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राहुल गांधी की  संसद की सदस्यता का रद्द होना- लोकतंत्र पर सर्जिकल स्ट्राइक

 अघोषित आपातकाल का दायरा तेजी से फैल रहा है।

अगर संघ-भाजपा के अतीत के कारनामों पर चर्चा न भी करें, तो  2014 के बाद मोदी-शाह जोड़ी द्वारा उठाए गए कदम स्पष्टत: इसकी गवाही दे रहे हैं।  पार्टी के अंदर और बाहर  अपने विरोधियों पर येन केन प्रकारेण कार्यवाही करते हुए मोदी निरंकुश तानाशाह की तरह  होते गए हैं।

हालांकि तर्क के एक पहलू के आधार पर यह कहा जा सकता है, कि वह लोकतांत्रिक तौर पर चुने हुए प्रधानमंत्री हैं। लेकिन लोकतंत्र के मान्य पैमानों पर मोदी द्वारा उठाए गए कदमों की जांच-पड़ताल की जाए तो दिन की रोशनी की तरह यह साफ हो जाता है कि मोदी एक आत्ममुग्ध निरंकुश तानाशाह हैं। जो लोकतंत्र के रास्ते गद्दी पर बैठे हैं।

घटनाक्रमों के विकास को देखते हुए हम कह सकते हैं, कि भारत में चुनाव के रास्ते से ही निरंकुश तानाशाही लोकतंत्र के आकाश को काली चादर से लगभग ढंक चुकी है।

मोदी नेतृत्व  के नौ साल की सरकार में ऐसी अनेक घटनाएं हुई हैं  जो बताती है, कि लोकतंत्रिक संस्थाओं पर किस किस समय सर्जिकल स्ट्राइक की गई।

राजा की जान  तोते के अंदर निहित है। अर्थात  मोदी-राज की जीवनी शक्ति के स्रोत पर से पर्दा हिंडेनबर्ग ने उठा दिया। मित्र पूंजीवाद का नंगा नाच भारत सहित दुनिया का कारपोरेट जगत देख रहा था। कैसे एक अदना सा परचूनियां व्यापारी अचानक विश्व का दूसरे नंबर का महाधनी बन गया।

ज्यों ही यह पर्दा हटा और हकीकत सामने आयी, मोदी सहित आरएसएस तक  छटपटाने  लगी। संघ के पत्र ऑर्गनाइजर ने इसे साजिश करार देते हुए स्टोरी की, तो दैनिक जागरण समाचार पत्र ने अडानी के पक्ष में सम्पादकीय लिखा।  चूंकि  तोता जाल में फंस चुका था। इसलिए राजा चाहता था, कि किसी भी लोकतांत्रिक मंच पर इसकी चर्चा न हो।

अपने तोते को बचाने के लिए राजा ने अस्तबल के सारे घोड़ों की लगाम खोल दी। मंत्रियों संत्रियों से लेकर प्यादे और पैदल  सभी मैदान में उतर गए। एक स्वर से सभी तोते को बचाने में लग गये। राजा ने मौन साध लिया और जब संसद से लेकर मंचों तक बोलने का मौका आया तो आंय-बांय ‌बकने लगा।  लेकिन किसी तरह गाड़ी पटरी पर आ नहीं रही थी।

इस बीच संसद का सत्र शुरू हो गया । पहले से ही मोर्चा संभाले हुए कांग्रेस और राहुल गांधी सहित विपक्षी सांसद  एक-एक कर संसद में मित्र के बारे में  सवाल उठाने लगे। सर्व विपक्ष की तरफ से जेपीसी की मांग संसद और बाहर गूंजने लगी।

पिछले दस वर्षों में मोदी की छवि दो तरह से गढ़ी गई थी।
एक, राजा सांसारिक-पारिवारिक भौतिक संबंधों से मुक्त है। इसलिए वह लोभ-लालच  और  स्वार्थ मुक्त है। वह विशुद्ध इमानदार और संत प्रकृत‌ का फकीर है।
अरबों-खरबों रुपया  मित्रों ने मोदी की सख्त, ईमानदार की छवि निर्मित करने में  खर्च कर दी थी। इस पूरे प्रकरण और राहुल गांधी के हमले से मेहनत से गढ़ी गई  तस्वीर दरकने लगी।

