(समकालीन जनमत के संस्थापक संपादक और कर्मकर्ता कवि अग्निपुष्प अब जीवित स्मृति बन चुके हैं। उन्हें समर्पित की गई ये भावभीनी श्रद्धांजलियां हमें आग के फूल खिलाने की जिद पाले उस स्वप्नदर्शी क्रांतिकारी के बारे में बहुत कुछ बताती हैं। साथ ही उनके सपनों को पूरा करने के लिए संकल्पबद्ध करती हैं।)
धीरेन्द्र झा
( भाकपा माले नेता)
।। _और वे चले गए अपनी यादें छोड़कर_ ।।
कोरोना काल की तस्वीर है।हम सबलोग दीपांकर जी के साथ अग्निपुष्प जी से मिलने गए थे। लकवाग्रस्त होने के बाद वो ठीक हो रहे थे।मन और मिजाज से दुरुस्त थे और पूरी ताजगी और उत्साह के साथ अपने कामरेडों के स्वागत में जुटे थे।
आवाज में लड़खड़ाहट थी। उठ खड़े होने की कोशिश थी, लेकिन हो नहीं पाए।
इन दिनों वे कोलकाता में अपने बेटे के साथ बीमारी की स्थिति में रह रहे थे।
अरविंद जी उनके अनन्य साथी थे। उनका जाने ने भी उन्हें कमजोर किया था।
भाभी जी से मिलूंगा लेकिन मिलने की हिम्मत नहीं हो रही है।
शुद्धिकरण के बाद भाकपा माले ने जब नए रूप में खड़ा होना शुरू किया,और कई तरह के जनसंगठनों और पत्रिकाओं की शुरुआत हुई, तो उसकी कई कड़ियां खड़ी हुईं।
इनमें एक महत्वपूर्ण कड़ी अरविंदजी और अग्निपुष्प जी थे।
हमारे लिए तो वे क्रांतिकारी धारा के पहले मैथिल बौद्धिक थे, जिनसे पटना में साक्षात्कार हुआ।
उनका घर हमलोग जैसे युवा विद्रोहियों के लिए एक ठौर था।वहां चले जाएंगे तो चाय और भोजन जरूर मिल जाएगा।भाभी जी के आत्मीय स्नेह और मुस्कान से ताकत मिलती थी।
लोकतांत्रिक समूहों में स्थापित पत्रिका जनमत एक केंद्र हुआ करता था। वहीं मेरी पहली मुलाकात मणिकांत ठाकुर, दरभंगा के अजय जी नवेंदु,श्रीकांत जी और अनिल चमड़िया से हुई थी।प्रसन्न कुमार चौधरी पहली बार वहीं मिले थे।
यह पत्रिका कामरेड वीएम का ड्रीम प्रोजेक्ट था जिसे बाहरी लोकतांत्रिक समूहों के साथ अन्तःक्रिया करने का मंच बनाया गया था।
कामरेड वीएम के साथ हम युवा एक्टिविस्टों को मिलाने की पहली बैठक हुई थी, जिसकी अगुवाई कामरेड अरविंद जी और अग्निपुष्प जी कर रहे थे। भूमिगत बैठक थी और हमलोगों को यह नहीं बताया गया था कि कामरेड विनोद मिश्र के साथ बैठक है।कामरेड वीएम प्रोवोक करने वाले प्रश्न पूछ रहे थे। खासकर राजीव गांधी की नई शिक्षा नीति को लेकर। हम उनसे बहस में उलझ रहे थे।
अग्निपुष्प जी ने इशारा किया। बाद में वे बताया कि कामरेड वीएम हैं।इनके नेतृत्व में ही दरभंगा में बौद्धिकों का एक समूह पार्टी से जुड़ा जो आजतक पूरी प्रतिबद्धता के साथ पार्टी के साथ हैं।
कवि और लोकप्रिय शायर नरेंद्र जी उनके अनन्य मित्र थे।अवधेश जी लोग उसी दौर में जुड़े।वो विरासत आगे बढ़ रहा है।
