समकालीन जनमत
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मोहनगंज-गोहरी हत्याकांड व्यवस्था की संवेदनहीनता का नतीजा

( इलाहाबाद के मोहनगंज में एक पूरे दलित परिवार की हत्या का जो मामला चर्चा से लगभग बाहर कर दिया गया है और जिसमें अभी तक की प्रगति ठीक “महाभोज” के घटित जैसी लगती है, उसकी विस्तृत तथ्य-संग्रह लेखक-आलोचक बजरंग बिहारी तिवारी ने तैयार की है जिसे हम समकालीन जनमत के पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। सं.) 

गांव मोहनगंज, पोस्ट गोहरी, थाना सोरांव, फाफामऊ, जिला इलाहाबाद (अब प्रयागराज) मिश्रित आबादी वाला गांव है। संख्या की दृष्टि से पिछड़ी जाति के लोग बहुसंख्यक हैं। दलित जातियों के तीन परिवार हैं। सरोज या पासी जाति के दो परिवार हैं जबकि एक परिवार चमार जाति से संबंधित है। सात-आठ परिवार ठाकुरों के हैं और गांव में ब्राह्मणों का कोई परिवार नहीं है।

 चाट का ठेला लगाने वाले संदीप प्रजापति 25 नवंबर 2021 को फूलचंद सरोज के दरवाजे के सामने से गुज़र रहे थे। पिछले दो दिन से फूलचंद और उनके परिवार के लोग दिखे नहीं थे। संदीप ने आवाज दी। दरवाजा खुला-सा था। कोई जवाब न पाकर उन्होंने फूलचंद के छोटे भाई किशनचंद को सूचना दी। भाई ने आकर देखा। अंदर का दृश्य भयानक था। खून में सनी हुई परिवार के चारों सदस्यों फूलचंद (50), पत्नी मीनूदेवी (48), बेटी सपना (21), बेटा शिव (10) की लाशें पड़ी हुई थीं।

फूलचंद कुल पांच भाई हैं। बारह वर्ष पहले फूलचंद को सड़क किनारे अनुसूचित जाति के कोटे से आवासीय पट्टा मिल गया था। तब से वे यहीं ईंट की चारदीवारी खड़ी कर झोपड़ी डालकर रहने लगे। मूल पैतृक निवास यहां से गांव के अंदर करीब 200 मीटर की दूरी पर है।

सबसे बड़े भाई दीपचंद (55) गांव छोड़कर अपनी ससुराल मलकिया, खर्रापुर में बस गए हैं। लालचंद (45), भारत (40) और किशनचंद (37) का परिवार मोहनगंज में ही रहता है।

थाने में रिपोर्ट लालचंद ने लिखवाई। एफआइआर में उन्होंने गांव के ही 11 लोगों को नामजद किया- आकाश सिंह पुत्र अमित सिंह, बबली सिंह पत्नी आकाश सिंह, रवि सिंह और मनीष सिंह पुत्रगण रामगोपाल सिंह, अमित सिंह पुत्र अरुण सिंह, अभय, राजा रंचू पुत्रगण राजकुमार, कुलदीप ठाकुर, कान्हा ठाकुर और अशोक पुत्रगण मानसिंह। चारों मृतकों की संभवतः कुल्हाड़ी से हत्या की गई थी। मां व बेटी की लाशें इस दशा में थीं कि हत्या के पूर्व उनके साथ दुष्कर्म होने का अनुमान किया जा रहा था। बेटी का शरीर निर्वस्त्र अवस्था में खटिया पर पड़ा था। चारपाई के नीचे छितराया खून सूख चुका था।

