समकालीन जनमत
कमला भसीन
कविताजनमत

कमला भसीन के गीत और कविताएँ जेंडर जागरूकता की असरदार अपील हैं

(समकालीन जनमत का ‘समकालीन हिंदी कविता’ का यह अंक लोकप्रिय नारीवादी -मानवाधिकार कार्यकर्ता और लेखिका कमला भसीन को समर्पित है, 75 वर्ष की उम्र में 25 सितंबर को कैंसर के कारण उनका निधन हो गया। )

रूपाली सिन्हा

यह पहली बार था कि वे खुद खामोश सुन रही थीं, उनके साथ अपनी दमदार आवाज़ नहीं मिला रही थीं। लगता था अभी उठ बैठेंगी और गाने लगेंगी। ठीक वैसे ही जैसे अपने रुखसती से चंद दिनों पहले भयंकर पीड़ा में भी गा रही थीं, मानो जाते-जाते धमकी देते हुए कह रही थीं कि मेरे जाने के बाद भी गीतों का ये सिलसिला रुकना नहीं चाहिए। और वही तो हो रहा था… भारी मन, नम आँखों और बुलंद आवाज़ के साथ उन्हीं के  लिखे गीत ‘तोड़-तोड़ के बंधनों को देखो बहनें आती हैं…..’ से उन्हें आखिरी विदाई दी जा रही थी। उनकी ज़िंदादिली और जीवटता को देख मौत भी एक बार को ठिठक गई होगी। कमला भसीन, हम सबकी कमला दी जिन्होंने 25 सितंबर को ज़िन्दगी के सारे बंधन तोड़ खुद को हमेशा के लिए आज़ाद कर लिया।  

अपने जीवनकाल में ही कमला भसीन एक फेमिनिस्ट आइकन बन गई थीं। नारीवाद को आसान भाषा में सबके समझने लायक बनाने के लिए उन्होंने गीतों और कविताओं को माध्यम के रूप में चुना था। उनके लिखे गीत दशकों से महिला संगठनों और समूहों की ज़ुबान पर रहे हैं। कमला भसीन जेंडर गैरबराबरी के प्रति जागरूकता और संवेदनशीलता पैदा करने के लिए हमेशा याद की जाएंगी। जिस सहजता, तार्किकता और ठसक के साथ वो अपनी बात सम्प्रेषित करती थीं वह अनूठा अंदाज़ था उनका। सहजबोध वाली सामान्य सी बातों को भी वे जिस तरह रखती थीं वो किसी को भी आसानी से निरुत्तर और सहमत कर  देती थीं और सम्प्रेषणीयता के इसी गुण के कारण महिलाओं के साथ उनका एक सहज रिश्ता बन जाता था। 

पूरी दुनिया में सामाजिक बदलाव के आंदोलनों में गीतों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। गीत अभिव्यक्ति के सशक्त सांस्कृतिक माध्यम और फॉर्म होते हैं।  अपने देश में भी इसकी एक लम्बी परंपरा रही है।आज़ादी के आंदोलन के वक़्त से लेकर बाद के सामाजिक आंदोलनों में जन-जन तक अपनी बात पहुँचाने के लिए गीतों की खास जगह और भूमिका रही है। इप्टा के गीतों से हम सभी वाक़िफ़ हैं। प्रगतिशील आंदोलन के दौर में इन गीतों ने बहुत व्यापक असर डाला था।  प्रगतिशील विचारधारा को मानने वाले लोगों के होठों पर आज भी ये तराने तैरते रहते हैं। इन्हीं अर्थों में जेंडर जागरूकता फ़ैलाने के लिए कमला भसीन भी हमेशा याद की जाएँगी। उन्होंने अपने गीतों के माध्यम से औरतों की एक कलेक्टिव आइडेंटिटी का निर्माण कर दिया। मुहल्ले और इलाकों में औरतों के बीच हमारे काम करने के दौरान उनके गीत एक ज़रिया होते थे संपर्क बनाने का। हमलोग गीतों के माध्यम से जुड़ने और अपनी बात पहुँचाने की कोशिश करते थे। उनका सबसे लोकप्रिय गीत ‘तोड़ तोड़ के बंधनो को…  ही है…. खास तौर पर ‘गया ज़माना पिटने का जी अब गया ज़माना मिटने का’ पंक्ति आते ही बहुत सी औरतों की आवाज़ एक अलग ही जोश से भर उठती, कुछ तो नाचने भी लगतीं। शायद ये गीत उन्हें भविष्य का सपना और उम्मीद जगाता था। आज भी उनका यह गीत उसी जोश और ऊर्जा के साथ गया जाता है। 

