समकालीन जनमत

Category : साहित्य-संस्कृति

कविता

मनीषा मिश्रा की कविताएँ समाज के प्रति अपनी जागरूक भूमिका को निभाने का प्रयास हैं

समकालीन जनमत
सोनी पाण्डेय बाँस की कोपलों सी बढ़ती है लड़कियाँ…. विमर्श और स्त्री मुक्ति के नारों के बीच आज की कस्बाई औरतों के संघर्षों का यदि...
कविता

डॉ हेमन्त कुमार और पूनम श्रीवास्तव के कविता संग्रह का विमोचन 

समकालीन जनमत
लखनऊ। जन संस्कृति मंच (जसम) की ओर से छह जनवरी को डॉ हेमन्त कुमार के कविता संग्रह ‘ कटघरे के भीतर ‘ तथा पूनम श्रीवास्तव...
स्मृति

‘ बुनती रहे हमारी अंगुलियां/इकतारे की धुन पर/सुनते हुए अनहद का नाद/झीनी-झीनी चादर यह ’

कौशल किशोर
क्रांतिकारी वाम व जनवादी धारा के कवि ध्रुवदेव मिश्र पाषाण का जाना आहत कर देने वाला है। 7 जनवरी सुबह 9:00 बजे अपने देवरिया स्थित...
स्मृति

रवि किरन जैन : संविधान विशेषज्ञ, राज्य दमन के खिलाफ नागरिक अधिकारों के निडर योद्धा और यारों के यार  

के के पांडेय
इलाहाबाद राजनैतिक और अदबी हलचलों का लंबे दौर से एक मजबूत केंद्र रहा है। दोनों की एक दूसरे में आवाजाही जितनी सहजता से यहां दिखती...
कविता

रणेन्द्र की कविताएँ युगबोध और प्रतिबद्धता की बानगी हैं।

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प्रज्ञा गुप्ता “रणेन्द्र युगबोध के कवि हैं। रणेन्द्र का कवि मन अपनी विविध प्रतिबद्धताओं,सरोकारों के बीच रागारुण संवेदना के साथ उपस्थित है।” ‘ग्लोबल गाँव के...
साहित्य-संस्कृति

राजनैतिक आंदोलन के साथ सांस्कृतिक आंदोलन तेज करना ही मधुकर सिंह के साहित्य का संदेश : सुदामा प्रसाद

आरा। ‘‘ आज का दौर भारतीय लोकतंत्र के लिए एक नाजुक दौर है। इस दौर में लोकतंत्र को बचाने की जो चुनौती है, उसके लिए...
कविता

माया मिश्रा की कविताओं में कभी न ख़त्म होने वाली उम्मीद का एक शिखर है

समकालीन जनमत
गुंजन श्रीवास्तव माया मिश्रा जी की कविताओं को पढ़कर एक बात तो साफ़ कही जा सकती है कि यह एक कवि के परिपक्व अनुभव से...
कविता

हरे प्रकाश उपाध्याय की कविताएँ तनी हुई मुट्ठी की तरह ऊपर उठती हैं।

समकालीन जनमत
चित्रा पंवार सर्वेश्वर दयाल सक्सेना कविता के विषय में कहते हैं– ‘कविता अगर मेरी धमनियों में जलती है पर शब्दों में नहीं ढल पाती मुझे...
कविता

दुनिया में ताक़त के खेल को समझने की कोशिश है अरुणाभ सौरभ की कविताएँ

समकालीन जनमत
बीते शनिवार को प्रभाकर प्रकाशन में अरुणाभ सौरभ के काव्य-संग्रह ‘मेरी दुनिया के ईश्वर’ के तीसरे संस्करण का लोकार्पण हुआ। इस अवसर पर एक परिचर्चा...
कविता

रचित की कविताएँ यथास्थिति को बदलने के लिए बेचैन हैं

समकालीन जनमत
जावेद आलम ख़ान रचित की कविताओं में गुस्सैल प्रेमी रहता है ऐसा नायक जो यथार्थ को नंगा नहीं करता, बड़े सलीके से परोसता है जिसकी...
साहित्य-संस्कृति

