समकालीन जनमत
कविता

अमन त्रिपाठी की कविताएँ ‘सेन्स ऑफ़ बिलॉन्गिंग’ से उपजी हैं। 

वर्तिका


पढ़ाई से इंजीनियर अमन , समर्थ अनुवादक और कवि के तौर पर सक्रिय हैं।  शहर देखने, प्रेम में रहकर प्रेम न कर पाने के दिनों में दर्ज हुई ये कविताएँ कभी एक प्रेमी की नज़र से कही गयीं हैं तो कभी एक ऐसे नागरिक की तरह जिसे अपने अस्तित्व पर सवाल उठाने की वजह कभी कोई प्रेमिका दे देती है तो कभी कोई सरकार। ये कविताएँ आत्म-स्वीकृति की ओर बढ़ते हुए कदमों की तरह भी देखी / पढ़ी जा सकती हैं।

अमन की कविताएँ अपने आखिर में  बहुत सी हड़बड़ाहट लिए हुए दिखलाई पड़ती हैं।  इसकी एक वजह शायद यह भी हो कि ये कविताएँ किसी ऐसे ख़याल और तकलीफ़ के बीच लिखी जाती रही हों, जिनसे कवि जल्द से जल्द बाहर आना चाह रहा हो। इन कविताओं में सभी के लिए स्वर हैं, उनके स्वर और भी मुखर हैं उसके लिए, जिसका दुःख किसी ने नहीं देखा, जिसकी पीड़ा का असर कोई नहीं लेता।

अमन की अपनी राय, अपनी कविताओं के लिए यह है कि वे सब ‘सेन्स ऑफ़ बिलॉन्गिंग’ से उपजी कविताएँ हैं।  जब अपनी बात कहने के लिए मनुष्य को खोज रहे थे, तो नदी ने उन्हें वो अपनापा दिया। कविता ‘ख़याल’ जितनी प्रेम कविता है, उतना ही राजनीतिक कथ्य भी है। अमन अपने रचना कर्म में राजनीतिक चेतना को साथ लेकर ही किसी भी भाव की और बढ़ते प्रतीत होते हैं।
“वह है खड़र खड़र और सड़क पर डामर
धूल और जी-20 का डर
सड़कों पर ताज़ी सफेद पट्टियाँ अगर
फुटपाथ की बजाय चलें इन्हीं पर
तो क्या होगा पार्टनर?”
यह सवाल बस कविता में इस्तेमाल की गयी पंक्ति भर नहीं हो सकती अमन के यहाँ, वे यही सवाल कर सकते हैं / करते रहे हैं अपने साथियों, दोस्तों, सम्बन्धियों और खुद से भी।  वह दृष्टि जो उनके पास है, किसी भी व्यक्ति को उसकी पृष्ठभूमि, और मौजूदा परिदृश्य के साथ देखने की, उनके भाषाई संसार को और भी समृद्ध बनाती है।
अमन त्रिपाठी की कविताएँ

1. व्याकरण
जिसे कह रहे हो आत्मा
वह मनुष्य है जिसके सामने तुम कभी गये नहीं
जिसका रोना तुम्हें डराता है
वह पीड़ा की आवाज़ है
जो तुमने कभी सुनी नहीं
सिर्फ इसलिए कि तुम वहाँ गये नहीं
वे जगहें अभिशप्त नहीं हो गईं हैं
भूखे स्त्री-पुरुष ही हैं आधी रात को रोते हुए
जिनसे तुम खुद को और अपने बच्चों को बचाना चाहते हो
वे यहीं के इसी धरती के संभवतः तुम्हारे घर के निवासी हैं
इतनी तरह की पीड़ाओं ने मनुष्यों के चेहरे गढ़े हैं
कि वे आम कहानियों और चलताऊ अनुभवों से पहचान में
नहीं आने वाले
भूख के जटिल व्याकरण से भागते हुए कह दिया ज़िंदा मनुष्य को भटकती हुई आत्मा
दिन में जिनसे बचना है रात में डरना है
जिनके सामने गलती से भी नहीं पड़ना है