पीयूसीएल, इलाहाबाद की टीम द्वारा तैयार तथान्वेषी रपट के अनुसार बेटी के स्तन काटे गए थे और बेटे का लिंग काट दिया गया था। बेटा शिव मूक-वधिर था। पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने बेटी के साथ बलात्कार किए जाने की पुष्टि की। सभी आरोपी गांव की ठाकुर बिरादरी के हैं। अपनी तहरीर में लालचंद ने दो पुलिस वालों को भी आरोपी बनाया। हेडकांस्टेबल सुशील कुमार सिंह और इंस्पेक्टर रामकेवल पटेल पूर्व में आरोपियों पर कार्यवाई करने के बजाए पीड़ित पक्ष को समझौते के लिए दबाव बनाते रहे। आरोपियों की धमकी, मारपीट और घेरेबंदी पर इन पुलिस वालों ने कुछ नहीं किया। पुलिस महकमे ने अपनी प्रारंभिक जांच के बाद इन दोनों पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया। पुलिस ने लालचंद के बयान के आधार पर घटना संख्या 256/21 के तहत हत्या, दुष्कर्म, पाक्सो एक्ट और अजा/अजजा अधिनियम एफआइआर दर्ज की थी। बाद में लड़की की उम्र 18 वर्ष से अधिक पाए जाने पर पाक्सो की धारा हटा ली गई।

मृतक परिवार का दरवाजा जिस पर  पुलिस ने ताला लगा रखा है।

महाराष्ट्र के खैरलांजी में घटी घटना से किंचित साम्य रखने वाली इस हत्याकांड की जानकारी सबसे पहले मुझे सोशल मीडिया से मिली। अंग्रेजी दैनिक ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने इस घटना की खबर देने के बाद उसका फॉलो-अप भी छापा। अखबार ने अपने संवाददाता असद रहमान की रपट 29 और 30 नवंबर को प्रकाशित की। ये रपटें मेरे लिए उपयोगी रहीं। तथ्य-संग्रह हेतु मैं घटना-स्थल मोहनगंज, सोरांव 10 दिसंबर 2021 को जा पाया। इलाहाबाद में रहने वाले मेरे मित्र लल्लनजी गोपाल के जरिए गोहरी निवासी राजेश जी से मेरा संपर्क हो पाया। उन्होंने मुझे मृतक के छोटे भाई किशनचंद से मिलवाया। वे मुझे घटनास्थल तक ले गए और मैं अन्य परिवारजनों से मिल सका। किशनचंद जी से मैंने पूरा घटनाक्रम समझने की कोशिश की। मेरे साथ इंकलाबी नौजवान सभा के साथी सुनील मौर्य रहे। सुनील जी अपनी टीम के साथ पहले यहाँ आकर फैक्ट-फाइंडिंग कर चुके थे तो उनकी जानकारी और अनुभव का लाभ मुझे भी मिला।

उक्त हत्याकांड का कोई प्रत्यक्षदर्शी अब तक सामने नहीं आया है। हत्या 23 को या 24-25 की दरमियानी रात में हुई होगी। ताज्जुब है कि किसी ने क़त्ल के समय चारों परिवारजनों की चीख-पुकार भी नहीं सुनी। इसके बावजूद लालचंद सरोज ने नामजद रिपोर्ट दर्ज कराई। इसके लिए मामले की पृष्ठभूमि पर ध्यान जाना चाहिए। पहली उल्लेखनीय घटना 2 सितंबर 2019 की है। कान्हा ठाकुर के मवेशी पीड़ित परिवार के खेत में घुस आए थे। उड़द की फसल लगी हुई थी। मृतक की मां श्रीमती रामपती (पत्नी स्व. मिठाईलाल) ने ठाकुर के घर जाकर शिकायत की। पहले भी उनके जानवर खेत चर लिया करते थे।

उलाहना देने की बजाए चुपचाप नुकसान सह लेना दलितों की नियति थी। इस बार शिकायत की गई तो ठाकुर भड़क उठे। दो दिन बाद 5 सितंबर की रात लगभग साढ़े आठ बजे कान्हा ठाकुर व उनके परिवार के लड़कों ने सबक सिखाने के उद्देश्य से पासी परिवार पर धावा बोल दिया। मारपीट की और धमकियां दीं। लालचंद का सिर फोड़ दिया। उसी रात लालचंद व अन्य भाइयों ने थाने जाकर रिपोर्ट लिखवानी चाही। पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज करने से मना कर दिया। कोई कार्यवाई भी नहीं की। ठाकुर परिवार को इसकी खबर लगनी ही थी। थाने जाना उन्हें नागवार गुज़रा। कान्हा ठाकुर ने अगले दिन अपने साथियों को लेकर पुनः हमला कर दिया। थाने की निष्क्रियता से उन्हें शह मिल चुकी थी। इस बार वे तैयारी के साथ आए थे। शायद जान से मारना चाहते थे। पीड़ित परिवार को समय रहते इस हमले की भनक लग गई। उन्होंने गुपचुप भागकर अपनी जान बचाई। संत्रस्त और घबराया परिवार दुबारा पुलिस थाने पहुंचा। तब कहीं जाकर 7 सितंबर 2019 को पुलिस ने एफआइआर दर्ज की। यह रिपोर्ट श्रीमती रामपती ने दर्ज कराई। अब वे इस दुनियां में नहीं हैं। एफआइआर में एससी/एसटी एक्ट लगाने के बावजूद किसी की गिरफ्तारी नहीं की गई।

