समकालीन जनमत
सिनेमा

शांतिलाल और तितली का रहस्य

प्रशांत विप्लवी


प्रतिम डी गुप्त उभरते बांग्ला फिल्मकार हैं। ठीक तीन साल पहले उनकी एक फ़िल्म बंगाल के सिनेमाघरों में हाउसफुल का बोर्ड लटकवाने में सक्षम हुई थी। इस फ़िल्म को रहस्य और जासूसी फ़िल्म कहकर प्रचारित किया गया जबकि यह जासूसी फिल्म कतई नहीं है। इस फ़िल्म के अंत में जो संवेदनात्मक और मनुष्यता के पहलू हैं, वह इस फ़िल्म को और भी बेहतर बनाते हैं। यह एक सुखद आश्चर्य ही है कि किसी ज़रूरी विषय की कहानी पर दर्शक उमड़ पड़े हों। जब भारतीय सिनेमा बॉलीवुड का पर्याय बनता जा रहा है और अन्य भाषाओं की फिल्में हाशिए पर लुढ़कती जा रही हैं, उस समय किसी भाषा विशेष की फ़िल्म को तरजीह मिले, यह उनका संघर्ष भी है और उनकी जीत भी है।  यह फ़िल्म थी – (শান্তিলাল ও প্রজাপতি রহস্য) शांतिलाल और तितली का रहस्य।
मनुष्य का अतीत उसका पीछा करता है, यह बेहद आम धारणा है लेकिन उस अतीत के बुरे होने का दोष सिर्फ मनुष्य का नहीं है बल्कि परिस्थियां भी कारण रहे होंगे। वर्तमान जब अतीत पर सवाल उठाता है तब अतीत का कोई गवाह साथ नहीं होता है। इसलिए वर्तमान उन प्रश्नों में उलझकर अपना सबकुछ नष्ट कर देता है। लेकिन यहां अतीत जानकर भी वर्तमान को बिगाड़ा नहीं गया। बिगाड़ देना बहुत आसान, सहज और सामान्य था लेकिन अतीत के विवर्ण होने के बावजूद वर्तमान का बचा रह जाना, वाकई बेहद मुश्किल था। इन्हीं जटिलतम परिस्थियों से बुनी गई है यह फ़िल्म।
एक अख़बार के दफ़्तर में शांतिलाल एक ऐसे उपेक्षित रिपोर्टर हैं, जिनके प्रति संपादक से लेकर उनके सहकर्मी तक ठीक से बात तक नहीं करते। तमाम ज़रूरी (असल में गैर ज़रूरी) खबरों के बाद बचे हुए हिस्सों को भरने के लिए शांतिलाल को मौसम संबंधी ख़बरें लिखने को मिलती है। मौसम संबंधी खबरों की प्राथमिकता किसी उपोष्ण कटिबंधीय शहर में भला कितना महत्त्वपूर्ण होगा। इश्तहारों का शहर ख़बरें भी रंगीन ही ढूंढती हैं। शांतिलाल अपने एकाकी जीवन और नीरस नौकरी से क्षुब्ध रहता है। उसके सहकर्मी सिने तारिकाओं से लेकर बड़े – बड़े नामचीन लोगों पर खबरें बनाते हैं जबकि उसके हिस्से में वही गर्मी, बारिश और उमस की खबरें निरंतर ऊब पैदा करती है। शांतिलाल के परिवार में सिर्फ़ उसकी विधवा मां हैं, जिन्हें अपने बेटे के भविष्य की चिंता है। विवाह जैसे जिम्मेदारी से विमुख शांतिलाल अपनी रातें पोर्न फ़िल्मों के सहारे बिताता है। बाज़ार में आने वाले तमाम पोर्न फ़िल्मों का वह रसिया है। एक रोज़ अपने एक सहकर्मी के द्वारा दिए गए पास लेकर किसी चर्चित तारिका नमिता के फ़िल्म प्रीमियर में जाता है। वहीं वाशरूम में उसे उस हीरोइन के कमर पर एक तितली का टैटू दिख जाता है। यह तितली उसके कौतूहल का कारण बनता है क्योंकि वह एक पोर्न फ़िल्म में यह तितली किसी नायिका की कमर पर देख चुका है। घर लौटकर वह उन तमाम सीडीज में उस फ़िल्म को तलाश लेता है। उसे इस बात का ख़ूब अंदाज़ा है कि कुछ नायिकाएं अपने बेशुमार चाहने वालों के लिए चिरसुंदरी बनी रहती हैं। पोर्न इंडस्ट्री अपने इतने बड़े बाज़ार को नष्ट नहीं होने देना चाहते, इसलिए ढलती जवानी में सिर्फ़ चेहरा उस नायिका का होता है और देह किसी कमसिन लड़की का। यह टैटू देह के एक हिस्से से है इसलिए उसने यह तय कर लिया है कि इस प्रख्यात नायिका की असलियत का उद्भेदन करके एक बड़े रिपोर्टर का दर्ज़ा पा लेगा।
