समकालीन जनमत
ग्राउन्ड रिपोर्ट

आपदा और सत्ता के झूठ से जूझता जोशीमठ

प्रोफेसर एस पी सती (हेड, डिपार्टमेंट ऑफ बेसिक एंड सोशल साइंस, कॉलेज ऑफ फॉरेस्ट्री, रानीचौरी, टिहरी गढ़वाल) जब बहुत तकलीफ से भरे हुए कह रहे हैं कि ‘जोशीमठ अब नहीं बचेगा यह एक उदास सत्य है.’ तो क्या जोशीमठ के बारे में प्रचलित वह दंतकथा सत्य साबित होगी जिसे यहां के लोग सुनाते हैं. केदारखंड के सनत कुमार संहिता में भी जिक्र आता है कि जब नरसिंह भगवान का हाथ टूट जाएगा तब जय विजय नाम की दो पहाड़ियां, जो विष्णुप्रिया के समीप पटमिला नामक स्थान पर स्थित हैं, आपस में मिल जाएंगी और बद्रीनाथ धाम का रास्ता बंद हो जाएगा. नरसिंह भगवान के हाथ टूटने के कारण की कथा मिलती है, जिसमें राजा के द्वारा मनुष्य रूप में उपस्थित नरसिंह भगवान पर तलवार से हमला किया जाता है तब नरसिंह भगवान अपने रूप में प्रकट होते हैं और राजा द्वारा क्षमा याचना करने पर कहते हैं कि तुम्हारे प्रहार के प्रभाव के कारण मंदिर में स्थित मेरी मूर्ति का एक बाजू पतला हो जाएगा और जब वह टूट कर गिर जाएगा तब तुम्हारे वंश का नाश हो जाएगा. लोक में प्रचलित यह कथा, क्या हमारे समय की कथा भी होने जा रही है.

जे पी की विष्णु प्रयाग विद्युत परियोजना

जोशीमठ आज जहां पहुंचा है उसकी पटकथा 90 के दशक के अंत में शुरू हुई जे पी की विष्णुप्रयाग जल विद्युत परियोजना के समय से ही शुरू हो गई थी. पहले दिवंगत सुंदरलाल बहुगुणा ने सत्ता में बैठे लोगों को चेतावनी देनी शुरू कर दी थी. आज की नागरिक संघर्ष समिति के लोगों ने दिसंबर 2003 में सरकार को अपना पहला ज्ञापन दिया था. 90 के दशक में शुरू हुई परियोजना 2005 में पूरी हुई, जिसके लिए जोशीमठ के ठीक सामने स्थित पहाड़ी पर बसे चांई गांव के नीचे से इस परियोजना के लिए टनल बनाई गई थी. 2007 में चांई गांव में 20-25 घरों में ऐसी ही बड़ी-बड़ी दरारें आई और फिर उन लोगों को वहां से विस्थापित होना पड़ा था. गांव के निवासी संतोष राणा कहते हैं कि इनकी टनल के प्रेशर सॉफ्ट में लीकेज हुआ उसी के कारण हमारे गांव के घर दरक गए. संतोष बताते हैं कि उस समय हम लोगों को इतनी जानकारी नहीं थी. कंपनी ने बड़े-बड़े वादे किए थे, हम लोग उनके भुलावे में आ गए और हमारे गांव के लोगों को विस्थापित होना पड़ा. कंपनी ने जो वायदे किए थे उन्होंने उसमें से कुछ भी नहीं किया. गांव के बृजेंद्र पंवार बताते हैं कि हम लोगों की 100 एकड़ से ज्यादा खेती की जमीन नष्ट हो गई. कंपनी ने कहा था कि वह हर घर के एक आदमी को नौकरी देगी लेकिन आज की तारीख में सिर्फ 2 लोगों को नौकरी मिली है. जिन परिवारों को विस्थापित होना पड़ा उन्हें घर बनाने के लिए एक नाली दो मुट्ठी जमीन दी गई और निर्माण के लिए ₹3,60000 प्रति घर दिया गया. हालांकि जिस सिंचाई विभाग की जमीन पर उनको बसाया गया, आज तक उसका कोई पट्टा कागज सरकार ने विस्थापितों को नहीं दिया है. भय लगता है कि वह कभी भी अवैध कब्जेदार मान लिए जा सकते हैं. खेती की जमीन का कोई मुआवजा नहीं मिला. आज तक लैंड भी वापस नहीं मिली. लेकिन इस घटना से भी हुकूमत कर रहे लोगों ने कोई सबक नहीं लिया उल्टे हमारे इलाके में दो और हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट लगा दिए. अब जोशीमठ पर खतरा है. वह बताते हैं कि हम तब से आज तक सरकार को चिट्ठी देते रहे हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं है. उनकी पत्नी शकुंतला देवी गांव की प्रधान हैं और जोशीमठ के लोगों के साथ तहसील में चल रहे धरने को लगातार समर्थन देने जाती हैं.

