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111 शिक्षकों, कार्यकर्ताओं, डाक्टरों, अधिवक्ताओं ने डाॅ. कफील खान को रिहा करने की मांग की

नई दिल्ली। देश के 111 शिक्षकों, कार्यकर्ताओं, शोध छात्रों, डाक्टरों, अधिवक्ताओं ने बीआरडी मेडिकल कालेज गोरखपुर के निलम्बित बाल रोग चिकित्सक डाॅ. कफील खान को तुरंत रिहा करने और बहाल करने की मांग की है।
डा. कफील 13 फरवरी से राष्ट्रीय सुरक्षा कानून में मथुरा जेल में बंद हैं।

कैम्पेन अंगेस्ट हेट स्पीच की ओर से जारी बयान पर 111 शिक्षकों, कार्यकर्ताओं, शोध छात्रों, अधिवक्ताओं ने हस्ताक्षर किए हैं।

बयान में कहा गया है कि हमें भारत में बढ़ती साम्प्रदायिकता को लेकर गहरी चिन्ता है। यह लोगों के जीवन, भोजन एवं स्वास्थ्य के अधिकारों को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है, नतीजतन एक समुदाय का सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार हो रहा है, उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है, उनके साथ शारीरिक हिंसा की जा रही है और इसके गम्भीर मानसिक दुष्प्रभाव भी पड़ रहे हैं। इस पत्र में हम बालरोग विशेषज्ञ डाॅ0 कफील खान के नितांत अस्वीकार्य और अवैध गिरफ्तारी की ओर आपका ध्यान आकर्षित करेंगे जिन्हें क्रूर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एन0एस0ए0) के अन्तर्गत जेल में बन्द कर दिया गया है।

बयान में कहा गया है कि डाॅ0 कफील खान का नाम अगस्त 2017 में सुर्खियों में उस समय आया जब उ0प्र0 के गोरखपुर के बाबा राघव दास मेडिकल काॅलेज में आक्सीजन  की आपूर्ति के कारण बच्चों की मौत हुई थी। डाॅ0 कफील खान ने अपने व्यक्तिगत स्रोतों का प्रयोग करते हुये और स्वास्थ्यकर्मियों की मदद से आक्सीजन  की आपूर्ति की कमी को पूरी करते हुये कई बच्चों की जानें बचायी थीं लेकिन डाॅ0 कफील खान को तुरंत ही जेल में डाल दिया गया और सात माह बाद तभी छोड़ा गया जब सबूतों के अभाव में न्यायालय ने उन्हें जमानत दे दी।

डाॅ0 कफील खान 22 सितम्बर 2018 को बहराइच जिला अस्पताल में 45 दिनों में 70 बच्चों को मौत के घाट सुला देनेवाले ‘रहस्यमय रोग’ की जाँच के लिये गये थे। उन्हें वहाँ से भी उठाकर 18 घंटे तक अवैध हिरासत में रखा गया और उसके बाद भारतीय दंड संहिता की अनेक धारायें लगाकर एक महीने तक जेल में बन्द रखा गया।

29 जनवरी 2020 को डाॅ0 कफील खान को एक बार फिर बाॅम्बे एअरपोर्ट पर गिरफ्तार कर लिया गया।  उन पर भड़काने वाला भाषण देने का आरोप लगाया गया लेकिन उन्हें अदालत से जमानत मिल गयी. जमानत पर वह जेल से रिहा हो पाते कि उन्हें 13 फरवरी को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के अन्तर्गत दोषारोपित कर दिया गया.

डॉ कफील ने 19 मार्च को प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि चूँकि स्वास्थ्य सेवा में कर्मियों की बहुत कमी है इसलिये उन्हें रिहा करके स्वास्थ्य सेवा में लगाया जाय। कोविड-19 महामारी के सन्दर्भ में उच्चतम न्यायालय ने 23 मार्च 2020 को एक निर्देश जारी किया कि सभी कैदी, चाहे वे विचाराधीन हों या 7 साल से कम की कैद के सज़ायाफ़्ता हों, उन्हें 6 सप्ताह के पैरोल पर रिहा कर दिया जाय। डाॅ0 कफील खान अकेले ऐसे कैदी थे जिन्हें रिहा नहीं किया गया और उनके पैरोल के आदेश को निलम्बित रखा गया। इस तरह के कैद का यही सन्देश जाता है कि जो कोई भी सरकार को चुनौती देगा उसे क्रूरतापूर्वक कुचल दिया जायेगा।