इस निष्फल प्रयास का परिणाम यह निकला कि दबंग पहले से ज्यादा मनबढ़ हो गए और दलित परिवार पर प्रत्यक्ष व परोक्ष दबाव या उत्पीड़न बढ़ गए। पुलिस ने कोई कार्यवाई करने के स्थान पर पीड़ित परिवार को समझाना जारी रखा कि वे केस वापस ले लें तथा उत्पीड़क पार्टी से समझौता कर लें। किशनचंद की पत्नी पूजा ने बताया कि गाँव में पुलिस आती है तो उन्हीं के दरवाजे पर जाती है। वहां उनकी आवभगत की जाती है। खाने-पीने की व्यवस्था होती है। वे इसीलिए उनकी तरफदारी करते हैं। वैसे, हेडकांस्टेबल सुशीलकुमार सिंह बबली सिंह के रिश्तेदार हैं, समधी। बबली सिंह ने धमकी दी कि भले ही हमारी जमीन बिक जाए मगर तुम लोगों को तबाह करके छोड़ेंगे। सुशील कुमार सिंह के अलावा दलित परिवार पर समझौते के लिए दबाव बनाने वाले दूसरे पुलिसकर्मी थे सुरेन्द्र सिंह और एसओ रामकेवल पटेल। तमाम दबाव झेलते हुए दलित परिवार ने समझौता नहीं किया।

अगले साल अर्थात 2020 में होली के करीब विवेचना करने के नाम पर कुछ पुलिसकर्मी फूलचंद-लालचंद के घर आए और औरतों का नाम लिखकर ले गए। थोड़े ही दिनों बाद उनकी पुनः वापसी हुई। इस बार उन्होंने परिवार की सभी औरतों को थाने ले जाकर बंद कर दिया। बकौल पूजा (पत्नी किशनचंद) पूछने पर पुलिस अधिकारी ने बताया कि तुम सब पर शांति भंग करने का आरोप है। सभी महिलाओं की जमानत करानी पड़ी| उन पर धारा 107, 16 लगाई गई थी। तब से धमकियों का सिलसिला और तेज हो गया। थाने पर बराबर सूचना दी जाती रही लेकिन न एफआइआर लिखी गई और न कोई एक्शन नहीं लिया गया।

2021 के सितंबर महीने की 21 तारीख को एक बार फिर उन्हीं ठाकुरों ने हमला बोला। दरवाजे पर बैठी हुई फूलचंद की बेटी और उसकी चाची के साथ छेड़खानी की। उसके बाद वे घर में घुसे और परिवार के दूसरे सदस्यों को मारा-पीटा। फूलचंद का सिर फोड़ दिया। दहशतज़दा परिवार ने रिपोर्ट लिखवानी चाही। पुलिस टालती रही। लगातार कहने पर सातवें दिन एफआइआर दर्ज की। इंस्पेक्टर पटेल ने खूब दबाव बनाया कि पीड़ित समझौता कर लें लेकिन वे सफल न हुए। नतीजतन, मामले को भोथरा या निष्प्रभावी करने के लिए क्रॉस एफआइआर भी लिखी। यानी, इस रिपोर्ट में दलित आरोपी बनाए गए। एफआइआर में लिखा गया कि उन्होंने बबली सिंह के साथ छेड़खानी की है, ठाकुर परिवार के सदस्यों से मारपीट की है। क्रॉस एफआइआर का परिणाम यह निकला कि दोनों में से किसी एफआइआर पर एक्शन नहीं लिया गया। यथास्थिति बनाए रखी गई। प्रशासन के ‘घोषित’ और प्रत्यक्ष पक्षपात से दलित परिवार डर के साये में जीने को मजबूर था।  नवंबर हत्याकांड की जमीन तैयार थी।

