समकालीन जनमत
समर न जीते कोय

समर न जीते कोय-4

(समकालीन जनमत की प्रबन्ध संपादक और जन संस्कृति मंच, उत्तर प्रदेश की वरिष्ठ उपाध्यक्ष मीना राय का जीवन लम्बे समय तक विविध साहित्यिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक हलचलों का गवाह रहा है. एक अध्यापक और प्रधानाचार्य के रूप में ग्रामीण हिन्दुस्तान की शिक्षा-व्यवस्था की चुनौतियों से लेकर सांस्कृतिक संकुल प्रकाशन के संचालन, साहित्यिक-सांस्कृतिक आयोजनों में सक्रिय रूप से पुस्तक, पोस्टर प्रदर्शनी के आयोजन और देश-समाज-राजनीति की बहसों से सक्रिय सम्बद्धता के उनके अनुभवों के संस्मरणों की श्रृंखला हम समकालीन जनमत के पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं. -सं.)

किराये के मकान और मकान मालिकान
किराये का मकान नं0-2


राजकीय शिशु प्रशिक्षण महिला महाविद्यालय, इलाहाबाद में अप्रैल 1979 में मेरा एडमिशन हो गया। घर से आने के बाद अभी किराये का कमरा नहीं मिला था। हमलोग एम.पी.सिंह के यहां जार्ज टाउन में रहते थे। कुछ दिन बाद मैं ट्रेनिंग कालेज के हास्टल में रहने चली गई। समता भाभी के यहां ही रुकी रही। रामजी राय बीच-बीच में जार्ज टाउन आ जाते थे। फिर समता को नानी के पास छोड़ आए। किराये के कमरे की तलाश जारी थी। अशोक कप्तान के जरिए मम्फोर्डगंज में पहले जहां रहते थे उसी के बगल में इलाहाबाद यूनिवर्सीटी के एक प्रोफ़ेसर के मकान के दुछत्ती में एक कमरा, किचेन और एक बरामदा 100/- में मिला। आने-जाने का रास्ता पीछे की गली से था। सीढ़ी से ऊपर आने पर बाथरुम से होकर ही अंदर आने का रास्ता था। शौचालय बरामदे से सीढ़ी से उतर कर मकान मालिक के आंगन से होकर जाना पड़ता था। रौशनी नीचे न जाए इसलिए बरामदे में रेलिंग के पास हमेशा पर्दा डाले रखना पड़ता था। रात 9 बजे के बाद लाइट नहीं जलाना था। छत की ऊंचाई इतनी कि हाथ ऊपर नहीं उठा सकते थे। कंघी करने पर कभी हाथ ऊपर उठ गया तो छत से लड़ जाता था। सबसे बड़ी मुश्किल यहां किसी के आने पर होती थी। क्योंकि शौचालय के लिए नीचे जाने पर मकान मालकिन उसका पूरा इन्टरव्यू लेती थीं। क्या नाम है, कहां से आए हो, क्या करते हो, इनसे क्या रिश्ता है और कब तक रुकोगे आदि-आदि। इसलिए ज्यादातर किसी के आने पर रामजी राय उसे लेकर हास्टल ही चले जाते थे।