कवि विद्यानंद झा, मनोज झा,अमिताभ आदि उसी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।
उत्तर बिहार के दरभंगा में गुप्त सेंट्रल स्कूल हुआ था जिसमें वीएम–स्वदेश जी सहित उस दौर के सारे सेंट्रल लीडर्स गए थे।वह क्लास रामेश्वर लता संस्कृत कॉलेज के क्लास रूम में हुआ था जिसके आयोजकों में अग्निपुष्प जी प्रमुख थे।उस कालेज के प्राचार्य अग्निपुष्प जी के पिता जी थे जो संस्कृत के मूर्धन्य विद्वान थे।
दिल्ली से मेरा पार्टी काम के लिए दरभंगा ट्रांसफर हुआ।इस निर्णय से वो बहुत खुश थे।दरभंगा और मिथिलांचल में माले की बढ़त उन्हें ऊर्जा देती थी।मनिगाछी में पार्टी बनने की जानकारी जब मैने उन्हें दी तो उन्हें खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा।
वे बाबा नागार्जुन के गांव तरौनी के थे और भाभी जी भी बगल के ही गांव की थी। पटना पार्टी महाधिवेशन में विदेशी मेहमानों के लिए मिथिला पेंटिंग का जो गिफ्ट तैयार किया गया था वो अग्निपुष्प जी और भाभी जी के सौजन्य से ही तैयार हुआ था।
अग्निपुष्प जी बाबा नागार्जुन के प्रतिबद्ध हूं परंपरा के कवि,पत्रकार और बुद्धिजीवी हैं। बाबा नागार्जुन के 100 साल वाले कार्यक्रम को जन संस्कृति मंच ने मनाने का फैसला किया था।अग्निपुष्प जी ने ही जोर देकर कहा था कि शहरों में कार्यक्रम हो, लेकिन तरौनी में उनलोगों के बीच यह कार्यक्रम हो जिसके वे कवि हैं।
हुआ भी जबर्दस्त! रामजी भाई,प्रणय जी आदि पूरी टीम तरौनी पहुंची।शाम में कार्यक्रम था,और फील्ड में लगा शामियाना महिला पुरुषों से भर गया।
पंडित जी लोग कम आए लेकिन दलित पिछड़ों की पूरी बस्ती उमड़ पड़ी।बाबा की कविताओं का पाठ हुआ।लोगों ने अपनी जीवन स्थिति और दावेदारी के संघर्ष को उन कविताओं में सुना।जोड़ा मंदिर कविता आज के दौर के लिए बहुत ही प्रासंगिक है।
सामाजिक न्याय के अध्येताओं को जरूर पढ़ना चाहिए।
अग्निपुष्प जी की दिली इच्छा थी कि कम्युनिस्ट घोषणा पत्र का मैथिली अनुवाद छपे। हमलोगों ने बैठकर इसकी योजना बनाई थी।इसके बाद वे पूरी तन्मयता के साथ लग गए और उन्होंने अनुवाद उपलब्ध करा दिया।
अनुवाद की प्रति और मूल टैक्स्ट के साथ कुछेक साथियों के साथ बैठना था। वो भी बीमार पड़ गए और मेरी भी राजनीतिक व्यस्तता बढ़ गई। लेकिन उनका यह कर्ज हम सबों पर है।इसमें गौरीनाथ जी से सहयोग लेंगे। उनके इस कर्ज को जरूर उतारेंगे।मैं पूरे मन से उन्हें तबतक श्रद्धांजलि नहीं दे सकता जबतक कम्युनिस्ट घोषणापत्र का मैथिली अनुवाद प्रकाशित नहीं हो जाता है।
विनम्र श्रद्धांजलि के साथ लाल सलाम!