अब वह कोई रिपोर्टर नहीं रह गया था, उसकी सोच एक जासूस की तरह काम कर रही थी। उसने इस ख़ोज की शुरुआत उसी दुकान से की जहां से वह सीडी लिया करता था। उसके सवालों का जवाब उस युवा दुकानदार के पास तो नहीं था लेकिन वहीं पास में बैठा एक अंधा बुजुर्ग, जो पुराने ज़माने में इस धंधे में संलिप्त रहा, उसके पास था। उन्होंने एक सिगरेट और कुछ पैसों के एवज में दक्षिण भारत के दो भाइयों की कहानी सुनाई जिन्होंने इस इंडस्ट्री को स्थापित किया था। उन्होंने पद्मा पिक्चर्स के नाम पर इस इंडस्ट्री को आगे बढ़ाया, फिर कालांतर में उन्होंने अपने पुराने काम को ख़त्म कर, बड़े बजट की फिल्मों के जरिए प्रतिष्ठा हासिल की। पद्मा पिक्चर्स के इतिहास के बारे में जानकर शांतिलाल बेहद चकित हुआ। उसने तय किया कि वह पद्मा पिक्चर्स के मालिकों से मिलकर इस इंडस्ट्री के रहस्यों को खोलेगा। ऑफिस के बॉस उसके चेन्नई जाने की ख्वाहिश पर आपत्ति जताते हैं क्योंकि शांतिलाल अपनी योजना उन्हें नहीं बताता है। फिर भी वह चेन्नई के लिए निकल जाता है। वहां पद्मा पिक्चर्स जाकर भी उसे कोई जानकारी नहीं मिलती। लेकिन उससे एक प्रवासी बंगाली रॉकेट मिलता है, जिससे उसे पता चलता है कि पद्मा पिक्चर्स के मालिक की मृत्यु हो चुकी है। रॉकेट उसे पोर्न फिल्मों की शूटिंग दिखाने ले जाता है, जहां रियल फेस और डबल बॉडी के भेद को समझ पाता है। लेकिन इन चीज़ों से उसकी कार्य सिद्धि नहीं होने वाली थी। रॉकेट बताता है कि इस इंडस्ट्री की सबसे बड़ी स्टार रोशनी ही उसे मदद कर सकती है लेकिन रोशनी अब चेन्नई में नहीं है। रोशनी सिंगापुर में रहकर इस धंधे को नये सिरे से चला रही है। रोशनी के साथ रॉकेट रंजन की प्रेमिका भी चली गई, जिसके वियोग में रॉकेट रंजन आज भी चेन्नई की गलियों में ख़ाक छान रहा है। उसी की मदद से शांतिलाल चेन्नई से रोशनी तक पहुंचता है जहां रॉकेट की प्रेमिका उसे रोशनी से मिलने में मदद करती है। रोशनी कई बीमारियों से जूझ रही है। उसने आम लोगों से मिलना बंद कर दिया है लेकिन शांतिलाल से कुछ शर्तों पर वह मिलती है। शांतिलाल को नमिता की एक तस्वीर रोशनी के साथ मिल जाती है और यह सिद्ध हो जाता है कि नमिता रोशनी की देह बनती रही थी।

शांतिलाल की यह सफलता उसके जीवन को बदल देगी, इस बात का उसे पूरा इल्म है लेकिन इस तस्वीर से नमिता के जीवन में भी बहुत बदलाव आ जाएगा।
दरअसल पूरी फ़िल्म इसके बाद ही खुलती है। यहां से बहुत कुछ घटित होता है लेकिन जो अंत के कुछ दृश्य हैं, उसमें ही फ़िल्म का असली कवित्व है। कई बार  फिल्मकार यहीं आकर बिखर जाते हैं लेकिन इस फ़िल्म की मजबूती यहीं है।
फिल्मांकन की दृष्टि से इस फ़िल्म की जितनी तारीफ़ की जाए कम है। मुख्य किरदार में रित्विक चक्रवर्ती और पाओली दाम हैं। वे अपनी अभिनय क्षमता से बेहद प्रभावित करते हैं। इस फ़िल्म में बांग्ला के दो बेहद चर्चित फिल्मकार भी हैं – गौतम घोष और सृजित मुखर्जी।

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