समकालीन जनमत

Tag : कानून

कविता

किसने आखिर ऐसा समाज रच डाला है

सुधीर सुमन
सुधीर सुमन  “नहीं निकली नदी कोई पिछले चार-पाँच सौ साल से/ एकाध ज्वालामुखी ज़रूर फूटते दिखाई दे जाते हैं/ कभी कभार/ बाढ़ें तो आईं ख़ैर...
ख़बर

‘ हम 26 जनवरी तक का इंतजाम करके आए हैं, अब हम जाने वाले नहीं हैं ’

समकालीन जनमत
नीलिशा   04-12-2020 मेरी शिफ्ट खत्म होने की वाली थी और मैं ऑफिस लौटने की तैयारी कर रही थी, तभी मुख्यालय से आदेश आया कि...
ख़बर

शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों को दिल्ली पुलिस ने हिरासत में लिया

समकालीन जनमत
सीएम योगी आदित्यनाथ के शासन में उत्तर प्रदेश महिलाओं और दलितों के लिए बुरे सपने में बदल गया है। महिलाओं और दलितों के खिलाफ बढ़ते...
ज़ेर-ए-बहस

हमें न तो दया की दृष्टि से देखो और न ही दैवीय दृष्टि से–शिप्रा शुक्ला

बीते रविवार कोरस के फेसबुक पेज लाइव के माध्यम से तेजपुर विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर शिप्रा शुक्ला से निशा ने ‘विकलांगता और स्त्री’ विषय पर...
ज़ेर-ए-बहस

राजद्रोह : ब्रिटिश भारत का कानून

रवि भूषण
दिल्ली पुलिस ने लगभग तीन वर्ष बाद ‘भारत विरोधी नारे’ लगाने के आरोप में जे एन यू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार तथा...
जनमत

सभ्य होने की असलियत

समकालीन जनमत
सदानन्द शाही किसी समाज के सभ्य होने का सबसे बड़ा पैमाना यह  है कि वह समाज स्त्रियों के साथ कैसा व्यवहार करता है. अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस...
Fearlessly expressing peoples opinion