 

2. (अ) प्रस्ताव
सच कहूँ तो मुझे तुम्हारा इंतज़ार नहीं है
शायद तुम्हें भी किसी रहस्यमय
अनजाने और तुम्हारा दिल तोड़ने की कूवत रखने वाले
का इंतज़ार हो
पर मैं यह भी सोचता हूँ कि क्या हर्ज है अगर
हम पागलों की तरह एक-दूसरे को ही प्यार करें
मैं जानता हूँ कि हम यह कर सकते हैं
लेकिन करते नहीं हैं यह भी सच है
तुम मेरी अच्छी दोस्त हो जिससे मुझे बहुत शिकायतें हैं
मैं तुम्हारा पुराना दोस्त हूँ जिसे तुमने कई बार लताड़ा है
जब करते हैं तो हम बहुत प्यार से बातें करते हैं
मानो हमारे बीच का वह प्रतीक्षित प्यार बस होने को ही है
जब करते हैं तो हम इतनी कटुता से दुश्मनी
कि ज़िंदगी में जिस एक दुश्मन की ज़रूरत है वो हम ही तो हैं
प्रेम के सिद्धांतों पर हमारी बात कभी हुई नहीं
हुई तो तीखी असहमतियों में डूब गई
बावजूद इसके यह संभावना अभी तक मिटी नहीं है कि
मैं तुम्हें दुनिया में सबसे अधिक प्यार करूँ जिसपर किसी की छाप न हो
तुम मुझे प्यार करो एकदम अपनी तरह और वह सिर्फ हमारा हो
लेकिन हम यह करते नहीं हैं
और पता नहीं क्यों नहीं करते

 

3. ख़याल
फुसफुसाहट की तरह उड़ रहा है किसी चिड़िया का पंख
पंख की तरह मेरा अस्तित्व गिरती दिशा में उड़ रहा है
मैं अपना घर किसी अनजानी सदी में भूल आया हूँ
मेरे लोग शायद किसी विलुप्त सभ्यता के थे
कहीं का भी नहीं मैं –
तुमसे यह पूछ रहा हूँ
क्या यह एक असामाजिक झूठ है?
मैं जिसे हसरत से देखता हूँ वो मुझे हिकारत से देखता है
मुझे जिसकी प्रतीक्षा है वह ख़ुद को खो चुका है
मेरी यादें और सपने मेरे पहलू से जाने किधर चले गए
एक सतत बेचैनी मेरे पीछे है शायद वही मेरा घर है
किंतु असम्बद्ध वाक्यों में अपनी अभिव्यक्ति तलाशता मैं
मनुष्यों को अपना घर बनाना चाहता था यानी तुम्हें
जिसे मैं सपने में चिट्ठियाँ भेजता रहता हूँ
और डरता हूँ कि सपना टूटने पर तुम उन्हें फाड़ दोगी
याद और विश्वास के
आज़ादी के घर
देखो तो, कहने में ही कितने झूठे
धुँए जैसे ख़याल वाले
रेत की दीवार वाले घर
एक मुसलसल झूठ हम जीये‌ जा रहे हैं
जो बिल्कुल भी कमज़ोर नहीं
तुम्हारी हर बात के साथ और मजबूत होता जाता है
तुम, जिसे मैं अन्य नहीं बनाता कभी-भी,
यथार्थ के वज़न पर तौलने लगे मेरा अस्तित्व
जो एक पंख की भांति उड़ रहा है
एक सफेद तैरता स्वप्न
एक भी गिला नहीं लेकिन
मैं घर-बार विहीन
एक ख़याल पर ही संतुष्ट था
मानो ख़याल ही हैं अंतिम और पहले ठौर
अभूतपूर्व संभावनाएँ
जैसे कि तुम!
“हम अपने ख़याल को सनम समझे थे”

 

