समकालीन जनमत
कविता

जोगेन चौधुरी की कविताएँ चित्रकला सा वितान रचती हैं

मीता दास


मैंने ‘उजाले और अँधेरे में एक फूल’  नाम से एक पुस्तक का अनुवाद किया जिसमें शीर्षस्थ समकालीन भारतीय कलाकार जोगेन चौधरी की मूल बांग्ला कविताओं से हिन्दी में अनूदित कुल 41 कविताएँ संकलित हुई हैं। ये कविताएँ बांग्ला भाषा में प्रकाशित उनके काव्य-संग्रह ‘नन्दीमुख संसद’ से ली गयी हैं और हिन्दी में पुस्तकाकार पहली बार प्रकाशित हुई हैं। इस संकलन के संपादक अभिषेक कश्यप हैं | यह संकलन 2021 में ‘इंडिया टेलिंग’ प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है | इन कविताओं को अनुदित करते हुए मुझे महसूस हुआ की जोगेन चौधुरी की कविताएँ बड़े फलक की कविताएँ हैं | उनकी कविताओं में प्रेम, विरह, देश का विभाजन, अतीत के मीठे – कड़वे अनुभव, प्रकृति के प्रति अनुराग मन को मथती ही नहीं संवेदित भी करती है | उनका लेखन ही नहीं चित्रकला की बारीकियाँ भी कविताओं का एक व्यापक वितान रचती हैं |

47 के बंटवारे का दर्द आज भी उनके मन में पल रहा है। मातृभूमि छोड़ने का दर्द उन्हें आज भी परेशान कर जाता है। वयोवृद्ध चित्रकार जोगेन चौधरी कहते हैं कि विभाजन के आघात का उनके निजी जीवन और पेंटिंग पर ‘बड़ा प्रभाव’ पड़ा। “हममें से जो सीधे तौर पर प्रभावित हुए हैं वे विस्थापित होने के दर्द को जानते हैं। दर्द को दूर से महसूस नहीं किया जा सकता है। विभाजन के शिकार शिक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा और सबसे ऊपर पैसे की कमी के प्रभाव को जानते हैं। दर्द से ही पनपते हैं कविता, कहानी, नाटक, शिल्पकला और चित्रकला |

जोगेन चौधरी ने कहा कि विभाजन या शरणार्थी संकट का सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पड़ता है | उनका कैनवस व्यापक है .. अतीत की स्मृतियाँ, जीव-जगत और प्रकृति के प्रति गहरी संवेदना उनकी कविताओं का मूल भाव है| चित्रकला में भी वही भाव उभरकर आते हैं और कहीं-कहीं राजनैतिक कुठाराघातों को भी अंकित करने में कोताही नहीं बरतते |

उनके दो संस्मरणों का भी मैंने अनुवाद किया है …
1. मेरे गाँव की पूजा
2. मैं गुम गया

उनको अनुदित करते वक़्त मुझे एहसास हो गया था कि जोगेन चौधरी अब तक अपना देश जो आज बांग्लादेश है और अपने गाँव – फरीदपुर को नहीं भुला पाए हैं | अपने  बाल्य काल में ही अबतक जी रहे हैं, उन्हें अपने गाँव की पूजा याद है जो डहरपाड़ा में हुआ करती थी उसकी स्मृतियाँ उन्हें विह्वल करती हैं | दूसरे संस्मरण में उनके खोये हुए चित्रों की कॉपी और छौड़ा { बच्चों के लिए लिखे गए पद्यनुमा गीत } की डायरी पता नहीं कहाँ गुम हो गई जिसकी वजह से वे काफी परेशान रहे | वे उनके हृदय के बेहद करीब की चीजें थीं | वे कहते हैं कि मेरी गुम हुई चीजों की सूची बड़ी लम्बी है | ऐसे हैं मेरी नजर में चित्रकार और कवि – जोगेन चौधुरी, जिनकी कविताओं और सृजन पर और अधिक बातचीत और चर्चा होने की ज़रूरत है।

 

जोगेन चौधुरी की मीता दास द्वारा अनुदित कविताएँ

1. गोधूलि

एक आदमी बैठा हुआ है
उसकी पीठ पर झर रहे हैं फूल शेफाली-बकुल के |
और धूसर गोधूलि खंड-खंड होकर
कूद पड़ता है डूबते हुए उस सुनहली आग में |

पर अब रात है |

 

2. चतुरता

चतुर गोधूलि के रंग में रंगा है सपने का पाखी |
चतुर सियार — अँधेरे में छिपा कर रखा है अपनी ऑंखें |
हे ईश्वर — तुम्हारी रोमश उँगलियाँ —-
आज भी मेरे बालों को स्पर्श करते हैं — क्यों ??