एक नए छात्र संगठन के निर्माण का दौर था। राजेन्द्र मंगज, हिमांशु रंजन या और भी कोई आता तो रामजी राय यहां के माहौल के कारण बाहर ही बात करने चले जाते। कहकर तो यही जाते थे कि एक दो घंटे में आ जाऊंगा लेकिन देर रात ही आते। या सुबह किसी का पजामा पहने आते क्योंकि रात को तो लुंगी पहने ही निकले होते थे। एक दिन राजेन्द्र मंगज आए कि रामजी हैं? मैंने कहा कि रोज आप लोग 5 मिनट के लिए कहकर जाते हैं और देर रात आते हैं। अभी शादी नहीं हुई है न, घर में कोई इंतजार कर रहा होगा इसका अहसास ही नहीं होता होगा। शादी हो जाएगी तब पता चलेगा। उसके बाद मंगज जल्दी बुलाने नहीं आते थे। एक बार रामजी राय देर रात घर लौटे। मैं इंतजार करते – करते तुरंत की सोई हूंगी, वे दरवाजा धीरे- धीरे खटखटाए होंगे तेज बोल नहीं सकते थे। मिट्टी के छोटे छोटे टुकड़े भी खिड़की से ढेर सारा फेंके थे। लेकिन मेरे कान में कोई आवाज नहीं गई ‍जबकि मैं बरामदे में ही सोई थी, अंत में हारकर रामजी राय लौट गए थे। सुबह मेरी नींद खुली तो सामने नजर गई तो मैंने सोचा कि बिल्ली बाजरे की ढूढ़ी पूरे बरामदे में फैलाई है। उजाला हुआ तो देखी कि मिट्टी है। समझ में तो आ गया कि रामजी राय फेकें होंगे।अपने आप पर भी गुस्सा आ रहा था कि कैसे नहीं जाग पाई मैं।

एक बार अवधेश प्रधान आए थे, सुबह शौचालय जाते समय मकान मालकिन को इंटरव्यू तो दे चुके थे। उन्हें 2 दिन रुकना है ये भी बता दिए थे। जैसे ही शौचालय से निकले उन्हें बाहर का दरवाजा दिखाकर मकान मालकिन बोलीं -इधर से ऊपर जाओ आंगन से नहीं, और किसी के यहां एक दिन से ज्यादा नहीं रुकना चाहिए। खैर…

मकान मालकिन बड़े प्रेम से मेरे और रामजी राय के बीच अंतर्विरोध पैदा करने का प्रयास कर रही थीं। उनके यहां गाय भी थी, इसलिए दूध वहीं से आता था। एक बार रामजी राय के साथ मैं बाज़ार से दो साड़ी लाई। जो हल्के रंग की अरगेंजा की साड़ी थी। उसे देख मकान मालकिन कहने लगीं कि चलो लौटाकर दूसरी साड़ी लाते हैं। ये अच्छी नहीं है, वो अपनी तरह तुम्हें पहनाना चाहता है। तुम्हें कालेज जाना है। मैं उनकी बातों में आ गई और उनके साथ जाकर साड़ी वापस कर दूसरी साड़ी ले आई, जो बाद में जल्दी ही सिकुड़ गई। कुछ दिनों बाद मेरे मुंह में बहुत छाले पड़ गए थे। ठीक ही नहीं हो रहा था, उसी के चलते गले में गिल्टी और बुखार भी हो गया था। खाना एकदम नहीं खा पा रहे थे। रामजी राय होम्योपैथिक दवा लाए थे लेकिन आराम नहीं मिल पा रहा था। मकान मालकिन 2-3 दिन बाद ऊपर आईं और बोलीं कि चलो मेरे साथ डा. के यहां। मीठी गोली से नहीं ठीक होगा, ये तुम्हारा ध्यान नहीं रखता। वे मुझे ले जा कर डा. को दिखाकर लाईं। सुबह शाम गर्म दूध में बंद भिगोकर खाने को दे जाती थीं। बीच में चाय भी दे देती थीं। 4-5 दिन बाद आराम हो गया। महीना समाप्त हुआ तो किराया और दूध के पैसे के अलावा जिस दिन साड़ी लौटाने गई थीं उस दिन का एक तरफ के रिक्से का किराया, डा. की फीस, डा. के यहां आने-जाने का रिक्से का किराया, दवा का पैसा, बीमारी में जो बंद, दूध और चाय दी थीं सबका पैसा जोड़ कर पर्ची पकड़ा दीं। पर्ची देखकर हम दोनों एक दूसरे को देखते रहे। मैं बोली कि डा. की फीस और दवा का पैसा तो ठीक है लेकिन बंद, दूध , चाय और रिक्शा भाड़ा? रामजी राय पहले ही बोले थे कि समझ जाइए ये हम दोनों को लड़ा रही हैं, बाद को इसका कोई फायदा उठाएंगी। खैर….. लेकिन मैंने मकान मालकिन से बात की कि आप उसी समय बताई होतीं कि बंद, दूध, चाय का पैसा लेंगी तो हम लेते न लेते। अब आपने इतना पैसा जोड़कर दे दिया, जिसके लिए हमने आप से कहा तक न था। ये गलत बात है। उसके बाद ये कमरा खाली करने के लिए कहने लगीं।