4. पेड़
पैसे का दंभ कुछ भी कर सकता है वह कुछ भी बन सकता है
वह आरा बन सकता है बड़ा वह बड़ा पेड़ काट सकता है
वह पेड़ बन सकता है पैसे का या नहीं भी बन सकता है
वह शादी का मंडप बन सकता है दयनीय भी बन सकता है
अंदर-अंदर मुस्कुराता हुआ विश्वस्त बन सकता है वह
डर बन सकता है मजबूरी बन सकता है वह पारिस्थितिकी बन सकता है वह असम्भव से सम्भव बन सकता है
स्मृति भी बन सकता है विस्मृति भी बन सकता है
वह क्या‌ कुछ है जो नहीं बन सकता
कुछ नहीं भी बन सकता है पैसे का दंभ कुछ भी कर सकता है
एक पेड़ से नहीं बनती पारिस्थितिकी वह तो एक जंगल से भी नहीं बनती
मुझे पारिस्थितिकी नहीं बचानी एक पेड़ बचाना है
मैं बस एक पेड़ के पीछे का दृश्य नहीं देखना चाहता
पेड़ के बिना दृश्य नहीं देखना चाहता
दृश्य में काफी है महज़ एक पेड़ जिसे छोड़ दिया जाए तो वह हज़ार साल तक बचा रहे
किसी को भी छोड़ दे अगर पैसे का दंभ तो वह हज़ार साल तक बचा रहे
पेड़ जंगल पृथ्वी मनुष्य
पर एक-एक‌ कर गिरती हैं उसकी शाखें
नहीं उपस्थित कहीं देखने को
यह दारुण दृश्य पैसे की आँखें
कैसे कुंद करेंगे पैसे की धार‌
लचर से तर्क दो-चार
लगाव स्मृति पुरातनता गहरा ऊँचा पेड़
आदि

 

5. आगरे की एक शाम
महताब बाग में डूबता सूरज
जमुना के पानी में धड़कता होगा
और समूचा शहर सफेद संगमरमरी
तिलिस्मी धुन पर गाता होगा
ज़िंदा रहने की ज़िद का गीत
या प्यार का गीत गाता होगा?
नहीं, वली मोहम्मद!
इस शहर को गीत कोई भी याद नहीं
कोई धुन बजती तो है इसके स्नायुतंत्र में
पर वह संगमरमरी धुन नहीं वली मोहम्मदी धुन नहीं
वह है खड़र खड़र और सड़क पर डामर
धूल और जी-20 का डर
सड़कों पर ताज़ी सफेद पट्टियाँ अगर
फुटपाथ की बजाय चलें इन्हीं पर
तो क्या होगा पार्टनर?
डर है शाश्वत धुन और धूलधूसरित कंठ से गुजरते हुए
यह धुन घरघराहट में बदल गई है
पार्टनर का पेंट किया हुआ यथार्थ
मेवाती नगले से उठे धुएँ में धुआँ हो गया है
सारा गौरवशाली अतीत भँगेड़े गाँजे में औचक आराम पाता है
लालकिले के नीचे अकबर मुस्कुराता है
प्रकृतिप्रेम और सौन्दर्यबोध और मनुष्य और शाम आदि, क्या तुम्हें कुछ ख़बर नहीं-
कब के यहाँ से रुख़्सत हो चुके
और सिर्फ रात ही है जो अब तक इस दुनिया के
बचे‌ रहने का कारण है


कवि अमन त्रिपाठी, पैदाइश देवरिया में. लखनऊ से   इंजीनियरिंग की पढ़ाई और IGNOU से हिन्दी साहित्य की. आजकल कोई स्थाई ठिकाना नहीं. 

सम्पर्क:
 ईमेल: laughingaman.0@gmail.com
वर्तिका हिन्दी साहित्य की अध्येता हैं. कविताओं में विशेष रुचि.   दिल्ली कोटा आजमगढ़ की आवाजाही में स्थायी पता अभी के लिए कोटा… भाषाएँ सीखने के क्रम में रहना पसंद करती हैं। 
सम्पर्क:
ईमेल : vartikamishra11@gmail.com

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