औरतों तक अपनी बात पहुँचाने के लिए उन्होंने जिससे ज़रूरत पड़ी उसका सहारा  लिया। मशहूर शायर मज़ाज की ग़ज़ल की तर्ज़ पर उन्होंने लिखा-

‘इरादे कर बुलंद रहना शुरू करती तो अच्छा था 

तू सहना छोड़कर कहना शुरू करती तो अच्छा था      
और 
देश में गर औरतें अपमानित हैं नाशाद हैं 

दिल पे रख के हाथ कहिए देश क्या आज़ाद है 

पंजाबी टप्पों की धुन पर उन्होंने ढेरों गीत लिखे।  ‘उड़े जब जब ज़ुल्फ़ें’ की धुन पर लिखा – 

‘पर लगा लिए हैं हमने अब पिंजरों में कौन बैठेगा 

अब पिंजरों में कौन बैठेगा ज़रा सुन लो… 

कार्यशालाओं में सांस्कृतिक सत्र के दौरान जब भी यह गीत गूँजता है,औरतें इस पर झूम-नाच उठतीं हैं।  लोकगीत की धुन पर लिखा ये गीत –
मुँह सी के अब जी न पाऊँगी ज़रा सबसे ये कह दो 

विष पी के अब जी न पाऊँगी ज़रा सबसे ये कह दो .. 
 

और उनकी ये कविता :
पहाड़ सी मुसीबतों के बीच 

आगे बढ़ पाने का नाम औरत है 

दहाड़ती नसीहतों के बीच 

अपनी कह पाने का नाम औरत है 

कमला भसीन ने बच्चों के लिए भी बहुत सी कविताएं लिखी है। जिनके बारे में उनका कहना है कि यूँ तो ये गीत मज़े करने, हंसने-हंसाने के लिए लिखे थे लेकिन गीतों के सहारे कुछ काम की बातें भी कहने की कोशिश की है। जैसे कि घर के कामों में परिवार के सभी सदस्यों की भागीदारी और श्रम के बँटवारे पर उन्होंने कई कविताएं लिखीं। उनके ये गीत जहाँ भी गए उन्होंने कुछ सवाल उठाये, कुछ चर्चाएं छेड़ीं।  बच्चों के गीतों की उनकी एक किताब है “धम्मक धम’  जिसकी एक कविता है:

