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परिवर्तन के कहानीकार हैं मार्कण्डेय

आज़मगढ़

विगत 18 मार्च 2024 को आज़मगढ़ के शिब्ली मंजिल सभागार में मार्कंडेय स्मृति  संवाद का आयोजन किया गया।  इस संवाद गोष्ठी का विषय ‘मार्कंडेय का कथा लोक’ रखा गया था।  कार्यक्रम की शुरुआत में शिब्ली कॉलेज में हिंदी की प्रोफेसर डॉक्टर गीता ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया गया। इसके बाद कार्यक्रम में आए वक्ताओं को डा. स्वस्ति सिंह ने शाॅल ओढ़ाकर सम्मानित किया।  इसके बाद मार्कंडेय की कहानी गूलरा के बाबा का पाठ किया गया। इस कहानी का पाठ जन संस्कृति मंच के  कल्पनाथ यादव ने किया।

कार्यक्रम में गोष्ठी के मुख्य वक्ता  प्रोफेसर नीरज खरे ने ‘मार्कण्डेय का कथा लोक’ विषय पर बोलते हुए कहा कि हिंदी साहित्य की कथा परंपरा में मार्कंडेय जी कहानीकार के रूप में जाने जाते हैं।

मार्कंडेय का रचनाकार व्यक्तित्व बहुत विस्तृत है,  लेकिन उन्होंने कहानी लेखन को ज्यादा तरजीह दी। मार्कंडेय के लेखन का समय स्वाधीनता के ठीक बाद का समय है।

इस समय तक हिंदी कहानी एक मुकाम तय कर चुकी थी। गुलेरी, प्रेमचंद और प्रसाद से होकर लगभग 50 साल की यात्रा हो चुकी थी, जब मार्कंडेय जी कहानी के क्षेत्र में आते हैं।

‘गुलरा के बाबा’ उनकी पहली प्रकाशित कहानी कही जाती है, जो 1951 ईस्वी में ‘कल्पना’ पत्रिका में छपी। लेकिन कुछ स्रोतों से यह जानकारी मिलती है, कि उन्होंने ‘शहीद की मां’ नाम से कहानी लिखी थी, जो ‘आज’ अखबार में प्रकाशित हुई थी, 1950 ईस्वी में।

कहने  का आशय यह कि उन्होंने 1951 से पहले कहानी लिखने की शुरुआत कर दी थी।  यही समय कथा साहित्य में फणीश्वर नाथ रेणु का है, जो उनके समकालीन थे। शिव प्रसाद सिंह का है। और भी जो नई कहानी आंदोलन के कहानीकार हैं, उनका समय है।

नीरज खरे जी ने आगे अपनी बात बढ़ाते हुए कहा कि  प्रेमचंद ने कोई आंदोलन नहीं चलाया, लेकिन प्रेमचंद ने हिंदी कहानी को नई जमीन दी। सामाजिक सरोकारों से उसे जोड़ने की कोशिश की और मनोरंजन के सीमित दायरे से निकालकर कहानी को भारतीय गांव के, भारतीय समाज के कठोर सत्य से, कठोर यथार्थ से जोड़ने की कोशिश की।

प्रेमचंद की गांव केंद्रित कहानियों को, जिसमें प्रेमचंद भारतीय समाज के अंतर्विरोधों  को, गांव के अंतर्विरोधों को, जाति को, स्त्री के दुख दर्द को, किसान आदि के सवालों से जूझते हैं। मार्कंडेय को इस परंपरा का वाहक कहा जाता है, जो कि वह है भी। उसकी एक वजह है, जिसकी एक झलक आज पढ़ी गयी उनकी कहानी ‘गुलरा के बाबा’ में देखी जा सकती है।

प्रोफेसर नीरज खरे ने आगे कहा कि नई कहानी का आंदोलन जब शुरू हो रहा था, इसमें अलग-अलग धाराओं की कहानी लिखी जा रही थी। कुछ विद्वानों ने उसका वर्गीकरण किया और उसमें मार्कंडेय जी भी थे।

