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उर्दू की क्लास : नुक़्ते के हेर फेर से “ख़ुदा” “जुदा” हो जाता है

( छापाखाने के आविष्कार के बाद तमाम चीज़ें  काग़ज़ के पन्नों में छपकर किताब की शक्ल में आने से भाषा एक नयी चाल में ढलने लगी.  कुछ दशक पहले तक छपने वाले पन्ने को ठीक से बरतने के लिए टाइपसेटर, प्रूफ़ रीडर, सब एडिटर जैसे कई महत्वपूर्ण लोगों से गुज़रना पड़ता था. इतना सब होने के बाद ही  कोई पन्ना प्रिंटिंग मशीन में छपने के लिए जाता. पिछले कुछ वर्षों से जब टेक्नोलॉजी ने बहुत ज़ोर पकड़ा और सारा काम  कंप्यूटर से गुज़रकर होने लगा तो भाषा के बहुत से पेच-ओ-ख़म भी छूटने लगे. युवा पत्रकार और साहित्यप्रेमी महताब आलम  की यह शृंखला ‘उर्दू की क्लास’ उर्दू के बहाने इन्ही सब बातों की पड़ताल करने की कोशिश करेगी. यह हर रविवार प्रकाशित होगी. सं.)

नुक़्ते के हेर फेर से “ख़ुदा” “जुदा” हो जाता है

ये तो आपने सुना ही होगा कि नुक़्ते के हेर फेर से “ख़ुदा” “जुदा” हो जाता है। अगर नहीं सुना है तो क़िस्सा मुख़्तसर ये है कि उर्दू में ख़ुदा “ख़े” (خ) से होता/लिखा जाता है, जिसमे नुक़्ता ऊपर होता है। लेकिन अगर यही नुक़्ता ख़ुदा लिखते वक़्त नीचे लग जाये तो ये “ख़े” की जगह जीम (ج) हो जाता है और इस तरह “ख़ुदा” (خدا) “जुदा” (جدا) हो जाता है। “जुदा” का मतलब है “अलग”।  ठीक इसी तरह अगर हिंदीं में लिखते वक़्त नुक़्ता मिस हो जाए या हम न लगाएं तो भी अर्थ का अनर्थ हो सकता है।

जैसे ये वाक्य देखें : “ए खुदा ये तेरी कैसी खुदाई है, तूने कैसी ये दुनिया बनाई है”।

ज़ाहिर है, यहाँ पर “ख़ुदा” का मतलब “God”, “ईश्वर”, “अल्लाह” है और “ख़ुदाई” का मतलब creation/सृष्टि के सेंस में इस्तेमाल किया गया है लेकिन नुक़्ता न लगे होने की वजह से इसे “खुदाई” (Digging) भी समझा जा सकता है ! जो कि यक़ीनन अर्थ का अनर्थ है।

एक दूसरा उदहारण देखें :  इस शेर (“न ख़ुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम न इधर के हुए न उधर के हुए”) में से अगर नुक़्ता हटा दिया जाये तो क्या होगा !

एक मित्र ने “ख़ुदा” और “खुदा” के फ़र्क़ के बारे में ये लतीफ़ा (चुटकुला) शेयर किया है, मुलाहिज़ा फ़रमाये : “यहाँ भी खुदा है, वहाँ भी खुदा है और जहाँ नहीं खुदा है वहाँ कल खुद जाएगा—आपकी सेवा में एम सी डी”

“खाना” और “ख़ाना” का फ़र्क़  

चचा “ग़ालिब” का ये शेर तो आपने सुना ही होगा :

“कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा ‘ग़ालिब’ और कहाँ वाइज़

पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले”

इस शेर में इस्तेमाल शब्द “मयख़ाने” का मतलब भी आप जानते होंगे : मधुशाला या Bar.