स्वयं प्रकाश के साहित्य में बहुत गहराई से सामने आती है विभाजन की त्रासदी – प्रो. गोपाल प्रधान

नई दिल्ली। देश की स्वतंत्रता के साथ ही विभाजन की त्रासदी जुड़ी हुई है और जो बहुत अधिक गहरी है। इस त्रासदी को स्वयं प्रकाश जैसे...
कविता

ग्रेस कुजूर की कविताओं में नष्ट होती प्रकृति का दर्द झलकता है।

समकालीन जनमत
प्रज्ञा गुप्ता प्रकृति का सानिध्य किसे प्रिय नहीं। प्रकृति के सानिध्य में ही मनुष्य ने मनुष्यता सीखी; प्रकृति एवं जीवन के प्रश्नों ने ही मनुष्य...
साहित्य-संस्कृति

हेमंत कुमार की नयी कहानी ‘वारिस’

समकालीन जनमत
(हेमंत की कहानियां अपने समय के यथार्थ को बेहद संवेदनशील तरीके से चित्रित करती हैं और पाठक को सोचने को विवश करती हैं। पढ़िए हेमंत...
कविता

हूबनाथ पांडेय ने अपनी कविताओं में व्यवस्था की निर्लज्जता को बेनक़ाब किया है

उमा राग
मेहजबीं हूबनाथ पांडेय जी जनसरोकार से जुड़े हुए कवि हैं। उनकी अभिव्यक्ति के केन्द्र में व्यवस्था का शोषण तंत्र है, प्रशासन द्वारा परोसा जा रहा...
साहित्य-संस्कृति

वीरेनियत-6: कला और साहित्य का अद्भुत संगम

समकालीन जनमत
नई दिल्ली। दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर के गुलमोहर हॉल में जन संस्कृति मंच द्वारा 15 नवम्बर को कवि वीरेन डंगवाल की स्मृति में आयोजित ...
कविता

पूजा कुमारी की कविताओं में हाशिये की तमाम आवाज़ें जगह पाती हैं।

समकालीन जनमत
बबली गुज्जर जिंदगी में जब लगता है कि सब खत्म हो गया है, तो असल में वह कुछ नया होने की शुरुआत होती है। चुप्पियाँ...
साहित्य-संस्कृति

‘ मुक्तिबोध ने अंधकार के खिलाफ अपनी कविताओं से ज्योतिशास्त्र लिखा  ’

समकालीन जनमत
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में 13 नवंबर को मुक्तिबोध जयंती के अवसर पर प्रणय कृष्ण की किताब ‘ मुक्तिबोध साहित्य का गति- पथ ‘...
कविता

माया प्रसाद की कविताएँ उस व्यक्ति-मन की प्रतिक्रियाएँ हैं जो अपने परिवेश के प्रति जागरुक और संवेदनशील है।

समकालीन जनमत
प्रज्ञा गुप्ता डॉ माया प्रसाद की कविताएँ उस व्यक्ति-मन की प्रतिक्रियाएँ हैं जो बहुत संवेदनशील है और अपने पूरे परिवेश के प्रति जागरुक है। उनकी...
ख़बरसिनेमा

आरएसएस के विरोध पर आरएनटी मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने नौवें उदयपुर फ़िल्म फेस्टिवल को जबरन रोका 

नौवें उदयपुर फिल्म फेस्टिवल के दूसरे दिन भोजन के बाद के सत्र में आर एस एस के कार्यकर्ताओं के विरोध और उनके दबाव में कार्यक्रम...
जनमतशख्सियतसाहित्य-संस्कृति

निराला का वैचारिक लेखन: राष्ट्र निर्माण का सवाल और सामाजिक लोकतंत्र

निराला के निबंधों और टिप्पणियों में राजनीति और समाज को लेकर महत्वपूर्ण विचार-विमर्श मिलता है। इसमें वे राष्ट्रीय मुक्ति के लिए चलने वाली राजनीति और...
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