समकालीन जनमत

Category : कविता

कविताजनमतसाहित्य-संस्कृति

विहाग वैभव की कविताएँ : लोक जीवन के मार्मिक संवेदनात्मक ज्ञान की कविताएँ हैं- मंगलेश डबराल

समकालीन जनमत
  युवा कवि विहाग वैभव की कविताओं में क्रांति, विद्रोह, विरोध, निषेध के तीखे स्वर हैं और वह प्रेम भी है जिसे संभव करने के...
कविताशख्सियतसाहित्य-संस्कृति

जनकवि सुरेंद्र प्रसाद की 84वीं जयंती मनाई गई

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बी. आर. बी. कालेज , समस्तीपुर के सभागार में 17 मई, 2018 को जन संस्कृति मंच और आइसा के संयुक्त तत्वावधान में मिथिलांचल के दुर्धर्ष...
कविता

‘ मृत्युंजय की कविताएं आम अवाम की बेचैनी, क्षोभ, अवसाद, दुख, पीड़ा और गुस्से का इजहार हैं ’

समकालीन जनमत
जन संस्कृति मंच की ओर से छज्जूबाग, पटना में युवा कवि मृत्युंजय के काव्यपाठ और बातचीत का आयोजन हुआ. मृत्युंजय ने ‘यां’, ‘नश्वर-सी सुंदरता’, ‘...
कविता

एक कविता: दोष नहीं कुछ इसमें [अद्दहमाण]

मृत्युंजय
विद्वानों के मुताबिक़ अद्दहमाण [अब्दुल रहमान] का काल 12वीं सदी के कुछ पहले ही ठहरता है। यहाँ कुछ छंद उनके ग्रंथ ‘संदेस–रासक‘ से चुने गए...
कवितासाहित्य-संस्कृति

मरे हुए तालाब में लाशें नहीं विचारधाराएं तैर रही हैं

आशुतोष कुमार
“जंगल केवल जंगल नहीं है नहीं है वह केवल दृश्य वह तो एक दर्शन है पक्षधर है वह सहजीविता का दुनिया भर की सत्ताओं का...
कविता

एक कविता : मेट्रो-महिमा : वीरेन डंगवाल

मृत्युंजय
नवारुण प्रकाशन से वीरेन डंगवाल की समग्र कविताओं का संग्रह 'कविता वीरेन' छपने वाला है जिसमें उनके सभी संग्रहों और उसके बाद की अन्य कविताएँ...
कवितासाहित्य-संस्कृति

अच्युतानंद मिश्र की कविताएँ : अपने जीवनानुभवों के साथ ईमानदार बर्ताव की कविताएँ हैं

समकालीन जनमत
विष्णु नागर अच्युतानंद मिश्र की छवि एक अच्छे कवि, गंभीर अध्येता और एक आलोचक की बनी है। इधर हमारी कविता में अनकहे की अनुपस्थिति बढ़ती...
कविताशख्सियत

यातना का प्रतिकार प्रेम

समकालीन जनमत
मंगलेश की कविता ने प्रेम को बराबर एक सर्वोच्च मूल्य के तौर पर प्रतिष्ठित किया है । लेकिन एकान्त में नहीं, यातना के बरअक्स; क्योंकि...
कवितासाहित्य-संस्कृति

प्रदीप कुमार सिंह की कविताएँ : विह्वल करने से ज़्यादा विचार-विकल करती हैं

उमा राग
नदी समुद्र में जाकर गिरती है, यह तो सब जानते हैं. लेकिन यह सच्चाई तो प्रदीप की कविता को पता है कि नदी अपना दुःख...
कवितासाहित्य-संस्कृति

एक कविता: चोरी-चुप्पे [प्रकाश उदय]

मृत्युंजय
कविता 'चुप्पे-चोरी', जो एक लड़की की बहक है। यह लड़की गाँव की है, नटखट है। उसने उड़ने के लिए चिड़िया के पंख और गोता लगाने...
कविताज़ेर-ए-बहस