वह भी कितनी चतुराई से !

 

3. वह

नयनों के मध्य है सिर्फ जली हुई घास
बालुओं वाली, हैं समंदर की लहरें और
इनमें है अनिश्चित आकाश का पता भी
मिट्टी से सना हुआ है — समंदर का उछ्वास भी
भंवरों के फेन-फेन में भी
वह भी क्या है इतनी कठिन इच्छा !

 

4. तुम

इस्पात की हो उठती है तस्वीर
जल हो उठता है कल्लोल करती हुई इच्छायें
फूल जैसे हो प्रेम ही प्रेम
बादल लिए आती है बरसात
और तुम वहन कर लेते हो समस्त श्रम
सब्ज धान के खेत और छोटे शिशु के लिए
एक मुट्ठी नवान्न भी |
(21 . 11 . 93)

 

5. तस्वीर

(एक)

एक तितली
एक ऐप्पल
उजाले और अंधकार में एक फूल

फूल माला के करीब
अकेला हाथ
एकाकी, आकांक्षित ,

किसके लिए ?

(दो)

लाल गाढ़े रंग का ऐप्पल
विस्तृत होकर बिखर जाता है
और वह झलक उठता है परदे पर —-

जैसे हो परिपूर्ण |

 

6. अम्ल और अजीर्ण हैं प्रेम के गीत

प्रेम झूल रहा है सेमल की डाल पर
तुम्हारी आँखें शायद ठीक से नहीं देख पाती हैं चाँद
अम्ल रोग, अजीर्ण और बैशाख
मिला देता हूँ सब कुछ को सारे कालों में

यहाँ इस कुँए के पास
प्रेम था
अब काई जम रही है
प्रेम किया था हमने
काई जमे प्रेम के ही तले | |
(1964)

 

7. कृत्रिम : प्रेम

सुन्दर सी दिखने वाली टीन की पेटी में कृत्रिम प्रेम मिल जाता है
फिर रबर की बॉल की तरह , उसे तुम उछालो-पकड़ो तुम्हारा जितना मन करे ,
एक मात्र स्नायु पुंज से बंधा हुआ दिल के बंधन में निरंकुश सा ही
शाम को तुम बेहद समझदार बन एक बार के लिए
बक्से में बंद कर रख जाती हो, और ट्रेन की सीटी सुन चली जाती हो बहुत दूर
अथवा अमानत के तौर पर रख जाती हो दराज में, तब तुम दराज की कुंडी लगा दिया करो —–
(1964)

 

8. सम्राट सभी सोये हुए हैं

सम्राट सभी सीने के धड़कने लिए
चिरकाल से रो रहे हैं आँखों में आँसू लिए ——
असंख्य वर्षों से जो थे राज्य लोभी —–
वे लोग जा ही नहीं पाए अपना पौरुष चिन्ह रख कर—–
कहीं इस पृथ्वी पर !
अपरिणीत हुए बुद्धि और चालाकियों के राज्य में
सहाय ये संबलहीन कंकाल , खोपड़ी , नरमुंड सब पड़े हैं
लाखों-लाखों दाँत विहीन जबड़े फरहान्स के चिकने सफ़ेद —-
महलों के चिन्ह भी नहीं , आकाश में नहीं उड़ाते बाती
बिल्ली के नाख़ून के घाव से घायल , इधर-उधर बिखरे हुए सभी सम्राट सोये हुए हैं आज भी ,
असंख्य वर्षों तक सोये रहेंगे वे निश्चित ही ———

 