धम्मक धम भई धम्मक धम 

छोटे-छोटे बच्चे हम 

लड़की ना लड़के से कम 

धम्मक धम भई धम्मक धम 

पिछले साल ही बच्चों के लिए उन्होंने ‘सतरंगी लड़के’ और ‘सतरंगी लड़कियां’ पुस्तिकाएँ लिखीं जो प्रथम बुक्स ने इलस्ट्रेशन के साथ छापी है। इनमें  बच्चों को आसान भाषा में उनके स्तर पर उतर कर जेंडर को समझाया है।   कमला दी के गीतों और कविताओं में कोई गूढ़-गंभीर दर्शन बेशक न हो लेकिन वे आम बातें, आम मुद्दे हैं जो इतने आम होते हैं कि उनपर से नज़र अक्सर ही फिसल जाती है, लेकिन वे इतने ज़रूरी हैं कि उनपर नज़र टिकाए बिना आगे बढ़ना नामुमकिन है। ये बराबरी, न्याय और समान अधिकारों के मुद्दे हैं, पितृसत्ता की पेचीदगियों के मुद्दे हैं। और जिस समाज में अभी भी औरत-मर्द के बीच बहुपरतीय गैरबराबरी की खाइयाँ और खड्डे अभी भी पटे नहीं हों वहां ये मामूली और आम सी लगने वाली बातों को बार-बार उठाना ही होगा… और लम्बे समय तक उठाते रहना होगा। व्यक्तिगत जीवन में इतने भीषण आघात सहने के बाद भी कमला दी ने जीवन का जो मक़सद चुना था उसपर ताउम्र चलती रहीं। शायद दूसरों से खुद को जोड़ देने की ख़ासियत ने ही उनके अंदर वो ताक़त पैदा की। मुझे सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की पंक्तियाँ याद आती हैं -“दुःख तुम्हे क्या तोड़ेगा तुम दुःख को तोड़ दो बस अपनी आँखें औरों के सपनों से जोड़ दो “

कमला दी के साथ असहमतियां हो सकती थीं, बहस हो सकती थी, लेकिन फिर भी वे अपनी थीं, बेहद अपनी थीं, सबकी थीं, ठीक वैसे ही जैसे उनके गीत हम सबके हैं। उनकी ज़िंदादिली के क़िस्से हम सुनते सुनाते रहेंगे, और उनके गीतों को हम यूँ ही गाते रहेंगे जब तक उन्हें गाने की ज़रूरत बनी रहेगी। आइए पढ़ते हैं उनके कुछ गीत और कविताएँ ..

1. तोड़-तोड़ के बंधनों को

तोड़-तोड़ के बंधनों को देखो बहनें आती हैं  
वो देखो लोगो देखो बहने आती है 
आयेंगी, जुल्म मिटाएंगी वो तो नया ज़माना लायेगी 
 तारीकी को तोड़ेंगी, वो ख़ामोशी को तोड़ेंगी 
हाँ मेरी बहनें अब ख़ामोशी को तोड़ेगी 
मोहताजी और डर को वे मिलकर पीछे छोड़ेंगी
 हाँ मेरी बहने अब डर को पीछे छोड़ेंगी 
निडर आजाद हो जाएगी 
अब वो सिसक-सिसक के न रोएँगी 
तोड़-तोड़ के बंधनों को.... 
 मिलकर लड़ती जाएगी वो आगे बढ़ती जाएगी 
हाँ मेरी बहने  अब आगे बढती जाएँगी 
नाचेंगी और गाएँगी वो फ़नकारी दिखलाएँगी 
हाँ मेरी बहने अब  मिलकर ख़ुशी मनायेंगी, 
गया जमाना पिटने का जी अब गया ज़माना मिटने का 
 तोड़-तोड़ के बंधनों को ......... 


2. इरादे कर बुलंद

इरादे कर बुलंद अब रहना शुरू करती तो अच्छा था.
तू सहना छोड़ कर कहना शुरू करती तो अच्छा था.
 
सदा औरों को खुश रखना बहुत ही खूब है लेकिन
खुशी थोड़ी तू अपने को भी दे पाती तो अच्छा था.
 
दुखों को मानकर किस्मत हार कर रहने से क्या होगा
तू आँसू पोंछ कर अब मुस्कुरा लेती तो अच्छा था.
 
ये पीला रंग, लब सूखे  सदा चेहरे पे मायूसी
तू अपनी एक नयी सूरत बना लेती  तो अच्छा था.
 
तेरी आँखों में आँसू हैं तेरे सीने में हैं  शोले
तू इन शोलों में अपने गम जला  लेती तो अच्छा था.
 
है सर पर बोझ जुल्मों का तेरी आँखे सदा नीची
कभी तो आँखे उठा तेवर दिखा देती तो अच्छा था.
 