अवधेश कुमार
( भाकपा माले नेता)
।।_समकालीन जनमत के संस्थापक/संपादक कॉमरेड अग्निपुष्प जी की याद में_ ।।
मैथिली के नक्सलबाड़ी धारा के वरिष्ठ कवि, कुशल अनुवादक, पत्रकार और प्रतिबद्ध राजनीतिक कार्यकर्ता भाई अग्निपुष्प जी के असामयिक निधन से मर्माहत हूं। कोलकाता में इलाजरत रहते दिनांक 3.5.25 को उनका निधन हो गया।
हिंदी के महान कवि बाबा नागार्जुन के गांव तरौनी के वासी अग्निपुष्प जी का मूल नाम महेंद्र झा था लेकिन नक्सलबाड़ी आंदोलन से जुड़ने के बाद उन्होंने अपना नया नामकरण “अग्निपुष्प” के नाम से किया।
अपने इस नए नाम का चुनाव मार्क्सवादी दर्शन ” दो विरोधी तत्वों की आपसी एकता” के आलोक में हीं किया था।
अग्निपुष्प जी के साथ रहते मैने उनके व्यवहारों में अग्नि तथा पुष्प जैसे दो परस्पर विरोधी गुणों का बेजोड़ समीश्रण देखा भी है।
वर्ष 1979 में दरभंगा में पार्टी के पार्टी के संस्थापक कॉमरेड आर के सहनी के साथ मेरी मुलाकात कॉमरेड अग्निपुष्प से हुई। उस वक्त वे पार्टी लाइन पर हीं एक गुप्त पेपर “आधार” निकालते थे जिस काम में मेरे जैसे बहुत लोगों को उन्होंने जोड़ा।
फिर अपने नेतृत्व में “शिखा” साहित्ययिक गोष्टी की नियमित शुरुआत की जिसमे नए पुराने 15-20 लोगों की शिरकत होने लगी। मुझे दुःख है कि उनके पटना शिफ्ट होने के बाद इस गोष्टी का क्रम टूट गया।
अग्निपुष्प जी मेरे बड़े भाई, मित्र और कॉमरेड की तरह थे। उनके साथ पारिवारिक संबंध जैसा रिश्ता रहा है। बहुत यादें है! जिसे फिलवक्त नहीं कह सकता। लेकिन उनकी कही ये कुछ बातें मैं सदा याद करता हूं । ये मुझे हमेशा निराशा से उबार देती है: ” पार्टी महान है”, “पार्टी पर आस्था रखो”, ” क्रांति संपन्न होगी”।
अंत में प्रिय भाई संपादक जी व कॉमरेड अग्निपुष्प को नमन, लाल सलाम करते हुए विनम्र श्रद्धांजलि! भाई साहब की जीवन संगनी किरण झा एवं परिवार के सभी के लिए संवेदनाएं प्रेषित !!
भाकपा माले
।। वरिष्ठ कवि और पत्रकार अग्निपुष्प के निधन पर माले ने जताया शोक ।।
पटना 4 मई 2025
वरिष्ठ कवि, पत्रकार और वैचारिक प्रतिबद्धता के प्रतीक अग्निपुष्प के निधन पर भाकपा-माले राज्य कमिटी ने गहरा शोक जताया है. शनिवार को कोलकाता में उन्होंने अपने पुत्र अंशुमान के घर अंतिम सांस ली.
वे लंबे समय से अस्वस्थ थे, लेकिन विचारों की लौ उनके भीतर अंतिम क्षण तक जलती रही.
माले महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने उन्हें अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि दी है. राज्य सचिव कुणाल सहित पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने उनकी मौत पर दुख जताया है.
1950 में दरभंगा के तरौनी गांव में जन्मे अग्निपुष्प जी ने कोलकाता से शिक्षा हासिल कर पहले दरभंगा और फिर पटना को अपना कार्य क्षेत्र बनाया.
नक्सलबाड़ी आंदोलन के दौर में उन्होंने सक्रिय भागीदारी निभाई और भाकपा-माले में एक कार्यकर्ता के रूप में काम करने लगे.
अग्निपुष्प का साहित्यिक अवदान जितना गहरा था, उतनी ही प्रभावशाली थी उनकी पत्रकारिकता. उन्होंने शिखा और संवाद जैसी मैथिली पत्रिकाओं के संपादन में गहरी भूमिका निभाई. शिखा, आपातकाल के दौर में अपने सत्ताविरोधी तेवर के लिए जानी गई. समकालीन जनमत का संपादन करते हुए उन्होंने बिहार के अनेक ऊर्जावान पत्रकारों को एक नई दिशा दी.
उन्होंने दो राष्ट्रीय अखबारों में वरिष्ठ पदों पर रहते हुए काम किया.
मैथिली कविता में अग्निपुष्प का स्थान विशिष्ट रहा. वे कम लिखते थे, लेकिन उनकी कविताओं में तीव्रता और वैचारिक ताप स्पष्ट दिखता था.
उन्होंने कुछ कहानियाँ भी लिखीं और राजकमल चौधरी की चर्चित कृति मुक्ति प्रसंग का मैथिली अनुवाद किया, जो अत्यधिक सराहा गया.
