समकालीन जनमत

Tag : समकालीन हिंदी कविता

कविताजनमत

आरती की कविताएँ सवालों को बुनती हुई स्त्री का चित्र हैं

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संजीव कौशल समाज तमाम तरह की राजनीतिक गतिविधियों का रणक्षेत्र है। यहां कोई न कोई अपनी राजनीतिक चाल चलता रहता है। ऐसे में कवि की...
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भगवान स्वरूप कटियार की कविताएँ : जीवन को बचाने के लिए ज़रूरी है प्रेम

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कौशल किशोर ‘आज हम सब/हो गए हैं/अपनी-अपनी सरहदों में जी रहे हैं छोटे-छोटे उपनिवेश और एक-दूसरे के लिए/पैदा कर रहे हैं भय, आतंक, दहशत/और गुलामी...
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सुघोष मिश्र की कविता वर्तमान की जटिलताओं से उपजे द्वंद्व की अभिव्यक्ति है

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आलोक रंजन सुघोष मिश्र की कविताओं को पढ़कर लगा कि उनकी कविताओं से परिचय कराना सरल कार्य नहीं है । इसके पीछे का एक सीधा...
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भाषा के अनोखे बर्ताव के साथ कविता के मोर्चे पर चाक चौबंद कवि कुमार विजय गुप्त

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नवनीत शर्मा इस कवि के यहां अनाज की बोरियों का दर्द के मारे फटा करेजा नुमायां होता है…। यह उन शब्दों की तलाश में है...
कविता

विनय सौरभ लोक की धड़कती हुई ज़मीन के कवि हैं

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प्रभात मिलिंद कवि अपनी कविता की यात्रा पर अकेला ही निकलता है. जब इस यात्रा के क्रम में पाठक उसके सहयात्री हो जाएँ तो समझिए...
कविता

रंजना मिश्र की कविताओं में जीवन उदासी के साये में खड़ा हुआ भी जिजीविषा से भरा रहता है।

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प्रतिमा त्रिपाठी भाषाई उठापटक, शब्दों के खेल और अर्थों के रचे हुये मायावी संसार से बोझिल होती हुई कविताओं के इस समय में रंजना मिश्रा...
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श्रम के सौंदर्य के कवि हैं अनवर सुहैल

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ज़ीनित सबा अनवर सुहैल समकालीन हिंदी साहित्य के प्रमुख कथाकार होने के साथ साथ महत्वपूर्ण कवि भी हैं. उन्हें लोग विशेष रूप से ‘गहरी जड़ें’ कहानी संग्रह और ‘पहचान’ उपन्यास...
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स्त्री जीवन की पीड़ाओं के नॉर्मलाइज़ होते जाने का विरोध हैं अपर्णा की कविताएँ

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संजीव कौशल अपर्णा अनेकवर्णा से मेरा परिचय उनकी कविताओं के रास्ते ही है और यह रास्ता इतना अलग और आकर्षक है कि यहां से गुज़रते...
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अंधेरे के ख़िलाफ़ ज़माने को आगाह करती हैं मुकुल सरल की कविताएँ

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गीतेश सिंह अभी कुछ सप्ताह पहले जब हम त्रिलोचन को याद कर रहे थे, तो उनकी एक कविता लगातार ज़ेहन में चलती रही -कविताएँ रहेंगी तो/ सपने...
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प्रज्ञा की कविता व्यक्ति पर समाज और सत्ता के प्रभाव से उठने वाली बेचैनी है

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निकिता नैथानी ‘कविताएँ  आती हैं आने दो थोड़ी बुरी निष्क्रिय और निरीह हो तो भी..’ इस समय जब लोग आवाज़ उठाने और स्पष्ट रूप से...
कविता

एकांत और संवेदना की नमी में आकंठ डूबा कवि प्रभात मिलिंद

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रंजना मिश्र प्रभात मिलिंद की कविताओं से गुज़रना संवेदनशील आधुनिक मानव मन की निरी एकांत यात्रा तो है ही साथ ही परिवार समाज और देश...
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आत्‍मीयता का रंग और लोक का जीवट : इरेन्‍द्र की कविताएँ

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कुमार मुकुल आत्‍मीयता इरेन्‍द्र बबुअवा की कविताओं का मुख्‍य रंग है। इस रंग में पगे होने पर दुनियावी राग-द्वेष जल्‍दी छू नहीं पाता। भीतर बहती...
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ईमानदार जवाबों की तलाश में : ऐश्वर्या की कविता

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अपराजिता शर्मा ‘जानने की क्रिया प्रत्यक्ष और एकतरफ़ा नहीं हो सकती!’ पहचान और परिचय से आगे बढ़ने के लिए जानने की इस क्रिया से गुज़रना...
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‘सफ़र है कि ख़त्म नहीं होता’ : सोनी पाण्डेय की कविताएँ

समकालीन जनमत
मदन कश्यप हिन्दी में स्त्री कवयित्रियों की सांकेतिक उपस्थिति तो आदिकाल से रही है। लेकिन 1990 की दशक में जो बदलाव आया उसका एक सकारात्माक...
कविता

विजय राही की कविताएँ वर्तमान के साथ अंतःक्रिया करती हैं

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अलोक रंजन  एक कवि का विस्तार असीमित होता है और यदि कवि अपने उस विस्तार का सक्षम उपयोग करते हुए अपनी आंतरिक व्याकुलता को समय...
जनमतशख्सियतस्मृति

उजले दिनों की उम्मीद का कवि वीरेन डंगवाल

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मंगलेश डबराल ‘इन्हीं सड़कों से चल कर आते हैं आततायी/ इन्हीं सड़कों से चल कर आयेंगे अपने भी जन.’ वीरेन डंगवाल ‘अपने जन’ के, इस...
जनमतशख्सियतस्मृति

कटरी की रुक्मिनी: कविता का अलग रास्ता

डॉ रामायन राम
वीरेन डंगवाल 70 के दशक की चेतना के कवि हैं। कविता के क्षेत्र मे उनका प्रवेश 70 के दशक में हुआ । यह वह समय...
कविताजनमत

स्मृति और प्रेम का कवि कुंदन सिद्धार्थ

समकालीन जनमत
जैसे पूरा गांव ही कमरे में समा गया हो! जब भी कोई शहर से लौटकर गाँव आता तो सारे लोग उसे घेरकर घण्टों शहर की...
कविताजनमत

प्रतिरोध का रसायन तैयार करती उस्मान ख़ान की कविताएँ

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खुशियाँ अच्छी हैं बहुत, मगर  इसमें भी अतिश्योक्ति है! उस्मान की कविताओं का संसार, एक ऐसा संघन संसार है जहाँ एक हाथ को नहीं सूझता दूसरा...
कविताशख्सियत

यथार्थ के अन्तर्विरोधों को उदघाटित करते कवि राजेन्द्र कुमार

कौशल किशोर
( जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष, कवि और आलोचक राजेन्द्र कुमार (24/7/1943) आज  76 साल के हो गए. एक शिक्षक, कवि, आलोचक और एक ...
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