इनके घर में केवल यही बोलतीं थीं और कोई नहीं बोलता था। इनके प्रोफेसर साहब भी नहीं। पीछे मेरे सामने ही इनकी लड़की रहती थी। जो डीपी इंटर कालेज में टीचर थी। उसका बेटा चिंटू छोटा था तो इन्हीं के पास रहता था। उसके पास छोटी साइकिल थी। आंगन में चलाता था तो समता ललचाई आंखों से देखती थी। कभी-कभी नीचे उसके पास जाती भी थी। लेकिन मैं जल्द ही बुला लेती कि कहीं उसका भी न पैसा मांगने लगें ।(उसी समय रामजी राय “साइकिल” कहानी रेडियो स्टेशन के लिए लिखे थे)।
एक दिन पैसे को लेकर ही चिंटू की मम्मी (उनकी अपनी ही बेटी) से लड़ाई हो रही थी। चिंटू की मम्मी चूंकि टीचर थी इसलिए चिंटू को मां के पास छोड़ जाती थीं। जिसका हर महीने मां पैसा लेतीं थीं। अब चिंटू का कहीं एडमिशन हो गया था लेकिन 2 बजे ही नानी के यहां आ जाता था। उसकी मम्मी 4 बजे आती थी। अब जब केवल 2 घंटा ही चिंटू रहता था उसका भी आधा पैसा मांग रही थीं, तो चिंटू की मां ने कहा- अब इसका भी आधा पैसा मांग रही हो!? इसपर मकान मालकिन गुस्सा गईं और मारने को दौड़ीं तो चिंटू की मम्मी मेरे यहां ऊपर आ गई ।
उस दिन पता चला कि मकान मालकिन की 2-3 कमजोरी है।
1- उनका ही आदेश घर में चलेगा। जो न मानेगा उसकी खैर नहीं।
2- किसी भी पति-पत्नी का प्रेम से एक साथ रहना उन्हें बर्दास्त नहीं होता – चाहे अपने ही बेटी दामाद क्यों न हों। वो हमेशा पति- पत्नी के बीच अंतर्विरोध पैदा करने की हर संभव कोशिश करती हैं।
3- पैसा।
मकान मालिक की 5 बेटियां और एक बेटा था। पहली बेटी की शायद तलाक के बाद दूसरी शादी थी। उसके पति हाईकोर्ट में वकील थे। दूसरी बेटी टीचर थी। जो पीछे किराए पर रहती थी। तीसरी बेटी की शादी शायद नहीं हुई थी। चौथी बेटी का पति मिलीट्री में था। पांचवीं पढ़ रही थी और सबसे छोटा बेटा था।

फिर एक बार मैंने देखा कि मकान मालकिन अपनी ही लड़की जो प्रिगनेंट भी थी उसे पानी वाले पाइप से मार रही थीं, उसका पति कहीं ट्रेनिंग पर गया था इस बीच वो यहीं रह रही थी। कारण नहीं पता चला। बाद में जब उसे बेबी हुआ तो हास्पीटल में नास्ता, खाना दामाद के साथ भेजती रहीं। जिस दिन हास्पीटल से डिस्चार्ज होना था दामाद को खाने की टिफिन के साथ अब तक भेजे गए नास्ते, दूध, फल और खाने का बिल भी पकड़ा दीं।
मकान मालकिन जब अपनी ही लड़की के बेटे को रखने का पैसा लेती हैं और अपनी ही बेटी को खाने का बिल पकड़ा देती हैं तो फिर मुझे बिल पकड़ा देना कौन बड़ी बात थी।

