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भारत में कोरोना से कैसा युद्ध- अस्पताल साधनहीन, जनता बेसहाय

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन के शुक्रवार को दिए बयान के अनुसार भारत ने 8 जनवरी से ही कोरोना के खिलाफ तैयारी शुरू कर दी थी और हम 17 जनवरी से ही कोरोना से लड़ने को पूरी तरह तैयार थे।

तो सवाल लाजमी है –

क्या केंद्र सरकार ने इसके लिए राज्यों के साथ मिलकर कोई सेंट्रल कमांड का गठन किया, जो देश भर में इससे मुकाबले के लिए विशेषज्ञों की टीम, टेक्निकल क्षमता का विकास और ह्यूमन रिसोर्स संगठित करने के लिए कोई काम करती ?

आज देश आईसीयू, वेंटिलेटर, मास्क, ग्लब्स और पीपीई के अभाव का संकट झेल रहा है। सरकार ने इनके युद्ध स्तर पर निर्माण का आर्डर 24 मार्च से पहले क्यों नहीं दिया ?

देश में बढ़ती जरूरत को पूरी करने के बजाए सरकार 19 मार्च तक दूसरे देशों को इनका निर्यात क्यों करती रही ?

24 मार्च को जिन कंपनियों को सरकार ने इन्हें निर्मित करने की अनुमति दी, यह जानते हुए भी कि वो इस क्षेत्र में नई हैं और उनकी क्षमता हमारी वर्तमान जरूरतों (26 लाख यूनिट) को पूरा नहीं कर सकती है।

अगर ऐसा नहीं है तो फिर सुरक्षा किट के अभाव में 52 से ज्यादा डॉक्टर्स व स्वास्थ्य कर्मी जिनमें 9 डॉक्टर्स दिल्ली से हैं, कोरोना से संक्रमित क्यों हुए हैं ? दिल्ली में ही 24 पुलिस कर्मियों को क्वारन्टीन में क्यों भेजना पड़ा ?

सुरक्षा किट (पीपीई) की मांग करने वाले और उसके बिना कोरोना पीड़ितों के इलाज में असमर्थता जताने वाले डॉक्टरों के रजिस्ट्रेशन को रद्द करने और बाकी स्वास्थ्य कर्मियों को सेवा से हटाने की धमकी क्यों दी जा रही है ?

आज तक भी मांग के अनुसार राज्यों और अस्पतालों को वेंटिलेटर, जांच किट और सुरक्षा किट क्यों नहीं दी जा रही है ?

कोरोना को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने के बाद भी जिला अस्पताल से लेकर देश के सभी बड़े अस्पतालों और प्राइवेट अस्पतालों में कोरोना की मुफ्त जांच और मुफ्त इलाज की घोषणा आज तक क्यों नहीं की गई ?

10 मार्च को सऊदी से आई कोरोना संक्रमित महिला की हवाई अड्डे पर स्क्रीनिंग क्यों नहीं हुई ? जबकि उससे जुड़ी चेन से देश में डॉक्टर्स सहित कई लोग संक्रमित हुए और 800 लोगों के संक्रमित होने का खतरा बताया जा रहा है।

आज भी कोरोना के आंकड़े छुपाने के लिए देश भर में कोरोना की सीमित जांच क्यों हो रही है ? 137 करोड़ की आबादी में तीन माह में एक लाख लोगों की भी जांच नहीं की गई।

8 जनवरी के बाद से ही हवाई अड्डों पर कोरोना की जांच की व्यवस्था क्यों नहीं की गई ?

8 जनवरी के बाद भी कोरोना संक्रमित देशों के लोगों को भारत आने की इजाजत क्यों दी गई ?

निजामुद्दीन मरकज में जुटे विदेशियों को केंद्र सरकार द्वारा 17 जनवरी के बाद भी भारत आने की इजाजत क्यों दी गई?

कोरोना के मरीजों के लगातार मिलने बाद भी प्रधान मंत्री मोदी ने अहमदाबाद में ट्रम्प के लिए एक लाख की भीड़ क्यों जुटाई ? भाजपा के सीनियर नेता विदेश से आई कनिका कपूर की पार्टियों में क्यों शामिल हुए ?

मध्य फरवरी से 23 मार्च तक जब कई राज्य कोरोना के कारण कर्फ्यू तक लगा चुके थे, केंद्र सरकार व भाजपा मध्य प्रदेश में सरकार गिराने, विधायकों को एक साथ रखने और 23 मार्च को सरकार गठन का जश्न मनाने में क्यों मगशूल थी ?

कोरोना के खिलाफ लड़ाई में फंड जुटाने के लिए “पीएम रिलीफ” के नाम से नया ढांचा बनाने की क्या जरूरत थी, जबकि पहले से ही प्रधानमंत्री राहत कोष मौजूद है।

पीएम रिलीफ फंड में पारदर्शिता, जबाबदेही और मुख्य लेखा परीक्षक से आडिट का प्रावधान क्यों नहीं ? इसमें कितना फंड आ रहा है और कहां खर्च हो रहा है इसकी सूचना सार्वजनिक क्यों नही?

अगर आप ईमानदार हैं तो पीएम रिलीफ फंड आरटीआई कानून के दायरे से बाहर क्यों ? इसके संचालन में विपक्ष का प्रतिनिधित्व क्यों नहीं ?

लॉक डाउन से बेरोजगार हुए असंगठित क्षेत्र के मजदूरों, गरीब किसानों और ग्रामीण गरीबों के सामने भूख और घर की छत का भारी अभाव, पर सरकार की घोषणा ऊंट के मुंह में जीरा।

25 मार्च को निजामुद्दीन के मरकज से लोगों को उनके राज्यों में भेजने के लिए मरकज द्वारा मांगी गई बसों की इजाजत क्यों नही? जबकि 27 मार्च को ऐसी ही इजाजत प्रधानमंत्री-गृह मंत्री के करीबी व्यवसायी के धार्मिक आयोजन में हरिद्वार में जुटे 1800 गुजरातियों को क्यों ?

कोरोना के बहाने साम्प्रदायिक और विभाजनकारी राजनीति क्यों? बाकी के लिए “फंसे हैं” और मुश्लिम के लिए “छुपे हैं” की साजिशाना भाषा का इस्तेमाल क्यों ?

फिर भी देश के प्रधान मंत्री का “ताली-थाली बजाओ” के बाद फिर “दिया जलाओ” का ड्रामा जारी है। जबकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन देश से खुला झूठ बोल रहे हैं।

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