समकालीन जनमत

Category : पुस्तक

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हिंदुत्व के उत्थान से उपजी निराशा

गोपाल प्रधान
अभय कुमार दुबे की किताब ‘हिंदू-एकता बनाम ज्ञान की राजनीति’ का प्रकाशन वाणी प्रकाशन से 2019 में हुआ । शीर्षक ही बिना किसी लाग लपेट...
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राजनीतिक प्रतिरोध में अहिंसा की भूमिका

गोपाल प्रधान
किताब में यही बताया गया है कि बीसवीं सदी में जनता ने हिंसा के बगैर सत्ता पर कब्जा करने की क्षमता अर्जित की । लेखकों...
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एक देश बारह दुनिया: समकालीन भारत में विकास के विरोधाभासों का रेखाचित्र

समकालीन जनमत
नीरज  एक स्वतंत्र देश के तौर पर भारत के लिए 75 वर्षों का अरसा कोई लंबा समय तो नहीं है। लेकिन, यह भी सच है...
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‘उड़ता बनारस’: स्थापत्य में फ़ासीवाद                                       

गोपाल प्रधान
सुरेश प्रताप की किताब ‘ उड़ता बनारस ’ हमसे वर्तमान शासन के कुछ कारनामों को गहरी निगाह से देखने की मांग करती है । पिछले...
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विभाजन की विभीषिका और उत्तराखंड के इतिहास की गुमशुदगी की परत में लिपटा एक बयान

के के पांडेय
यह कथा सानीउडियार क्षेत्र, जिला बागेश्वर (पहले अल्मोड़ा) उत्तराखंड के एक व्यक्ति हाजी अब्दुल शकूर की है। उनका खानदान उन्नीस सौ ईस्वी से कुछ पहले...
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स्मृतियों के कथ्य में जीवनानुभव की अभिव्यक्ति

समकालीन जनमत
राम विनय शर्मा ‘ग़ाज़ीपुर में क्रिस्टोफर कॉडवेल’ पत्रकार और लेखक उर्मिलेश के संस्मरणों का संकलन है। ‘प्रमुखतः इसमें साहित्य-संस्कृति और मीडिया से सम्बद्ध लोगों, प्रसंगों...
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सरकार का अपने ही नागरिकों से युद्ध

गोपाल प्रधान
लेख के शीर्षक से भ्रम सम्भव है कि यह किताब नागरिकता संबंधी कानूनों के बारे में है लेकिन दुर्भाग्य से हमारे देश की सरकार लम्बे...
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वैश्विकता और स्‍थानीयता को जोड़ने वाली आत्‍मालोचना युक्‍त भावना

समकालीन जनमत
कुमार मुकुल ताइवान के वरिष्ठ कवि, आलोचक ली मिन-युंग की कविताएँ आजादी, प्रेम और स्‍वप्‍न की भावनाओं को सहज और सचेत ढंग से स्‍वर देती...
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जाति-मुक्ति का प्रश्न, उसकी राजनीति और पूंजी-लोक (नवीन जोशी के उपन्यास के बहाने कुछ बातें)

के के पांडेय
(एक दलित नौजवान के अंतर्द्वंद की कथा के भीतर से उत्तराखंडी समाज के भीतर की जातिगत विषमताओं, कारपोरेट की गुलामगीरी और राजनैतिक आंदोलनों के सामाजिक...
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कितने बहानों के बीच देश काल: अरुणाभ सौरभ का काव्य संग्रह ‘किसी और बहाने से’

समकालीन जनमत
रोमिशा  जाने कितने बहानों से कवि अपने ईर्द -गिर्द के समाज, देश, काल में क्या सब देख लेता है और उसी देखने के क्रम में...
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कुर्सी के लिए कत्ल: गोपाल प्रधान

गोपाल प्रधान
2019 में शब्दलोक प्रकाशन से छपी किताब ‘सत्ता की सूली’ को तीन पत्रकारों ने मिलकर लिखा है । इस किताब ने वर्तमान पत्रकारिता को चारण...
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जंग के बीच प्रेम और शांति की तलाश का आख्यान है ‘अजनबी जज़ीरा’

जनार्दन
आग में खिलता गुलाब? अपने अंतिम दिनों में सद्दाम हुसैन जिन सैनिकों की निगरानी में रहते रहे उन सैनिकों को ‘सुपर ट्वेल्व’ कहा जाता था।...
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मानव विकास का भौतिकवादी नजरिया

गोपाल प्रधान
हिंदी भाषा में कुछ भी वैचारिक लिखने की कोशिश खतरनाक हो सकती है । देहात के विद्यार्थियों के लिए कुंजी लिखना ही इस भाषा का...
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पुस्तक अंश : मार्क्स के आखिरी दिन

समकालीन जनमत
( अपने जीवन के आखिरी सालों में मार्क्स ने अपना शोध नये क्षेत्रों में विस्तारित किया- ताजातरीन मानव शास्त्रीय खोजों का अध्ययन किया, पूंजीवाद से...
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टूटे पंखों से परवाज़ तक: आत्मीयता की अंतहीन तलाश

भारत में हिंदी साहित्य के विकास क्रम को देखें तो पता चलता है कि 19वीं शताब्दी से पहले साहित्य का विषय सिर्फ ईश्वर, राजा, सामंत...
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खेती का इतिहास

गोपाल प्रधान
 2020 में राष्ट्रीय पुस्तक न्यास यानी नेशनल बुक ट्रस्ट से प्रकाशित सुषमा नैथानी की किताब ‘अन्न कहाँ से आता है’ सही अर्थ में हिंदी की...
जनमतपुस्तकसाहित्य-संस्कृति

सेवासदनः नवजागरण, हिन्दी समाज और स्त्री

दुर्गा सिंह
हिन्दी भाषा में  प्रेमचंद ने पहला उपन्यास ‘सेवासदन’ लिखा। उर्दू भाषा में यह ‘बाज़ारे हुश्न’ नाम से लिखा गया था। हिन्दी में ‘सेवासदन’ नाम से...
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क्रांतिकारी दुनिया-‘रेवोल्यूशनरी वर्ल्ड: ग्लोबल अपहीवेल इन द माडर्न एज’

2021 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से डेविड मोटाडेल के संपादन में ‘रेवोल्यूशनरी वर्ल्ड: ग्लोबल अपहीवेल इन द माडर्न एज’ का प्रकाशन हुआ । संपादक की...
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चोटी की पकड़ः देशी सत्ता-संस्कृति, औपनिवेशिक नीति और स्वदेशी आन्दोलन की अनूठी कथा

दुर्गा सिंह
चोटी की पकड़ निराला का महत्वपूर्ण उपन्यास है। यह उपन्यास 1946 ईस्वी में किताब महल, इलाहाबाद से प्रकाशित हुआ था। हालांकि इसे लिखकर पूरा करने...
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