25 नवंबर गुरुवार सुबह चार हत्याएं उजागर होने के बाद जब लालचंद सरोज ने 11 लोगों पर नामजद रिपोर्ट लिखवाई तो अगले ही दिन 8 आरोपितों की गिरफ्तारी कर ली गई। शेष तीन के बारे में पुलिस अधिकारी ने कहा कि दो आरोपी मुंबई में हैं। उन्हें लाने के लिए टीम भेजी जाएगी। और, एक आरोपी अस्पताल में है। चल-फिर नहीं सकता। हालत ठीक होते ही उसका बयान लिया जाएगा। इस बीच पुलिस गिरफ्तारी की काट ढूंढने में दिमाग खपाए हुए थी। एक ही दिन बाद उसे सफलता मिली। 27 नवंबर की शाम पुलिस ने उसी जाति के एक दलित युवक पवन कुमार सरोज को गिरफ्तार किया।

रविवार, 28 नवंबर की शाम एडीजी प्रयागराज जोन प्रेम प्रकाश ने बयान जारी किया कि गिरफ्तार युवक कुछ समय से लड़की का पीछा कर रहा था। वह फोन करता था तथा मैसेज भेजता था। लड़की उसके प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर रही थी। इसी से नाराज़ होकर बदला लेने के मकसद से उसने पूरे परिवार की हत्या कर दी। पुलिस अधिकारी ने कहा कि लड़के के मोबाइल में मिले आख़िरी मैसेज तथा परिस्थितिजन्य साक्ष्यों से साबित हो गया है कि असली अपराधी यह युवक ही है। उसे गिरफ्तार करके न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया और आनन-फानन में आठों आरोपियों को मुक्त कर दिया गया। बाद में इनमें से चार लोगों को सितंबर में दर्ज एफआइआर के सिलसिले में इतने समय बाद कार्यवाई करते हुए पुनः गिरफ्तार कर लिया गया।

गौशाला के बाउंड्री वाल से दिखती पीड़ित परिवार की झोपड़ी।

पुलिस की इस ‘कहानी’ को न पीड़ित परिवार ने स्वीकार किया है और न आरोपी लड़के के परिवार ने। अब तक पुलिस यह पता नहीं लगा सकी है कि लड़की के साथ गैंग-रेप हुआ था या नहीं। बलात्कार करने वाले कितने लोग थे और वे कौन थे ? पुलिस यह भी नहीं निश्चित कर सकी है कि गिरफ्तार दलित युवक ने अकेले वारदात की है या उसके साथ कुछ और लोग थे ? इस युवक की उम्र अभी 19 साल है। इसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है। उसका घर थरवई के कोरसंड गांव में है जो मोहनगंज से 5 किलोमीटर की दूरी पर है। वह साबिर के ईंट भट्ठे पर मजदूरी करता है। यह भट्ठा पीड़ित परिवार के घर के ठीक पीछे है। परिजनों ने साफ़ कहा कि उस लड़के पवन का घर में आना-जाना नहीं था।

पुलिस ने अपने खुलासे में कहा कि पवन ने कभी लड़की को दोस्ती करने का संदेश भेजा था। लड़की ने इसे ठुकरा दिया था। इतना प्रसंग प्रतिशोध के इस स्तर तक पहुंचेगा, यह आसानी से स्वीकार नहीं हो सकता। चार लोगों की हत्या क्या एक 19 वर्षीय लड़के ने अकेले की होगी ? पुलिस का कहना है कि उसके साथ कुछ सहयोगी भी थे। सहयोगियों की संख्या पर पुलिस अभी निश्चय नहीं कर सकी है।

