समकालीन जनमत

Category : शख्सियत

शख्सियतस्मृति

भुलाए नहीं भूलेगा यह दिन

समकालीन जनमत
कमरे में चौकी पर बैठे थे नागार्जुन. पीठ के पीछे खुली खिड़की से जाड़े की गुनगुनी धूप आ रही थी. बाहर गौरैया चहचहा रही थी....
जनमतशख्सियत

खैनी खिलाओ न यार! /उर्फ / मौत से चुहल (सखा, सहचर, सहकर्मी, कामरेड महेश्वर की एक याद)

रामजी राय
अपने प्रियतर लोगों- कृष्णप्रताप (के.पी.), गोरख, कामरेड विनोद मिश्र, महेश्वर पर चाहते हुए भी आज तक कुछ नहीं लिख सका। पता नहीं क्यों? इसकी वज़ह...
शख्सियतसिनेमा

जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है !

इस ख़त की कोई भूमिका नहीं हो सकती। इरफ़ान, जिनके सिरहाने की एक तरफ़ ज़िंदगी है और दूसरी तरफ़ अंधेरा, ने आत्मा की स्याही से...
शख्सियत

अमन की शहादत

हम मीडिया के लोग आराम कुर्सियों पर बैठकर भी संघर्षविराम के पक्ष में नहीं खड़े हो पाते हैं, लेकिन जिस शख्स ने अपने कश्मीर को...
कविताशख्सियतसाहित्य-संस्कृति

जनकवि सुरेंद्र प्रसाद की 84वीं जयंती मनाई गई

समकालीन जनमत
बी. आर. बी. कालेज , समस्तीपुर के सभागार में 17 मई, 2018 को जन संस्कृति मंच और आइसा के संयुक्त तत्वावधान में मिथिलांचल के दुर्धर्ष...
कविताशख्सियत

यातना का प्रतिकार प्रेम

समकालीन जनमत
मंगलेश की कविता ने प्रेम को बराबर एक सर्वोच्च मूल्य के तौर पर प्रतिष्ठित किया है । लेकिन एकान्त में नहीं, यातना के बरअक्स; क्योंकि...
शख्सियत

महावीर प्रसाद द्विवेदी का स्मरण आज भी क्यों ज़रूरी है

समकालीन जनमत
द्विवेदी जी उस ईश्वर को ‘भ्रष्ट ईश्वर’ कहते हैं, जिसकी दुहाई छुआ-छूत मानने वाले देते हैं. द्विवेदी जी का निर्भीक आह्वाहन है- ‘ऐसे भ्रष्ट ईश्वर...
जनमतज़ेर-ए-बहसशख्सियत

माँ तुझे सलाम !

कविता कृष्णन
(माँ केवल ममता का ही खज़ाना नहीं है बल्कि समझदारी का भी स्रोत होती है.  समाज के बारे में, नैतिकता, यौनिकता, सही और गलत के...
जनमतदुनियाशख्सियतस्मृति

कार्ल मार्क्स : एक जीवन परिचय

दुनिया के मजदूरों के, सिद्धांत और कर्म दोनों मामलों में, सबसे बड़े नेता कार्ल मार्क्स (1818-1883) का जन्म 5 मई को त्रिएर नगर में हुआ...
दुनियाशख्सियतस्मृति

मार्क्स ने खुद के दर्शन को निर्मम और सतत आलोचना के रूप में विकसित किया : दीपंकर भट्टाचार्य

मार्क्स के दबे हुए लोग और अंबेडकर के बहिष्कृत लोग एक ही हैं। इसी तरह मार्क्स ने भारत में जिसे जड़ समाज कहा, अंबेडकर ने...
कहानीशख्सियतसाहित्य-संस्कृतिस्मृति

भारतीय समाज के बदलते वर्गीय एवं जातीय चरित्र को बारीकी से व्यक्त करने वाले कथाकार हैं मार्कण्डेय

मार्कंडेय ने भारतीय समाज के बदलते वर्गीय एवं जातीय चरित्र को बहुत ही बारीकी से अपनी कथाओं में व्यक्त किया है. सामाजिक ताने-बाने एवं राजनीतिक...
शख्सियत

लेनिन : जो समय से प्रभावित ही नहीं, जिसने समय को प्रभावित भी किया

समकालीन जनमत
गोपाल प्रधान (व्लादिमीर इल्यिच उल्यानोव जो लेनिन के नाम से लोकप्रिय हैं , के जन्म दिवस पर गोपाल प्रधान का लेख ) 1917 के अक्टूबर/नवम्बर महीने...
शख्सियतस्मृति

‘ राष्ट्रीय खलनायक ’ राजिंदर सच्चर

आशुतोष कुमार
  राजघाट पर वह सन दो हज़ार बारह के मार्च की एक सुबह थी. सोरी सोनी के पुलिसिया उत्पीड़न का विरोध करने के लिए वहाँ...
शख्सियत

बुझात बा कि भगवन जी हो गइलें दूगो / हजूरन के दोसर, मजूरन के दोसर

समकालीन जनमत
    संतोष सहर बाबा साहब के जन्मदिन के अवसर पर बेतिया में आयोजित हुई ‘ भूमि अधिकार यात्रा ‘ के सभा मंच से मैंने...
शख्सियतस्मृति

हिंदुत्व, हिन्दू राष्ट्र और डॉ. अम्बेडकर

समकालीन जनमत
डॉ. रामायन राम 90 के दशक के शुरुआत से ही संघ के नेतृत्व में हिंदुत्ववादी शक्तियां  अपनी राजनैतिक परियोजना के हिसाब से डॉ. अंबेेडकर का पुनर्पाठ...
शख्सियत

हम सबके गंगा जी

संजय जोशी
वामपंथी आन्दोलनों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में नब्बे के दशक में एक व्यक्ति को बहुत शिद्दत से मार्क्सवादी साहित्य की किताबों का स्टाल लगाए देखा करता...
कविताशख्सियतसाहित्य-संस्कृति

उठो कि बुनने का समय हो रहा है

समकालीन जनमत
केदारनाथ सिंह की कुछ कविताएं   मुक्ति का जब कोई रास्ता नहीं मिला मैं लिखने बैठ गया हूँ मैं लिखना चाहता हूँ ‘पेड़’ यह जानते...
कविताख़बरशख्सियतसाहित्य-संस्कृति

वह चला गया, जिसने कहा था कि जाना सबसे खौफनाक क्रिया है

समकालीन जनमत
आशीष मिश्रा, युवा आलोचक   हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि केदारनाथ सिंह हमारे बीच नहीं रहे . कवि केदारनाथ सिंह के जाने के साथ ही न...
शख्सियत

कॉमरेड कुंती देवी : क्रांतिकारी महिला आंदोलन का चेहरा

समकालीन जनमत
  संतोष सहर, कवि एवं संस्कृति कर्मी पिछले साल मई माह के आखिरी दिनों मैं जहानाबाद में था। हमारी पार्टी भाकपा-माले के दिवंगत महासचिव कामरेड...
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