समकालीन जनमत
समर न जीते कोय

समर न जीते कोय-26

(समकालीन जनमत की प्रबन्ध संपादक और जन संस्कृति मंच, उत्तर प्रदेश की वरिष्ठ उपाध्यक्ष मीना राय का जीवन लम्बे समय तक विविध साहित्यिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक हलचलों का गवाह रहा है. एक अध्यापक और प्रधानाचार्य के रूप में ग्रामीण हिन्दुस्तान की शिक्षा-व्यवस्था की चुनौतियों से लेकर सांस्कृतिक संकुल प्रकाशन के संचालन, साहित्यिक-सांस्कृतिक आयोजनों में सक्रिय रूप से पुस्तक, पोस्टर प्रदर्शनी के आयोजन और देश-समाज-राजनीति की बहसों से सक्रिय सम्बद्धता के उनके अनुभवों के संस्मरणों की श्रृंखला हम समकालीन जनमत के पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं. -सं.)

बिटिया की शादी की तैयारी

1998 की होली में समता ने हमलोगों से बताया कि मैं संतोष चंदन से प्रेम करती हूं और उनसे शादी करना चाहती हूं। चाहे जिन कारणों से लेकिन मुझे यह रिश्ता जम नहीं रहा था। बड़ा अजीब लग रहा था। अभी तक तो संतोष को चाचा कहती थी। फिर उम्र का भी अंतर था, लेकिन जब प्यार किया है तो उम्र कोई मायने नहीं रखती। खैर…..। संतोष चन्दन दिल्ली से जनमत निकलने के समय से रामजी राय के साथ जनमत की टीम में थे। बाद में रामजी राय को पार्टी का मुखपत्र ‘लोकयुद्ध ‘ निकालने की जिम्मेदारी मिली और वे पटना चले आए। कुछ दिन बाद जनमत का दिल्ली से प्रकाशन बन्द हो गया। फिर संतोष चंदन लोकयुद्ध में कला संपादक के रुप में काम करने पटना आ गए। लोकयुद्ध के सारे लोग ‘समकालीन प्रकाशन’ में एक साथ रहते थे। छुट्टियों में हमलोग भी पटना जाते थे तो यहीं रुकते थे।
समता से पूछा गया कि संतोष चंदन भी शादी के लिए तैयार हैं? और उनके घर वालों को मंजूर होगा? समता बोली कि संतोष शादी के लिए तैयार हैं और उनके घर में कोई दिक्कत नहीं है, बस पापा एक बार जाकर संतोष के पापा से बात कर लें। रामजी राय का कहना था कि मुझे कोई दिक्कत नहीं है। मेरा तो मानना है कि लड़का हो या लड़की, अगर वो अपनी पसन्द से शादी करना चाहते हैं, तो उन्हें इसकी छूट होनी चाहिए। अब अपनी पसन्द से वे बाद में रोएं चाहे हंसे अंकुर उस समय आठवीं क्लास में था। होली बाद रामजी राय पटना चले गए। संतोष चंदन के पापा मधुबनी रहते थे। जब रामजी राय को मौका मिलेगा तब न मधुबनी जाएंगे। गर्मी की छुट्टी में हमलोग पटना गए तो फिर शादी की चर्चा शुरू हुई तो रामजी राय बोले की ठीक है, थोड़ा समय लीजिए आपलोग,जल्दबाजी न करिए।
रामजी राय अभी संतोष चंदन के पापा से बात करने मधुबनी नहीं जा पाए थे। इसी बीच पता चला कि अक्टूबर/नवम्बर में सन्तोष चंदन के छोटे भाई मनहर की शादी होने वाली है। रामजी राय बोले कि अब मधुबनी क्या जाऊं, मनहर की शादी में जाऊंगा तो संतोष के पापा से शादी की बात कर लूंगा। संतोष चंदन के पापा जज थे। मनहर की शादी में रामजी राय ने जज साहब से कहा कि संतोष चंदन और मेरी बेटी एक दूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं। आपकी क्या राय है? जज साहब बोले कि राय साहब आप देर कर दिए, आप थोड़ा भी पहले बताए होते तो दोनों बेटों की शादी एक साथ कर दिए होते। लेकिन कोई बात नहीं, दोनों शादी करना चाहते हैं तो शादी होगी।
