समकालीन जनमत

Category : स्मृति

स्मृति

आंदोलन का दूसरा नाम चितरंजन सिंह

राजीव यादव   महाश्वेता देवी के शब्दों में आंदोलन यानि चितरंजन सिंह आज आपातकाल की बरसी पर हम सबको छोड़कर चले गए. मानवाधिकार-लोकतांत्रिक अधिकार आंदोलन...
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चितरंजन सिंह का जाना एक जनयोद्धा का जाना है

कौशल किशोर
चितरंजन भाई (चितरंजन सिंह) के नहीं रहने की दुखद सूचना मिली। उनका जाना एक जनयोद्धा का जाना है। वे क्रांतिकारी वाम आंदोलन के साथ नागरिक...
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आपातकाल में जब गिरफ़्तार हुए पिता

समकालीन जनमत
अनिल शुक्ल    27 जून 1975,पूर्वाह्न। 11-साढ़े 11 बज रहे थे जब पुलिस हमारे घर आ धमकी। लोहामंडी सीओ पुलिस (लोहामंडी), एसएचओ और कोई 2...
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जीत सिंह नेगी के गीतों में पहाड़ की सतत पीड़ा है

समकालीन जनमत
जीत सिंह नेगी उत्तराखंड के पहले कलाकार थे जो गढ़वाली गीत-संगीत को रिकॉर्डिंग स्टुडियो तक ले गए. 1949 में उनका पहला ग्रामोफोन रिकॉर्ड हुआ था....
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हीरा सिंह राणा के गीतों में पहाड़ का लोक धड़कता है

समकालीन जनमत
नवेंदु मठपाल 13 जून की सुबह सुबह जैसे ही फेसबुक खोला एक मित्र की वाल पर उत्तराखण्ड के लोकगायक, कुमाउनी कवि हीरा सिंह राणा जी...
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‘ लसका कमर बांधा, हिम्मत का साथा, फिर भोला उज्याली होली, कां ले रौली राता ’  

व्यक्तिगत दुख,तकलीफ और परेशानियों की परवाह किए बगैर हीरा सिंह राणा पहाड़ के,पहाड़ के सुख-दुख और पीड़ा-वंचना के गीत गाते रहे....
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‘ कदम ’ पत्रिका के संपादक और कथाकार कैलाश चंद चौहान नहीं रहे 

राम नरेश राम
‘ कदम ‘ पत्रिका के संपादक और प्रकाशक दलित साहि‘त्य के बड़े कथाकार कैलाश चंद चौहान का 15 जून को दोपहर 12 बजे निधन हो...
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बरनवाल साहब : मेरे प्रेरक, मेरे गुरु

शिवमूर्ति.
वीरेन्द्र कुमार बरनवाल साहब 1969 में गनपत सहाय डिग्री कालेज सुल्तानपुर में अंग्रेज़ी के प्रवक्ता बन कर आये. इलाहाबाद में रह कर पढ पाना मेरे...
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शांति स्वरूप बौद्ध का निधन वंचित समाज और बौद्धिक सांस्कृतिक दुनिया के लिए अपूरणीय क्षति है

समकालीन जनमत
2 अक्टूबर 1949 को दिल्ली में जन्मे बहुजन साहित्य के मिशनरी प्रकाशक और प्रचारक शांति स्वरूप बौद्ध का शनिवार को कोरोना संक्रमण के कारण निधन...
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संघर्ष और स्वप्न का कवि रामेश्वर प्रशान्त

समकालीन जनमत
साहित्य की दुनिया में ऐसे भी रचनाकार हैं जिनकी साहित्य साधना जन संघर्ष का हिस्सा होती हैं। वे आत्मप्रचार से दूर रहते हैं। रामेश्वर प्रशान्त...
स्मृति

असाधारण का वैभव और साधारण का सौंदर्य : बासु चटर्जी

आशीष कुमार
अनायास नहीं, कुछ संबंध सायास भी जुड़ते हैं । मुकम्मल याद नहीं मुझे, लेकिन पहली बार टेलीविजन पर ‘रजनीगंधा’ देखा था। उस समय तक मैं...
ज़ेर-ए-बहसस्मृति

नेहरू और फासीवाद : संघ विरोध के मायने

मुकेश आनंद
स्मृति दिवस पर विशेष 1917 ईस्वी में रूस में सम्पन्न हुई मजदूरों की क्रांति ने सारी दुनिया के समाजों के प्रतिक्रियावादी तत्वों को भयभीत, चौकन्ना...
स्मृति

राजीव गांधी से एक मुलाकात

नेहरू ने जिस आत्मनिर्भर एवं समाजवादी भारत की परिकल्पना की थी, राजीव गांधी ने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में उसे मूर्त रूप प्रदान करने की कोशिश...
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नंदकिशोर नवल : हिन्दी आलोचना की एक असमाप्त यात्रा 

आशुतोष कुमार
नवल जी हिन्दी की साहित्यिक सम्वेदना और सुरुचि को उत्पीडित साधारण-जन के संघर्ष की जरूरतों के मुताबिक़ ढालने वाले आलोचकों में अग्रणी रहे हैं.  संघर्ष...
स्मृति

असगर अली इंजीनियर : सच्चा धर्मनिरपेक्ष, नायाब विद्वान और निर्भीक एक्टिविस्ट

फिरकापरस्त ताकतों के खिलाफ एकजुटता ही आज डा़ असग़र अली इंजीनियर को सच्ची श्रद्धांजलि होगी....
स्मृति

मैंने कैफ़ी आज़मी को देखा है, सुना है और जाना है

“बस इक झिझक है यही हाल ए दिल सुनाने में, कि तेरा जिक्र भी आएगा इस फसाने में।” जिस समय कैफ़ी साहब का इंतकाल (10...
स्मृति

शशिभूषण द्विवेदी का जाना एक बड़ी संभावना का असमय अंत है : जनवादी लेखक संघ

शशिभूषण जी अत्यंत प्रतिभाशाली और संभावनाशाली कहानीकार थे. उनकी ‘ब्रह्मह्त्या’, ‘एक बूढ़े की मौत’, ‘कहीं कुछ नहीं’, ‘खिड़की’, ‘शिल्पहीन’ जैसी कई कहानियां खूब पढ़ी और...
सिनेमास्मृति

रवीन्द्रनाथ और हिंदुस्तानी सिनेमा

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के जन्मदिवस पर प्रदीप दाश रवीन्द्रनाथ टैगोर ने साहित्य की सभी विधाओं में लिखा लेकिन सबसे पहले वह एक कवि ही थे....
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‘ गोरा ’ में खचित जटिल समय

उन्नीसवीं सदी की आखिरी चौथाई की समूची हलचल का साक्ष्य इस उपन्यास से हासिल होता है. समय को रवींद्रनाथ ने केवल तारीख के रूप में...
स्मृति

कार्ल मार्क्स की एक नई जीवनी

 मार्क्स के बारे में पैदा हुई हालिया रुचि की नवीनता का एक नमूना उनकी एक नई जीवनी है । सितंबर 2011 में लिटिल ब्राउन एंड...
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