‘ यह काबिलेगौर है कि नागरिक, और खासतौर पर रोगी, इस बात को बखूबी समझते हैं कि अगर स्वास्थ्यकर्मी को स्वास्थ्य सेवा में हुयी चूक के खिलाफ बोलने नहीं दिया जायेगा तो उसका खामियाज़ा उन्हें ही भुगतना होगा। जापानी बी एनसिफैलाइटिस ने पहले भी कई जानें ली है और कोई भी युक्तियुक्त सरकार यह जरूर समझेगी कि यदि किसी डाॅक्टर के पास किसी रोग की महारत है तो वह उस रोग से बचाव की रणनीति बनाने के लिये महत्वपूर्ण स्रोत है। अगस्त 2017 की घटना ने गोरखपुर के अस्पताल की दयनीय स्थिति को उजागर कर दिया जिसे सिर्फ सरकार की लापरवाही के चलते बरबाद होने के लिये छोड़ दिया गया था- यह एक ऐसी कहानी है जो समस्त सरकारी अस्पतालों में बार-बार दुहरायी जाती है और वर्तमान कोविड-19 की महामारी ने उसे उधेड़ कर रख दिया है। ‘

बयान में कहा गया है कि ‘ मुख्यमंत्री की शह पर डाॅ0 खान को लगातार निशाना बनाया जा रहा है। सरकार को चुनौती देने का कार्य कैसे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा बन जाता है? क्या उनके मुसलमान होने का यही मतलब है कि न्याय पाने के विधिक अधिकारों पर उनका हक़ कमतर है? यदि हाँ तो भारत के लिये धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और लोकतंत्र खोखले शब्द मात्र हैं। जब मुख्यमंत्री व्यक्तिगत रूप से खुन्नस खाये हो और सारे कानूनी आदेशों की धज्जियाँ उड़ा रहा हो तो लोगों को न्याय कैसे मिलेगा? क्या अपने आदेशों को लागू करवाने के लिये उच्चतम न्यायालय को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये और उनका पालन न होने पर न्यायालय की अवमानना का प्रकरण नहीं चलना चाहिये। आजादी पर हमला भी कोविड-19 की महामारी जैसा ही है और इसका जब सामाजिक संक्रमण हो जायेगा तो एक वक्त वह आयेगा जब इसका समाधान मुश्किल हो जायेगा। ‘

