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फादर स्टेन स्वामी की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी

आठ संगठनों जसम, दलेस, जलेस, एनएसआइ, अभादलम, प्रतिरोध का सिनेमा, प्रलेस और इप्टा ने अपने साझे कार्यक्रमों की शृंखला में दिनांक 13 जुलाई 2021 को फादर स्टेन स्वामी की सांस्थानिक हत्या पर एक श्रद्धांजलि-प्रतिरोध सभा का आयोजन किया.

ऑनलाइन हुए इस कार्यक्रम में कवियों, कलाकारों, विचारकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपना क्षोभ व्यक्त करते हुए फादर स्टेन स्वामी को श्रद्धांजलि दी. 26 अप्रैल 1937 को पैदा हुए स्टेन स्वामी आदिवासियों के अधिकारों के लिए ताउम्र संघर्षरत रहे. अक्टूबर 2020 में उन्हें भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया. उन्हें निहायत प्रतिकूल परिस्थितियों में जेल में रखा गया. प्रशासनिक क्रूरता, अदालत की उदासीनता और विभिन्न गंभीर बीमारियों से जूझते हुए दिनांक 5 जुलाई 2021 को उनकी मृत्यु हुई. उनकी मृत्यु को उचित ही सांस्थानिक हत्या कहा जा रहा है. यह हत्या भारतीय लोकतंत्र और संविधान पर गहराते संकट का साफ़ सबूत है.

अपने शिक्षक फादर स्टेन स्वामी को श्रद्धांजलि पेश करते हुए फिल्मकार मेघनाथ ने उनको आदिवासियों का अथक हितचिंतक कहा. अपनी भावनाओं को जनकवि पाश के शब्दों के सहारे व्यक्त करते हुए वरिष्ठ आंदोलनकर्मी मेघनाथ ने बताया कि फादर ने उन्हें सोशल एनालिसिस के पाठ्यक्रम में मार्क्सवाद पढ़ाया था. वे 1980 में उनके शिष्य थे. फादर स्टेन दलित आंदोलन, आदिवासी आंदोलन पर बात करते थे. उन्होंने आदिवासियों के विस्थापन और पुनर्वास की प्रचलित सरकारी समझ पर सवाल उठाए और इनसे जुड़े आंदोलनों में हिस्सा लिया. 1986 में उन्होंने बड़े बांधों के विरोध में कार्यक्रम किया. इसमें पूरे भारत के चिंतक-कार्यकर्ता सम्मिलित हुए.

उन्होंने कहा कि दलितों, आदिवासियों के सवाल मूलभूत विकास के सवाल से जुड़े हुए हैं. इन पर अकेले-अकेले लड़ा नहीं जा सकता. उस समय लिबरेशन थियोलॉजी और मार्क्सवादी ट्रेड यूनियन वाले इन मुद्दों पर मिलकर आंदोलन कर रहे थे. स्टेन सभी संगठनों को बुलाते थे. वे सभी संगठनों के संपर्क में थे. उन्होंने मांग की थी कि खदान की रायल्टी में स्थानीय लोगों का हिस्सा होना चाहिए. फादर स्टेन सब तरह के सवालों पर कार्यक्रम आयोजित कराते थे, उन्होंने मॉब लिंचिंग पर भी कार्यक्रम कराया थ.| वे प्रीस्ट थे, धर्म में आस्था थी. वे जीजस को अपना हीरो मानते थे. जीजस ने कहा था कि आज हम माइनॉरिटी हैं, हमें मारा जा सकता है लेकिन हमारे विचारों को नहीं मारा जा सकता. हमारे अधूरे कार्यों को पूरा करोगे, ऐसा उन्होंने अपने मानने वालों से कहा था. मेघनाथ ने कहा कि मैं स्टेन को शहीद मानता हूँ. झारखंड में पहले भी कई प्रीस्ट मारे गए हैं. आंदोलनकारी ननें भी मारी गई हैं. मैं फादर स्टेन पर फिल्म बनाकर अपनी बात पूरी करूंगा.