चारधाम रोड के लिए पहाड़ काटते जेसीबी

जोशीमठ नगर को जब आप इन परियोजनाओं के साथ देखेंगे तो पता लगता है कि नगर के ऊपर औली मार्ग के ऊपर से पहाड़ के भीतर से एनटीपीसी की सुरंगें आ रही हैं और शहर के नीचे की तरफ हेलंग से मारवाड़ी चौक होते हुए काफी चौड़ा बाईपास (चारधाम यात्रा मार्ग) बन रहा है, यानी शहर के उपर से पहाड़ को भीतर से खोखला किया गया है और नीचे से शहर की जड़ को काटते हुए सड़क का निर्माण किया जा रहा है. इसी इलाके में सबसे पहले 2 जनवरी को लोगों के घरों में बड़ी-बड़ी दरारें आईं और जेपी नगर कॉलोनी में तेजी से जमीन फोड़कर पानी बहने लगा. और अब ये गड्ढे और दरारें शहर के नए इलाकों में दिखने लगी हैं. वो सिंहधार हो या रविग्राम, लोग दहशत में हैं और गुस्से में भी.
लेकिन इन सबके बावजूद अभी की विनाशलीला के एक महीने बाद भी सरकार जमीन पर ठोस राहत के उपाय करने के बजाय जोशीमठ के नागरिकों और आंदोलन का नेतृत्व कर रही नागरिक संघर्ष समिति पर जोर शोर से हमला करने, उन्हें बदनाम करने, आंदोलन को थकाने और तोड़ने की जुगत लगा रही है. सरकार का तर्क है कि सुरंग बनने या चार धाम रूट काटने से कोई खतरा नहीं हुआ है. वह बेहद सुरक्षित तरीके से किया जा रहा है. चीन की सीमा पर स्थित नगर होने के कारण यह सामरिक और राष्ट्र की सुरक्षा के लिए अनिवार्य है, विकास और पर्यटन उद्योग से होने वाली आय रोजगार के लिए अनिवार्य है. जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, जनता को भड़का रहे हैं, भ्रम पैदा कर रहे हैं, विकास विरोधी हैं. और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट जी तो इन्हें चीनी एजेंट तक घोषित कर रहे हैं. आप उत्तराखंड के प्रमुख अखबारों में 1 फरवरी की तारीख में उनके बयान देख सकते हैं. जबकि सच्चाई क्या है? भू वैज्ञानिकों के सर्वे देखे जाएं या सरकार अपनी बनाई कमेटियों की रिपोर्ट भी देख ले तो सच्चाई दिन के उजाले की तरह साफ है. 1939 में ही दो स्विस भूवैज्ञानिकों का जोशीमठ के इलाके को लेकर ‘द सेंट्रल हिमालय’ नाम से मोनोग्राफ है, जिसमें उन्होंने कहा है कि यह बहुत सेंसिटिव जोन है. 1976 में जोशीमठ के इलाके में भूस्खलन की कई घटनाएं घटी थीं. तत्कालीन गढ़वाल कमिश्नर महेश चंद्र मिश्रा की रिपोर्ट कहती है कि यहां विकास के जरूरी काम भी काफी विचार-विमर्श और वैज्ञानिक छानबीन करके ही किए जाने चाहिए. इरैटिक बोल्डरों को (घरों के बराबर के काफी बड़े बोल्डर होते हैं) बिल्कुल भी डिस्टर्ब नहीं किया जाना चाहिए. यह पूरा शहर ही लैंडस्लाइड मैटिरियल यानि पहाड़ से टूट कर गिरे पत्थरों, कच्ची चट्टानों पर बसा हुआ है. ऐसे में यहां अनियंत्रित विकास योजनाएं नगर को तबाह कर सकती हैं.

