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नफरत और हिंसा के दौर में पटना में ‘ कोरस ’ का ‘ पैग़ाम ए मोहब्बत ’

आज के इस दौर में जहाँ नफरत और हिंसा चारों ओर फैलाई जा रही है वहीं ‘ कोरस ’ के द्वारा 23- 25 सितम्बर तीन दिवसीय नाट्योत्सव प्रेम और भाईचारा की अलख जगाता हुआ ‘ पैग़ाम ए मोहब्बत ’ पटना के कालिदास रंगालय में आयोजित किया गया।
नाट्योत्सव की शुरुआत करते हुए स्वागत समिति की अध्यक्ष सह ‘फ़िलहाल’ पत्रिका की संपादक प्रीति सिन्हा ने नाट्योत्सव में आए लोगों का स्वागत करते हुए कहा कि नफरत और उन्माद के हिंसक दौर में कोरस अपने पांचवें नाट्योत्सव के ज़रिए मोहब्बत के पैगाम के साथ है।
उद्घाटन सत्र की उद्घाटनकर्ता स्त्रीवादी विमर्शकार व कवि और ‘इग्नू’ की प्रोफेसर सविता सिंह ने नाट्योत्सव के ज़रिए मोहब्बत का पैग़ाम देने के कोरस की प्रयास की सराहना करते हुए कहा कि संस्कृति कर्म एक गंभीर वैचारिक कार्य है जिसका सम्मान किया जाना चाहिए। पूंजीवादी सत्ता और पुरुष वर्चस्ववाद पर तीखा हमला करते हुए उन्होंने कहा कि जब तक समाज में पितृसत्ता कायम रहेगी, समानता का संबंध स्थापित नहीं हो सकेगा। प्रोफेसर सविता सिंह को कोरस का प्रतीक चिन्ह देकर इस सत्र का समापन किया गया। उद्घाटन सत्र का संचालन कोरस की साथी रुनझुन ने किया।

इस मौके पर ‘पैगाम -ए- मोहब्बत’ स्मारिका का विमोचन भी किया गया जिसमें प्रख्यात कवि आलोक धन्वा, ‘समकालीन जनमत’ के प्रधान संपादक रामजी राय, शशि यादव, नुसरत अंसारी, पूनम गिरधानी, दीपक श्रीनिवासन, भारती एस कुमार, नीना शरण, मीना राय, रुचि, शालिनी आदि गणमान्य लोग भी मौजूद रहे।

कोरस की टीम रिया अंतरा, रुनझुन और समता राय ने मिलकर जोश मलीहाबादी का लिखा लोकप्रिय गीत ‘बोल इक तारे झन-झन झन-झन’ गाकर दर्शकों को भाव विभोर कर दिया।

इसके बाद बंगलोर से आई कन्नड़ रंगमंच की चर्चित नारीवादी-रंगकर्मी डी. सरस्वती ने नाटक ‘संथिम्मी लव पुराण’ में एकल अभिनय प्रस्तुत कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। ‘संथिम्मी लव पुराण’ मूलतः कर्नाटक की एक ग्रामीण महिला संथिम्मी की कहानी है जिसे दुनियादारी की अच्छी समझ है। संथिम्मी की भूमिका में एकल अभिनय प्रस्तुत करते हुए डी सरस्वती, अपने वाक् पटु संवादों के ज़रिए उन परम्परागत रूढ़िवादी मूल्यों और पुरुष वर्चस्ववादी आधुनिक दृष्टि पर प्रहार करतीं हैं जिनमें स्त्रियां आज भी जकड़ी हुई हैं। मूलतः एलजीबीटी समुदाय के सम्मान में तैयार किए गए इस मोनोलॉग के जरिए संथिम्मी अपनी विशिष्ट शैली में मानवीय व्यवहार पर अपने अनुभव और अपनी समझ साझा करती है। ‘संथिम्मी लव पुराण’ का मंच सज्जा प्रोडक्शन डिजाइनर दीपक श्रीनिवासन का था जो कर्नाटक के एक स्कूल में शिक्षक भी हैं। डी सरस्वती व दीपक श्रीनिवासन को प्रख्यात कवि आलोकधन्वा द्वारा कोरस का प्रतीक चिन्ह भेंट किया गया।

