“तब मुझे क्या पता था
कहने वाले
सुनने वाले
इस तरह पथराएँगे
कि शब्द निरर्थक से हो जाएँगे,
कॉमरेड कवि सुरजीत सिंह पातर नहीं रहे। नक्सलबाड़ी से प्रेरित कवियों में थे सुरजीत पातर। नक्सलबाड़ी विद्रोह की चेतना को नाटक, कविता सब विधाओं में बंगाल के बाद कहीं साहित्य, संस्कृति में आवाज मिली तो वह पंजाब था। आप कह सकते हैं कि नक्सलबाड़ी घटा बंगाल में और उसके सशक्त कवि पाश उसे मिले पंजाब में। और उसी पीढ़ी और उन्हीं के हमकदम बने सुरजीत पातर भी।
मैं दो तीन क़दम ही चलता हूँ
कि परदेस आ जाता है
मेरे लगाए हुए पेड़ों के साये
कितने छोटे हैं
सत्तर के दशक में पंजाबी की विद्रोही कविता की बुनियाद रखने वालों में एक अद्वितीय कवि रहे सुरजीत सिंह पातर, उनकी कविताएं भारतीय कविता की प्रतिनिधि कविताएं कही जा सकती हैं। उनकी कविता का मूल स्वर प्रतिरोध ही था और इस तरह भारतीय कविता की क्रांतिकारी धारा के एक सशक्त कवि थे सुरजीत सिंह पातर। जिनकी कविताओं में विद्रोह के स्वर लगातार गूँजते रहे हैं।
मातम
हिंसा
ख़ौफ़
बेबसी
और अन्याय
यह हैं आजकल मेरी नदियों के नाम।
सुरजीत पातर बचपन से कविता लिखते हैं, वे बताते थे कि बचपन में ही पिता के विदेश जाने पर मां की उदासी देख उन्होंने कविता लिखनी शुरू की। सुरजीत सिंह पातर का जन्म 1945 को पंजाब के पत्तङ कलां में हुआ। सुरजीत सिंह पातर को साहित्य अकादमी पुरस्कार, पंचनद पुरस्कार, सरस्वती सम्मान और कुसुमाग्रज साहित्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने कपूरथला के रणधीर कॉलेज से स्नातक और गुरु नानक देव विश्वविद्यालय से ‘गुरुनानक वाणी में लोकथाओं में परिवर्तन’ विषय पर पीएचडी की। वह लुधियाना में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय से पंजाबी भाषा के प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। उन्हें 2012 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। वह पंजाब कला परिषद के अध्यक्ष भी थे। पातर की प्रख्यात काव्य रचनाओं में ‘हवा विच लिखे हर्फ’, ‘हनेरे विच सुलगदी वरनमाला’, ‘पतझड़ दी पाजेब’, ‘लफ्जां दी दरगाह‘ और ‘सुरजमीन’ शामिल हैं।
समाज में लगातार बढ़ रहे डर को उनकी कविताओं में लगातार चिन्हित किया गया है।
मैं पहली पंक्ति लिखता हूंँ
और डर जाता हूँ राजा के सिपाहियों से
पंक्ति काट देता हूँ
मैं दूसरी पंक्ति लिखता हूंँ
और डर जाता हूँ बाग़ी गुरिल्लों से
पंक्ति काट देता हूँ
मैंने अपने प्राणों की ख़ातिर
अपनी हज़ारों पंक्तियों को
ऐसे ही क़त्ल किया है
उन पंक्तियों की आत्माएँ
अक्सर मेरे आस-पास ही रहती हैं
और मुझे कहती हैं:
कवि साहिब
कवि हैं या कविता के क़ातिल हैं आप?
सुने मुंसिफ़ बहुत इंसाफ़ के क़ातिल
बड़े धर्म के रखवाले
ख़ुद धर्म की पवित्र आत्मा को
क़त्ल करते भी सुने थे
सिर्फ़ यही सुनना बाक़ी था
कि हमारे वक़्त में ख़ौफ़ के मारे
कवि भी बन गये हैं
कविता के हत्यारे।
कविता और लेखन के साथ-साथ सुरजीत सिंह पातर ने कई महत्वपूर्ण अनुवाद किये। फेडरिको गार्सिया लोर्का की तीन त्रासदियां, गिरिश कर्नाड के प्रसिद्ध नाटक नागमंडला और बर्तोल्त ब्रेख़्त व पाब्लो नेरुदा की कविताओं का पंजाबी अनुवाद भी किया। सुरजीत सिंह पातर अन्याय के खिलाफ उठी हुई एक अनुगूंज थे । उन्होंने 2012 में मिले अपने पद्मश्री अवार्ड को 2020 में किसान आंदोलन के समय मार्मिक घोषणा करते हुए लौटाया था कि “अमरी मैनु आँखा लग दी/तू धरती दा गर्त रहेगा/पद्मश्री होके भी पातर तू मेरा सुरजीत रहेगा।
किसान आंदोलन के समय उनकी ये उन्वान देश भर में गूंज उठी थी। कला और साहित्य सिनेमा की दुनिया में सुरजीत सिंह पातर के उल्लेखनीय योगदान को कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता। पंजाबी सिनेमा शहीद उधमसिंह व दीपा मेहता की फ़िल्म हेवन ऑन अर्थ के संवाद भी उन्होंने लिखे।
आधी रात में
जब कभी जागता हूँ
सुनता हूँ कायनात
तो लगता है
बहुत बेसुरा गा रहा हूँ मैं
छोड़ गया हूँ सच के साथ को
मुझे कुचलने पड़ेंगे अपने पदचिह्न
लौटाने होंगे अपने बोल
कविताओं को उल्टा टाँगना होगा
घूम रहे सितारों-नक्षत्रों के बीच
घूम रहे ब्रह्मांड के बीच
सुनाई देती है
किसी माँ की लोरी
लोरी से बड़ा नहीं कोई उपदेश
चूल्हे में जलती आग से नहीं बड़ी कोई
रोशनी
लगता है
कहीं और हो रही है मेरी प्रतीक्षा
मैं यहाँ बैठा हूँ।
समकालीन जनमत की तरफ से कामरेड कवि सुरजीत सिंह पातर को भावभीनी श्रद्धांजलि।