Sunday, October 1, 2023
Homeसाहित्य-संस्कृतिकविता‘जश्ने फैज़’ ने अभियान का रूप लिया, आगरा, अलीगढ़, इलाहाबाद, लखनऊ, पटना,...

‘जश्ने फैज़’ ने अभियान का रूप लिया, आगरा, अलीगढ़, इलाहाबाद, लखनऊ, पटना, दरभंगा में हो रहा है आयोजन

आगरा में 13 फरवरी को होने जा रहा ‘जश्ने फैज़’ का आयोजन ऐतिहासिक रूप लेने जा रहा है. किसी एक लेखक या रचनाकार को लेकर देश के कई शहरों में एक साथ जयंती समारोह ने एक अभियान का रूप ले लिया है. आगरा के रंगलीला, जन संस्कृति मंच और सूर स्मारक मंडल के तत्त्वाधान में आगरा में 13 फरवरी को होने वाले आयोजन के अलावा 12 फरवरी को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में तथा 14 जनवरी को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भी आयोजन होने जा रहा है. इसके अलावा जयंती के दिन इलाहाबाद, लखनऊ और बिहार के पटना, दरभंगा सहित कई जिलों में जन संस्कृति मंच की इकाइयां अपने सहयोगी संगठनों के साथ मिल इस महान शायर की जयंती मनाने जा रही है. इसका श्रेय आगरा के आयोजन को दिया जाना चाहिए जिसने महान शायर की सुपुत्री को आगरा के आयोजन के लिए आमंत्रित किया और आयोजन को राष्ट्रीय महत्त्व के आयोजन के रूप में रेखांकित किया.
जन संस्कृति मंच के डॉ. प्रेम शंकर सिंह ने कहा है कि ‘आज के नाम और आज के गम के नाम’ जश्ने फैज़ आयोजन की स्वतः स्फूर्त तरीके से कई जगह आयोजन की थीम बन गई है. उसके निहितार्थ फैज़ की शायरी में ही मौजूद है.13 फरवरी को एशिया महाद्वीप के महान शायर फैज़ अहमद फैज़ का जन्मदिन पड़ता है. फैज़ की शायरी अविभाजित भारत के साझे स्वप्नों, संघर्षों और बड़े सामाजिक परिवर्तन की जरुरत को साकार करती है. उनकी शायरी वतन से मुहब्बत की शायरी है, बेशक उसमें महबूब भी है. वे ‘रोमानी तेवर में इंकलाबी गीत लिखने वाले शायर हैं. फैज़ की कविता सिखाती है कि वतन की मुक्ति मुकम्मल तौर पर की गई कुर्बानियों के बगैर संभव नहीं. आज वतन के हालात ने फैज़ को पहले से कहीं अधिक जरूरी बना दिया है. अभिव्यक्ति, सहिष्णुता, बन्धुत्त्व जैसे मूल्य जितने उपेक्षित आज हुए हैं, पहले न थे. उसी अनुपात में पोंगापंथ, कट्टरता, स्वार्थपरकता और हिंसा बढ़ी है. निस्संदेह यह हमारे लोकतंत्र के लिए एक मुश्किल घड़ी है. ऐसे ही किसी मुश्किल घडी में फैज़ ने लिखा होगा कि- ‘भीगी है रात ‘फैज़’ ग़ज़ल इब्तिदा करो/ वक्ते-सरोद, दर्द का हंगामा ही तो है.’
रंगलीला के अनिल शुक्ल ने कहा कि फैज़ साहब की सुपुत्री सलीमा हाशमी हमारे इस अभियान को हौसला देने हमारे साथ रहना चाहती थी. दिल्ली और आगरा के आयोजन में उनकी उपस्थिति लगभग तय थी. पर आयोजन के जब इतने करीब हैं उनके वीसा को लेकर पशोपेश की स्थिति बनी हुई है. साहित्य और संस्कृति का हिस्सा साझेपन और संवेदनशीलता का है. इसे राजनीति से मुक्त रखना चाहिए. क्या ही अच्छा होता कि सरकार की तरफ से कोइ निर्णायक कदम शीघ्र ही उठाया जाता और हम आश्वश्त होकर आयोजन की तैयारियों में लगते. आगरा में रंगलीला के साथ सूर स्मारक मंडल इस आयोजन में हमारे सहयोगी है और साथ ही शहर के तमाम सामजिक-सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं का समर्थन हमें हासिल हो रहा है.
अलीगढ़ में जसम की इकाई इस कार्यक्रम को आयोजित कर रही हैं. जसम, अलीगढ़ की संयोजक दीपशिखा ने बताया इस आयोजन कि जश्ने फैज़ के अंतर्गत अलीगढ़ में ‘प्रतिरोध की कविता और फैज़ की शायरी’ विषय पर संगोष्ठी आयोजित की जायेगी. जिसका उद्घाटन जे एन. यू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रणय कृष्ण करेंगे. अन्य वक्ताओं में प्रो. अली अहमद फातमी, कवि अरुण आदित्य, डॉ हरिओम के शिरकत करेंगे. अध्यक्षता प्रो. अकील अहमद करेंगे. आगरा में आयोजन का उद्घाटन जे एनयू के छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष देवी प्रसाद त्रिपाठी करेंगे जो वर्तमान में राज्य सभा के सांसद है. प्रणय कृष्ण के अलावा रख्शंदा जलील, शमीम हनफी, प्रो. अली जावेद जैसे विद्वान् आगरा के आयोजन में शामिल हो रहे हैं.
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, आगरा और अलीगढ़ में फैज़ के प्रशंसक ग़ज़लकार और गायक डॉ. हरिओम की मखमली आवाज़ में फैज़ की ग़ज़लों और नज्मों का लुत्फ़ उठा सकेंगे. डॉ हरिओम ग़ज़ल गायकी के क्षेत्र में स्थापित एक ऐसी शख्सियत हैं जिनके कुछ वर्षो के अंतराल में ही अब तक चार एल्बम आ चुके हैं. ‘रंग पैराहन’ तथा ‘इन्तिसाब’ फैज़ की गजलों और नज्मों का कलेक्शन है जबकि ‘रोशनी के पंख’ हरिओम की खुद की लिखी हुई गज़लों की सांगीतिक प्रस्तुति है और ‘रंग का दरिया’ अभी हाल में ही रिलीज हुआ है.
अलीगढ़ में आयोजन से जुड़े प्रो. कमलानंद झा ने बताया कि इस पूरे अभियान को फैज़ और मुल्क से मोहब्बत करने वाले आमजन के सहयोग के भरोसे इस आयोजन को सफल बनाने के लिए हम प्रयासरत हैं. आज के वक्त की जरूरत के मद्देनज़र इस अभियान को व्यापक जन समर्थन हासिल हो रहा है.

RELATED ARTICLES

1 COMMENT

Comments are closed.

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments