समकालीन जनमत

Category : स्मृति

स्मृति

परिवर्तनकामी युवाओं के प्रेरक प्रतिबद्ध आत्मीयता के विरल लेखक-चिंतक कॉ.(डॉ.) खगेन्द्र ठाकुर

समकालीन जनमत
रमेश ऋतंभर   प्रख्यात मार्क्सवादी चिंतक व लेखक कॉमरेड खगेन्द्र जी हमारे समय के न केवल एक प्रतिबद्ध लेखक-शिक्षक व राजनीतिक संगठनकर्ता एवं मार्क्सवादी सामाजिक-राजनैतिक...
कहानीस्मृति

महाश्वेता देवी की स्मृति में

समकालीन जनमत
मीता दास महाश्वेता देवी (जन्म 14 जनवरी 1926, ढाका, बंगलादेश, मृत्यु: 28 जुलाई 2016, कोलकाता) की स्मृति में मीता दास द्वारा लिखा गया लेख और महाश्वेता...
जनमतशख्सियतस्मृति

आम आदमी की हमसफ़र कहानियों के कहानीकार स्वयं प्रकाश

समकालीन जनमत
रत्नेश विष्वक्सेन आम आदमी की हमसफर कहानियों के कहानीकार स्वयं प्रकाश जी का इस तरह चले जाना उदास करता है।उनकी रिक्तता को उनकी कहानियां भरेंगी...
जनमतशख्सियतस्मृति

एक हमदर्द दोस्त की तरह मिलीं स्वयंप्रकाश की कहानियाँ

सुधीर सुमन
स्वयं प्रकाश से मिलने का इत्तिफाक नहीं हुआ, पर उनकी कहानियां इत्तिफाकन जिंदगी के बेहद बेचैन वक्तों में मेरे करीब आईं और मुझे किसी हमदर्द...
जनमतशख्सियतस्मृति

क्या तुमने कभी स्वयं प्रकाश को देखा है ?

समकालीन जनमत
प्रवीण कुमार क्या तुमने कभी स्वयं प्रकाश को देखा है ? हाँ ! मेरा यही जवाब है . देखा है और तीन बार मुलाकात भी...
जनमतशख्सियतस्मृति

स्वयं प्रकाश की कहानियाँ: कुछ नोट्स

समकालीन जनमत
रेखा सेठी स्वयं प्रकाश जी का जाना हिंदी कहानी में एक युग के अंत का सूचक है। उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए एक पुराना लेख साझा...
जनमतशख्सियतस्मृति

हमारे समय का सबसे ज़िंदादिल कथाकार चला गया

समकालीन जनमत
मिहिर पंड्या ‘अशोक और रेणु की असली कहानी’, ‘क्या तुमने कभी सरदार भिखारी देखा है’ जैसी अनेक अविस्मरणीय कहानियाँ लिखने वाले महत्वपूर्ण कथाकार स्वयंप्रकाश जी...
जनमतशख्सियतस्मृति

भोजपुर के चमकते लाल सितारे

समकालीन जनमत
  शहादत की 44वीं बरसी : कॉ. जौहर, कॉ. निर्मल व कॉ. रतन को लाल सलाम! आज 29 नवंबर है। 1975 में आज ही के दिन भाकपा-माले...
जनमतशख्सियतस्मृति

अलविदा शौक़त आपा

समकालीन जनमत
अली जावेद कैफी़ ने कहा था: एलान-ए-हक़ में ख़तर-ए-दार-ओ-रसन तो है लेकिन सवाल ये है कि दार-ओ-रसन के बाद? याद कीजिये तरक़्की़पसंद अदबी तहरीक का...
जनमतशख्सियतस्मृति

“यह थी भूमिका हम-तुम मिले थे जब” मुक्तिबोध स्मरण (जन्मदिन 13 नवम्बर)

