समकालीन जनमत

Tag : प्रभात मिलिंद

कविता

अनिल अनलहातु की कविताएँ हमारी हताशा और जिजीविषा का अन्तर्द्वन्द्व हैं

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प्रभात मिलिंद अनिल अनलहातु हमारे समय के विरल और अनिवार्य कवि हैं. कविताओं में वक्रोक्तियों का कारुणिक प्रयोग कैसे संभव हो सकता है, व्यंग्य में...
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सौम्या सुमन की कविताएँ अनसुने-अनकहे के दरमियान प्रेम के सहज सौन्दर्य की बानगी हैं

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प्रभात मिलिंद मेरे विचार में कविताओं को पानी की शांत सतह पर गिरते हुए एक सूखे पत्ते की तरह होना चाहिए– दृश्य में एकदम स्पंदनहीन...
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फ़िरोज़ की कविताएँ इस राजनीतिक सन्निपात में एक सचेत बड़बड़ाहट हैं

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प्रभात मिलिंद फ़िरोज़ खान की ये कविताएँ फ़ासीवाद के ख़िलाफ़ आक्रोश की कविताएँ है। काव्य-वक्रोक्ति की अनुपस्थिति में ये अपने लहज़े में थोड़ी खुली हुई...
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सियाह समय से परे एक नई सुबह की दरियाफ़्त करतीं शंकरानंद की कविताएँ

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प्रभात मिलिंद युवा कवि शंकरानंद की इन कविताओं को पढ़ना अपनी ही खोई हुई ज़मीन की तरफ़ फ़िर से लौटने, अपनी ही विस्मृत जड़ों को...
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नवनीत की ग़ज़लें यथास्थितिवाद का प्रतिकार हैं

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प्रभात मिलिंद मेरी नज़र में एक ग़ज़लगो होना और एक शायर होना दो मुख़्तलिफ़ इल्म हैं. ग़ज़लगोई एक हुनर (स्किल) है और शायरी एक तेवर...
कविता

विनय सौरभ लोक की धड़कती हुई ज़मीन के कवि हैं

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प्रभात मिलिंद कवि अपनी कविता की यात्रा पर अकेला ही निकलता है. जब इस यात्रा के क्रम में पाठक उसके सहयात्री हो जाएँ तो समझिए...
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एकांत और संवेदना की नमी में आकंठ डूबा कवि प्रभात मिलिंद

समकालीन जनमत
रंजना मिश्र प्रभात मिलिंद की कविताओं से गुज़रना संवेदनशील आधुनिक मानव मन की निरी एकांत यात्रा तो है ही साथ ही परिवार समाज और देश...
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