मयख़ाना फ़ारसी का लफ़्ज़ है जो कि “मय” यानी शराब और “ख़ाना” मतलब “घर”,”जगह” या place से मिलकर बना है।

“मय-ख़ाना” के अलावा इसी तरह के कुछ और अल्फ़ाज़ अक्सर सुनने/पढ़ने में आते हैं, वो हैं : ग़ुस्ल-ख़ाना (Bathroom), बावर्ची-ख़ाना (Kitchen), पाख़ाना (Toilet), आदि।

एक दूसरा शब्द है “खाना” जिसके मतलब से भी हम सब वाक़िफ़ हैं। खाना मतलब “Food” या भोजन। “ख़ाना” और “खाना” में नुक़्ते भर का फ़र्क़ है।

ऐसे तो लगता है कि “ख़ाना” को “खाना” लिखने में कोई ख़ास मसला (समस्या) नहीं है क्योंकि हम ऐसा मानकर चलते हैं कि अक्सर वाक्य के structure से पता लग जाता है कि बात “ख़ाना” की हो रही है या “खाना” की।

ऐसा अक्सर तो हो सकता है लेकिन कोई ज़रूरी नहीं हमेशा हो। इसीलिए नुक़्ते का ख़्याल रखना ज़रूरी मालूम होता है अन्यथा अर्थ का अनर्थ हो सकता है। ठीक वैसे ही जैसे “शाला” को “साला” बोलने/लिखने से होता है।

इस से मुझे एक वाक़या (घटना) याद आ गया। बचपन में हम एक क़व्वाली सुनते थे, जिसके बोल कुछ इस तरह थे :

“बेवफ़ा तूने लूटा है मेरा शबाब, तेरा ख़ाना ख़राब-तेरा ख़ाना ख़राब”

बहुत दिनों तक हम ये समझते रहे कि इसमें क़व्वाल “शबाब” मतलब “जवानी” लूटने वाले का “खाना खराब” होने की बद-दुआ कर रहा है। ये तो बहुत बाद में समझ में आया कि दरअसल यहाँ पर उसके घर बर्बाद हो जाने या उस व्यक्ति के बर्बाद होने की बद-दुआ की जा रही है।

उर्दू में “ख़ाना-ख़राब” लफ़्ज़ का इस्तेमाल “बदहाल, “तबाह” ,”बर्बाद, “आवारा”,”घर बर्बाद करने वाले”,”ख़ुद को बर्बाद किए हुए” या “good for nothing” के सेंस में होता है।

जैसे हफ़ीज़ जालंधरी का ये शेर देखें :

“ना-कामी-ए-इश्क़ या कामयाबी

दोनों का हासिल ख़ाना-ख़राबी”

यहाँ ख़ाना-ख़राबी मतलब है : “घर उजड़ना” या “बर्बाद होना”।

 जलील और ज़लील का फ़र्क़

नुक़्ता न लगाने की वजह से कैसे अर्थ का अनर्थ हो सकता है उसका एक उदाहरण और देखें।

जलील और ज़लील दो अलग अलग शब्द हैं।

जलील का मतलब : प्रतिष्ठित, महान, अज़ीम, मान्य।

ज़लील का अर्थ : अपमानित, गिरा हुआ, पतित।

इस से अंदाज़ा लगाएं, अगर आपने नुक़्ता नहीं लगाया या फिर जलील की जगह ज़लील लिख/बोल दिया या उसका उल्टा कर दिया तो उसका क्या मतलब होगा।

एक आख़री बात :  नुक़्‍ता और नुक्ता में भी फ़र्क़ होता है।

“नुक़्‍ता” का मतलब होता है बिंदु या dot जबकि “नुक्ता” का मलतब होता है “बारीकी” या point of view.

इसीलिए कहते हैं : “नुक़्‍ता” लगाया जाता है और “नुक्ता” बयान किया जाता है।

“नुक्ता” से ही नुक्ताचीनी शब्द भी बना है जिसका मतलब होता है “आलोचना” या criticism. वैसे, ऐसे इस शब्द का इस्तेमाल ऐसे भी होता है : लेखक ने क्या नुक्ता बयान किया है। मतलब point की बात कही है।

(महताब आलम एक बहुभाषी पत्रकार और लेखक हैं। हाल तक वो ‘द वायर’ (उर्दू) के संपादक थे और इन दिनों ‘द वायर’ (अंग्रेज़ी, उर्दू और हिंदी) के अलावा ‘बीबीसी उर्दू’, ‘डाउन टू अर्थ’, ‘इंकलाब उर्दू’ दैनिक के लिए राजनीति, साहित्य, मानवाधिकार, पर्यावरण, मीडिया और क़ानून से जुड़े मुद्दों पर स्वतंत्र लेखन करते हैं। ट्विटर पर इनसे @MahtabNama पर जुड़ा जा सकता है ।)

इस लेख में इस्तेमाल किया गया आर्ट वर्क  ‘ख्व़ाब तन्हा कलेक्टिव’ द्वारा बनाया गया है. उनका समकालीन जनमत की तरफ से बहुत आभार. 

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