बिहार में मुद्रण और संपादन के क्षेत्र में अग्निपुष्प ने नई परंपरा की नींव रखी. कम संसाधनों में सुंदर और विचारपरक पुस्तकों और पत्रिकाओं का प्रकाशन उनका विशिष्ट कौशल था.
उन्होंने कई संस्थाओं की स्थापना में सक्रिय भूमिका निभाई. उनके सान्निध्य में पले बढ़े कई पत्रकार आज देशभर के प्रतिष्ठित संस्थानों में कार्यरत हैं.
कोलकाता के नीमतला घाट पर उनका अंतिम संस्कार हुआ. उनकी स्मृति, उनका लेखन, उनकी विचारशीलता – ये सब हमारे बीच जीवित रहेंगे. मैथिली और हिंदी साहित्य, पत्रकारिता और वैचारिक आंदोलन को उनकी उपस्थिति हमेशा महसूस होती रहेगी.
अग्निपुष्प जी को विनम्र श्रद्धांजलि – एक जीवन जो परिवर्तकामी विचारों की लौ में जलता रहा, आगे भी राह दिखाता रहेगा.
गौरी नाथ
कथाकार , संपादक
काल्हि सांझ (03 मई, 2025) अग्निपुष्प जी चलि गेलाह। जाहि कोलकाता सँ अपन कवि-संपादक जीवन के आरंभ कयने छलाह ओ ओही कोलकाता मे अंतिम साँस लेलनि।
ई सब सुनि बड़ी काल धरि जेना विश्वासे नइं होइ छल। अंशुमान सँ गप भेलाक बाद तत्काल एको शब्द लिखैक स्थिति नइं बुझायल।
व्यथित छी जे माथ पर सँ छाहरि लगातार समाप्त भेल जा रहल अछि। ‘शिखा’ आ ‘जनमत’क आरंभिक संपादक, हमर सहमना-समानधर्मा लोकनिक अनन्य अग्निपुष्प जी हमरा लेल मात्र कवि नइं; हमरा घर-परिवार आ जीवन मे हुनक उपस्थिति बड़ पैघ महत्त्व रखैत छल। ‘सहस्रबाहु’क एहि कविक जाइत लगै अछि जेना हम अल्पबाहु भ’ गेलहुँ।
मुदा जीवन गतिशील अछि। अदम्य साहस आ विश्वास सँ भरल हमर एहि प्रिय कविक ‘संवाद’क पाती बिसरल नइं जा सकैछ:
हमर बात सांझक फुलाएल बेली
आ कि भोरे झखरैत सिंगरहार नइं
गामक कोतवाल आ कि
नगरक अस्पताल नइं कहत
कास पेटरक जंगल आ कि
गामक धार कहत
हमर बात अहाँक
टूटल हथिसार आ कि
अखबार नइं कहत
हमर बात खेतक रखबार
आ कि नदीक घटबार कहत
लाल सलाम कॉमरेड!
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प्रस्तुत अछि अग्निपुष्प जीक किछु कविता :-
#सुगंधि_पसरैत_रहय
(अस्मिताक लेल)
सिनेहक सुगंधि पसरैत रहय
ने ऊँच पहाड़ रोकय
ने रोकि सकय पवन
ने टोकि सकय कोनो चलन।
सिनेह कखन आँखि स’
पसरि जायत आँचर पर
बालु पर बनल आकृति सन
भखड़ि जायत कखन,
सिनेह बिजलौका सन
कखन चमकि जायत
पसरि जायत मौसमक मज्जर पर
कोइलीक कूक सन कखन।
सिनेहक आँगन तुलसी चौड़ा नञि
अकादारुण बबूरवन
धवल आकाश मे कारी-कारी मेघ
लोल मे जोगौने एक टा काठी
आकि एक टा खढ़
अपन सिनेहक घर लेल
उड़ल जाइत अज्ञात जन वन मे
चिड़ै-युगल
ने पाछू पगहा ने आगू लगाम
सिनेहक आँगन स’ अथाह महानगरक
एकांत यात्रा
ने सजल महफा ने हकमैत कहार
सोझाँ मे पसरल
भुतही गाछीक अन्हार
सिनेहक सुर आ संवेदना स’
छारि ले अपन घरक चार
आत्मसम्मानक बड़ेरी पर
उगा ले सहस्र तरेगन
आँगन स’ गगन धरि
