समकालीन जनमत
समर न जीते कोय

समर न जीते कोय-23

(समकालीन जनमत की प्रबन्ध संपादक और जन संस्कृति मंच, उत्तर प्रदेश की वरिष्ठ उपाध्यक्ष मीना राय का जीवन लम्बे समय तक विविध साहित्यिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक हलचलों का गवाह रहा है. एक अध्यापक और प्रधानाचार्य के रूप में ग्रामीण हिन्दुस्तान की शिक्षा-व्यवस्था की चुनौतियों से लेकर सांस्कृतिक संकुल प्रकाशन के संचालन, साहित्यिक-सांस्कृतिक आयोजनों में सक्रिय रूप से पुस्तक, पोस्टर प्रदर्शनी के आयोजन और देश-समाज-राजनीति की बहसों से सक्रिय सम्बद्धता के उनके अनुभवों के संस्मरणों की श्रृंखला हम समकालीन जनमत के पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं. -सं.)

अकेली औरत और मर्द समाज


लड़की हो या औरत अगर अकेली है, तो यह समाज उसे जीने नहीं देता है। अंकुर छोटा था। माता जी भी आई हुई थीं। शाम का समय था। कटरा में, जहां मैं आज भी रहती हूं, गली में दो लड़के बतियाते जा रहे थे कि अमे यार लड़की अकेले है। यह सुनकर मैं दरवाजा खोलकर देखने लगी कि कौन लड़की है। मेन रोड से आने वाली गली से अपनी गली जहां से मुड़ती है वहीं कार्नर पर एक प्रेस चलता था। एक 15-16 साल की लड़की उसी प्रेस के चबूतरे पर एक अटैची लिए खड़ी थी। वह बार बार कभी गली से मेन रोड की तरफ, कभी इधर, कभी उधर देख रही थी। पीछे मछली बाजार से भी एक रास्ता सीधे मेन रोड से मिलता है। देखते देखते पीछे से, मेरी गली की तरफ से और मेन रोड से भी लोग इकट्ठे होने लगे। सब यही पूछते भागकर आई हो, कहां जाओगी? वह लड़की यही कहती कि नहीं भागी नहीं हूं, भाई मेरे साथ है। वो पैसा फुटकर कराने गया है। देखते देखते भीड़ बढ़ने लगी, और लोग उसे तंग करने लगे। अंधेरा भी होने लगा था। मेरे कमरे के सामने एक खंडहरनुमा बरामदा था, धीरे धीरे लड़की वहां आ गई। इतना ज्यादा लोग उससे सवाल पूछ रहे थे और उसे अपशब्द बोल रहे थे कि सुनते नहीं बन रहा था। लग रहा था सब उसको नोच खाएंगे। एक भी आदमी उस अकेली लड़की की स्थिति नहीं समझ रहा था, न ही जानने की कोशिश कर रहा था। हमारे अगल बगल के पड़ोसी लड़के भी छत से कुछ व्यंग ही कस रहे थे। अपना मुहल्ला न होता तो ये लोग भी वही करते जो अन्य लोग कर रहे थे। मुझसे अब बर्दास्त नहीं हुआ और मैं भीड़ को हटाते हुए उस लड़की के पास गई और उससे कही कि अपनी अटैची उठाओ और चलो मेरे कमरे में। तुम यहां बच नहीं पाओगी। कई लोग यह भी कहने लगे कि बिना जाने सुने लड़की को कमरे में क्यों ले जा रही हैं। ये ग़लत कर रही हैं। पुलिस आएगी तब पता चलेगा। मैंने बोला- यहां जो हो रहा है उससे तो अच्छा ही है। यह कहते हुए मैंने उसे कमरे में ले आकर दरवाज़ा बंद कर लिया। उसके बाद लोग बार बार दरवाजा पीटें। फिर लोग खिड़की से झांकने लगे। मैंने खिड़की भी बंद कर दिया। बगल की गली के एक मुस्लिम थे जो हमको बहुत मानते थे। बहू ही बुलाते थे। उन्होंने कहा कि इनमें से कुछ लड़के बहुत बदमाश टाइप के हैं। तुम इनसे क्यों खतरा मोल ले रही हो। मैंने बोला कि बाबू जी अगर ये घर की /मुहल्ले की लड़की होती तो?
