समकालीन जनमत
कवितास्मृति

गोरख के काव्य में सादगी, अभिधा का सौंदर्य है-चन्द्रेश्वर

गोरख पाण्डेय की स्मृति में लखनऊ में कार्यक्रम

शीर्षस्थ कथा लेखिका कृष्णा सोबती को श्रद्धांजलि दी गई

लखनऊ. हिन्दी कविता की जो सुदीर्घ परम्परा है, उसकी समकालीन काव्य धारा के शीर्ष पर गोरख पाण्डेय है। एक तरफ उनमें जहां क्रान्तिकारी विचार की गहराई है, वहीं उनका शिल्प इस कदर तराशा हुआ है कि उसका सौदर्य देखते ही बनता है। जहां समकालीन कविता में मध्यवर्गीय बौद्धिक चिन्तन हावी है जिसका आम जनता से संवाद नहीं है, वहीं गोरख अकेले या अग्रणी कवि हैं जो संवाद करते हैं। इनके काव्य में सादगी है, अभिधा का सौंदर्य है।

यह विचार कवि और आलोचक चन्द्रेश्वर ने प्रकट किये। वे जन संस्कृति मंच की ओर से आयोजित गोरख पाण्डेय स्मृति संध्या के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता उन्होंने की। यह कार्यक्रम 27 जनवरी को लखनऊ के लोहिया भवन, नरही, हजरतगंज में सम्पन्न हुआ। चन्द्रेश्वर ने इस संदर्भ में गोरख पाण्डेय की कई कविताओं का जिक्र किया। उनके भोजपुरी में लिखे गीतों पर उनका कहना था कि ये पारम्परिक होने के बावजूद इनकी विशेषता नई अन्तर्वस्तु है जिसे पढ़ते हुए उम्मीद पैदा होती है। लगता है ये जागरण के काव्य हैं।

विचार गोष्ठी का आरम्भ करते हुए कवि व जसम उत्तर प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष कौशल किशोर ने कहा कि गोरख पाण्डेय का व्यक्तित्व सांस्कृतिक योद्धा का रहा है। वे जनता के सांस्कृतिक आंदोलन के विचारक और संगठक रहे जिसकी परिणाति जन संस्कृति मंच के निर्माण में हुई। अस्सी के दशक में जब लोक संवेदना के नाम पर पेड़ और चिड़िया कविता में हावी हो रही थी, कविता की वापसी के रूप में उसे जनजीवन से दूर किया जा रहा था, ऐसे समय में गोरख ने हिन्दी कविता को क्रान्तिकारी अन्तर्वस्तु से लैस किया। भोजपूरी में गीत लिखे। गजलों की रचना की। उनकी रचनाओं में जन चेतना का विस्फोट है। इनका सम्पूर्ण काव्य गुलामी के खिलाफ आजादी का हैै जिसमें श्रमशील जनता का सौदर्य है।

जसम लखनऊ के संयोजक श्याम अंकुरम ने गोरख पाण्डेय के दार्शनिक चिन्तन पर अपना परचा पढ़ा और कहा कि गोरख पाण्डेय ने अलगाव की मार्क्सवादी व्याख्या पेश की।

इस मौके पर गोरख पाण्डेय की दो कविताओं ‘समझदारों का गीत’ और ‘कैथर कलां की औरतें’ का पाठ भी किया गया।

कार्यक्रम का दूसरा सत्र कवि गोष्ठी का था। सुभाष राय, भगवान स्वरूप कटियार, उषा राय, देवनाथ द्विवेदी, अशोक श्रीवास्तव, विमल किशोर, इंदु पाण्डेय, मो कलीम खान, फ़रज़ाना महदी, मधुसूदन मगन, माधव महेश और कौशल किशोर ने अपनी कविताएं सुनायी। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे चन्द्रेश्वर ने अपनी चर्चित कविता ‘पूरब के हैं हम’ का पाठ किया। उन्होंने गोष्ठी में पढ़ी गयी कविताओं पर टिप्पणी करते हुए कहा कि ये गोरख पाण्डेय की परम्परा की हैं। इनमें जन चेतना है, समय की गूंज है। ‘झूठ’ आज का बिम्ब है। जीवन में जो संकट है, उसे कवि अभिव्यक्त कर रहा है। इस मायने में गोरख पाण्डेय की याद में जसम की ओर से आयोजित यह कार्यक्रम महत्वपूर्ण व यादगार है।

कार्यक्रम के अन्त में शीर्षस्थ कथा लेखिका कृष्णा सोबती के निधन पर शोक प्रस्ताव पढ़ा गया जिसमें कहा गया कि उन्होंने हमेशा अपनी कलम को केवल अपनी साहित्यिक अभिव्यक्ति के लिए ही नहीं बल्कि अपनी प्रतिरोध चेतना की अभिव्यक्ति के लिए भी इस्तेमाल करने का संकल्प लिया जिस पर वो आजीवन अडिग रहीं। ऐसी दायित्व सजग समर्पित लेखिका के न रहने से हिंदी जगत की एक अपूर्णनीय क्षति हुई है। दो मिनट का मौन रखकर उनहें श्रद्धांजलि दी गयी।

कार्यक्रम का संचालन श्याम अंकुरम ने किया। इस अवसर पर राजेश कुमार, मंजु प्रसाद, के के शुक्ला, शिवाजी राय, आर के सिन्हा, रामायण प्रकाश, प्रमोद प्रसाद, वीरेन्द्र त्रिपाठी, अजय श्रीवास्तव, शिवा रजवार, नीतीन राज, अतुल, हंसा, हारिल आदि उपस्थित थे।

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