‘कोरस’ के नाट्योत्सव ‘पैग़ाम-ए-मोहब्बत’ के दूसरे दिन कोरस के कलाकारों ने रज़िया सज़्जाद ज़हीर का लिखा नाटक ‘नमक’ का मंचन किया। निर्देशन मात्सी शरण और संगीत रिया का था। नाटक में भारत-पाकिस्तान विभाजन की वजह से अपने वतन से दूर हुए लोगों की तकलीफ और सरहद के दोनों ओर के हालात दिखाए गए हैं। ‘नमक’ के मंचन में कोरस की कलाकार सोनी, दिव्या, अवनी, ऋचा, मुस्कान और दिव्या प्रिया ने अपने प्रभावशाली अभिनय के ज़रिए विभाजन की त्रासदी और कल के हमवतनों की मोहब्बत और और उनकी तकलीफ को सामने लाने का सफल प्रयास किया है।

इसके बाद राजस्थानी लोक कथाकार विजयदान देथा की कहानी पर आधारित दास्तानगोई में दिल्ली से आयीं नुसरत अंसारी और रंगकर्मी पूनम गिरधानी ने मिलकर ‘दास्तान-ए-चौबोली’ की शानदार प्रस्तुति दी। दास्तानगोई उर्दू में कहानी सुनाने की विशेष विधा है। यह चौबोली नामक राजकुमारी की वाकपटुता और हास्य से भरी दिलचस्प कहानी है जिसकी व्यंग्यात्मक और गीतात्मक प्रस्तुति ने दर्शकों को प्रभावित किया। ‘दासतान-ए-चौबोली’ में कहानी के भीतर कहानी और उनके भीतर भी अनेक कहानियाँ हैं जो भारतीय जीवनशैली को प्रदर्शित करने वाला एक मजाकिया ,कड़वा और व्यंग्यात्मक प्रयास है। प्रसिद्ध रंगकर्मी परवेज़ अख्तर द्वारा पूनम गिरधानी व नुसरत अंसारी को कोरस का प्रतीक चिन्ह भेंट किया गया।

नाट्योत्सव के तीसरे व अंतिम दिन कोरस के कलाकारों ने मन्नु भंडारी की कहानी पर आधारित नाटक ‘तीसरा आदमी’ का मंचन किया। नाट्य रूपांतरण व निर्देशन समता राय का था जबकि सह निर्देशन रुनझुन और संगीत रिया का था। ‘तीसरा आदमी’ स्त्रियों के मनोजगत की अनजानी तहों तक ले जाने की कोशिश करता है।यह नाटक दर्शकों को दाम्पत्य जीवन में पति की शंकाओं के ज़रिए पुरुष सत्तात्मक समाज से रू-ब-रू कराते हुए स्त्री मनोजगत की अंतरतम गहराइयों तक ले जाता है और समानता के लिए उद्वेलित करता है।नाटक में अंकिता, अविनाश, रवि के साथ दिव्या प्रिया, सोनी, अवनी, ऋचा, मुस्कान और दिव्या आदि कलाकार अपने प्रभावशाली अभिनय से समाज में मौजूद पुरुष सत्ता के ख़िलाफ़ संघर्ष का आह्वान करते हैं।

कोरस के इस तीन दिवसीय नाट्योत्सव की खास बात ये रही कि इसमें प्रस्तुत सभी नाटकों का निर्देशन महिलाओं द्वारा किया गया है। नाट्योत्सव में पोस्टर,किताब व हैंडीक्राफ्ट की प्रदर्शनी भी लगाई गई।

पांचवें नाट्योत्सव के समापन की घोषणा करते हुए ‘कोरस’ की संयोजक समता राय ने जिगर मुरादाबादी का शेर – ‘उनका जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें/मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहां तक पहुंचे’ पढ़ते हुए कहा कि आज ज़रूरी है कि हर कोई पैग़ाम-ए-मोहब्बत लेकर चले ताकि नफरतों का यह दौर मिटाया जा सके।

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