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सुधीर सुमन की कविताओं में यथार्थ को बदलने की छटपटाहट है : सुरेश कांटक

आरा। आज बाल हिन्दी पुस्तकालय आरा में जन संस्कृति मंच की ओर से सुधीर सुमन के कविता-संग्रह ‘ सपना और सच ‘ का लोकार्पण और उस पर बातचीत हुई, जिसकी अध्यक्षता कथाकार नीरज सिंह, कथाकार सुरेश काँटक, आलोचक रवींद्रनाथ राय और कवि-आलोचक जितेंद्र कुमार ने की। संचालन कवि सुमन कुमार सिंह ने किया।

कार्यक्रम के प्रारंभ में सुधीर सुमन ने ‘ कुएँ में महान ‘, ‘ शहर का हाशिया ‘, ‘ समानधर्मा साथियों के नाम ‘, ‘ गांधी ‘, ‘ वीर कुँवर सिंह के प्रति ‘, ‘ का. सूफ़ियान की याद में ‘ और ‘ उन्हें मत बताना ‘ शीर्षक कविताओं का पाठ किया।

नीरज सिंह ने कहा कि सुधीर सुमन की कविताओं में वैश्विक और स्थानीय चिंताएँ घुली-मिली हुई हैं। इनमें आज के समय की व्यवस्था का आतंककारी स्वरूप नजर आता है। चारों तरफ प्रलोभन और झूठ का जो बाजार है, ये कविताएँ उसका प्रतिकार है।

रवींद्रनाथ राय ने कहा कि कवि यथास्थितिवाद, मध्यवर्गीय संस्कार और आज के अर्थतंत्र से टकराता है। उनकी कविता जीवन को बेहतर बनाने के सपने की कविता है।

जितेंद कुमार ने ‘ फुटपाथ पर सोया बूढ़ा ‘ कविता की चर्चा करते हुए कहा कि इसमें गांधी, एमएफ हुसैन और कबीर के चेहरे दिखते हैं। बूढ़े का बिंब मामूली बिंब नहीं है। आज के दस वर्ष बाद भी यह समकालीन लगेगा। ऐसे बिंब सत्ता पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं। उन्होंने कहा कि सुधीर सुमन की काव्य-पंक्तियों और काव्य-भाषा पर गंभीरता से विचार होना चाहिए। ऐसी सीधी, सहज और सच्ची कविताएँ लिखना बहुत कठिन है।

कथाकार सुरेश कांटक ने कहा कि इन कविताओं में यथार्थ को बदलने की छटपटाहट है। इनमें स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का सपना है।

सुनील श्रीवास्तव ने कहा कि सुधीर सुमन अपनी कविताओं में यथार्थ के छोटे-छोटे टुकड़ों और दृश्यों के जरिए हमारे समय के पूरे सच को व्यक्त करते हैं। इनमें नवपूंजीवाद की तिकड़में और समय की क्रूरता दर्ज है। मासूम बच्चे, बूढ़े, नौजवान और औरतें- सब इस समय के क्रूर पंजे में जकड़े हुए हैं। ऐसे वक्त में कवि की कविताएँ संघर्ष के तरीके बताती हैं। इनकी कविताओं में वास्तविक प्रेम की चाह और नकली प्रेम का अस्वीकार है। जो सफलता के प्रचलित मानदंड हैं, ये उनको निरर्थक साबित करती हैं।

कवि सिद्धार्थ वल्लभ ने कहा कि सुधीर सुमन की कविताओं में ख्वाब , कामना और विचारधारा के पक्ष में एक प्रकार की गुथमगुथी है। चॉइसलेस अवेयरनेस, स्पोंटेनियस रिएक्शन, मोरालिटी के सिद्धांत इत्यादि मिलकर कवि का समाजशास्त्र निर्मित करते हैं। इनकी कविताओं में जो परिवेश निर्मित हुआ है उसमें निश्चित तौर पर बाहरी परिवेश की संलिप्तता है, लेकिन कविताओं का कैरिकेचर कवि के भीतरी परिवेश से निर्मित हुआ है। यहाँ कवि का अपना विजन स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है।

राजेश कमल ने कहा कि सुधीर सुमन कई विधाओं में लिखते रहे हैं, पर मूल रूप से कवि ही हैं। ये जीवन, मनुष्यता और संबंध की कविताएँ लिखते हैं। इनमें बाहर से लाया हुआ कुछ नहीं है, जो है स्वतःस्फूर्त है।

 

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डॉ. सिद्धनाथ सागर ने कहा कि सुधीर की कविताएँ सचेत काव्य सृजन का उदाहरण हैं। वे तमाम बंदिशों और गुलामी से आजादी चाहते हैं। इनकी कविताओं में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और नक्सलबाड़ी से लेकर वर्तमान समय की सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक अनुगूंजें हैं।

कवि सुमन कुमार सिंह ने कहा कि सुधीर की कविताएँ हमारे समय के स्वप्न और यथार्थ के द्वंद्व को तमाम पहलुओं से रेखांकित करती हुई सचेत करती हैं। इन कविताओं का रूपक काफी जमीनी है । जनार्दन मिश्र ने कहा कि ये जन संचेतना के कवि है।

हरेराम सिंह ने कहा कि इनकी कविताओं को पढ़ने के दौरान कहानी और उपन्यास पढ़ने का सुख मिला। इनमें व्यापक बेचैनी, दुख और घटनाओं का तानाबाना है।

वरिष्ठ पत्रकार गुंजन सिन्हा ने कहा कि बिंब-प्रतीक के साथ कविता में काल-चेतना भी होनी चाहिए। इन कविताओं के साथ रचना-काल का भी उल्लेख होना चाहिए।

कवि संतोष श्रेयांश ने कहा कि इनमें झूठी संवेदनाओं के विरुद्ध सजग दृष्टि पैदा करने की आकांक्षा है।

संजय कुमार ने कहा कि उनकी सुधीर सुमन से 35 वर्षों से अधिक समय की दोस्ती है। उन्होंने उनको रात-दिन हमेशा वैचारिक- साहित्यिक व्यस्तताओं में पाया।

धन्यवाद ज्ञापन शमशाद प्रेम ने किया।

इस अवसर पर सुनील श्रीवास्तव, संजीव सिन्हा, विजय कुमार सिंह, कुमार मुकुल, राजाराम प्रियदर्शी, अमित मेहता, विजय मेहता, मधु कुमारी, किशोर कुणाल, जितेंद्र जी, सूर्य प्रकाश, प्रशांत कुमार, सुजीत कुमार आशुतोष कुमार पांडेय, अर्जुन कुमार ठाकुर, अभिनव कुणाल, घनश्याम चौधरी भी मौजूद थे।

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