समकालीन जनमत
स्मृति

‘समकालीन जनमत’ की प्रबंध संपादक मीना राय नहीं रहीं

उनमें गोर्की की ‘माँ’ का रूप दिखता है 

 

‘समकालीन जनमत’ की प्रबंध संपादक, जन संस्कृति मंच उत्तर प्रदेश की वरिष्ठ उपाध्यक्ष तथा हम सब की अत्यंत प्रिय साथी मीना राय नहीं रहीं।

आज 21 नवंबर की सुबह मस्तिष्क के पक्षाघात से उनका निधन हुआ। यह दौरा इतना घातक था कि इसने इलाज के लिए समय भी नहीं दिया और वह देखते-देखते हम सबसे दूर चली गईं। वह समाज, राजनीति और संस्कृति की दुनिया में फुलवक्ती कार्यकर्ता की तरह सक्रिय थीं। वे जनवादी और प्रगतिशील दुनिया की जरूरत थीं। उनका जाना इस दुनिया के लिए बड़ा आघात है। हम सबको शोक संतप्त और अवाक कर देने वाला है। इस आघात से उबरना आसान नहीं होगा।

मीना राय पेशे से शिक्षिका रही हैं। उनका जीवन संघर्ष से भरा रहा है। यह समझा भी जा सकता है। उनके जीवन साथी रामजी राय छात्र जीवन से ही पूर्णकालिक कार्यकर्ता रहे हैं और हैं। संप्रति वे भाकपा माले के पॉलिट ब्यूरो के सदस्य हैं। ऐसे में मीना राय जी के दायित्व को समझा जा सकता है। यह न सिर्फ उनका अपने बच्चों के प्रति रहा है बल्कि ऐसा ही समर्पण तमाम साथियों के साथ भी रहा है। अपनी बेटी समता, बेटा अंकुर और नातिन रुनझुन आदि को उन्होंने सृजनात्मक रूप से तैयार किया। अनेक साथियों को तैयार करने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। माँ की तरह साथियों की देखरेख करना, उनका ख़याल रखना तथा उन्हें सामाजिक व सांस्कृतिक रूप से तैयार करना, उनमें यह खास गुण था जिसके कारण उनमें गोर्की की ‘माँ’ का रूप दिखता है। वे ऐसी ही माँ और साथी रही हैं।

मीना राय जी सेवा मुक्त होने के बाद अपना संपूर्ण जीवन जनवादी व प्रगतिशील विचारधारा और साहित्य के प्रचार- प्रसार में लगा दिया था। वे जहाँ-जहाँ जातीं उनका पुस्तक केंद्र वहाँ उनके साथ भ्रमण करता। सम्मेलन हो, रैली हो, सभा हो, सांस्कृतिक कार्यक्रम हो या कोई भी आयोजन हो, उनका पुस्तक केंद्र वहाँ मौजूद रहता। इसकी भूमिका घूमता पुस्तक केंद्र की रही है।

जसम उत्तर प्रदेश का नौवां राज्य सम्मेलन इसी साल अक्टूबर के महीने में राहुल सांकृत्यायन सृजन पीठ मऊ में आयोजित हुआ था। वहाँ वे अपने पुस्तक केंद्र के साथ उपस्थित थीं। सम्मेलन के उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष मंडल में थीं। थोड़ी देर के बाद ही वे मंच छोड़कर अपने पुस्तक केंद्र पर पहुँच गईं। वह मंच की नहीं विचार की दुनिया की साथी रही हैं, जमीन और व्यवहार की साथी।

‘समकालीन जनमत’ की प्रबंधन व्यवस्था को जिस मजबूती के साथ उन्होंने संभाल रखा था, उनके इस योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है।

मीना राय के अंदर लेखन की भी अद्भुत प्रतिभा थी। यह तब सामने आया जब उन्होंने अपने जीवन की संघर्ष यात्रा को ‘समर न जीते कोय’ शीर्षक से लिपिबद्ध करना शुरू किया। यह ‘समकालीन जनमत’ के पोर्टल पर हर हफ्ते लगातार प्रकाशित हुआ। योजना थी। यह खूब पढ़ा गया। इसकी अच्छी खासी चर्चा रही। उन्होंने इसके 29 खंड लिखे। इसे आगे बढ़ाने की उनकी योजना थी।

आज हमारी प्रिय साथी मीना राय नहीं है, पर वे हैं और रहेंगी। उन्होंने संघर्ष करके कठिनाइयों से जूझते हुए जो राह बनाई है, रास्ता दिखाया है हम सब उन्हें याद करते हुए उस राह पर चलेंगे, बढ़ेंगे। मीना राय जी का परिवार बहुत बड़ा है और उनके जाने का दुख भी महादुख है। इस दुख से उबरने की हम सबको शक्ति मिले, इसी कामना के साथ अपने प्रिय साथी को सलाम! लाल सलाम!

21 नवम्बर 2023

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