लंदन में कई जगहों पर राहुल गांधी द्वारा दिए गए व्याख्यान और प्रेस वार्ता ने डूबते को तिनके का सहारा देने का काम किया था। तत्काल ही मोदी-शाह की जोड़ी और उसके सलाहकारों ने राहुल गांधी के लंदन में दिए गए भाषण को लपक लिया। राहुल गांधी के बयान को विदेशी धरती पर भारत विरोधी अभियान के रूप में प्रचारित करने की रणनीति बनाई गई।

राहुल गांधी ने विदेशी धरती पर भारत का अपमान किया है, इसलिए राहुल गांधी संसद में माफी मांगे। माफी न मांगने तक संसद नहीं चलने देने का सरकार ने स्वयं फैसला किया। कई मंत्रियों और भाजपा नेताओं द्वारा राहुल गांधी के व्याख्यान को देशद्रोह के श्रेणी में रखा गया।  साथ ही उनके संसद की सदस्यता खत्म करने की मांग भी उठाई जाने लगी।

संसद दो सवालों पर ठप कर दी गई। भारत के इतिहास में पहली बार स्वयं सरकार ही संसद नहीं चलने दे रही थी। सरकारी पक्ष की मांग थी राहुल माफी मांगे।

दूसरी तरफ विपक्ष सरकार से अडानी के भ्रष्टाचार की जांच कराने और भ्रष्टाचार की जांच के लिए जेसीपी बैठाने की मांग पर अड़ गया। संसद में न समाप्त होने वाला गतिरोध दिखाई देने लगा।

इसी बीच  किरण पटेल नामक एक गुजराती ने फिर कमाल कर दिया। वह पीएमओ के विशेष अधिकारी के रूप में जेड प्लस सुरक्षा के साथ वह कश्मीर के दौरे पर कई महीनों से आ जा रहा था। कश्मीर गवर्नमेंट उसके लिए पलक-पावड़े बिछाए बैठी रहती थी और उसे उच्च स्तरीय वीआईपी सुविधाएं मुहैया कराई जा रही थी।

नकली विजिटिंग कार्ड और अनेक तरह के दस्तावेजों के साथ वह पीएमओ  में कार्यरत असिस्टेंट डायरेक्टर के बतौर  कश्मीर  में सरकार के किसी विशेष मिशन को सफल करने के लिए घूम रहा था।

अचानक घटना के क्रम में आये  मोड़ के कारण वह गिरफ्तार कर लिया गया । इसके साथ कई परतें खुलने लगी है। वह बीजेपी का कार्ड होल्डर है ।उसके साथ बीजेपी के पीएमओ में कार्यरत बड़े नेता के बेटे और अन्य कार्यकर्ता भी पकड़े गए थे।

जो खबरें आ रही हैं उन्हें अज्ञात दबाव पर छोड़ दिया गया है। इस घटना के खुलासे ने मोदी सरकार की देशभक्ति, मजबूत नेतृत्व और कश्मीर मिशन के षड्यंत्रकारी चरित्र को बेनकाब करके रख दिया है । किरण पटेल ने अडानी से ज्यादा बड़े संकट में मोदी को डाल दिया है। उनकी ईमानदार मजबूत सक्षम नेतृत्व की गढ़ी गई प्रतिमा मिट्टी की तरह धराशाई हो गई है।

किरण पटेल के गिरफ्तार होते ही पुलवामा की घटना पुनर्जीवित हो गई। डीएसपी देवेंद्र सिंह सामने आ गया और पठानकोट हुए आतंकी हमले से लेकर सर्जिकल स्ट्राइक तक के सभी घटनाएं लोगों के मानस पटल पर तैरने लगी। मोदी सरकार के दौर में हुए सभी तरह की घटनाएं एक-एक कर संदिग्ध प्रतीत होने लगी।