फॉरवर्ड प्रेस में 1.12.2021 को प्रकाशित सुशील मानव की रिपोर्ट के अनुसार पुलिस ने पवन के 4 दोस्तों के शामिल होने की बात स्वीकारी है। 29 नवंबर को इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के अनुसार प्राप्त सबूतों के आधार पर पुलिस तय कर चुकी है कि हत्या इसी स्वजातीय युवक ने की। पुलिस का कहना है कि युवक अपना बयान बदलता रहता है इससे हत्या में शामिल अन्य लोगों की पहचान निश्चित नहीं हो पाई है। पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों के हवाले से पुलिस यह भी कह रही है कि लड़की के शरीर पर चोट के निशान संकेत दे रहे हैं कि हत्या एक ही व्यक्ति ने की है। आरोपी युवक के शरीर पर चोट के निशान तथा कपड़ों पर दाग मिले हैं। युवक उसे पान के दाग बता रहा है।

एडीजी प्रेम प्रकाश कहते हैं कि पुलिस उसके वस्त्र और अन्य साक्ष्यों को डीएनए प्रोफाइलिंग के लिए भेज रही है। एडीजी ने स्पष्ट किया कि एफआइआर में उल्लिखित 11 लोगों का मृतक (फूलचंद) के छोटे भाई (लालचंद) से छोटा-मोटा झगड़ा था लेकिन पुलिस को अब तक कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं कि कहा जा सके कि उन लोगों ने हत्या की है। इसी अखबार (इंडियन एक्सप्रेस) की 30 नवंबर की रपट के अनुसार स्वजातीय आरोपी युवक की मदद के शक में 17 और बीस साल के दो अन्य दलित युवक भी पकड़े गए हैं। पुलिस कह रही है कि उन्हें छोड़ दिया जाएगा क्योंकि उनके विरुद्ध कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं।

पुलिस ने यह स्पष्ट नहीं किया कि ईंट भट्ठा मालिक और उसके बेटे को हिरासत में क्यों लिया गया है। मृतकों के परिजनों का कहना है कि पुलिस और प्रशासन द्वारा असल अपराधियों को बचाने का प्रयास किया जा रहा है। गिरफ्तार युवक के पिता रामकुमार सरोज मजदूर है। उन्होंने मांग की कि इस घटना की सीबीआइ जांच हो। उन्हें राज्य पुलिस पर भरोसा नहीं है। लड़के की बहन का आरोप है कि पुलिस उसके भाई को बलि का बकरा बना रही है। पुलिस ऐसा इसलिए कर पा रही है, कर रही है क्योंकि वे गरीब हैं, दलित हैं। घटना के दिन उसका भाई घर पर था। उसके पिता भी इसी बात की ताईद करते हैं। उधर मृतक के परिजन डरे-सहमे हुए हैं कि पुलिस द्वारा मुक्त कर दिए गए दबंग आएंगे और बदला लेंगे। मुख्य आरोपी कान्हा ठाकुर एक बार ग्राम प्रधानी का चुनाव लड़ चुका है। वह जीतने में विफल रहा था। मोबाइल चोरी के आरोप में वह एक बार जेल भी भेजा जा चुका है।

आम तौर पर हत्या के मामलों में राज्य सरकार तुरंत सक्रिय होती है। पीड़ित परिवार को तात्कालिक, अंतरिम सहायता देती है। यह घटना तो मामूली नहीं है। नरसंहार है। एक परिवार को ही नष्ट कर दिया गया है। मृतक के चार अन्य भाई भी हैं। उनके परिवार हैं। वे खौफ़ के साये में जा रहे हैं। पुलिस का रवैया जगजाहिर है। क्या ऐसे में गांव का कोई व्यक्ति गवाही देने का साहस करेगा, सामने आएगा ? अभी तक तो कोई नहीं आया है। आगे भी उम्मीद कम ही है। मृतक के भाइयों ने बताया कि उन्हें मुख्यमंत्री की तरफ से सांत्वना के दो शब्द पाने की उम्मीद थी। अब तक न कोई फोन आया है और न कोई लिखित-मौखिक संदेश।