बयान पर हस्ताक्षर

1- ए0 सुनीता, वुमेन एण्ड ट्रान्सजेन्डर आर्गेनाइजे़शन्स ज्वाइंट एक्शन कमेटी।
2- एडवोकेट अवनि चैकसी, अधिवक्ता, बंगलोर।
3- एडवोकेट मैत्रेयी कृष्णन, अधिवक्ता, बंगलोर।
4- एडवोकेट विनय कुरगालय एस0, अधिवक्ता, बंगलोर।
5- एडवोकेट एडवर्ड प्रेमदास, पीपुल्स फोरम फाॅर जस्टिस एण्ड हेल्थ, नई दिल्ली।
6- ऐमन खान, शोधछात्र एवं कार्यकर्ता, बंगलुरु।
7- आकाश भट्टाचार्य, फैकल्टी, अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय।
8- अखिला वासन, कर्नाटक जनारोग्य चालुवली।
9- अल्बर्ट देवसहायम एस0जे0।
10- आल्विन डिसूजा, भारतीय सामाजिक संस्थान।
11- अमिता जोसेफ, अधिवक्ता।
12- आनन्द पटवर्धन
13- अनिरुद्ध बोरा, पब्लिक हेल्थ रिसोर्स नेटवर्क, ओडिशा
14- अनुपमा पोतलुरी, हैदराबाद विश्वविद्यालय, हैदराबाद।
15- अकिला खान, मुम्बई, महाराष्ट्र।
16- आरोकिया मैरी, डायरेक्टर, सिटिजनशिप एण्ड एडवोकैसी।
17- आशीर्वाद, सेन्टर फाॅर सोशल कन्सर्न, बंगलोर।
18- बिट्टू के0आर0, कर्नाटक जनशक्ति।
19- ब्रिनेली डिसूजा, टिस एवं संयोजक, जनस्वास्थ्य अभियान, मुम्बई।
20- दीपा वी0, जनस्वास्थ्य अभियान।
21- दीपक कुमार, जनस्वास्थ्य कर्मी।
22- दीपिका जोशी, शोधछात्रा, छत्तीसगढ़।
23- धनंजय रामकृष्ण शिंदे, सचिव, आम आदमी पार्टी, महाराष्ट्र।
24- दिनेश सी0 माली, विधि छात्र।
25- दीपा सिन्हा।
26- दीपंकर, पूर्व फैकल्टी, आई0आई0टी0 बाॅम्बे, वर्तमान में मुख्य वैज्ञानिक, ट्रीलैब्स फाउन्डेशन।
27- डाॅ0 अभय शुक्ला, जन स्वास्थ्य अभियान।
28- डाॅ0 जोसेफ जैवियर, निदेशक, भारतीय सामाजिक संस्थान, बंगलोर।
29- डाॅ0 मोहनन पुलिकोदन, केरल।
30- डाॅ0 शकील, सी0एच0ए0आर0एम0, पटना।
31- डाॅ0 सिल्विया करपगम, जन स्वास्थ्य चिकित्सक एवं शोधछात्र।
32- डाॅ0 वन्दना प्रसाद, सामुदायिक बालरोग विशेषज्ञ।
33- डाॅ0 अमर जेसानी।
34- डाॅ0 अनन्त फड़के, पुणे।
35- डाॅ0 अनीता रेगो, पल्र्स फाॅर डेवलपमेंट
36- डाॅ0 एन्टोनी कोलानूर, अवकाश प्राप्त निदेशक, राज्य स्वास्थ्य स्रोत केन्द्र, छत्तीसगढ़।
37- डाॅ0 आरती पी0एम0, सहायक प्रोफेसर, स्कूल आॅफ लीगल थाॅट, महात्मा गाँधी विश्वविद्यालय, कोट्टायम, केरल।
38- डाॅ0 बी कार्तिक नवायन, एडवोकेट, हैदराबाद।
39- डाॅ0 बिजाॅय राॅय, जन स्वास्थ्य शोधछात्र, नई दिल्ली।
40- डाॅ0 गोपाल दबाडे, जन स्वास्थ्य अभियान, धारवाड़, कर्नाटक।
41- डाॅ0 मीरा शिवा, जन स्वास्थ्य।
42- डाॅ0 मोनिका थामस, न्यूरोलाॅजिस्ट, नई दिल्ली।
43- डाॅ0 मुनीर मम्मी कुट्टी, जन स्वास्थ्य, पुणे।
44- डाॅ0 पीहू परदेसी, सहायक प्रोफेसर, टिस, मुम्बई।
45- डाॅ0 सिद्धार्थ आचार्य, जन स्वास्थ्य दंत चिकित्सक।
46- डाॅ0 वसु एच0वी0, गौरी मीडिया।
47- डाॅ0 वीणा शत्रुघ्न, चिकित्सा वैज्ञानिक (अवकाश प्राप्त)।
48- डाॅ0 आजम अन्सारी।
49- डाॅ0 दुनू राॅय, हेजार्ड्स सेन्टर।
50- द्युति, पी0एच0डी0 शोधछात्रा, सोशल एन्थ्रोपोलाॅजी, ससेक्स विश्वविद्यालय।
51- एल्ड्रेड टेलिस, कार्यकारी निदेशक, संकल्प पुनर्वास ट्रस्ट।
52- फ्रेड्रिक्स सेड्रिक प्रकाश, मानवाधिकार रक्षक।