सवाल बहुत बड़ा और गंभीर था।  किसके  निर्देश और आदेश पर किरण पटेल राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित संवेदनशील इलाकों की यात्राएं कर रहा था। उसका मकसद क्या था ।देश की  सुरक्षा एजेंसियां गुप्त छर विभाग क्या कर रहे थे। देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए जिम्मेदार गृह मंत्रालय क्या कर रहा था। यह सवाल तेजी से लोक विमर्श में आ गया।

इस घटना ने अदानी के भ्रष्टाचार से भी बड़ा राष्ट्र की सुरक्षा और देश की एकता से संबंधित सवाल खड़ा कर दिया। मोदी सरकार की विश्वसनीयता दांव पर लग गई। और बहस इस दिशा में मुड़ गई थी कि मोदी सरकार देश के सुरक्षा और राष्ट्र की एकता को बचा पाने में अक्षम है।

गुजरात का एक लिस्टेड ठग इतना बड़ा कांड कैसे कर ले गया। बिना किसी अदृश्य सहयोग से वह कश्मीर जैसे अतिसंवेदनशील जगह में जहां हमारी दर्जनों एजेंसियां राष्ट्र की सुरक्षा सेवा के लिए दिन-रात तत्पर हैं, वहां इतना बड़ा फ्रॉड करने में वह कैसे कामयाब हुआ।

इसलिए कांग्रेस ने सवाल किया कि अगर ऐसा है, तो प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को इस्तीफा दे देना चाहिए। आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी सीधे गृह मंत्री के हाथ में होती है। वह अपनी जवाबदेही से नहीं बच सकते।

भाजपा-संघ नीत सरकार के प्रशासनिक दिवालियापन  और राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति लापरवाही के खोखलेपन के उजागर होने के बाद अब स्वाभाविक था कि संघ और मोदी-शाह की जोड़ी को लोकतंत्र के सभी झीने आवरण को उतार कर फेंक देना पड़ा।

घटनाक्रम के विकास के इस मोड़ पर संघ भाजपा की फासिस्ट आत्मा पूरी बौखलाहट के साथ मैदान में उतर पड़ी है। वह किन-किन संस्थाओं और पार्टियों, व्यक्तियों को निशाना बनाएगी और आगे किस तरह की घटनाओं, षड्यंत्रों को अंजाम देगी यह आने वाले समय में देखना दिलचस्प होगा।

अदानी प्रकरण के बाद इडी, सीबीआई, आईटी  सहित सभी दमनकारी तंत्र को विपक्ष को नियंत्रित करने के लिए लगा दिया गया है।  विरोध और प्रतिरोध के छोटे से छोटे जगहों को भी छीन लेने की कोशिश पहले से ही जारी है।

इन परिस्थितियों के विकास की इस मंजिल  पर आकर हमें राहुल गांधी के सजा और संसद सदस्यता  को समाप्त करने की घटना को देखना चाहिए। 2019 के चुनाव में राहुल गांधी ने कर्नाटक के कोलार में एक भाषण दिया था। उनका यह भाषण पब्लिक डोमेन में मौजूद है । मामला कर्नाटक का था ।

नीरव मोदी, ललित मोदी के साथ नरेंद्र मोदी को जोड़ते हुए राहुल ने यह सवाल उठाया था कि क्या कारण है कि भ्रष्टाचारी मोदी सर नेम वाले ही हैं। इस भाषण से दो मोदी आहत और अपमानित महसूस करने लगे। इसे पूरे समुदाय के अपमान के साथ जोड़ा गया।  गुजरात में पूर्व मंत्री  पूर्णेश मोदी और बिहार के बहुचर्चित बड़बोले नेता सुशील मोदी दोनों ने राहुल गांधी के भाषण से अपने को आहत और अपमानित महसूस किया। इन्होंने न्यायालय में मानहानि के साथ आपराधिक मुकदमा दायर कर दिया।

जिस मुकदमे में राहुल गांधी को सजा हुई है, उसे गुजरात के मोदी ने सूरत के लोअर कोर्ट में दायर किया था। जानकारी के अनुसार 4 वर्ष से मुकदमा हिचकोले लेते हुए चल रहा था।  स्वयं वादी ने किन परिस्थितियों के तहत एक साल पहले हाईकोर्ट में अर्जी देकर स्टे ले रखा था। यह एक रहस्य है।

9 फरवरी को राहुल गांधी ने संसद में अपना महत्वपूर्ण भाषण दिया। जिसमें उन्होने अदानी और मोदी के संबंधों और अडानी के भ्रष्टाचार से संबंधित तथ्य को संसद के पटल पर रखते हुए मांग की कि संपूर्ण घटनाक्रम की निष्पक्ष जांच कराई जाए।

हलांकि लोकसभा अध्यक्ष ने राहुल के भाषण के 18 बिंदुओं को बाद में रिकॉर्ड से हटा दिया । इन सभी सवालों पर देश-विदेश में गंभीर चर्चा पहले से चल रही थी।

राहुल गांधी के संसद में दिए गए भाषण के बाद गुजरात में पूर्णेंश मोदी सक्रिय हो गए। ऐसी जानकारी मिल रही है, कि निचली अदालत एक समय मुकदमे को फ्रीज करने जा रहा थी। इसलिए वादी ने हाई कोर्ट से अपने ही मुकदमे पर स्टे ले रखा था।

उस समय सूरत कोर्ट में कोई दवे साहब जुडिशल मजिस्ट्रेट थे । हालिया समय में उनका स्थानांतरण हो गया। फिर पूर्णेश मोदी साहब सक्रिय हो गए । 16 फरवरी को उन्होंने कोर्ट में सुनवाई के लिए अर्जी दी ।घटनाक्रम तेजी से आगे बढ़ा  ।

17 मार्च तक बहस समाप्त हो गई । फैसले की तारीख 23 मार्च भगत सिंह और उनके साथियों के शहादत दिवस पर मुकर्रर हुई ।

इसमें ध्यान देने की बात यह है कि मजिस्ट्रेट ने अधिकतम सजा और जुर्माना दोनों साथ किया है । क्योंकि उन्हें पता है कि 2 साल की सजा पर तत्काल प्रभाव से सांसदों और विधायकों की सदस्यता समाप्त हो जाती है। इसलिए यह फैसला सुनियोजित सा लगता है।

इस मुकदमें की कई समानताएं आप अमित शाह के मुकदमे में भी देख सकते हैं।

इसे आप सिर्फ संजोग मानकर अनदेखा नहीं कर सकते। फैसला आते ही भाजपा सरकार के मंत्रियों, विधायकों, नेताओं के चेहरे खिल उठे। तत्काल शाम तक  प्रधानमंत्री जी मंत्रिमंडल के सदस्यों के साथ लोकसभा अध्यक्ष से मिले और  दूसरे दिन तीर्थाटन पर मोक्ष दायिनीगंगा तट काशी धाम चले गए।

24 तारीख के 12 बजते -बजते लोकसभा अध्यक्ष ने राहुल गांधी की संसद की सदस्यता समाप्त कर दी।

इस पूरे घटनाक्रम से आप देख सकते हैं कि फासीवाद विरोधी लड़ाई कोई सामान्य लड़ाई नहीं है । फासीवाद अपने विरोधियों को किसी भी तरह से संभलने का मौका नहीं देता है। जब वह सत्ता में होता है,  तो लोकतंत्र के सभी संस्थानों, मूल्यों को बुलडोज करते हुए आगे बढ़ता है। फासीवाद के राजनीतिक अर्थशास्त्र में मनुष्यता, करुणा, लोकतांत्रिक नैतिकता जैसी मानवीय संवेदना नहीं होती।

वह लोकतंत्र द्वारा निर्धारित सभी लक्ष्मण रेखाओं को ध्वस्त करते हुए विरोधी पर टूट पड़ता है। इसलिए आप इसे भारत में सामान्य लोकतांत्रिक गतिविधियों और प्रक्रियाओं के तहत परिभाषित नहीं कर सकते ।

