जन संस्कृति मंच की ओर से 17 मार्च, 2024 को तूलिका व मृत्युंजय के घर पर एक घरेलू गोष्ठी हुई।
इस गोष्ठी में फैसला किया गया कि लेखक कलाकार गज़ा में युद्ध विराम के लिए एक सक्रिय अभियान चलाएंगे। इस अभियान के तहत विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों को “युद्ध के विरुद्ध शब्द” श्रृंखला के तहत आयोजित किया जाएगा और गज़ा में युद्ध विराम हो इसके प्रति अपना दृढ़ समर्थन व्यक्त किया जाएगा।
कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत करते हुए रौशनी ने युद्धविराम की भावना को व्यक्त करते हुए दो कविताओं की आवृत्ति की। चर्चित फिलिस्तीनी कवयित्री रफीफ ज़ियादा की कविता ‘वी टीच लाइफ़ स’र’ और सदफ जाफरी की नज़्म ‘गांधी जी अब भी कहते हैं’।
गोष्ठी में एकता, शिवांगी, देव्यानी भरद्वाज, अंजलि, मृत्युंजय ने भी ‘युध्द के विरुद्ध शब्द’ में एकजुटता के लिए अपनी अपनी कविताओं का पाठ किया।
इस गोष्ठी में आमंत्रित कवि थे अंकिता रासूरी और नईम सरमद।
अंकिता रासुरी ने अपनी कुछ महत्त्वपूर्ण कविताओं का पाठ किया। ‘मंडी हाउस में एक शाम’, ‘अधूरे प्रेम की पूरी दुनिया’, ‘ना तुम ना मैं ना समंदर’, ‘पुरानी टिहरी यादों में’, ‘अबौद्धिक प्रेम’, ‘ऑटो चालक’, ‘मुआवजा’, ‘अनवांटेड 72’, ‘सौतेली माँ’, ‘दुखों का बोझ’, ‘तुमसे मिलना एक आखिरी बार’।
नईम सरमद ने अपनी ढेर सारी नई पुरानी नज्में और गज़लें सुनाई। ‘ज़मीन सारे दुखों की जड़ है’, ‘मैं सिर्फ़ तसव्वुर का परसतार हूँ’, ‘सो मैं’, ‘उसने कहा था’, ‘मेरी सिगरेट नहीं जल रही’, ‘ये तेज़-गामी का दौर है ना’, ‘ये नस्ल चलनी है एड़ियों पर जो शहर पूरे नहीं पड़े तो अज़ाब उतरेंगे जंगलों पर’।
दोनों कवियों के कविता पाठ के उपरांत तफसील से आलोचनात्मक चर्चा की गई। इस चर्चा में मुख्य फोकस समकालीन युवा कविता में प्रेम और प्रतिरोध की अभिव्यक्ति और सैद्धांतिकी पर रहा।
साथी एकता ने अंकिता रासुरी की कविता ‘अधूरा प्रेम’ को रेखांकित करते हुए कहा कि पितृसत्तात्मक समाज में यह संभावना है कि इसका फायदा पुरुष उठाएगा।
बजरंग बिहारी तिवारी ने यह प्रश्न उठाया कि ‘स्त्री लेखन में प्रेम’ केंद्र में रहता है, ऐसा क्यों होता है? प्रेम में जो क्रांति का स्वर है उसे ऐसे भी देखना चाहिए कि आपकी सीमाएं कोई और तय करेगा मैं इन कविताओं को बगावत की तरह देखता हूँ।
वरिष्ठ नाटककार राजेश कुमारजी ने कहा कि यहाँ पढ़ी गई सभी कविताएँ प्रतिरोध की कविता है। आज के इस दौर में ये कविताएं हमें रास्ता दिखाती हैं।
आशुतोष ने अपनी बात रखते हुए कहा कि अंकिता और नईम की कविताएं/नज़्म/गजलें सभी सधी हुई हैं। भाषा की दृष्टि से और, कई अन्य कारणों से भी। प्रेम में सम्पूर्णता कुछ नहीं होती, यह पितृसत्ता की ही देन है। यह स्त्री की सम्पूर्णता को भंग करता है तथा उसके व्यक्तित्त्व का अपहरण करताहै। अंकिता रासुरी की ‘अनवांटेड 72’ कविता उपभोक्तावाद के बारे में है। उपभोक्तावाद प्रेम जैसी मासूम चीज का भी शिकार कर लेता है। मुझे अब इस टर्म कि ‘यह प्रेम कविता है’ से परेशानी होती है। प्रेम ‘वैल्यू लोडेड’ चीज है संस्कृति और कला में।
देवयानी ने प्रतिवाद करते हुए कहा कि ये प्रेम कविताएँ प्रेम के आकर्षण की नहीं बल्कि उसके भीतर के विरूपता,दमन की कविताएं हैं। अभी कुछ सालों तक ऐसी ही कविताएं स्त्री द्वारा लिखी जाएंगी।
अनुपम सिंह ने कहा कि प्रेम के का कोई एक स्वरूप नहीं है। अलग-अलग अवस्था में प्रेम अलग अलग तरह से ऑपरेट करता है। एक युवा होती पीढ़ी के लिए प्रेम क्रांति है, प्रतिरोध है, लेकिन धीरे-धीरे यह भी अपना एक मज़बूत पावर स्ट्रक्चर बना लेता है। अंकिता जैसी पढ़ी- लिखी, चेतना संपन्न स्त्रियां इसके अंतर्विरोधों को दर्ज़ कर रही हैं।
अनुपम ने कहा कि नईम की कविताओं में रोष, गुस्सा और बेबाकी से नकार है। लेकिन यह सर्व-नकार नहीं है। इनमें विचार की अन्तर्लय है। नईम की नज़्में पढ़ते-सुनते यह तो बहुत शिद्दत से महसूस होता है कि यह लेखक औरों से एकदम भिन्न है अपनी कहन, भाषा और संरचना में।
मृत्युंजय ने नईम सरमद की कविताओं पर अपनी बात रखते हुए कहा कि कविता की दुनिया हमें एक ‘मैं’ देता है। ये ‘मैं’ एतिहासिक तौर पर चले आ रहा है। यह पूंजी के ‘आई’ से अलग है। नईम कि कविता में ‘पोएट की आइडेंटिटी’ बहुत मजबूत है। कई बार दूसरी जबान हमारे कानों को सुनने में अच्छी लगती है लेकिन ऐसा नहीं है कि सब कुछ अच्छा ही है। नईम कि कविता में ‘कैसे’ की बजाय ‘क्यों’ के बीच सम्बन्ध और सवाल ज्यादा आते हैं। कई बार सवाल ही सवाल रह जाते हैं। कई बार इमेज की छाँव में चीजें दब जाती हैं।
इस घरेलू गोष्ठी में शामिल साथी थे : देव्यानी भारद्वाज, अंकिता रासुरी, आशुतोष कुमार, वंदना सिंह, नईम सरमद, शिवांगी, एकता, साधना, अभय कुमार, बजरंग बिहारी तिवारी, राजेश कुमार, अभिषेक मिश्रा, रवि राय, बद्रीनाथ जी, अंजलि, अंशिका, श्रवण कुमार, अंशु चौधरी, प्रेरणा मिश्र, मृत्युंजय, सिन्धुजा, जुबैर सैफी, तूलिका, शालू, रोशनी,अनुपम सिंह।