जब शादी का परमीशन दोनों पक्ष से क्लीयर हो गया तो शादी की तैयारी शुरू हो गई। समता के लिए कुछ न कुछ सामान खरीदा जाने लगा। समता अंकुर से सात साल बड़ी थी। लेकिन दोनों में 36 का आंकड़ा रहता था। जो तरुपरिया होने के कारण स्वाभाविक था। खासकर जब भी कोई सामान समता के लिए खरीदा जाता, अंकुर बहुत चिढ़ता था। जब समता को देने के लिए कंबल खरीदे, तो ओढ़ कर सो गया कि इसे मैं ओढ़ूंगा, मैं उसको न दूंगा। समता के लिए 10000/- भारतेन्दु ने भेजा था कि समता अपने मन से जो लेना है ले लेगी। जिस दस हजार का एक रिकार्ड प्लेयर खरीदा गया, अंकुर कहने लगा सब उसी को दिलवाती हो। मैं इसे न ले जाने दूंगा।
मेरी एक आर डी पूरी होने वाली थी, उसी का इंतजार कर रही थी कि पूरी हो जाय तो शादी संबन्धी बाजार करूं। इसी बीच एक बड़ी दुखद घटना हो गई। पार्टी के महासचिव कामरेड विनोद मिश्र की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई।
16 दिसंबर से लखनऊ में पार्टी की सी. सी. की मीटिंग चल रही थी। 18 की शाम को बगल वाले राय साहब मुझे बुलाए कि आप के लिए फोन है। मैंने फोन उठाया तो पता चला की कामरेड विनोद मिश्र की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई है, और लोगों को आप सूचित कर दीजिएगा। उसके बाद फोन पर क्या बात करुं, कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था।
प्रणय जी से बात हुई। पार्टी आफिस पर शोक सभा हुई और अगले दिन शाम वाली ट्रेन से हम सभी लोग बनारस गए क्योंकि बनारस होकर ही शव यात्रा जानी थी। भयानक कुहरे में शव यात्रा रात एक बजे बनारस पहुंची और सुबह शव यात्रा के साथ सभी लोग रात में आरा रुके और दूसरे दिन पटना पहुंचे। सब एक दूसरे को इस विपदा से निकलने की हिम्मत बढ़ाने का प्रयास कर रहे थे। अंकुर का स्कूल बंद ही था सो हमलोग कुछ दिन और पटना रुक गए।
आने से पहले सन्तोष चंदन और समता शादी की डेट फिक्स करने हेतु रामजी राय से पूछने के लिए लगातार मेरे ऊपर दबाव बनाए हुए थे। परिस्थिति को देखते हुए मैंने इस समय रामजी राय से शादी संबन्धी कोई बात करना उचित नहीं समझा और हमलोग इलाहाबाद लौट आए। अभी दरवाजा खोलने के लिए चाभी ही खोज रहे थे कि बगल से अर्चना निकली और बताई कि बगल वाले राय साहब नहीं रहे। 25 को 3 बजे भोर में ही हार्ट अटैक हो गया। राय साहब 24 की रात 10 बजे मुझे पटना फोन किए थे। पूछ रहे थे समता की मम्मी कब तक आइएगा? मैंने बोला था कि 30-31 तक आ जाऊंगी। राय साहब बहुत ही भले इंसान थे। पता नहीं क्यों ऐसे लोग जल्दी ही निकल जाते हैं। साल का अंतिम महीना बहुत दुखदाई रहा।
कुछ दिन बाद हिम्मत करके मैंने रामजी राय से समता की शादी के बारे में बात की, तो बोले आऊंगा तो बात करुंगा। रामजी राय से ये दोनों नहीं बात कर रहे थे, हमीं को परेशान किए थे कि तुम बात करो। रामजी राय जब अगली बार आए तो इस पर बात हुई। बात होने लगी तो रामजी राय बोले कि- शादी एकदम सामान्य तरीके से हो। रिश्तेदारी वाली भीड़ न बुलाया जाय। यहां से कुछ ही लोग रहें और बाहर से 50-100 मित्र गण आ ही जाएंगे। सामान्य नाश्ता, चाय की व्यवस्था रहे बस। लेकिन जो लोग बाहर से आएंगे उनके रहने, खाने का इंतजाम तो करना पड़ेगा। शादी में कोई गिफ्ट वगैरह न लाए। मैंने कहा कि शादी में जब बाहर से आने वालों को खाने का इंतजाम करना पड़ेगा और लोकल को केवल नाश्ते का इंतजाम रहेगा तो अच्छा नहीं लगेगा और मेरी कोई दूसरी लड़की भी नहीं है कि उसकी शादी में शौक पूरा कर लूंगी। इस तरह की शादी से व्यक्तिगत तौर पर मुझे कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन अगर इस तरह से शादी करना है तो शादी इलाहाबाद से नहीं पटना से करिए। ताकि मैं लोगों को बुलाने से बच जाऊंगी। मैं यहां शादी में लोगों के यहां गई हूं और जाकर खाना खाई हूं तो उन लोगों को शादी में कैसे न बुलाऊंगी और कैसे खाना न खिलाऊंगी। मेरी भी समाज में कोई इज्जत है कि नहीं? रही बात गिफ्ट की तो मना करने के बाद भी लोग नहीं मानेंगे। जिनके यहां मैंने गिफ्ट दिया है वे लोग देगें ही। दीपू (मेरा भतीजा ) भी उस समय यहीं था। वो भी रामजी राय के साथ हां में हां मिलाए पड़ा था। रामजी राय के जाते जाते यही तय हुआ कि ठीक है शादी यहीं से हो। कोर्ट मैरेज हो और रात में हैवी नाश्ता या सामान्य भोजन जो भी ठीक लगे उसकी तैयारी करिएगा आपलोग। मैं कोशिश करुंगा कि कुछ दिन पहले आ जाऊं। रामजी राय को स्टेशन छोड़ने जाते समय रास्ते में मैंने कहा कि चाहे मैं मायके वालों को भले न शादी में बुलाऊं, लेकिन ससुराल पक्ष को तो जरुर बुलाऊंगी नहीं तो जिंदगी भर सुनना पड़ेगा। इसके बाद रामजी राय बोले, नहीं आपके पिता जी एडवांस सोच के हैं ऐसा न करिएगा, बुला लीजिएगा। और हां अपने सारे भाई, बहनों को भी बुला लीजिएगा। मतसा बड़े वाले भइया को 7-8 कार्ड भेज दीजिएगा जिसको वो कार्ड देना उचित समझेंगे दे देंगे।
बाद में संतोष चन्दन अपने यहां भी बात कर लिए और दोनों पक्ष की अनुमति से 6 फरवरी-1999 को शादी की तिथि तय हो गई।
समय बहुत कम बचा था। इसी बीच मेरे आर डी का पैसा भी मिल गया था। इसलिए स्कूल से आने के बाद चाय पीकर समता के साथ बाजार लगभग रोज ही निकल जाती। कभी कपड़ा, कभी जेवर तो कभी कुछ न कुछ लेकर आती। सामान देखकर अंकुर कुछ कहता नहीं था, लेकिन उसको अच्छा नहीं लगता था। एक दिन समता ने कहा कि मम्मी हमको बनारसी साड़ी या कोई भारी साड़ी न दिलाना। वो एक दो दिन ही यूज होता है, फिर ऐसे ही रखा रहता है। उसके बदले हमें कुछ सूट दिलवा दो। शादी संबन्धी बहुत सामान होता है। अंकुर घर की आर्थिक हालत भी समझ ही रहा था, उसमें रोज रोज इस तरह खरीददारी करना उसके समझ में नहीं आ रहा था। वह भीतर भीतर बहुत परेशान था कि मैं क्यों इतना खर्च कर रही हूं। एक दिन हमलोग बाजार निकल रहे तो बोला- मम्मी बाज़ार जा रही हो तो एक कटोरा ( हाथ से कटोरे की साइज़ बताते हुए ) लेती आना। मैंने कहा कटोरा? क्या करोगे कटोरा? बोला मेरे लिए नहीं अपने लिए लाना। अपने लिए कटोरा? क्यों? बोला कि जब समता दी की शादी हो जाएगी तो उसके बाद तो कुछ बचेगा नहीं तुम्हारे पास, जो है सब खर्च किए दे रही हो, तो यही कटोरा तुम्हें भीख मांगने के काम आएगा। मैं उस दिन थोड़ा दुखी होकर उससे बोलकर गई कि बेटा लड़की की शादी पड़ी है। बाप के पास टाइम ही नहीं है। बेटा अभी छोटा है फिर भी कुछ सहयोग कर ही सकता है। लेकिन बेटा है कि हमारा सहयोग करने की जगह सामान देख देख कर गुस्सा ही करता रहता है, और नहीं तो भीख मांगने के लिए कटोरा खरीदवा रहा है। मैं किससे कहूं। उस दिन हमलोग बाजार से आए तो अंकुर तुरन्त चाय बनाकर दिया। रात में सोते समय कुछ बोल नहीं रहा था बस मुझसे चिपक कर सोया। मेरी बात उसे लग गई थी। मैंने उसे समझाया कि समता दी अब चली जाएगी न। उसके जरुरत के सब सामान देना पड़ेगा न। पुराना सामान लेकर थोड़े ससुराल जाएगी। ऐसे नहीं गुस्सा किया जाता है। चाहे जितनी परेशानी हो, शादी में मिनिमम जरुरी खर्च तो करना ही पड़ता है। उस दिन के बाद अंकुर कभी सामान खरीदने पर रिएक्ट नहीं किया। बाजार से आने पर पानी, चाय भी खुशी से देता था।