राहुल गांधी की सदस्यता का निरस्त्रीकरण  लालू यादव परिवार की जांच, आप के मंत्री सिसोदिया सहित अनेक नेताओं को जेल में डालना और बिहार से लेकर महाराष्ट्र तक विरोधियों पर हो रहे हमले सभी सुचिंतित योजनाओं  की श्रृंखला का अंग है।

यह लोकतांत्रिक संस्थाओं और नागरिकों के अधिकारों की हत्या का एक षड्यंत्र है। जिसे न्यायिक प्रक्रिया की आड़ में अंजाम दिया जा रहा है।

सबको पता है कि भाजपाई राहुल गांधी के संसद मैं होने से असहज महसूस कर रहे थे।  वे राहुल से माफी मांगने और सदस्यता समाप्त करने की मांग पर संसद को चलने नहीं दे रहे थे।

इसलिए सूरत के निचले कोर्ट में लंबित पड़े मुकदमे की तरफ मोदी-शाह की निगाहें गई होंगी और उन्होंने तत्काल अपनी रणनीति निर्धारित कर मामले को सक्रिय कर दिया होगा।

हमारे लोकतंत्र पर तीखा प्रहार फिर उसी गुजरात से हुआ है जो फासीवाद की सबसे सुव्यवस्थित सूचिंतित प्रयोग शाला है। जहां पीड़ित ही मुजरिम होता है।

इस घटना ने निश्चय ही भारत के नागरिक समाज सहित सभी राजनीतिक संगठनों, व्यक्तियों, लोकतंत्र पसंद लोगों को चिंतित कर दिया है। लेकिन प्रसन्नता की बात है कि भारत में कमजोर कहा जाने वाला और  टुकड़ों में बंटा हुआ विपक्ष मतभेदों को दरकिनार करते हुए एक साथ मंच पर उतर आया है। उसने तय किया है कि राजा की जान’ जिस तोते के अंदर बैठी हुई है ‘तीर का निशाना उसी तरफ केंद्रित रहेगा।

इसलिए 23 और 24 के घटनाक्रम के बाद भी विपक्ष ने लगातार जेपीसी द्वारा अदानी के भ्रष्टाचार की जांच कराने , ईडी, सीबीआई, आईटी जैसी संस्थाओं के दुरुपयोग पर रोक लगाने जैसे सवालों को अपने एजेंडे में प्रमुखता पर रखा है।

एक और बात, राहुल गांधी ने जब भारत जोड़ो यात्रा शुरू की थी, तो यह कहा था कि हम जनता के बीच इसलिए जा रहे हैं कि संसद अब जन आकांक्षाओं को अभिव्यक्त करने  की जगह नहीं रह गई है । वहां हमारी बातें नहीं सुनी जातीं। माइक बंद कर दिया जाते हैं।इसलिए उन्होंने कहा कि हम जनता के बीच में अपनी बात रखने , उससे संवाद करने और उसकी समस्याओं को समझने के लिए भारत जोड़ो यात्रा पर निकले हैं।

हमारा लोकतंत्र बहुमतवाद का शिकार हो गया है। डॉ. लोहिया ने कहा था कि संसद जब बांझ हो जाए तो लोकतंत्र सड़क के रास्ते ही जिंदा रह सकता है । इसलिए फासीवाद की लड़ाई अब संसद से सड़क तक यानी हर मोर्चे पर सघनता के साथ लड़ी जानी चाहिए।

राहुल गांधी की संसद की सदस्यता खत्म करने के बाद संघर्ष का गुरुत्व केंद्र सड़कों पर जनता के बीच में खिसक गया है। आइए लोकतंत्र पर हुए सर्जिकल स्ट्राइक का मुकाबला करने के लिए हजारों हजार जनता को गोल बंद करते हुए उसे एक प्रतिरोधक शक्ति में बदल देने के अदम्य साहस के साथ आगे बढ़ें!

Fearlessly expressing peoples opinion