लेकिन कमरा खाली करने का दबाव बढ़ने लगा। एक हफ्ते के अंदर कमरा खाली करने को कहा गया। कोई कमरा मिल नहीं रहा था। गर्मी का समय था। एक हफ्ता बाद मकान मालकिन ने लाइट और पानी दोनों का कनेक्शन काट दिया। संयोगवश उस दिन मार्कंडेय काटजू ( जो बाद के दिनों में सुप्रीम कोर्ट के जज भी रहे) कोई “चिनगारी” पुस्तिका रामजी राय को देने आए थे। रामजी राय थे नहीं। लाइट भी नहीं थी। ढिबरी (दीया) जलता देख उन्होंने पूछा कि अगल-बगल सबकी लाइट तो है आपकी क्यों नहीं है? कुछ खराब है क्या? मैंने कहा कि नहीं मकान मालिक कमरा खाली करने को कह रहे हैं। कमरा मिल नहीं रहा है, मिल जाए तो खाली कर देंगे। उन्होंने ही लाइट और पानी का कनेक्शन काट दिया है। फिर मार्कंडेय काटजू ने कहा कि रामजी को न बताना कि मैं आया था, कल मैं फिर आऊंगा और एक नोटिस दूंगा, तुम उसे मकान मालिक को दे देना। दूसरे दिन काटजू सर नोटिस दे गए, जिसमें साफ लिखा था कि किराएदार का लाइट, पानी काटना जुर्म है और इस नोटिस के बाद 24 घंटे के अंदर लाइट ,पानी का कनेक्शन नहीं दिए तो 1000/- के जुर्माने के साथ शायद एक माह या छः माह की कैद भी हो सकती है। नोटिस मकान मालिक को दे दिया गया। पहले तो मकान मालकिन अपनी बेटी को बुलाईं, फिर शाम में उनके हाईकोर्ट में वकालत कर रहे दामाद आए। और नोटिस देखकर साफ-साफ बोले कि ये नोटिस जिसने दिया है उससे मैं पंगा नहीं ले सकता। अगले ही दिन लाइट, पानी का कनेक्शन तो मिल गया, लेकिन मकान मालकिन घर छोड़ कर जाने लगीं कि जब तक कमरा नहीं खाली होगा मैं इस घर में नहीं रहूंगी। मकान मालिक मनाते रह गए लेकिन वो नहीं मानीं अकेले अटैची लिए पैदल निकल गईं। रामजी राय मकान मालिक से बोले कि जैसे भी हो सर उन्हें रोकिए, सर ने कहा वो मानेगी नहीं जाने दो। लेकिन रामजी राय सर को लेकर गए कि चलिए कोशिश करते हैं। चौराहे पर मकान मालकिन मिल गईं, किसी तरह मनाकर रामजी राय उनको घर वापस ले आए। थोड़ी देर बाद मकान मालकिन रोते हुए कहने लगीं कि तुम जैसे भी हो, मुझे घर लौटा लाए। एक ये मेरे पति हैं, इन्होंने कभी मुझे समझने की कोशिश ही नहीं की। सभी को टाइम से नाश्ता, खाना चाहिए बस। मैं कहीं नहीं निकल पाती हूं। मुझे गलत न समझना, तुम जब तक चाहो यहां रह सकते हो। मकान मालकिन का यह रुप भी है, यह पहली बार देखने को मिला था। खैर…..

बाद के दिनों में ये लोग मकान बेचकर शायद दिल्ली चले गए। और मकान गांव वाले सुरेश चाचा ही खरीदे थे, जो अगली गली में रहते थे।

जल्दी ही अशोक कप्तान के यहां एक कमरा 120/-+ बिजली किराये पर मिला और हमलोग वहां सिफ्ट हो गए।

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