9. तस्वीर

हम करीब -करीब हमारे जीवन यापन की चित्र रचनाओं की तरह
तिर्यक भंगिमा लेकर दृढ़ संरचना तैयार करते हैं
समस्त ऊर्जा और हथौड़े के आघात से इस्पात बन जाना चाहते हैं
प्रतिमा का अलौकिक चित्र बन जाना चाहते हैं ——–

जिस तरह एक सफ़ेद कागज पर बन जाता है एक चित्र
तिकोने भंगिमा लिए कुछ जगह सफ़ेद-काला छाया जैसी भंगिमा..उतार – चढ़ाव
एवं अपरूप सौंदर्य की एक अद्भुत आभा ||
(1993)

 

10. प्रातः काल के पुष्प — हे कोलकाता

प्रातः काल में एक गुच्छ फूल की तरह
झक्क सफ़ेद एक कविता लिखने की बात थी
वादा था |
वादा था |
वादा नहीं था कोई ऐसा …….
छायाविहीन मलिन प्रतिमा गढ़ने का |

कुछ रेखायें परस्पर लिपटकर
कटे-फटे जाल की तरह
अंधकार
सिर्फ छाया …..
कुछ आर्तनाद |
टूटे हुये इंजन की आवाज़
या …….
जरा सा मलिन रक्त ,
मेरा हाथ भिगो जाती है |

हे कोलकाता
हाय मेरा कोलकाता ||
1 / 10 / 93

 

 


कवि जोगेन चौधरी, जन्म -15 फरवरी , 1939 पूर्वी बंगाल के फरीदपुर के डहरपारा गांव में ।
शिक्षा – उनकी प्राथमिक शिक्षा गांव में ही हुई फिर देश विभाजन के दौरान वे 1948 को भारत आ गए । 1951 में वे ढाकुरिया ( पश्चिम बंगाल ) के शहीद नगर कालोनी में रहने लगे । उन्होंने 1955 से 1960 में कॉलेज ऑफ आर्ट्स एन्ड क्राफ़्टस , कलकत्ते से ललित कला में स्नातक की उपाधि ली। अध्ययन के दौरान उनके गुरु रहे माणिकलाल बंदोपाध्याय , धीरेन ब्रम्ह , देबकुमार रायचौधरी , अपर्णा राय , गोपाल घोष । उसके उपरांत उन्होंने फ्रांसीसी सरकार की छात्रवृत्ति पर दो साल 1965 से 1967 तक फ्रांस में रहकर अध्ययन किया । 1968 में फ्रांस से लौटकर उन्होंने हैंडलूम बोर्ड मद्रास में काम किया। उसके उपरांत 1972 उन्होंने राष्ट्रपति भवन में क्यूरेटर का काम किया, फिर शांतिनिकेतन के कला भवन में अध्यापक हुए ।
उनके बड़े भाई कलकत्ते में वामपंथी आंदोलन में सक्रिय थे और उन्हीं के आदर्शों पर चलते हुए जोगेन चौधरी भी वामपंथ के शिल्पकर्म और दर्शन से जुड़ाव महसूस करने लगे। वामपंथी आंदोलन के जुड़ाव के दौरान उनका परिचय साहित्य से हुआ। वे मानव मुक्ति में विश्वास रखते हैं और जीवन के अंधकार और दुख को चित्रों और कविताओं में भी उतारने लगे ।

2014 से 2020 तक तृण मूल कोंग्रेस पश्चिम बंग राज्य सभा के सदस्य भी बने । 2012 में बंगभूषण सम्मान से सम्मानित हुए। उन्होंने ‘पृथ्वी’ नाम से एक फ़िल्म भी बनाई ।

उनके आर्ट वर्क – द टाइगर इन द मूनलाइट , फ्लावर सेलर गर्ल , फ्लावर , विडो सीटेड ऑन ऐ रेड सोफा , वेटिंग फ़ॉर हर लवर , म्यूजिशियन , फेस ऑफ थिंकर और भी कई महत्वपूर्ण काम किये ।

 

टिप्पणीकार मीता दास कवयित्री, कथाकार और अनुवादक हैं।

सम्पर्क:  mita.dasroy@gmail.com

 

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