आलोचक-संपादक आशुतोष कुमार ने कहा कि फादर ने यूएपीए (आतंक विरोधी क़ानून) की वैधता को चुनौती दी| उन्होंने अदालत से दया की अपील नहीं की, कहा कि मुझे मेरे घर जाने का हक है और मुझे अपना हक मिलना चाहिए. फादर स्टेन में संत जैसी आभा थी. यूएपीए लोकतंत्र को, आजादी को छीन लेने वाला क़ानून है. ऐसे क़ानून में अधिकतर दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और गरीबों को फंसाया जाता है और उन्हें जेल में डाला जाता है. फादर स्टेन ऐसे लोगों को छुड़ाने के लिए संघर्ष करते रहे. यूएपीए के होते हुए आप जेल के बाहर रहकर भी जेल में होने जैसा महसूस कर सकते हैं. अभी दिल्ली हाईकोर्ट ने नताशा नरवाल, देवांगना कालिता और आसिफ को जमानत देते हुए इस क़ानून की कठोरता से समीक्षा की. इस समीक्षा के निहितार्थों को समझने के कारण ही सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि उक्त आदेश को उदाहरण नहीं बनाया जा सकता. सुप्रीमकोर्ट की संवेदनशीलता राफेल, राममंदिर तथा अन्य मामलों में देखी जा सकती है. यूएपीए कानून की भाषा देखिए- सब कुछ गोलमोल, अस्पष्ट-सा है. सिर्फ जुमले और शब्दाडंबर. कानून की भाषा का यह स्वरूप एक इरादे से, सोच-समझकर तय किया गया है. दिल्ली दंगे में दंगाई गिरफ्तार नहीं हुए. गिरफ्तारी पीड़ितों की, उनके पक्ष में बोलने वालों की हुई. यह क़ानून ऐसे लोगों को ही जेल में रखने के लिए है. सरकार का यह कहना ही पर्याप्त है कि फलां संगठन या व्यक्ति से देश की यूनिटी, इंटीग्रिटी और सोवेरेंटी को खतरा है. इसके बिना पर आपको जेल में डाला जा सकता है. आप आतंकवादी नहीं हैं, यह आपको साबित करना है, सरकार को कोई सबूत नहीं देना है. न्याय के बुनियादी सिद्धांतों के विरुद्ध यह नृशंसतंत्रीय व्यवस्था है.

श्रद्धांजलि-प्रतिरोध कार्यक्रम की शुरुआत फादर स्टेन स्वामी की कविताओं के वाचन/पाठ से हुई. वरिष्ठ चिंतक सुभाष गाताडे ने ‘जिंदानों में सब बराबर’ और कवि-अनुवादक संजीव कौशल ने उसी कविता को अपने अनुवाद ‘जेल जीवन, सब बराबर’ के शीर्षक से पढ़ी. प्रतिबद्ध पंजाबी लेखक गुरुबख्श मोंगा ने दैनिक ट्रिब्यून के उस संपादकीय को प्रस्तुत किया जो फादर स्टेन को केंद्र में रखकर लिखा गया था. चर्चित कवि कौशल किशोर ने फादर स्टेन को समर्पित अपनी कविता ‘मोर्चे पर…’ पढ़ी| आक्रोशभरी इस कविता का एक अंश है-

यह मेरा मन है
जो गम और गुस्से से भरा है
वह बाहर आना चाहता है
मैं भी बाहर आना चाहता हूँ
कविता भी बाहर आना चाहती है
शहीद स्मारक पर मोर्चा लगा है
वहीं पहुंचना चाहता हूँ

दलित कवि हीरालाल राजस्थानी ने अपनी ‘कैद कर मारा गया’ कविता का पाठ किया. इस कविता का समापन अंश है-

राजतंत्र की रजामंदी पर
उन बूढ़ी हड्डियों को देशद्रोही बता
कैद कर मारा गया
सच के मारे जाने की तारीखों में दर्ज
ये मनुष्यता फिर फूटेगी
किसी जंगल की मिट्टी में
बरगद, पीपल की छाँव तले|

अपनी ‘स्मरण’ कविता का पाठ करते हुए महेंद्र सिंह बेनीवाल ने ऊँच-नीच के पोषकों से कहा-

भेदभाव की किताबों से
परिवार, व्यवस्था के कुसंस्कारों से
खुद को बाहर ले आओ
तब तुम महसूस करोगे
नदी में नहाए हुए सा
जैसे धुल गया हो
तुम्हारा आतंरिक कीचड़

संजीव कौशल ने फादर की स्मृति में लिखी अपनी कविता ‘वह चला गया’ पढ़ी. जीवन की अर्थवत्ता की पहचान कराती इस कविता में कहा गया है-

मनुष्य के पक्ष में बोलना
जोखिम है
वह बोला
मूकदर्शक नहीं रहा
जिंदगी-मौत के खांचे
बहलावे हैं
जो शरीर को निगल ले
वह मौत नहीं
बे-आवाज़ होना
मौत है
आवाज़ पाना ज़िंदगी

इस कार्यक्रम का संचालन बजरंगबिहारी ने किया. कार्यक्रम में चिंतक रवि सिन्हा, आलोचक हेमलता महिश्वर, कवि हरिश्चंद्र पाण्डेय, आदिवासी लेखिका-एक्टिविस्ट जमुना बीनी, वासवी किरो, सुधा वासन, दलित लेखक संघ की अध्यक्ष डॉ. राजकुमारी, प्रलेस के महासचिव अली जावेद, रचनाकार रवि निर्मला सिंह, सरिता संधू, अमित धर्मसिंह, राघवेंद्र रावत आदि लोग मौजूद थे|

रपट: बजरंगबिहारी

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