यह भी इत्तेफाक कहा जाए कि मृतक के घर से सटे मकानों में कोई नहीं रहता। घर के बाईं तरफ राजकीय पशु औषधालय और कृत्रिम गर्भाधान केंद्र है। इसमें दो कमरे हैं। बाहर छोटा-सा सूचनापट्ट लगा है। इस पर चाक से भ्रमण की तारीख लिखी हुई है- 9.12.2021 यानी ठीक एक दिन पहले। दोनों दरवाजों पर ताले लटके हुए हैं और मकड़ी के जाले लगे हुए हैं। देखकर लगता नहीं कि इन दरवाजों को हाल-फिलहाल खोला गया होगा। औषधालय (जिसे गौशाला भी लिखा गया है) की दाहिनी बाउंड्री वाल मृतक परिवार के घर से साझा होती है तो बाईं दीवार के बगल में पतली-सी गली निकली हुई है। गली के बाईं तरफ हरीराम की बंद पड़ी सिलाई की दुकान है। बेटे की अकाल-मृत्यु के बाद उन्होंने दुकान बंद कर दी है और मकान पर ताला लगा दिया है। अब वे अपने गोहरी गांव वाले घर में रहते हैं। गली से अंदर जाने पर बाईं ओर ईंट भट्ठा है और दाहिनी तरफ राजा का पोखर। पोखर गहरा है लेकिन उसमें एक बूँद पानी नहीं। उसकी तलहटी में बकरियां चरती दिखीं।

गली से 100 मीटर आगे बेलपत्थर पेड़ के नीचे टीन-शेड में जीतलाल धूरिया का परिवार रहता है। जीतलाल कंहार जाति के हैं लेकिन मदारी का काम करते हैं। मुझे उनके दरवाजे पर बंदर, बकरियां और कुत्ते टहलते दिखे। मृतक फूलचंद के घर की पिछली दीवार के बाद भट्ठा क्षेत्र है। भट्ठे पर काम करने वाले मजदूरों के लिए एक लंबी लाइन में बने हुए दड़बे जैसे कमरे दिखे। अब ये उजड़ गए हैं। उखड़ी हुई ईंट की दीवारें, एस्बेस्टस और पॉलिथीन की ध्वस्त-प्राय छतें अपनी स्थिति का बयान कर रही हैं। लोगों का अनुमान है कि हत्या के बाद अपराधी पीछे की इसी दीवार को फांद कर भागे होंगे। पुलिस को कूदने के चिह्न भी मिले हैं, ऐसा कुछ रपटों में लिखा गया है। मकान के बाईं तरफ गुड्डू मौर्या का खंडहर है। सड़क पार मृतक के घर के ठीक सामने जवाहर जायसवाल का मकान है।

जवाहर जायसवाल अब इस दुनियां में नहीं हैं। मकान के मालिक अब उनके तीनों बेटे- पुरुषोत्तम, देवेंद्र और कृष्णकुमार हैं। पाहीघर जैसा दिखता यह मकान आधा खपरैल से और आधा एस्बेस्टस से छाया हुआ है| मकान लंबे समय से बंद पड़ा है। कोई रहता नहीं। कुछ हिस्सा भूसा-घास रखने के उपयोग में लाया जाता होगा। एक कमरे की खिड़की से मैंने ट्यूबवेल की पाइप निकली देखी। मकान मालिक को बाहर बुलाने के लिए मैंने कई बार आवाज दी। कोई प्रत्युत्तर न मिला तो एक गांव वाले ने उक्त बात बताई। कुल मिलाकर स्थिति यह कि मृत परिवार के आसपास के सभी मकान खाली हैं। शायद तभी परिवार की चीख-पुकार सुनने वाला कोई नहीं रहा होगा। हत्याकांड की विलंब से जानकारी होने, देर से लाश मिलने की यह प्रमुख वजह थी। फूलचंद का कोई पड़ोसी नहीं है; हत्यारों को इससे योजना बनाने और कार्यान्वित करने में बड़ी सहूलियत मिली होगी।

