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जयंती पर याद : किशोर साहू

पीयूष कुमार

दुर्ग, छत्तीसगढ़ में आज ही के दिन 22 नवंबर 1915 में हिंदी फिल्मों के दूसरे दौर में फिल्मों को गति देने वाले लेखक, अभिनेता, निर्माता और निर्देशक किशोर साहू का जन्म हुआ था। उनके दादा विभिन्न रियासतों में उच्चाधिकारी थे सो बचपन छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों में बीता, हालांकि उनकी पढ़ाई राजनांदगांव में हुई। बाद में जब उन्हें नागपुर विवि पढ़ने के लिए भेजा गया तो वे लेखन से जुड़े और स्वतंत्रता आंदोलनों में सक्रिय रहे। पर किस्मत फिल्मों में उनकी बाट जोह रही थी। वे बम्बई पहुंचे और हिमांशु राय ने अपनी फिल्म ‘सावित्री’ में छोटी से भूमिका दी और अगली फिल्म ‘जीवन प्रभात’ में नायक बना दिया, नायिका थीं, देविका रानी। यह एक बड़ी शुरुआत थी। पर किशोर ने 1940 में एक रईस मित्र द्वारका दास डागा के साथ खुद की ही फ़िल्म कम्पनी ‘The India Artist Limited’ शुरू की और पहली फ़िल्म बनाई, ‘बहूरानी’। इस फ़िल्म का विषय था अछूत लड़की का ब्याह। जाहिर है, किशोर साहू एक प्रगतिशील व्यक्ति थे।

1942 में किशोर साहू की फ़िल्म ‘कुँवारा बाप’ को उस साल श्रेष्ठ फ़िल्म का सम्मान मिला था। इस फ़िल्म में किशोर ने अपने मित्र प्रसिद्ध साहित्यकार अमृतलाल नागर से संवाद लिखवाए और अभिनय भी करवाया था। 1943 में आई फ़िल्म ‘राजा’ में किशोर साहू ने अपनी आवाज में गाने भी गाये और साहित्यकार भगवतीचरण वर्मा से गीत लिखवाए थे। तब के फ़िल्म आलोचक बाबूराव पटेल ने इस फ़िल्म की तारीफ की थी जबकि वे कठोर आलोचना के लिए कुख्यात थे। किशोर ने अगली फिल्म बनाई ‘वीर कुणाल’ जिसका प्रीमियर नॉवेल्टी सिनेमा में हुआ और सरदार वल्लभभाई पटेल ने उद्घाटन किया था। यह भी बहुप्रशंसित फ़िल्म थी। किशोर साहू ने ‘नदिया के पार’ (1948) में कामिनी कौशल और दिलीप कुमार को निर्देशित किया, जो उस साल की बड़ी हिट थी। इस फ़िल्म में कुछ संवाद छत्तीसगढ़ी में भी हैं जो उनकी अपने जड़ों से प्रेम को जाहिर करता है। उनकी 1954 की फिल्म ‘मयूरपंख’ को प्रतिष्ठित कान फिल्म समारोह, पेरिस में पुरस्कार हेतु नामांकित किया गया था।

1960 में किशोर साहू ने ‘दिल अपना और प्रीत पराई’ का निर्देशन किया। The Hindu ने लिखा, ‘यह किशोर साहू की बाईस निर्देशित कृतियों में सर्वाधिक भावुक थी।’ निर्माता थे कमाल अमरोही और कलाकार थे, राजकुमार और मीनाकुमारी जो अपनी श्रेष्ठ भूमिकाओं में थे। 1960 के सर्वश्रेष्ठ निर्देशन, संगीत और गीतकार के तीन फ़िल्म फेयर पुरस्कार इस फ़िल्म को मिले थे। कमाल की बात यह थी कि पुरस्कारों के लिए इस फ़िल्म की टक्कर में ‘मुगल ए आजम’ थी। फ़िल्म ‘गाइड’ (1965) में किशोर साहू की ‘मार्को’ की भूमिका को कौन भूल सकता है। किशोर साहू ने अपने लंबे फिल्मी कॅरिअर में 1937 से 1982 तक 29 फिल्मों में विभिन्न भूमिकाएं निभाईं। उन्होंने बतौर निर्माता 07 फिल्मों का निर्माण किया और 21 फिल्मों का निर्देशन किया। उन्होंने 05 फिल्मों की कहानी, पटकथा और संवाद भी लिखा। किशोर साहू का निधन 22 अगस्त 1980 को हुआ ।

किशोर साहू मूलतः लेखक थे। उन्होंने अपने सिनेमा में साहित्य को शामिल करने का सतत प्रयास किया। बतौर लेखक उनके तीन कहानी संग्रह- ‘टेसू के फूल’, ‘छलावा’ और ‘घोंसला’ हैं। उनके चार उपन्यास भी बताये जाते हैं। उनका एक नाटक संग्रह भी है ‘शादी या ढकोसला’ नाम से। किशोर साहू के सम्मान में छत्तीसगढ़ सरकार ने ‘किशोर साहू फ़िल्म सम्मान’ देने की शुरुआत की है। किशोर साहू एक बहुमुखी प्रतिभा के कलाकार थे जो उन्हें विशेष बनाता है। आज उनके 106 वे जन्मदिवस पर उन्हें श्रद्धांजलि।

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