अंचित
कविता का एक काम यह है कि वह हमारे भीतर के तनावों को, हमारी निराशाओं को जगह दे, वह सब कहने का माध्यम बने जो अव्यक्त रहने पर हमारी देह का भक्षण करता है. साथ ही यह भी लगता है कि कविता सिर्फ़ विचार नहीं, और भी ऐसी चीज़ों से बनी है जिनका परिमाणन थोड़ा मुश्किल काम है. रॉबर्ट फ़्रॉस्ट ने एक जगह कहा है कि कविता ऐसे शुरू होती है जैसे मानो गले में कुछ अटका हो, कहीं कुछ ग़लत हुआ हो, किसी का घर छूटा हो, किसी का प्रेम छूट गया हो. अविनाश की कविताओं को पढ़ते हुए यही पहली बात दिमाग़ में आती है. एक नए व्यक्ति ने एक दुनिया देखी और वह इसके पेंचों-ख़म से दो चार हो रहा है. यह सम्बन्ध सिर्फ़ सतह पर नहीं है. अंतरंग है. समुच्चय को स्वयं में समाहित करता हुआ है. इसीलिए कवि जो रेखा खींचता है, उसमें मृत्यु से लेकर मौन, भविष्यबोध से लेकर स्मृतिबोध, जो कल्पित है उससे जो ‘रियलिटी चेक’ है, सब एक साथ उपस्थित है.
कवि की दुनिया एक भरी हुई दुनिया है, हमारी दुनिया जैसी, इसी आयाम में, इससे बहुत दूर नहीं, इसीलिए कवि इसके बारे में बताने के लिए क्लिष्ट दृश्य की तरफ़ नहीं जाता- सीधी बात करता है – मृत्यु की विकल्पहीनता बताने को भी और प्रेम की छूअन बताने को भी. हाँ, यह तय बात है कि इस दुनिया के केंद्र में कवि ही है क्योंकि उसकी प्रमुख चिंताओं में उसकी निर्मिति की चिंता शामिल है. रिल्के ने एक युवा कवि के नाम जो पत्र लिखे, उनमें से एक पत्र में लिखा कि हृदय में जो कुछ भी सुलझता नहीं, उसके प्रति धैर्य रखते हुए, हमें प्रश्नों में जीना चाहिए – अविनाश यह सीख/कर रहे हैं. इसी धैर्य की आकांक्षा, उन्हें यह दृष्टि देती है कि वह कह सकें –
“मैं स्तब्ध-सा खड़ा, पहचान को मिट्टी में झरते देख रहा, सोचता कि कुछ सोचना कितना मुश्किल है, देखता कि देखने के लिये आँखें मात्र नहीं चाहिए। किसी ने मुझे नहीं पहचाना है, कोई नहीं जानेगा मुझे। मैं अब मैं से मेरी परिभाषा में तब्दील हो जाऊँगा।”
जो बात मुझे इन कविताओं की तरफ़ आकर्षित करती है वह है इन कविताओं का अन्वेषणात्मक गुण. ये हमारी दुनिया की परतें उघाड़ती कविताएँ हैं. जो भी ढँका छिपा होता है उसको सामने रखतीं, और कवि उन बातों को, पेचीदगियों को, आवरणों को लेकर अपनी राय बताने में कोई कोताही नहीं करता. उसकी तीक्ष्ण दृष्टि और तल्ख़ ज़बान से कुछ नहीं बचता. “हत्या का न्योता” धक्क से लगने वाली कविता है. शीर्षक से मुझे टैरंटीनो की महान फ़िल्म, “पल्प फ़िक्शन” का एक दृश्य याद आया और उससे सीखा हुआ पाठ भी – मनुष्य की बर्बरता गुमी नहीं बस ढंक गयी है- उसका प्रस्फुटन साधारण से साधारण प्रसंग में हो सकता है. यह कविता हमारे समय की भी सफल चीर-फाड़ करती है – हर अकेला व्यक्ति एक भीड़ से घिरा हुआ है – सत्ता का जाल इस तरह से भी हमें दबाएगा और इसके क्या मायने हैं – इसपर विमर्श को अभी बहुत सोचना है. यह भय, आशंका, बेचैनी ऐसी नहीं जिससे हमारे समाज का कोई व्यक्ति कनेक्ट नहीं कर सकता. इसी में हमारे समय की विफलता और कविता की सफलता छिपी है –
“वह करीब आते जा रहे हैं। एक जत्था। कुछ नारे, कुछ गालियाँ। उनकी आवाज़ में एक अप्रत्यक्ष डर सिहर रहा है। ऊँची आवाजों और कदमों की ठहराव-उठाव-ठहराव में यह डर फिसल कर जत्थे से बाहर निकल गया।”
यहाँ निशाना सिर्फ़ एक व्यक्ति का बाह्य नहीं. भय सिर्फ़ मृत्यु का नहीं. वह तो है ही लेकिन जैसा पहले कहा, एक परिभाषा, एक शब्द में रिडयूस हो जाने का भी है. इस लिहाज़ से यह बड़ी कविता ठहरती है. क्या मनुष्य अब सामाजिक प्राणी नहीं रहा?
युवा हिंदी कविता इन दिनों दो तरह के हमलों से जूझ रही है .यह हिंदी कविता का सूक्ति काल है जब बिना परिपेक्ष्य के काव्यांश और बेडौल उद्धरण इधर उधर घूम रहे. उनको प्रशंसाएँ प्राप्त हो रही हैं. उनकी विवेचनाएँ लिखीं जा रही हैं. अर्थ का आग्रह अब दुराग्रह में बदल दिया जाता है. ऐसी ही एक चुनौती भाषा के स्तर पर भी है जहां तत्सम शब्दों के इस्तेमाल से ख़ुद को सम्पन्न और बेहतर दिखाने की एक दौड़ चल रही है, जिसमें युवा कवि तेज़ी से दौड़ रहे हैं.
अविनाश की भाषा, बनती हुई भाषा है और प्रभावों और सम्भावनाओं के साथ जूझती, दोस्तियाँ करती है. ऐसे में अविनाश ने कठिन राह चुनी है और अपने लिए बड़े लक्ष्यों का संधान किया है. इस रास्ते पर उनकी सबसे बड़ी मदद स्वयं भाषा करेगी पर यह अविनाश को सोचना होगा कि वह अपनी भाषा और अपनी लेखनी को समकालीन हिंदी कविता के दबावों से कैसे बचाते हैं. बहुत ही उम्मीद के साथ, अविनाश का स्वागत.
अविनाश मिश्र की कविताएँ
जन्म : 27.01.1990
शिक्षा : पटना यूनिवर्सिटी से स्नातकोत्तर। पीएचडी का काम जारी।
सम्प्रति : पटना यूनिवर्सिटी में स्नातकोत्तर विभाग में सहायक प्राध्यापक(गेस्ट).
दो कविता संग्रह प्रकाशित – ‘साथ असाथ’ और ‘शहर पढ़ते हुए’ (2018) । एक ईबुक संग्रह , ऑफ़नोट पोअम्ज़ (2017)। विभिन्न अनुवाद के कार्य। जयराम रमेश द्वारा लिखित इंदिरा गांधी की जीवनी का हिंदी में अनुवाद।
सम्पर्क : anchitthepoet@gmail.com)