पसारैत रहै सिनेहक सुगंधि…
#काल
अपनहि रोपल एक टा
चतरल गाछ
सूर्यक अवसानक संग
अहाँ केँ भुताह बुझाय लागत
अहींक बनाओल घरक
सभ टा खाम्ह
ओछौन पर पड़ैत
अहींक देह पर खस’ लागत
अँखियासल बाट पर बढ़ैत डेग
अतीत दिस घुसकैत बुझाय लागत
यथास्थितिक विरोध मे
उठल अहाँक हाथ दिस
कतेको घबाह आँगुर उठ’ लागत।
#कालचक्र
मनुख कखन मशीन भ’ जाइए
मशीन मे पिसाक’ कखन चिक्कस
भ’ जाइए, से नञि बुझि पबैए
भूमंडलीकृत बाजारक बेगरताक
मोताबिक ई मशीन समान गढ़ैत रहैए
कखन आ कत’ एहि मशीनक मोल
केना घटि आ बढ़ि जाइए
सेहो नञि बुझि पबैए।
मशीन बनल ई मनुख
कखन आ केना
कबाड़खाना धरि पहुँचि जाइए
से नञि बुझि पबैए।
#ई_आँखि
सागर सन ई गहींर आँखि
ओहि पर अफगानिस्तानक
कारी-कारी धुआँइत मेघ
पालविहीन नाह
लहरि केँ चिरैत चलैए
डुबकी लगबैए अथाह तल मे
तकै लेल मूँगा आ मोती
मुदा नाह स’ टकराइ-ए नरमुंड
ई आँखि जखन तनैए
एकहि संग होइए
गाम, नगर, गुफा आ कन्दरा मे
नरसंहारक अष्टयाम
मुठभेड़क मनगढ़ंत नाम
मोती, मूँगा छोड़ि
आँखि हेरैए अपन-अपन लाश
जरैत अपन गाम
जंगलक शांति होइए
जखन उठैए दावानल एहि आँखि मे
जंगल जरैत रहैए
चिड़ै उड़ैए आकाश मे
लोक कोनो एकांत गुफा मे समा जाइए
इन्द्रधनुष भ’ जाइए जखन ई आँखि
एकहि संग सिंगरहार झरैए
सागर मे तूफान उठैए
जरल जंगलो मे लोक कतारबद्ध भ’ जाइए।
#अहीं_छलौं
कार्तिक पूर्णिमाक
भीजल दुधिया राति
एकहि बाट पर
फुलायल कचनार
सटले गमकैत सिंगरहार
दुनूक बीच हम आ अहाँ
अपन-अपन एकांत मे ठाढ़
कचनारक छाया
सिंगरहार स’ आलिंगनबद्ध
अहाँ अपन सुगंधि द’ रहल छी
हम अपन रंग
एहने छल हमर सभक मार्ग।
सुगंधि स’ माँतल
रंग स’ सराबोर
यैह छल हमर मुक्तिक मार्ग
हमर रंग मे
मुक्तिक हमर अनथक रण मे
अहीं छलौं, अहीं छलौं!
#लोढ़ाक_धान
लोढ़ाक धान स’
आचर भरि अनैत छलौं
लाइ, मुरही आ पान
आब उगल चान सन
एक टा प्याज किनै छी
अपन आँखि हम
अपने हाथे मलै छी
अहाँ किए
बेर-बेर हँसै छी
बेर-बेर चिकरै छी
लोढ़ाक धान
कातिकक बाद हमर प्राण छल
हमर अस्तित्वक गुमान छल
अहाँ बेर-बेर लुझि क’
सरकार बनबै छी
आ बेर-बेर तोड़ै छी
#की_चुनू
रातुक शृंगार चुनू
आ कि भोरक सिंगरहार
आकाश मे छिड़िआयल तरेगन
चुनू आ कि टूटल सितार
ऊँच गाछ तारक चुनू
आ कि काँट लुबधल खजूर
कुसियारक काप चुनू
आ कि सघन बोन बबूर
खढ़-पतवार चुनू आ कि
तिजौरीक खूजल ताला
सगरो घोटाला चुनू
आ कि षड्यंत्रक हवाला
स्वप्न मे फुलायल
पारिजात चुनू आ कि
धूरा मे लेढ़ायल निर्माल
उफनैत नदीक कछेर चुनू
आ कि टूटल नाह मे मझधार
फेर अपन अलच्छ हाथ चुनू
आ कि हथलग्गू हथियार
#नव_बाट_बनाबी
आउ, आरो लग आउ
किछु डेग संग-संग
एहि अनजान महानगर मे चली
आड़ि पर जेना
आगू-पाछू चलैए लोक
परछांइ हमर सभक
टकड़य एहि स्याह सड़क पर
मुदा, भीतर चुपचाप बैसल मोन
बाहर निकलय
जेना नव दूभि
निकलैए खेत मे