जैसे चिड़ियों के खेत चुग जाने के बाद पहरा बैठाया जाता है वैसे हत्याकांड के बाद मोहनगंज में मृतक के घर के आसपास पुलिस लगाई गई है। आधी पीएसी पुलिस है, आधी यूपी पुलिस। इस पुलिस फ़ोर्स के होते हुए भी गांव के दलित परिवार दहशतज़दा हैं तो यह समझ में आने लायक उलटबांसी है। मुझे जानकारी जुटाते देख ड्यूटी पर तैनात कुछ पुलिसकर्मियों ने गौर से, निगरानी के अंदाज़ में देखा। मुझे उम्मीद थी कि वे बुलाकर पूछताछ करेंगे लेकिन जाने क्यों बख्श दिया! सूचना पाकर फूलचंद के बड़े भाई दीपचंद आ गए थे। मैंने उनसे उनकी पारिवारिक स्थिति और गांव में सवर्ण-दलित समीकरण के बारे में कुछ मालूमात हासिल की। उनकी तीन बेटियां हैं। खर्च संभालना मुश्किल होता है। वे देवप्रयाग में प्लम्बर का काम करते हैं। उन्हें इस दुर्घटना की खबर छोटे भाई ने फोन पर दी और वे भागे-भागे आए।

मैंने उनसे ग्राम प्रधान के रवैये के बारे में जानना चाहा। वे खुलकर नहीं बोले। “ प्रधान चमेलादेवी से जैसा सहयोग मिलना चाहिए था, नहीं मिल रहा है ”, उन्होंने इतना कहा। वहीं बगल में पूर्व प्रधान अमरबहादुर विश्वकर्मा खड़े थे। उनसे बात करते हुए ग्रामसभा की कई अंदरूनी सूचनाएं मिलीं। मोहनगंज 18-19 पुरवों का बड़ा गांव है। दस हज़ार से अधिक वोटर हैं। करीब आधे वोट पटेलों के हैं। ग्रामप्रधान इसी जाति-समुदाय की हैं। उनका बेटा ही प्रधानी करता है। प्रश्नवाचक मुद्रा में अमरबहादुर जी बोले, जमीन का पट्टा किसे मिलना चाहिए ? भूमिहीन अनुसूचित जाति के लोगों को न ? ऐसे परिवारों से पट्टे के लिए पैसे लिए गए लेकिन पट्टा मिला प्रधान के स्वजातीय पटेल परिवारों को। इसी तरह कॉलोनी का, आवास-निर्माण का मामला है| एससी की कॉलोनी बीसी को दे दी गई! ये भाई ( फूलचंद, लालचंद, भारत) कितने गरीब हैं। इन्हें कॉलोनी मिलनी चाहिए थी कि नहीं ? पट्टा मिलना चाहिए था कि नहीं ? पट्टा मिला गांव से बाहर वालों को। स्वयं ग्रामप्रधान के बेटे की बेटी की शादी गांव के बाहर हो चुकी है, उसे पट्टा दिया गया है। जिसके पास पहले से भूमि है उसी को पट्टा मिला है। इलाके को नगर निगम घोषित किया जा चुका है। खंभे गड़े हुए हैं। बिजली नहीं है। गांव ओडीएफ (ओपन डेफिकेशन फ्री) घोषित हो गया है जबकि कोई नए शौचालय नहीं बने हैं। पहले से बने बड़े लोगों के शौचालयों के फोटो लगाकर ओडीएफ का सर्टिफिकेट ले लिया गया है।

“आपने इन धांधलियों की शिकायत नहीं की?” मेरे इस प्रश्न पर पूर्व प्रधान ने कहा कि कई बार डीएम इलाहाबाद को सूचना दी जा चुकी है। मौका मिला तो फिर से कहूंगा। “सुनवाई तो होती नहीं।” बातचीत समेटते हुए वहां उपस्थित परिजनों व अन्य लोगों से मैंने इस हत्याकांड के कारणों पर एक बार फिर उनकी राय जाननी चाही। जो कारण सामने आए उन्हें रख दे रहा हूँ। ‘ठाकुर साहब’ के कार्य-प्रयोजन में बेगारी करना गांव की रीत रही है। बिना मजूरी के और कई बार बिना पानी-पत्ता के दिन भर खटना परजा-पौनी का अभ्यास रहा है। जिस परिवार ने ऐसा करने से मना किया उस पर आफत आती रही है। मोहनगंज में सरोज परिवार ने बेगारी से मुकरकर खतरा मोल लिया था। फूलचंद का घर मुख्य सड़क के किनारे है। सड़क बन जाने की वजह से उसकी कीमत बढ़ गई है। इस ज़मीन को हड़पने की मंशा परिवार को नेस्तनाबूद करने का एक कारण हो सकता है। दलितों को उजाड़कर, उनकी हत्या करके बचा जा सकता है; इसके अनेक उदाहरण आसपास मिल जाते हैं। ये उदाहरण हत्याओं के सिलसिले को आगे बढ़ाते जाते हैं। मोहनगंज हत्याकांड इसकी अगली कड़ी है। क्या इस सिलसिले पर विराम लगने की कोई संभावना नज़र आती है ?

