समकालीन जनमत

Category : शख्सियत

ख़बरशख्सियतसाहित्य-संस्कृति

विष्णु खरे: बिगाड़ के डर से ईमान का सौदा नहीं किया

मृत्युंजय
विष्णु जी नहीं रहे। हिंदी साहित्य संसार ने एक ऐसा बौद्धिक खो दिया, जिसने ‘बिगाड़ के डर से ईमान’ की बात कहने से कभी भी...
शख्सियतसिनेमा

कबूतरी देवी को लोगों के बीच ले जाने की शुरुआत

संजय जोशी
नैनीताल के निचले हिस्से तल्लीताल में बाजार से ऊपर चढ़ते हुए एक रास्ता खूब सारे हरे-भरे पेड़ों वाले कैम्पस तक ख़तम होता है. यह कैम्पस...
कवितापुस्तकशख्सियतसाहित्य-संस्कृति

‘कुछ भी नहीं किया गया’: वीरेन डंगवाल की एक कविता का पाठ

समकालीन जनमत
नवारुण प्रकाशन ने अभी हाल में ‘कविता वीरेन’ (वीरेन डंगवाल की सम्पूर्ण कविताएँ) को प्रकाशित कर जारी किया है । वीरेन को याद करते हुए...
शख्सियतसाहित्य-संस्कृतिसिनेमा

सुरों के उस्ताद, सुनने की उस्तादी

दिनेश चौधरी हरिभाई यानी पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जी हमेशा थोड़ी जल्दी में होते हैं। वे आँधी की तरह आये, बाँसुरी की तान छेड़ी, खाना खाये...
ज़ेर-ए-बहसदुनियापुस्तकशख्सियत

एक और मार्क्स: वर्तमान को समझने के लिए मार्क्स द्वारा उपलब्ध कराए गए उपकरणों की जरूरत

गोपाल प्रधान
  2018 में ब्लूम्सबरी एकेडमिक से मार्चेलो मुस्तो की इतालवी किताब का अंग्रेजी अनुवाद ‘एनादर मार्क्स: अर्ली मैनुस्क्रिप्ट्स टु द इंटरनेशनल’ प्रकाशित हुआ । अनुवाद...
शख्सियतसाहित्य-संस्कृतिस्मृति

वीरेन डंगवाल की याद और सृजन, कल्पना, रंगों, शब्दों और चित्रों की दुनिया

डॉ. कामिनी त्रिपाठी शासकीय नवीन कन्या महाविद्यालय बैकुंठपुर में आयोजित त्रिदिवसीय ‘वीरेन डंगवाल जन्म दिन समारोह’ का समापन 8 अगस्त को छात्राओं द्वारा वीरेन दा...
ख़बरशख्सियतसाहित्य-संस्कृतिस्मृति

कवि वीरेन डंगवाल के 71वें जन्मदिन पर बरस रही थी कवि की याद

समकालीन जनमत
(पांच अगस्त को हिंदी के कवि वीरेन डंगवाल का जन्म दिन होता है । देश भर में कवि की याद में हुए आयोजनों में से...
कविताजनमतशख्सियतस्मृति

वत्सल उम्मीद की ठुमक के साथ मैं तो सतत रहूँगा तुम्हारे भीतर नमी बनकर: वीरेन डंगवाल

उमा राग
करीब 16 बरस पहले वीरेन डंगवाल के संग्रह ‘दुश्चक्र में स्रष्टा’ पर लिखते हुए मैंने उल्लास, प्रेम और सौंदर्य को उनकी कविता के केंद्रीय तत्वों...
शख्सियतसाहित्य-संस्कृति

वीरेन दा की याद: ‘नदी’ कविता के बहाने से

समकालीन जनमत
शिव प्रकाश त्रिपाठी “ लंबे और सुरीले नहीं थे मेरे गान मेरी सांसे छोटी थी पर जब भी गाए मैंने बसंत के ही गान गाए...
शख्सियतसाहित्य-संस्कृति