आउ, आरो लग आउ
चली ओइ नुक्कड़ दिस
अस्त होइत सूर्य केँ रोकि दी
अफवाहक अन्धकार केँ
छाउर क’ दी
बरू एकपेड़िए सही
अइ सुनसान मे
एक टा नव बाट बना दी
रामजी राय
आलोचक
।। _लाल सलाम साथी_ ।।
मैथिली के कवि, पत्रकार,समकालीन जनमत के पहले संस्थापक/संपादक, साथी, कामरेड अग्निपुष्प जी नहीं रहे। वे लंबे अरसे से बीमार चल रहे थे। उनके गुजर जाने का दुख तो रहेगा। लेकिन समकालीन जनमत के १९८७ में साप्ताहिक पत्रिका के रूप में आने के साथ उनके साथ काम करने की बेशुमार प्रीतिकर स्मृतियों की याद सदा साथ रहेगी l
साथी सहकर्मी अग्निपुष्प जी को लाल सलाम!
श्रद्धांजलि!!
नवीन कुमार
कवि , आलोचक
।। _अग्निजीवी_।।
मैथिली भाषा के अग्निजीवी कवि और हिन्दी भाषा के वरिष्ठ पत्रकार अग्निपुष्प नहीं रहे!
पार्टी से सपरिवार आजीवन जुड़े रहे अग्निपुष्प भाकपा-माले के सक्रिय मस्तिष्कों में से एक , प्रकाशन समूह के आजीवन संचालक बने रहे।
समकालीन मैथिली कविता अपनी धार व वैश्विक सोच के साथ आज जैसी है उसकी वैसी होने में यात्री उर्फ नागार्जुन व राजकमल चौधरी के बाद के नक्सलबाड़ी आंदोलन प्रभावित अग्निजीवी पीढ़ी के कवि अग्निपुष्प और उनके दिवंगत सहकर्मी सुकांत सोम का भारी अवदान है जिन्होंने प्रतिरोध के स्वर को मजबूत किया ।
अलविदा !
कामरेड अग्निपुष्प अमर रहें. हार्दिक श्रद्धांजली .
कामरेड अग्निपुष्प को लाल सलाम .
दीपांकर भट्टाचार्य
भाकपा माले महासचिव
।। __उनकी यादें प्रेरित करती रहें_ ।।
जब हम पटना में इंडिया डायलॉग कार्यक्रम के लिए तैयार हो रहे थे, कोलकाता से एक दुखद समाचार आया। लंबे समय से सीपीआई (एमएल) कार्यकर्ता और जनमत के संस्थापक संपादक कॉमरेड अग्निपुष्प का कल कोलकाता के वुडलैंड्स अस्पताल में निधन हो गया। कवि, अनुवादक और पत्रकार कामरेड अग्निपुष्प दरभंगा में बाबा नागार्जुन के गांव तरौनी के रहने वाले थे और नक्सलबाड़ी किसान विद्रोह और युवाओं के उभार के मद्देनजर भाकपा (माले) में शामिल हो गए थे. कोलकाता में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने पटना शिफ्ट होने से पहले दरभंगा में काम किया, जहां कॉमरेड अरविंद कुमार के साथ, उन्होंने सीपीआई (एमएल) के प्रकाशन विंग को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कोविड महामारी के शुरुआती दिनों में मैं कामरेड अरविंद और कामरेड रामजी राय, प्रभात कुमार और धीरेंद्र झा के साथ उनके पटना स्थित आवास पर उनसे मिलने गया था. हमने कोविड की अगली लहर में कॉमरेड अरविंद जी को खो दिया और अब कॉमरेड अग्निपुष्प भी नहीं रहे। उनकी विरासत लोकतंत्र, न्याय और सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई में प्रगतिशील सांस्कृतिक और साहित्यिक कार्यकर्ताओं को प्रेरित करती रहे।