समकालीन जनमत

Tag : Samkaleen Janmat

स्मृति

‘समकालीन जनमत’ की प्रबंध संपादक मीना राय नहीं रहीं

कौशल किशोर
उनमें गोर्की की ‘माँ’ का रूप दिखता है    ‘समकालीन जनमत’ की प्रबंध संपादक, जन संस्कृति मंच उत्तर प्रदेश की वरिष्ठ उपाध्यक्ष तथा हम सब...
भाषा

उर्दू की क्लास : नाज़नीन, नाज़मीन और नाज़रीन

( युवा पत्रकार और साहित्यप्रेमी महताब आलम  की श्रृंखला ‘उर्दू की क्लास’ की आठवीं  क़िस्त में नाज़नीन, नाज़मीन और नाज़रीन के फ़र्क़ के मायने के...
कविता

विश्वकर्मा पूजा :  रिपोर्ताज़

समकालीन जनमत
( हिंदी के वरिष्ठ कथाकार शेखर जोशी ने इलाहाबाद के 508 आर्मी बेस वर्कशॉप में नौकरी करते हुए लम्बा समय कारख़ाने में कारीगरों के बीच...
भाषा

उर्दू की क्लास : “ख़िलाफ़त” और “मुख़ालिफ़त” का फ़र्क़

समकालीन जनमत
( युवा पत्रकार और साहित्यप्रेमी महताब आलम  की श्रृंखला ‘उर्दू की क्लास’ की सातवीं  क़िस्त में “ख़िलाफ़त” और “मुख़ालिफ़त” के फ़र्क़ के मायने के बहाने...
भाषा

उर्दू की क्लास : “क़वायद तेज़” का मतलब

समकालीन जनमत
( युवा पत्रकार और साहित्यप्रेमी महताब आलम  की श्रृंखला ‘उर्दू की क्लास’ की छठी क़िस्त में “क़वायद तेज़” के मायने के बहाने उर्दू भाषा के...
भाषा

उर्दू की क्लास : “मौज़ूं” और “मौज़ू” का फ़र्क़

समकालीन जनमत
( युवा पत्रकार और साहित्यप्रेमी महताब आलम  की श्रृंखला ‘उर्दू की क्लास’ की पांचवीं   क़िस्त में “मौज़ूं” और “मौज़ू” के फ़र्क़ के बहाने उर्दू भाषा...
इतिहास

इतिहास में स्त्री: उमा चक्रवर्ती

समकालीन जनमत
स्त्रियां हमारे देश-समाज का एक बड़ा हिस्सा हैं लेकिन इतिहास में उनकी हिस्सेदारी उसी तरह कम है जिस तरह अन्य क्षेत्रों में । इतिहास में...
भाषा

उर्दू की क्लास : जामिया “यूनिवर्सिटी” कहना कितना मुनासिब ?

समकालीन जनमत
( युवा पत्रकार और साहित्यप्रेमी महताब आलम  की श्रृंखला ‘उर्दू की क्लास’ की तीसरी क़िस्त में जामिया के मायने के बहाने उर्दू भाषा के पेच-ओ-ख़म...
जनमत

हतभागे किसान: प्रेमचन्द

समकालीन जनमत
(प्रेमचन्द ने यह लेख 19 दिसम्बर 1932 में लिखा था। उनके इस लेख के साथ समकालीन जनमत प्रेमचंद पर अपनी यह शृंखला समाप्त करता है। इस...
जनमतशख्सियतस्मृति

नायक विहीन समय में प्रेमचंद

समकालीन जनमत
प्रो. सदानन्द शाही कुछ तारीखें कागज के कैलेण्डरों पर दर्ज होती हैं और याद रखी जाती हैं या पर कुछ तारीखें ऐसी भी होती हैं...
जनमतशख्सियतस्मृति

प्रेमचंद की दलित स्त्रियाँ: वैभव सिंह

समकालीन जनमत
वैभव सिंह प्रेमचंद जितना पुरुष-जीवन का अंकन करने वाले कथाकार हैं, उतना ही स्त्रियों के जीवन के भी विविध पक्षों को कथा में व्यक्त करते...
जनमतशख्सियतस्मृति

प्रेमचंद के स्त्री पात्र: प्रो.गोपाल प्रधान

गोपाल प्रधान
प्रेमचंद का साहित्य प्रासंगिक होने के साथ साथ ज़ेरे बहस भी रहा है । दलित साहित्य के लेखकों ने उनके साहित्य को सहानुभूति का साहित्य...
जनमतशख्सियतस्मृति

किसान आत्म-हत्याओं के दौर में प्रेमचंद – प्रो. सदानन्द शाही

समकालीन जनमत
 प्रो.सदानन्द शाही किसानों की आत्म हत्यायें हमारे समाज की भयावह सचाई है। भारत जैसे देश में किसान आत्महत्यायें कर रहे हैं यह शर्मशार कर देने...
जनमतशख्सियतस्मृति

सदगति : ‘ग़म क्या सिर के कटने का’*

समकालीन जनमत
प्रो. सदानन्द शाही सदगति दलित पात्र दुखी की कहानी है। दुखी ने बेटी की शादी तय की है। साइत विचरवाने के लिए पं0. घासीराम को बुलाने...
जनमतशख्सियतस्मृति

मेरी माँ ने मुझे प्रेमचन्द का भक्त बनाया : गजानन माधव मुक्तिबोध

समकालीन जनमत
एक छाया-चित्र है । प्रेमचन्द और प्रसाद दोनों खड़े हैं । प्रसाद गम्भीर सस्मित । प्रेमचन्द के होंठों पर अस्फुट हास्य । विभिन्न विचित्र प्रकृति...
जनमतशख्सियतस्मृति

प्रेमचंद ने ‘अछूत की शिकायत’ को कथा-कहानी में ढाला

डॉ रामायन राम
  1914 में हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिका सरस्वती में हीरा डोम की कविता अछूत की शिकायत प्रकाशित हुई थी,जिसमे कवि ने अछूतों के साथ होने...
जनमतशख्सियतस्मृति

नई पीढ़ी को भी उम्दा साहित्य के संस्कार देने वाले प्रेमचंद

अभिषेक मिश्र
कहा जाता है ‘साहित्य समाज का दर्पण है’। साहित्यकारों से भी यही अपेक्षा रखी जाती है। पर धीरे-धीरे आजादी मिलने से पूर्व और इसके बाद...
जनमतशख्सियतस्मृति

रेलवे स्टेशन पर प्रेमचन्द

समकालीन जनमत
डॉ. रेखा सेठी अभी हाल ही में नयी दिल्ली के रेलवे स्टेशन पर मुझे प्रेमचन्द की लोकप्रियता का नया अनुभव हुआ। स्टेशन के लगभग हर...
साहित्य-संस्कृतिस्मृति

‘जीवन और साहित्य में घृणा का स्थान’ से कुछ अंश: प्रेमचंद

समकालीन जनमत
निंदा, क्रोध और घृणा ये सभी दुर्गुण हैं, लेकिन मानव जीवन में से अगर इन दुर्गुणों को निकल दीजिए, तो संसार नरक हो जायेगा। यह...
जनमतसाहित्य-संस्कृतिस्मृति

साहित्य का उद्देश्य: प्रेमचंद

समकालीन जनमत
[1936 में प्रगतिशील लेखक संघ के प्रथम अधिवेशन लखनऊ में प्रेमचंद द्वारा दिया गया अध्यक्षीय भाषण] यह सम्मेलन हमारे साहित्य के इतिहास में स्मरणीय घटना है।...
Fearlessly expressing peoples opinion