हरम सरा नहीं कविता चाहिए

‘ जेंडर बाइनरिज़्म ’ दोनों ध्रुवों के बीच पड़ने वाली सारी चीज़ों को परिधि पर फेंक देता है. यह स्थापित करता है कि स्याह और...
कविता

व्यवस्था की विसंगतियों पर प्रहार है देव नाथ द्विवेदी की गजलों में

समकालीन जनमत
लखनऊ में देव नाथ द्विवेदी के  गजल संग्रह ‘ हवा परिन्दों पर भारी है ’ का विमोचन और परिसंवाद कौशल किशोर लखनऊ. ‘ हिन्दुस्तानी जबान में...
कवितासाहित्य-संस्कृति

साक्षी मिताक्षरा की कविताएं : गाँव के माध्यम से देश की राजनीतिक समीक्षा

उमा राग
आर. चेतन क्रांति गाँव हिंदी कविता का सामान्यतः एक सुरम्य स्मृति लोक रहा है, एक स्थायी नोस्टेल्जिया, जहाँ उसने अक्सर शहर में रहते-खाते-पीते, पलते-बढ़ते लेकिन...
कविताजनमतसाहित्य-संस्कृति

इस क्रूरता पर हम सिर्फ़ रोयेंगें नहीं: सविता सिंह

उमा राग
सविता सिंह  आज कल मेरी सैद्धांतिक समझ इस बात को समझने में खर्च हो रही है कि किसी देश में छोटी बच्चियों के साथ इतना घिनौना...
कविता

लोकेश मालती प्रकाश की कविता : यथार्थ को नयी संवेदना और नए बिन्दुओं से देखने और व्यक्त करने की विकलता

उमा राग
  [author] [author_image timthumb=’on’][/author_image] [author_info]मंगलेश डबराल[/author_info] [/author]   एक युवा कवि से जो उम्मीदें की जाती हैं, लोकेश मालती प्रकाश की कविताएं बहुत हद तक...
कविता

यहीं कही रहेंगे केदारनाथ सिंह

समकालीन जनमत
मंगलेश डबराल, वरिष्ठ कवि हिन्दी कविता की एक महत्वपूर्ण पीढी तेज़ी से विदा हो रही है. यह दृश्य  दुखद और  डरावना  है जहां ऐसे बहुत...
कविताशख्सियतसाहित्य-संस्कृति

उठो कि बुनने का समय हो रहा है

समकालीन जनमत
केदारनाथ सिंह की कुछ कविताएं   मुक्ति का जब कोई रास्ता नहीं मिला मैं लिखने बैठ गया हूँ मैं लिखना चाहता हूँ ‘पेड़’ यह जानते...
कविताख़बरशख्सियतसाहित्य-संस्कृति

वह चला गया, जिसने कहा था कि जाना सबसे खौफनाक क्रिया है

समकालीन जनमत
आशीष मिश्रा, युवा आलोचक   हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि केदारनाथ सिंह हमारे बीच नहीं रहे . कवि केदारनाथ सिंह के जाने के साथ ही न...
कविता

शैतान शासक की आकुल आत्मा का ‘चुपचाप अट्टहास’

समकालीन जनमत
(कवि लाल्टू के कविता-संग्रह ‘ चुपचाप अट्टहास ’  पर युवा लेखक आलोक कुमार श्रीवास्तव की टिप्पणी. ) किसी देश की जनता के लिए यह जानना...
कवितासाहित्य-संस्कृति

‘ रेख्ता के तुम ही नहीं हो उस्ताद ग़ालिब, कहते हैं अगले जमाने में कोई मीर भी था ’

कौशल किशोर
लखनऊ में ‘ब याद: मीर तकी मीर’ का आयोजन ‘रेख्ता के तुम ही नहीं हो उस्ताद ग़ालिब/कहते हैं अगले जमाने में कोई मीर भी था’. ...
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