मार्कंडेय  नई कहानी के सिद्धांतकारों में  भी थे।  उसकी स्थापनाओं को बनाने में, नहीं कहानी क्या है, इसका सौन्दर्यशास्त्र  परिभाषित करने में एक तरह की कोशिश मार्कण्डेय जी ने की थी।

मार्कंडेय जी के आठ कहानी संग्रह हैं जिसमें कई संग्रहों की लंबी भूमिका है,  जिसमें वे स्पष्ट करते हैं कि नई कहानी कैसे बदल रही थी। मार्कंडेय जी इस बदलाव के कहानीकार हैं। प्रेमचंद की परम्परा को मार्कण्डेय विस्तृत करते हैं, नया आयाम देते हैं।

उन्होंने मार्कंडेय की कहानी ‘गुलरा के बाबा’, ‘हंसा जाई अकेला’, ‘भूदान’, ‘पान फूल’ कहानियों की चर्चा की और कहा कि आजादी के बाद जो समाज की सच्चाई थी, मार्कंडेय इस सच्चाई के कहानीकार हैं।

इस संवाद गोष्ठी में बोलते हुए डॉक्टर इन्दीवर  ने कहा कि मार्कंडेय लोक जीवन और लोक संस्कृति के कहानीकार हैं। मार्कंडेय युग सत्य के कहानीकार हैं।

गोष्ठी में अपना वक्तव्य देते हुए डॉक्टर सरोज सिंह ने कहा कि मार्कंडेय जी स्त्री स्वाधीनता को अपनी कहानियों में विषय बनाते हैं। उन्होंने मार्कंडेय जी के साथ अपने संस्मरणों को  भी साझा किया।

गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे  प्रोफेसर सुरेंद्र प्रताप ने कहा कि मार्कंडेय को पहली नई कहानी लिखने का श्रेय देना चाहिए। उन्होंने कहा कि नामवर सिंह ने निर्मल वर्मा की कहानी ‘परिंदे’ को पहली कहानी कहा, जो सही नहीं है। मार्कंडेय की कहानी ‘गुलरा के बाबा’ और शिवप्रसाद सिंह की ‘दादी माँ’  पहली नयी  कहानी है।

उन्होंने कहा कि मार्कंडेय पश्चिमी आधुनिकता से अलग भारतीय आधुकता एवं प्रगतिशीलता के कहानीकार हैं।

गोष्ठी में आये लोगों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन डा. स्वस्ती सिंह ने किया और संचालन दुर्गा सिंह ने किया। इस गोष्ठी का आयोजन कथा प्रकाशन ने किया।

इस गोष्ठी में मालती मिश्र, हिना देसाई, मनीषा मिश्र, ममता पण्डित, इन्दुमती दूबे, प्रियंका दूबे, नीतू सिंह, माही, जयप्रकाश नारायण, ज्ञानप्रकाश दूबे, कल्पनाथ यादव, हेमन्त कुमार, सुरेन्द्र सिंह चांस, उमैर सिद्दीक, जावेद अहमद, बृजेश राय, श्रद्धानंद राय, डा. अशोक सिंह, डा. निर्मल श्रीवास्तव, डा. ए के सिंह, डा. आशुतोष सिंह, डा. रत्नाकर सिंह, मंगल सिंह, संजय श्रीवास्तव, सुभाष सिंह, अंकित सिंह गोल्डी, अभिषेक सिंह, अजय गौतम, अरुण मौर्य, अभिषेक पण्डित, प्रमोद यादव, जितेन्द्र कुमार नूर, अवनीश राय समेत अनेक अध्यापक, पत्रकार, लेखक, बुद्धिजीवी, संस्कृतिकर्मी, साहित्य-प्रेमी, छात्र आदि उपस्थित रहे!

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