तेरे माथे पे ये आँचल बहुत ही खूब है लेकिन
तू इस आँचल का इक परचम बना लेती तो अच्छा था

(*मशहूर शायर मजाज़ की ग़ज़ल की पंक्ति)


3. ज़रा सबसे ये कह दो 

मुँह सी के अब जी न पाऊँगी 
ज़रा सब से ये कह दो 
विष पी  के अब जी न पाऊँगी 
ज़रा सब से ये कह दो 
मैया कहे बिटिया सीस झुकाना 
सर को मैं ऊँचा उठाऊँगी  ज़रा.... 

बापू कहे बिटिया पढ़ने न जाना 
अपना मैं ज्ञान बढ़ाऊँगी ज़रा... 

भैय्या कहे बहना चौखट ना लाँघो
चार दीवारी को गिराऊंगी ज़रा.. 
पिंजरों से पीछा छुड़ाऊंगी ज़रा... 

शास्तर कहें पिता-पति हैं स्वामी 
अब न गुलामी कर पाऊँगी ज़रा... 
रिश्ते बराबर के बनाऊँगी ज़रा.. 

दुनिया कहे मुनिया मन की ना करना 
मन को ना अब मैं दबाऊँगी ज़रा... 
अपने ही सपने सजाऊँगी ज़रा.. 



4. पर लगा लिए हैं हमने

पर लगा लिए हैं हमने 
अब पिंजरों में कौन बैठेगा ज़रा सुन लो 

अब तोड़ दी है जंज़ीरें 
तो कामयाब हो जायेंगे ज़रा सुन लो
 
खड़े हो गए हैं मिलके 
तो हमको कौन रोकेगा ज़रा सुन लो 

दीवारे तोड़ दी हमने 
अब खुल कर सॉंस लेंगे ज़रा सुन लो 

औरों की ही मानी अब तक 
अब खुदी को बुलंद करेंगे ज़रा सुन लो 

देखो सुलग उठी चिंगारी 
अब ज़ुल्मों की शामत आई है ज़रा सुन लो 



5. औरत 

पहाड़ सी मुसीबतों के बीच 
आगे बढ़ पाने का नाम औरत है 
दहाड़ती नसीहतों के बीच 
अपनी कह पाने का नाम औरत है 

हार के अंदेशों के बीच 
परचम लहराने का नाम औरत है 
ज़हरीले संदेशों के बीच 
मीठा कह पाने का नाम औरत है 

सैकड़ों हैवानों के बीच 
इंसां रह पाने का नाम औरत है 
दम तोड़ती जानों के बीच 
नई जानें बना पाने का नाम औरत है। 

(सभी कविताएँ जागोरी द्वारा प्रकाशित 'आओ मिलजुल गाएँ' से)  


6. इतवार 

आया इतवार आया इतवार 
हम सब का प्यारा इतवार 
नहीं स्कूल ऑफिस का डर 
मम्मी भी घर पापा भी घर 
पापा बना कर लाते चाय
मम्मी पढ़ती हैं अख़बार  
आया इतवार आया इतवार 
हम सब का प्यारा इतवार 


7. भैया 

ता ता थैया 
सुन मेरे भैया 
यूँ ही मत चीख़ो 
काम काज सीखो खाते हो जो खाना 
तो सीख लो पकाना 
अगर फाड़ते कपड़े 
सीखो उन्हें सीना 
भरना सीखो पानी 
अगर तुम्हें है पीना 
अपना काम करे जो खुद 
बस उसका ही जीना 
ता ता थैया 
सुन मेरे भैया 


8. घर का काम

घर का काम है सबका काम 
मिल जुल कर हम करते काम 
मिलकर ही करते आराम 
खेत पे हम सब मिलकर जाते 
काम भी करते गीत भी गाते 
पानी की गगरी भरने में 
बाबा,रामू ना शरमाते
बारी बारी पकाएं रोटी 
चाहे बने वो तिरछी मोटी 
झाड़ पोंछ की ज़िम्मेदारी 
हम सब लेते बारी बारी  
माँ का ही सब नहीं है काम 
घर का काम है सबका काम 

(धम्मक धम -बच्चों के गीत से)

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