समकालीन जनमत

Tag : कविता

कविता

कौशल किशोर का कविता संग्रह ‘ नयी शुरुआत ‘ : ‘ स्वप्न अभी अधूरा है ‘ को पूरा करने के संकल्प के साथ

    शैलेन्द्र शांत  “नयी शुरुआत’ साठ पार कवि कौशल किशोर की कविता की दूसरी किताब है  । सांस्कृतिक , सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों में...
शख्सियतसाहित्य-संस्कृतिस्मृति

वीरेन डंगवाल की याद और सृजन, कल्पना, रंगों, शब्दों और चित्रों की दुनिया

डॉ. कामिनी त्रिपाठी शासकीय नवीन कन्या महाविद्यालय बैकुंठपुर में आयोजित त्रिदिवसीय ‘वीरेन डंगवाल जन्म दिन समारोह’ का समापन 8 अगस्त को छात्राओं द्वारा वीरेन दा...
कविता

आधुनिक जीवन की विसंगतियों के मध्य मानवीय संवेदना की पहचान की कवितायें

समकालीन जनमत
विनय दुबे की कविताओं में सहजता और दृश्य की जटिलताओं का जो सहभाव नज़र आता है, वह उन्हें अपनी पीढ़ी का अप्रतिम कवि बनाता है....
शख्सियतस्मृति

भुलाए नहीं भूलेगा यह दिन

समकालीन जनमत
कमरे में चौकी पर बैठे थे नागार्जुन. पीठ के पीछे खुली खिड़की से जाड़े की गुनगुनी धूप आ रही थी. बाहर गौरैया चहचहा रही थी....
जनमतशख्सियत

खैनी खिलाओ न यार! /उर्फ / मौत से चुहल (सखा, सहचर, सहकर्मी, कामरेड महेश्वर की एक याद)

रामजी राय
अपने प्रियतर लोगों- कृष्णप्रताप (के.पी.), गोरख, कामरेड विनोद मिश्र, महेश्वर पर चाहते हुए भी आज तक कुछ नहीं लिख सका। पता नहीं क्यों? इसकी वज़ह...
कविताजनमतसाहित्य-संस्कृति

पराजय को उत्सव में बदलती अनुपम सिंह की कविताएँ

समकालीन जनमत
(अनुपम सिंह की कविताओं को पढ़ते हुए ऐसा लगता है जैसे वे अपने साथ हमें पितृसत्ता की एक बृहद प्रयोगशाला में लिए जा रहीं हैं...
कविताजनमतसाहित्य-संस्कृति

कुमार मुकुल की कविताएँ : लोकतंत्र के भगवाकरण की समीक्षा

समकालीन जनमत
30 वर्षों से रचनारत कुमार मुकुल के कविता परिदृश्य का रेंज विशाल और वैविध्य से भरा है , प्रस्तुत कविताओं में आज के समय को...
कविताशख्सियतसाहित्य-संस्कृति

जनकवि सुरेंद्र प्रसाद की 84वीं जयंती मनाई गई

समकालीन जनमत
बी. आर. बी. कालेज , समस्तीपुर के सभागार में 17 मई, 2018 को जन संस्कृति मंच और आइसा के संयुक्त तत्वावधान में मिथिलांचल के दुर्धर्ष...
जनमत

त्रासदी बनते इतिहास का आख्यानः मदन कश्यप का काव्य

समकालीन जनमत
प्रणय कृष्ण (कवि मदन कश्यप को जनमत टीम की ओर से जन्मदिन की हार्दिक बधाई। इस अवसर पर पढ़िए ‘नीम रोशनी में’ संग्रह पर लिखा...
कविता

एक कविता: दोष नहीं कुछ इसमें [अद्दहमाण]

मृत्युंजय
विद्वानों के मुताबिक़ अद्दहमाण [अब्दुल रहमान] का काल 12वीं सदी के कुछ पहले ही ठहरता है। यहाँ कुछ छंद उनके ग्रंथ ‘संदेस–रासक‘ से चुने गए...
कविताशख्सियत

यातना का प्रतिकार प्रेम

समकालीन जनमत
मंगलेश की कविता ने प्रेम को बराबर एक सर्वोच्च मूल्य के तौर पर प्रतिष्ठित किया है । लेकिन एकान्त में नहीं, यातना के बरअक्स; क्योंकि...
कवितासाहित्य-संस्कृति

प्रदीप कुमार सिंह की कविताएँ : विह्वल करने से ज़्यादा विचार-विकल करती हैं

उमा राग
नदी समुद्र में जाकर गिरती है, यह तो सब जानते हैं. लेकिन यह सच्चाई तो प्रदीप की कविता को पता है कि नदी अपना दुःख...
कवितासाहित्य-संस्कृति

एक कविता: चोरी-चुप्पे [प्रकाश उदय]

मृत्युंजय
कविता 'चुप्पे-चोरी', जो एक लड़की की बहक है। यह लड़की गाँव की है, नटखट है। उसने उड़ने के लिए चिड़िया के पंख और गोता लगाने...
तस्वीरनामा

सत्ता का प्रतिपक्ष रचती हैं कौशल किशोर की कविताएं

  ‘वह औरत नहीं महानद थी’ तथा ‘प्रतिरोध की संस्कृति’ का हुआ विमोचन लखनऊ. ‘हंसो, इसलिए कि रो नहीं सकते इस देश में/हंसो, खिलखिलाकर/अपनी पूरी...
कवितासाहित्य-संस्कृति

साक्षी मिताक्षरा की कविताएं : गाँव के माध्यम से देश की राजनीतिक समीक्षा

उमा राग
आर. चेतन क्रांति गाँव हिंदी कविता का सामान्यतः एक सुरम्य स्मृति लोक रहा है, एक स्थायी नोस्टेल्जिया, जहाँ उसने अक्सर शहर में रहते-खाते-पीते, पलते-बढ़ते लेकिन...
कविताजनमतसाहित्य-संस्कृति

इस क्रूरता पर हम सिर्फ़ रोयेंगें नहीं: सविता सिंह

उमा राग
सविता सिंह  आज कल मेरी सैद्धांतिक समझ इस बात को समझने में खर्च हो रही है कि किसी देश में छोटी बच्चियों के साथ इतना घिनौना...
जनमत

गंवई संवेदना और वैश्विक दृष्टि के कवि

समकालीन जनमत
अरुण आदित्य केदारनाथ सिंह करीब चार दशक से दिल्ली में रहते हुए भी ग्रामीण संवेदना के कवि बने रहे। छल-बल की इस राजधानी में भी...
स्मृति

मै गांव-जवार और उसके सुख-दुख से जुड़ा हुआ हूं

(ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने के बाद डॉ केदारनाथ सिंह से यह संक्षिप्त बातचीत टेलीफ़ोन पर हुई थी. यह साक्षात्कार दैनिक भास्कर में प्रकाशित हुआ था. )...
स्मृति

अलविदा, स्टार गुरु जी !

संजय जोशी
  मैंने 1989 के जुलाई महीने में जे एन यू के भारतीय भाषा विभाग के हिंदी विषय में एडमिशन लिया. कोर्स एम ए का था....
कविताशख्सियतसाहित्य-संस्कृति

उठो कि बुनने का समय हो रहा है

समकालीन जनमत
केदारनाथ सिंह की कुछ कविताएं   मुक्ति का जब कोई रास्ता नहीं मिला मैं लिखने बैठ गया हूँ मैं लिखना चाहता हूँ ‘पेड़’ यह जानते...
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