प्रेमचंद किसान जीवन की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार धरम, महाजन और साहूकार की भूमिका की शिनाख्त करते हैं

31 जुलाई 2018 को प्रेमचंद जयंती के अवसर पर शासकीय नवीन कन्या महाविद्यालय , बैकुंठपुर(छत्तीसगढ़) में ‘प्रेमचंद और हमारा समय’ विषयक संगोष्ठी आयोजित की गई...
शख्सियतस्मृति

मेरी तन्हाई का ये अंधा शिगाफ़, ये के सांसों की तरह मेरे साथ चलता रहा

उमा राग
मीना कुमारी (1 अगस्त, 1933 – 31 मार्च, 1972) का असली नाम महजबीं बानो था , इनका जन्म मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. वर्ष 1939...
शख्सियतसाहित्य-संस्कृति

सत्ता संपोषित मौजूदा फासीवादी उन्माद प्रेमचंद की विरासत के लिए सबसे बड़ा खतरा:डॉ. सुरेंद्र प्रसाद सुमन

समकालीन जनमत
लोकतंत्र, संविधान और साझी संस्कृति के नेस्तनाबूद करने की हो रही है गहरी साजिश-कल्याण भारती प्रेमचंद के सपनों के भारत से ही बचेगी हमारी साझी...
कविताशख्सियत

अदनान को ‘क़िबला’ कविता के लिए भारत भूषण अग्रवाल पुरस्‍कार

उमा राग
युवा कवि अदनान कफ़ील ‘ दरवेश ‘ को वर्ष 2018 के लिए भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गई है. 30 जुलाई...
शख्सियत

रंगों और कूचियों के अनोखे उस्ताद उर्फ़ अशोक दा !

संजय जोशी
बिना किसी कला स्कूल से शिक्षित हुए बिना किसी बड़े गुरु के शिष्य हुए अपनी कला भाषा की खोज करना और उसमे एक बड़ा मुकाम...
शख्सियत

राजेन्द्र कुमार : जैसा मैंने उन्हें देखा

प्रणय कृष्ण
उनका अलंकरण मुश्किल है. उनके बारे में अतिशयोक्ति संभव नहीं. ध्यान से देखें तो उन्होंने अपने जीवन और अपनी रचना में कुछ भी अतिरिक्त, कुछ...
शख्सियतसाहित्य-संस्कृतिस्मृति

पठनीयता का संबंध वास्तविकता से होता है

समकालीन जनमत
(प्रेमचंद की परंपरा को नये संदर्भ और आयाम देने वाले हिंदी भाषा के कहानीकारों में अमरकांत अव्वल हैं। अमरकांत से शोध के सिलसिले में सन्...
शख्सियतस्मृति

भुलाए नहीं भूलेगा यह दिन

समकालीन जनमत
कमरे में चौकी पर बैठे थे नागार्जुन. पीठ के पीछे खुली खिड़की से जाड़े की गुनगुनी धूप आ रही थी. बाहर गौरैया चहचहा रही थी....
जनमतशख्सियत

खैनी खिलाओ न यार! /उर्फ / मौत से चुहल (सखा, सहचर, सहकर्मी, कामरेड महेश्वर की एक याद)

रामजी राय
अपने प्रियतर लोगों- कृष्णप्रताप (के.पी.), गोरख, कामरेड विनोद मिश्र, महेश्वर पर चाहते हुए भी आज तक कुछ नहीं लिख सका। पता नहीं क्यों? इसकी वज़ह...
शख्सियतसिनेमा

जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है !

इस ख़त की कोई भूमिका नहीं हो सकती। इरफ़ान, जिनके सिरहाने की एक तरफ़ ज़िंदगी है और दूसरी तरफ़ अंधेरा, ने आत्मा की स्याही से...
शख्सियत

अमन की शहादत

हम मीडिया के लोग आराम कुर्सियों पर बैठकर भी संघर्षविराम के पक्ष में नहीं खड़े हो पाते हैं, लेकिन जिस शख्स ने अपने कश्मीर को...
Fearlessly expressing peoples opinion