सरकारें इन सब को खारिज करके सुरक्षा और विकास के नाम पर इतनी विशालकाय योजनाएं लाई हैं जो पूरे नगर और आसपास के गांवों को ही तबाही के कगार पर ले आई हैं. एक तर्क दिया जा रहा है कि लोगों ने अनियंत्रित तरीके से घर- दुकान- होटल बना लिए हैं, शहर का कोई सीवेज सिस्टम नहीं है, इसलिए उसका पानी पहाड़ के भीतर समा जा रहा है, और यह उसका नतीजा है. घरों के नक्शे पहले स्थानीय जिला पंचायत/ नगर पालिका पास करती थी. तब निर्माण कम था. इतने कई मंजिला होटल- घर नहीं बने थे. आपने नगर विकास अभिकरण बनाकर सारे अधिकार उसे दे दिए तो जिम्मेदार कौन है? शहर में निर्माण और जल निकासी की व्यवस्था किसके ऊपर है? किसके आदेश से तमाम चेतावनियों के बावजूद यह होने दिया गया? क्या सिर्फ लोग दोषी हैं जो अपने जीवन भर की गाढ़ी कमाई लुटा कर आज बेघर और बेबस है.

28 फरवरी को हुआ गड्ढा, तस्वीर हिंदुस्तान से साभार

देशभक्ति की कविताएं जब हम बचपन में पढ़ते थे तो उसमें लिखा रहता था कि उत्तर में बर्फ से ढका हिमालय हमारे देश की सुरक्षा करता है. लेकिन विकास के बुलडोजर ने अब उसे इतना कमजोर करना शुरू कर दिया है कि वह हमारी मातृभूमि क्या अपनी भी सुरक्षा नहीं कर पा रहा है. और यह सब उस सरकार के नेतृत्व में हो रहा है जो अपने को ही देश मानती है, उसका हुक्म राष्ट्रवाद है और हिंदू राष्ट्र की धर्म ध्वजा वाहक है. क्या हिंदू राष्ट्र धर्मध्वजा वाहक, श्रेष्ठ पुरुषों के नेतृत्व में ही आदि शंकराचार्य की नगरी की विनाश कथा लिखी जाएगी? राजा और नरसिंह भगवान की जो दंतकथा प्रचलित है, क्या वह पूरी तरह से घटने वाली है? क्योंकि आज राजा के एक नहीं हजार हाथ हैं. जिनमें एक तलवार की जगह हजारों- हजार विनाशकारी मशीनें और विस्फोटक हैं. जिसमें बड़े सेठों कारपोरेट्स के हित सधने हैं. इसलिए जोशीमठ ही नहीं उत्तराखंड के तमाम नगरों, कस्बों, गांवों की विनाश कथा लिखी जा रही है. क्या नरसिंह भगवान के बाजू विकास के बुलडोजर के हमले से बच सकेंगे? या ये स्वघोषित हिंदू राष्ट्र रक्षक सनातन धर्म के इस पौराणिक/ऐतिहासिक नगर के लिए भस्मासुर ही साबित होंगे. हम इसका इंतजार करें या फिर अपने जनकवि गिर्दा की बात को फिर फिर याद करें-
महल चौबारे बह जाएंगे, केवल रौखड़ रह जाएगा
बोल ब्योपारी तब क्या होगा
दिल्ली देहरादून में बैठे योजनकारी, तब क्या होगा
बोल ब्योपारी तब क्या होगा…

सत्ता को यह आवाज हमें लगातार सुनाते रहना है और उससे बार बार सवाल करते रहना होगा.
( नागरिक संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती और बारामासा के इनपुट का आभार)

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