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भगत सिंह के पास विजन, सपने और यथार्थ की समझ थी- प्रो. जगमोहन सिंह

कथांतर की ओर से भगत सिंह जयंती का आयोजन

कवियों का आह्वान ‘लिखने को बदलना होगा लड़ाई में ‘

पटना। भगत सिंह जाति और सांप्रदायिकता के विरोधी थे। वे महिलाओं के सशक्तिकरण की बात करते थे। समाज में लगातार बढ़ती नफरत और असमानता भगत सिंह के सपनों के खिलाफ है। अगर आप भगत सिंह से प्यार करते हैं, उनका सम्मान करते हैं तो उनके विचारों को जाने और समझे। उनके पास विजन था, सपने थे और उसे यथार्थ में परिणत करने की समझ थी।

यह बात पटना के गांधी संग्रहालय में भगत सिंह की जयंती पर आयोजित एक सेमिनार में बतौर मुख्य वक्ता प्रोफ़ेसर जगमोहन सिंह ने कही। प्रोफ़ेसर सिंह शहीद भगत सिंह की बहन के पुत्र हैं और उन पर काफी शोध और अध्ययन कर चुके हैं।

कार्यक्रम का आयोजन ‘कथांतर’ पत्रिका ने किया। संचालन जाने-माने कथाकार और ‘कथांतर’ पत्रिका के संपादक राणा प्रताप ने किया। सभी का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि क्रांतिकारी सपने देखता है। भगत सिंह का सपना था और आजाद भारत में उसकी लगातार हत्या की गई। आज हम एक ऐसे दौर में है जब उनके विचारों का महत्व बढ़ गया है। हमें जन जन तक उन्हें पहुंचाना है। लोगों को उस आजादी के लिए गोलबंद करना है जो भगतसिंह का सपना है। भगत सिंह का बिहार से जुड़ाव का उल्लेख करते हुए राणा प्रताप ने कहा कि वे बिहार भी आते रहे हैं। भगत सिंह हाजीपुर, सोनपुर, मुजफ्फरपुर, चंपारण आए थे । लेकिन यह बात लोगों को नहीं मालूम है। वह चंपारण मूवमेंट की रिपोर्ट करने के लिए आए थे। हाजीपुर में उन्होंने मीटिंग भी की थी।

कार्यक्रम दो सत्रों में हुआ। पहले संगोष्ठी हुई जिसका विषय था ‘भगत सिंह का सपना, हमारा सपना’। इसे संबोधित करते हुए प्रोफेसर जगमोहन सिंह ने कहा कि भगत सिंह ने जिन आदर्शों के लिए अपनी शहादत दी, उन्हें जानना जरूरी है। समाज में बराबरी और भाईचारा वे चाहते थे। हर व्यक्ति के मौलिक अधिकारों की रक्षा रक्षा और सम्मान हो, यह चाहते थे। उनका सपना था कि देश में बोलने की आजादी हो। देश के संसाधनों में सभी लोगों की हिस्सेदारी हो।

प्रो सिंह ने कहा कि आज भले ही हमें अंग्रेजों से आजादी मिल गई है लेकिन अमीरी और गरीबी के बीच की बढ़ती खाई बरकरार है। कारपोरेट कंपनियों और पूजीपतियों का मुनाफा लगातार बढ़ रहा है। वह हजारों करोड़ों रुपए मुनाफा कमा रहे हैं। वहीं देश की करोड़ों आबादी गरीबी रेखा से नीचे है। ब्रिटिश साम्राज्यवाद भले ही खत्म हो गया लेकिन वह अब नए रूप में सामने आ रहा है। नई साम्राज्यवादी शक्तियों के हितों की खातिर समाज में नागरिकों को लगातार आपस में लड़ाया जा रहा है।

कार्यक्रम के आरम्भ में हिरावल ने गोरख पाण्डेय के ‘वतन का गीत’ सुनाया। इस मौके पर दो पुस्तकों का लोकार्पण भी हुआ। पहली पुस्तक थी लूं शुन की कृति ‘क्रांतिकाल का साहित्य’। इसका अनुवाद और संपादन राणा प्रताप ने किया है। गार्गी प्रकाशन के दिगंबर ने इसके महत्व और इसकी जरूरत पर अपनी बात रखी। वहीं राणा प्रताप की दूसरी कृति ‘यथार्थ के रंग’, विचार कथा का भी लोकार्पण हुआ। इस पर कथाकार रामधारी सिंह दिवाकर ने अपनी बात रखी। इस आयोजन में लखनऊ, हजारीबाग, कोटा, दिल्ली, मुजफ्फरपुर आदि जगहों से लेखकों व कलाकारों की भागीदारी थी।

दूसरा सत्र कविता पाठ का था जिसमें स्थानीय और बाहर से आए कवियों ने भी कविताएं सुनाईं। शंभु बादल ( हजारीबाग, झारखंड) ने ‘बाघ’ कविता का पाठ किया। यह कविता विदेशी पूंजी की बढ़ती जकड़बंदी पर व्यंजना करती है। लखनऊ से आए कवि भगवान स्वरूप कटियार ने अपनी चर्चित कविता ‘दुनिया एक कैदखाना’ सुनाई। यह इस सच्चाई को लाती है कि संविधान, लोकतंत्र और सेकुलर मूल्यों पर चोट की जा रही है। ऐसे में लिखने को लड़ाई में बदलने की जरूरत है। कौशल किशोर ने ‘वह हामिद था’ कविता का पाठ किया। यह कविता प्रेमचंद की मशहूर कहानी ईदगाह का नया पाठ है। ‘हामिद’ वर्तमान व्यवस्था में किस तरह से माब लिंचिंग का शिकार हुआ है व हो रहा है, इस यथार्थ को कविता सामने ले आती है। महेंद्र नेह ने श्रोताओं के अनुरोध पर ‘हम नीग्रो हैं, हम काले हैं’ गीत सुनाया। वरिष्ठ कवि व गीतकार नचिकेता ने अपने कई गीत सुनाए। स्थानीय कवियों में प्रेम किरण, खुर्शीद अकबर, संजय कुमार कुंदन, मुसाफिर बैठा, अरविंद पासवान श्रीराम तिवारी आदि ने कविताएं सुनाईं।

राणा प्रताप
संपादक ‘कथांतर’

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