समकालीन जनमत

Tag : समाज

सिनेमा

आत्मपॅम्फ्लेट – भारत की अपनी फॉरेस्ट गंप जो मराठी में बनी है

समकालीन जनमत
जावेद अनीस साल 2022 रिलीज हुयी आमिर खान की फिल्म लाल सिंह चड्ढा हॉलीवुड की कल्ट कलासिक फिल्म फॉरेस्ट गंप (1994) की आधिकारिक रिमेक थी,...
समर न जीते कोय

समर न जीते कोय-24

मीना राय
(समकालीन जनमत की प्रबन्ध संपादक और जन संस्कृति मंच, उत्तर प्रदेश की वरिष्ठ उपाध्यक्ष मीना राय का जीवन लम्बे समय तक विविध साहित्यिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक...
पुस्तक

पीटर ग्रे की दृष्टि में शिक्षा का प्रतिदर्श

समकालीन जनमत
राम विनय शर्मा शिक्षा मनुष्य के चहुँमुखी विकास का सबसे प्रमुख माध्यम है। विद्वानों ने शिक्षा को तरह-तरह से परिभाषित करने का प्रयास किया है।...
ज़ेर-ए-बहस

शिक्षालयों के कुछ पूर्वाग्रह                   

जनार्दन
वर्चस्वशाली समाज के विचार से शिक्षण की प्रविधि ही नहीं, उसकी भाषा और यहाँ तक कि वर्णमाला तक को भेद दिया करते हैं.  वर्चस्वशाली विचार...
ख़बर

नीलांबर कोलकाता का ‘रवि दवे स्मृति सम्मान’ चेतना जालान को और ‘निनाद सम्मान’ अपराजिता शर्मा को

समकालीन जनमत
कोलकाता, 29 नवंबर 2021 । देश की जानीमानी साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था नीलांबर द्वारा नाटक के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए दिया जाने वाला ‘रवि दवे...
पुस्तक

हिंदुत्व के उत्थान से उपजी निराशा

गोपाल प्रधान
अभय कुमार दुबे की किताब ‘हिंदू-एकता बनाम ज्ञान की राजनीति’ का प्रकाशन वाणी प्रकाशन से 2019 में हुआ । शीर्षक ही बिना किसी लाग लपेट...
ख़बर

‘दलेस’ द्वारा ‘कबीर की सामाजिक चेतना’ पर विचार गोष्ठी

समकालीन जनमत
‘दलित लेखक संघ’ के तत्वावधान में 23 जून 2021 को ‘कबीर जयंती’ के अवसर पर “कबीर की सामाजिक चेतना” विषय पर विचार गोष्ठी और काव्यपाठ...
पुस्तक

टूटे पंखों से परवाज़ तक: आत्मीयता की अंतहीन तलाश

भारत में हिंदी साहित्य के विकास क्रम को देखें तो पता चलता है कि 19वीं शताब्दी से पहले साहित्य का विषय सिर्फ ईश्वर, राजा, सामंत...
सिनेमा

काली स्लेट पर सफेद चॉक से लिखी दोस्ती की इबारत

समकालीन जनमत
  मनोज कुमार    आदर्श विद्यार्थी के जो पाँच लक्षण हमें बताए गए थे उन लक्षणों में सिनेमा देखना नहीं शामिल था| बगुले की तरह...
विज्ञान

विज्ञान और टेक्नोलोजी – दो हमसाए और समाज

समकालीन जनमत
(10 दिसंबर 1957 को कोलकाता में जन्मे लाल्टू विज्ञान, कविता, कहानी, पत्रकारिता, अनुवाद, नाटक, बाल साहित्य, नवसाक्षर साहित्य आदि विधाओं में समान गति से सक्रिय...
शिक्षा

गुनता है गुरु ज्ञानी

डॉ.अंबरीश त्रिपाठी माता-पिता की महती इच्छा और महत्वाकांक्षाओं के साथ बच्चा पाठशाला में प्रवेश करता है । परीक्षा में अव्वल आने की प्रेरणा से वह...
सिनेमा

अतियथार्थवाद का जोखिम भरा रास्ता अख़्तियार करती मणि कौल की ‘उसकी रोटी’

मुकेश आनंद
(महत्वपूर्ण राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय फिल्मों पर  टिप्पणी के क्रम में आज प्रस्तुत है समानांतर सिनेमा के जरूरी हस्ताक्षर मणि कौल की उसकी रोटी । समकालीन जनमत केेे...
शिक्षा

समानता की सीख

समकालीन जनमत
डॉ.दीना नाथ मौर्य स्कूल केवल सूचना ही नहीं देते हैं बल्कि सोचना भी सिखाते हैं और इसी रूप में नजरिये का निर्माण भी करते हैं....
साहित्य-संस्कृति

साहित्य की पारिस्थितिकी पर खतरा

गोपाल प्रधान
साहित्य की पारिस्थितिकी आखिर है क्या ? इसका सबसे पहला उत्तर किसी के भी दिमाग में यह आता है कि समाज ही साहित्य की पारिस्थितिकी...
ज़ेर-ए-बहस

मानने वाले समाज में जानने वालों का हस्तक्षेप और सरकार का डर

हम अपने देश भारत की महानता की गाथा सुनकर बड़े हुए हैं. हमें बताया गया कि भारत आदि-अनादि काल से ही एक महान देश रहा...
ज़ेर-ए-बहस

हम देश को कौन सी कहानी सुनायें साथी!

अंशु मालवीय 2019 के आम चुनावों के नतीजों ने हमे जो दिखाया है उसकी तमाम वजहें विश्लेषकों और विद्वानों ने गिनाई है, उनमें ज़्यादातर वजहें...
ख़बर

LGBTQ समूह और उनके प्रेम को समझे समाज

राजेश सारथी
वर्धा (महाराष्ट्र). वेलेंटाइन दिवस की पूर्व संध्या पर महाराष्ट्र के वर्धा में ‘ लैंगिक हिरासत और संघर्षशील प्रेम ‘ पर केन्द्रित कार्यक्रम आयोजित हुआ। कार्यक्रम...
साहित्य-संस्कृति

अंतःकरण और मुक्तिबोध के बहाने

रामजी राय
(मुक्तिबोध के जन्मदिन पर समकालीन जनमत के प्रधान संपादक रामजी राय का आलेख) 2017 में मुक्तिबोध की जन्मशताब्दी गुज़री है और 2018 मार्क्स के जन्म...
शख्सियतसाहित्य-संस्कृति

अपने-अपने रामविलास: प्रणय कृष्ण

प्रणय कृष्ण
आज रामविलास जी का जन्मदिन पड़ता है.  इस अवसर पर प्रणय कृष्ण का लिखा आलेख ‘अपने अपने रामविलास’ समकालीन जनमत के पाठकों के लिए यहाँ...
जनमत

सभ्य होने की असलियत

समकालीन जनमत
सदानन्द शाही किसी समाज के सभ्य होने का सबसे बड़ा पैमाना यह  है कि वह समाज स्त्रियों के साथ कैसा व्यवहार करता है. अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस...
Fearlessly expressing peoples opinion