रामजी राय से फोन द्वारा सब बातचीत होती रही। बनारस कला कम्यून ने शादी का कार्ड डिजाइन किया और छापा। कार्ड कई रंग में छपा था। किसी के साथ उदय कार्ड भेजे थे, जिसे स्टेशन जाकर लेना था। मैं स्टेशन कार्ड लेने गई थी। कार्ड लेकर लौट ही रहे थे कि स्टेशन से बाहर अचानक शिवकुमार मिश्र (हमलोगों के घनिष्ठ साथी) दिख गए। उनकी ट्रेन आ चुकी थी इसलिए जबानी ही शादी में आने का न्यौता मैंने दे दिया। अपनी तरफ से समता,अंकुर की पसंद से जिस रंग का कार्ड रामजी राय सहित लोकयुद्ध और पार्टी आफिस के लिए मैंने भेजा था, रामजी राय को कार्ड का वह रंग अच्छा नहीं लगा। बाद में उन्होंने कहा कि सबसे घटिया रंग का कार्ड मुझे भेजा गया था। मैंने भी सोचा था कि समता की शादी अच्छी तरह से करुंगा। लेकिन शादी में सक्रिय न होने का एहसास दिलाता है ये कार्ड। रामजी राय के परामर्शानुसार मैंने 7-8 कार्ड मास्टर साहब ( रामजी राय के बड़े भाई ) को और एक कार्ड अपने पिता जी को भेज दिया था।
रामजी राय का पत्र आया कि 3 से 5 फरवरी तक दिल्ली में पार्टी की सी. सी. की बैठक है, शादी में वहीं से लोग आएंगे। रामजी राय का 14.1.99 का मुझे लिखा यह पत्र के. के. पाण्डेय के हाथों मिला। उस पत्र के कुछ अंश मैं यहां दिए दे रही हूं:-
“मीना,10 जनवरी को ही लोकयुद्ध टीम की बैठक हुई। मैंने उसमें 6 फरवरी को समता और संतोष चन्दन की शादी होने की बात रखी और ये भी कहा कि मैं 21 जनवरी को इलाहाबाद चला जाऊंगा। अब आप लोग नववर्ष विशेषांक निकालिएगा। लेकिन बैठक में यह तय हुआ कि मुझे ही यह अंक इसी महीने निकाल कर फिर कहीं जाना होगा। तय हो गया तो मैं नहीं भी नहीं कर सकता। अंक निकालना ही होगा। सो क्या करूं? अपनी तरफ से मैं कोशिश कर रहा हूं कि 25 जनवरी तक या उससे कुछ पहले ही अंक प्रेस में दे दूं और फिर वहां आ जाऊं।
शादी 6 फरवरी को हो अब यही ठीक रहेगा। यहां केन्द्रीय कमेटी के लोगों को मैंने निमंत्रित कर दिया है, शेष और लोगों से भी कहूंगा। संतोष के पिता को कल सूचित करुंगा।
शादी कोर्ट मैरेज ही हो। शाम को स्थानीय लोगों को नाश्ते पर ( या आप जैसा कह रही थीं खाने पर ) आमंत्रित किया जा सकता है। बाहर से आने वालों को तो भोजन पर भी आमंत्रित करना ही होगा। कितने बाहर से लोग आएंगे इसका अंदाजा कुछ दिन में लग जाएगा, शेष और किन्हें बुलाना है आप तय कर लीजिएगा।
जीवन भर बच्चों को मां-बाप दोनों की हैसियत से आपने ही संभाला है। यह शादी भी आपको ही संभालनी है। पहले आने की कोशिश कर रहा हूं, न आ पाऊं तो, जैसे जसम का सम्मेलन आपने संभाला था वैसे ही समझिए कि इसे भी संभालना है। संभव है मैं जसम सम्मेलन की तरह ही सबके साथ 6 फरवरी को सुबह ही पहुंच पाऊं। वैसे मैं दिल्ली की सी.सी. बैठक में 2 फरवरी को प्रयागराज से इलाहाबाद से ही जाऊंगा। मेरे जाने का आरक्षण 2 फरवरी का और लौटने का 4 फरवरी का प्रयागराज से करा लीजिएगा। यह भी आप के जिम्मे ही। मैं जैसा हूं आपने मुझे संभाला है और आगे भी आप संभालेंगी। हो सके तो मेरी नालायकी या काम की मेरी व्यस्तता समझ मुझे माफ़ कर दीजिएगा और सारा भार खुद उठाने की हिम्मत और धीरज जो आप में हमेशा से है, उस बूते यह नाव भी पार लगाइएगा।”
शेष अगली किश्त में जारी……………………

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