समकालीन जनमत
भाषा

उर्दू की क्लास : ज़ंग और जंग का फ़र्क़ ?

( युवा पत्रकार और साहित्यप्रेमी महताब आलम की शृंखला ‘उर्दू की क्लास’ की दसवीं    क़िस्त में ज़ंग और जंग का फ़र्क़ के बहाने उर्दू भाषा के पेच-ओ-ख़म को जानने की कोशिश. यह शृंखला हर रविवार प्रकाशित हो रही है. सं.) 

________________________________________________________________________________________________

ऐसे तो सिर्फ़ नुक़्ते भर का ही फ़र्क़ लगता है लेकिन उर्दू में “ज़ंग” और “जंग” दो अलग-अलग शब्द हैं और दोनों के अर्थ भी बहुत मुख़्तलिफ़ हैं। ज़ंग का मतलब होता है rust.

जैसे लोहे में ज़ंग लग जाये तो हम कहते हैं कि लोहा “ज़ंग-आलूदा” हो गया है या “लोहे में ज़ंग लग गया है”। लेकिन अगर ज़ंग की जगह “जंग” या “जंग-आलूदा” लिखें/बोलें तो उसका वाक्य के हिसाब से कोई ख़ास अर्थ नहीं बनता।बल्कि सुनने/पढ़ने वाले को confusion हो सकता है। क्यूंकि “जंग” का मतलब होता है “युद्ध”/war  और “जंग-आलूदा” कोई शब्द नहीं होता।

इस फ़र्क़ को हम नीचे दिए जा रहे दो अशार (शेर का बहुवचन) के ज़रिये भी समझ सकते हैं। “सुल्तान अख़्तर” का शेर है :

“ज़ंग-आलूद ज़बाँ तक पहूँची होंटों की मिक़राज़

ख़ामोशी की झील में डूबी पसमाँदा आवाज़”

यहाँ ज़ंग मतलब rust और “ज़ंग-आलूद” मतलब rusted है। अब “ज़किया शैख़ मीना” ये शेर देखिये :

“हो तिरा अख़्लाक़ बर बुनियाद-ए-इज्ज़-ओ-इनकसार

आदमियत रख बचा कर नफ़रतों के जंग से”

यहाँ “जंग” का मतलब है युद्ध या टक्कर लेना।

 

“फ़ुर्सत” और “फ़ुर्क़त” का फ़र्क़  

पहले “जौन एलिया” का ये शेर :

“शाम फ़ुर्क़त की लहलहा उठी

वो हवा है कि ज़ख़्म भरते हैं”

और फिर “गोर बचन सिंह दयाल मग़मूम” का ये शेर :

“मर ही जाना था हम को तो इक रोज़

उन की फ़ुर्क़त मगर बहाना हुआ”

वैसे तो “फ़ुर्सत” और “फ़ुर्क़त” में confusion शाज़ो नादिर (rare/बहुत कम) ही होता है लेकिन अगर बोलने/पढ़ने में एहतेयात न बरती जाये तो ऐसा लग सकता है दोनों शोअरा (शायर का बहुवचन) फ़ुर्सत की बात कर रहे हैं।

जबकि ऐसा नहीं है क्योंकि “फ़ुर्सत” और “फ़ुर्क़त” में बहुत फ़र्क़ है। “फ़ुर्सत” का मतलब होता है “ख़ाली वक़्त”,”मौक़ा” या “अवसर”

जैसे आपने सुना होगा : कभी फ़ुर्सत हो तो हमारी तरफ़ भी तशरीफ़ लाएं। आजकल फ़ुर्सत ही नहीं है।

या फिर अहमद महफ़ूज़ का ये शेर देखें :

“कहाँ किसी को थी फ़ुर्सत फ़ुज़ूल बातों की

तमाम रात वहाँ ज़िक्र बस तुम्हारा था”

वहीं “फ़ुर्क़त” का मतलब होता है : अलग होना, बिछड़ना, वियोग या separation. इसी सेंस में पहले दो अशआर में भी इस्तेमाल हुआ है। जैसे अल्ताफ़ हुसैन हाली ने कहा था :

“ग़म-ए-फ़ुर्क़त ही में मरना हो तो दुश्वार नहीं

शादी-ए-वस्ल भी आशिक़ को सज़ा-वार नहीं “

यहाँ “ग़म-ए-फ़ुर्क़त” का मतलब है “वियोग का शोक” या “बिछड़ने का ग़म” और “शादी-ए-वस्ल” का मतलब “मिलने/मिलन की ख़ुशी”

 

(महताब आलम एक बहुभाषी पत्रकार और लेखक हैं। हाल तक वो ‘द वायर’ (उर्दू) के संपादक थे और इन दिनों ‘द वायर’ (अंग्रेज़ी, उर्दू और हिंदी) के अलावा ‘बीबीसी उर्दू’, ‘डाउन टू अर्थ’, ‘इंकलाब उर्दू’ दैनिक के लिए राजनीति, साहित्य, मानवाधिकार, पर्यावरण, मीडिया और क़ानून से जुड़े मुद्दों पर स्वतंत्र लेखन करते हैं। ट्विटर पर इनसे @MahtabNama पर जुड़ा जा सकता है ।)

( फ़ीचर्ड इमेज  क्रेडिट : यू ट्यूब   )

इस शृंखला की पिछली कड़ियों के लिंक यहाँ देखे जा सकते हैं :

उर्दू की क्लास : नुक़्ते के हेर फेर से ख़ुदा जुदा हो जाता है

उर्दू की क्लास : क़मर और कमर में फ़र्क़

उर्दू की क्लास : जामिया यूनिवर्सिटी कहना कितना मुनासिब ?

उर्दू की क्लास : आज होगा बड़ा ख़ुलासा!

उर्दू की क्लास : मौज़ूं और मौज़ू का फ़र्क़

उर्दू की क्लास : क़वायद तेज़ का मतलब

उर्दू की क्लास : ख़िलाफ़त और मुख़ालिफ़त का फ़र्क़

उर्दू की क्लास : नाज़नीन, नाज़मीन और नाज़रीन

उर्दू की क्लास : शब्बा ख़ैर या शब बख़ैर ?

 

Related posts

Fearlessly expressing peoples opinion