53- फ्रेड्रिक्स जोति एस0जे0, कोलकाता।
54- जी0 रवि, विकलांग अधिकार कार्यकर्ता, बेंगलुरु।
55- गीता सेशु, पत्रकार, फ्री स्पीच कलेक्टिव की सह-संस्थापक।
56- गाॅडफ्रे डी0 लिमा, नाशिक।
57- हेमा स्वामीनाथन, असिस्टेंट प्रोफेसर, सेन्टर फाॅर पब्लिक पाॅलिसी, भारतीय प्रबन्धन संस्थान, बंगलोर।
58- इनायत सिंह कक्कड़, जन स्वास्थ्य अभियान।
59- जगदीश पटेल, आॅक्यूपेशनल हेल्थ एक्टीविस्ट।
60- डाॅ0 मोहन राव, पूर्व प्रोफेसर, सेन्टर आॅफ सोशल मेडिसिन एण्ड कम्युनिटी हेल्थ, जे0एन0यू0।
61- जशोधरा दासगुप्ता, स्वतंत्र शोधछात्रा, नई दिल्ली।
62- ज्योत्सना झा।
63- कल्याणी मेनन सेन, फेमिनिस्ट लर्निंग पार्टनरशिप्स, गुड़गाँव- 122017, भारत।
64- कमलाकर दुव्वुरु, लेखक।
65- कामायनी बाली महाबल, जन स्वास्थ्य अभियान, मुम्बई।
66- कविता श्रीनिवासन, चिन्तित व्यक्ति।
67- क्षीरजा कृष्णन, बंगलोर।
68- लता एल0आर0।
69- लक्ष्मण गणपति, बंगलोर।
70- लियो सलडान्हा, एन्विरान्मेंट सपोर्ट ग्रुप, बंगलोर।
71- मानवी आरती, छात्रा।
72- नचिकेत उडुपा।
73- नागरागरे रमेश, पीपुल्स डेमोक्रेटिक फोरम।
74- निशा बिस्वास।
75- परसिस गिनवाला, सामाजिक कार्यकर्ता, अहमदाबाद।
76- परवीन जहाँगीर, नर्मदा बचाओ आन्दोलन।
77- प्रबीर के0सी0, जन स्वास्थ्य सलाहकार।
78- प्रसन्ना सालिग्राम, जन स्वास्थ्य शोधछात्र, जे0एस0ए0 कर्नाटक।
79- प्रिया अइयर, नागरिक।
80- आर0 श्रीनिवासन, तेलंगाना।
81- राधा होल्ला, चिन्तित नागरिक बिहार।
82- राम दास राव, पीपुल्स यूनियन फाॅर सिविल लिबर्टीज़ एवं आल इंडिया पीपुल्स फोरम।
83- रवि दुग्गल, स्वतंत्र जन स्वास्थ्य शोधछात्र एवं कार्यकर्ता, मुम्बई।
84- रेनू खन्ना, सहज, गुजरात।
85- एस0 श्रीनिवासन, एल0ओ0सी0ओ0एस0टी0, वडोदरा।
86- एस0 सुब्रमणियन, अर्थशास्त्री, चेन्नई।
87- सरोजनी एन0, जे0एस0ए0।
88- शिवशंकर, अतिथि प्रोफेसर, आई0आई0टी0 बाॅॅम्बे।
89- शिवसुन्दर, लेखक एवं कार्यकर्ता।
90- सिद्धार्थ जोशी, शोधछात्र।
91- स्मिता शंकर, होशंगाबाद।
92- सौमित्र घोष, टिस, मुम्बई।
93- सिस्टर सेलिया, जनप्रिय सेवा केन्द्र।
94- सुदेशना सेनगुप्ता।
95- सुधा एन0, बंगलोर।
96- सुहास कोल्हेकर, एन0ए0पी0एम0 एवं जे0एस0ए0 के स्वास्थ्य अधिकार कार्यकर्ता।
97- सुलक्षणा नन्दी, जन स्वास्थ्य शोधछात्र, छत्तीसगढ़।
98- सुनीता वी0एस0 बन्देवार, हेल्थ इथिक्स एण्ड लाॅ इंस्टीट्यूट आॅफ एफ0एम0इ0एस0, मुम्बई/पुणे; विधायक ट्रस्ट।
99- सुरभि श्रीवास्तव, सी0इ0एच0ए0टी0।
100- सुरेश बी0।
101- सुवाशीष डे।
102- स्वर्ण भट, जी0आर0ए0के0ओ0ओ0एस0, कर्नाटक।
103- स्वाती सेशाद्रि, शोधछात्रा, बंगलोर।
104- स्वाती शिवानन्द, स्वतंत्र शोधछात्रा, बंगलोर।
105- तस्कीन मच्छीवाला।
106- विनय के0 कामत।
107- वाई0 के0 संध्या, हेल्थ वाच फोरम, उ0प्र0।
108- आर0 श्रीनिवासन, प्रोफेसर (अवकाश प्राप्त), आई0आई0एम0बी0।
109- देवकी नाम्बियार, पी0एच0डी0 जन स्वास्थ्य वैज्ञानिक।
110- रहमत अब्दुल।

 

(अंग्रेजी में जारी इस बयान का हिंदी अनुवाद दिनेश अस्थाना ने किया है )

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