इस संवेदनहीन व्यवस्था में सचमुच सुनवाई नहीं होती। सुनवाई होती तो यह हत्याकांड टाला जा सकता था। संकेत तो तभी मिल गया था जब 21.09.2021 को कई हमलावरों ने दलित परिवार पर धावा बोला था। घर का दरवाज़ा तोड़कर परिवारजनों को पीटा था। लाठी, डंडा, सरिया से लैस इन गुंडों ने लालचंद का सिर फोड़ दिया था और घर की औरतों से बदसलूकी की थी। परिवार ने पहले आपदा लाइन पर पुलिस को फोन से सूचना दी फिर फाफामऊ थाने जाकर लिखित शिकायत पत्र सौंपा। आखिरकार पुलिस ने 29 सितंबर को एफआइआर दर्ज किया। श्रीमती रीना पत्नी लालचंद द्वारा लिखवाई गई इस रपट में साफ़ अंकित है कि “थाना फाफामऊ द्वारा विपक्षी गणों पर अभी तक कोई कानूनी कार्यवाही नहीं की गई जिससे उनका मनोबल बढ़ता जा रहा है और प्रार्थिनी को डर है कि प्रार्थिनी व प्रार्थिनी के पूरे (परिवार) के साथ कुछ अप्रिय घटना घट सकती है।” दो महीने के भीतर यह अप्रिय घटना घटी।

मीडिया में यह मामला प्रमुखता से न आता अगर अगले ही दिन अर्थात् 26 नवंबर को अपनी टीम के साथ प्रियंका गांधी ने इस गांव का दौरा करके पीड़ित परिवार से मुलाक़ात न की होती। कांग्रेस के बाद समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने भी अपनी टीमें भेजीं तथा हत्याकांड पर सरकार की आलोचना की, सत्ताधारी पार्टी को घेरा। 29 नवंबर को भाकपा (माले) की छह सदस्यीय टीम ने घटनास्थल का दौरा किया। अपने बयान में माले टीम ने आशिकी वाले नैरेटिव को ख़ारिज करते हुए इसे पुलिस द्वारा असल हत्यारों को बचाने की कवायद बताया। भाकपा (माले) ने इस हत्याकांड को लेकर 2 दिसंबर को राज्यव्यापी विरोध दिवस मनाया। पार्टी ने घटना की पुलिस जांच को अस्वीकार्य और सामूहिक हत्याकांड को सत्ता संरक्षित बताते हुए उच्च स्तरीय न्यायिक जांच की मांग की। जिला व तहसील मुख्यालयों पर प्रदर्शन कर पार्टी कार्यकर्ताओं, समर्थकों ने राज्यपाल को संबोधित पांच सूत्री मांगों के साथ ज्ञापन भेजा।

हाथरस, उन्नाव, लखीमपुर खीरी व अन्य हत्याकांडों बलात्कार-कांडों में इस सरकार की जैसी भूमिका रही है, अपराधियों को बचाने का जैसा जतन किया जाता रहा है उसे देखते हुए यह आशंका बलवती होती है कि इस मामले में भी वही दुहराया जाएगा। ऐसे में यह जरूरी लगता है कि न्याय चाहने वाले सभी दल, संगठन और व्यक्ति एकजुट हों तथा उच्चतम न्यायालय की निगरानी में जांच किए जाने, मुकदमा चलाने की मांग करें।

( संपर्क-bajrangbihari@gmail.com)

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