रामजी राय
मुक्तिबोध और उनकी कविता के बारे में लोग कहते हैं कि वो विकल-बेचैन, छटपटाते कवि हैं. लेकिन देखिये तो दरअसल, मुक्तिबोध कविता की विकलता के...
जनमतशख्सियतस्मृति

गांधी और उनके हत्यारे

इन्द्रेश मैखुरी
आज जब महात्मा गांधी की पैदाइश के 150 साल पूरे हो रहे हैं,तब लगता है कि एक चक्र पूरा हो कर दुष्चक्र की ओर बढ़...
शख्सियतसाहित्य-संस्कृतिस्मृति

वीरेन डंगवाल की याद: अचानक यह हुआ कि मैं रिसेप्शन में अकेला पड़ गया

समकालीन जनमत
अशोक पाण्डे जब उनसे पहली बार मिला वे नैनीताल के लिखने-पढ़ने वालों के बीच एक सुपरस्टार का दर्जा हासिल चुके थे. उनकी कविताओं की पहली...
ख़बरशख्सियतस्मृति

पाकिस्तान के साम्यवादी और ट्रेड यूनियन नेता तुफ़ैल अब्बास की मृत्यु पर शोक संदेश

समकालीन जनमत
विजय सिंह तुफ़ैल अब्बास (1927 – 9/9/2019) 9 सितंबर को काराची मे काॅमरेड तुफ़ैल अब्बास का निधन हो गया। वे 92 वर्ष के थे। वे...
स्मृति

‘ फ़िराक़ ’ गोरखपुरी : एक बुजुर्ग बालक

समकालीन जनमत
  ‘ बचा के रखी थी मैंने अमानते-तिफ़ली ’ …… ‘फ़िराक़’ साहब के भीतर एक बच्चा रहता रहा है। वे इस हयात, कायनात, उसके रहस्य-रोमांच...
जनमतशख्सियतस्मृति

दलित साहित्य को शिल्प और सौंदर्यबोध देने वाले भाषा के मनोवैज्ञानिक थे मलखान सिंह

सुशील मानव
परसों शाम को फोन पर बात हुई, मैंने पूछा था, सर नया क्या लिख रहे हैं इन दिनों। उन्होंने जवाब में कहा था- “ये मेरे...
जनमतशख्सियतस्मृति

उजले दिनों की उम्मीद का कवि वीरेन डंगवाल

समकालीन जनमत
मंगलेश डबराल ‘इन्हीं सड़कों से चल कर आते हैं आततायी/ इन्हीं सड़कों से चल कर आयेंगे अपने भी जन.’ वीरेन डंगवाल ‘अपने जन’ के, इस...
जनमतशख्सियतस्मृति

कटरी की रुक्मिनी: कविता का अलग रास्ता

डॉ रामायन राम
वीरेन डंगवाल 70 के दशक की चेतना के कवि हैं। कविता के क्षेत्र मे उनका प्रवेश 70 के दशक में हुआ । यह वह समय...
जनमतशख्सियतस्मृति

नायक विहीन समय में प्रेमचंद

समकालीन जनमत
प्रो. सदानन्द शाही कुछ तारीखें कागज के कैलेण्डरों पर दर्ज होती हैं और याद रखी जाती हैं या पर कुछ तारीखें ऐसी भी होती हैं...
जनमतशख्सियतस्मृति

प्रेमचंद की दलित स्त्रियाँ: वैभव सिंह

समकालीन जनमत
वैभव सिंह प्रेमचंद जितना पुरुष-जीवन का अंकन करने वाले कथाकार हैं, उतना ही स्त्रियों के जीवन के भी विविध पक्षों को कथा में व्यक्त करते...
जनमतशख्सियतस्मृति

प्रेमचंद के स्त्री पात्र: प्रो.गोपाल प्रधान

गोपाल प्रधान
प्रेमचंद का साहित्य प्रासंगिक होने के साथ साथ ज़ेरे बहस भी रहा है । दलित साहित्य के लेखकों ने उनके साहित्य को सहानुभूति का साहित्य...
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