साथ काम करने के बाद फिलहाल वे रवींद्र नाथ के चुनिन्दा साहित्य को हिंदी में लाने की तैयारी में जुटे हैं . प्रदीप सपरिवार दिल्ली में रहते हैं .)

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