मुहल्ले की दो तीन औरतें दरवाजा खटखटाईं कि समता की मम्मी दरवाजा खोलिए, मेरे अलावा कोई अंदर नहीं आएगा। फिर वही लोग अंदर आकर पूछती रहीं। मैं तो उससे बात भी नहीं कर पा रही थी। इतना बाहर से लोग बोल रहे थे। मुश्किल से समय मिला उससे बात करने का। तो वह कहने लगी पता नहीं भाई कहां चला गया। मैं करेली में रहती हूं। मैंने उसे डांटा कि मुझे पढ़ाओ मत, सच सच बोलो क्या बात है? बोली- मेरे मां बाप नहीं हैं। बुआ मुझे अनाथालय छोड़ गई थीं। वहां के कर्मचारियों की मिली भगत से लड़कियों को अधिकारियों के यहां रात में भेजा जाता है। आज मेरी बारी थी। इसलिए मैं अनाथालय से भाग आई। उससे और बात करते, तब तक लोग दरवाजा तेजी से पीटने लगे। दरवाजा खोलकर मैं बाहर खड़ी हो गई। एक 40-45 साल का आदमी कहने लगा, एक लड़की भागकर आई है, जो आप के यहां है। वो हाथ जोड़कर रोने लगा। मैडम आपका भला हो, 11 बजे से मैं इसको खोज रहां हूं। आज न मिलती तो मेरी नौकरी चली जाती। मैडम उसको मेरे हवाले कर दीजिए। मैंने बोला नहीं, मैं आपको नहीं जानती कि आप कौन हैं। ऐसे मैं बिना लिखा पढ़ी के किसी को लड़की नहीं दूंगी। उसने कहा कि मैडम लड़की से पहचनवा लीजिए। जहां से ये लड़की आई है, मैं वहीं का चपरासी हूं। मैंने लड़की को दरवाजे के पास बुलाया। लड़की उसको देखकर रोने लगी। बोली मैडम इसके साथ न भेजिए, भले ही आप मुझे पुलिस को दे दीजिए, मैं इसके साथ नहीं जाऊंगी। तब मैंने चपरासी से कहा कि अपने अधिकारी और पुलिस को लेकर आइए तभी मैं लड़की दूंगी। चपरासी बोला- ठीक है मैडम, मैं लेकर आता हूं।
उस समय कर्नलगंज थाने का इंचार्ज कोई राठौर था। जो बहुत ईमानदार और तेज माना जाता था। चपरासी पुलिस लेकर आया। दरवाजा खटखटाने पर मैंने पूछा कौन? मैं कर्नलगंज थाने का इंचार्ज राठौर, दरवाजा खोलिए। राठौर के साथ तीन और पुलिस थी। दरवाजा खोलते ही राठौर ने कहा कि आप के यहां कोई लड़की भागकर आई है? मैंने बोला कि सर लड़की भागकर मेरे यहां नहीं आई है। इस गली में आई थी। इधर उधर जो भीड़ आप देख रहे हैं न, सब भूखे भेड़िए की नजर से इस लड़की को देख रहे थे। इन भेड़ियों से लड़की की इज्जत बचाने के लिए मैं उसको अपने कमरे में ले आई। राठौर ने फिर लड़की को बाहर सबके सामने ही बुलाकर पूछा कि क्या बात है, तुम क्यों भागी वहां से? लड़की ने बताया कि साहब, वहां नमाज तक नहीं पढ़ पातीं लड़कियां। नमाज़ पढ़ते समय ये चपरासी और अन्य लोग पैर खींचते हैं। शरीर के साथ गंदी हरकत करते हैं। लड़कियां कई बार इंचार्ज मैडम से शिकायत कीं, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा। साहब, वहां रात में लड़कियों को गाड़ी से कहीं भेजा जाता है। आज मेरा नम्बर था साहब। मुझे बहुत डर लग रहा था। इसलिए मैं मौका देखकर वहां से भाग निकली। ( राठौर के पूछताछ के दौरान ही पता चला कि लड़की मुस्लिम है ) यह सब सुनकर राठौर ने चपरासी को हड़काया, छोड़ूंगा नहीं मैं किसी को। अनाथालय के नाम पर दूसरा मीरगंज बनाए हो तुमलोग। मीरगंज चौक में एक मुहल्ला है जहां वेश्यालय था। पता नहीं अब है कि नहीं।
उसके बाद राठौर अपने साथियों के साथ कमरे में बैठे। पंचनामा तैयार करवाते समय बोले अनाथालय से लड़की भगी और 267, पुराना कटरा में बरामद हुई। मैंने कहा कि सर, मेरे कमरे में नहीं गली में लिखिए। स्थिति को देखते हुए मैं उसे कमरे में ले आई। पता लगा बाद में अनाथालय वाले इस पंचनामा को देखते हुए हमें ही परेशान करने लगें। उन्होंने कहा ठीक है, मकान के सामने गली में लिख लो। अब पंचनामा पर साइन करना था तो बगल के जवाहर भाई बोले कि- मैं ड्यूटी पर था साहब। मैंने कुछ नहीं देखा। आप कहिए तो मैं सौ बार दंड बैठक कर दूं, मगर मैं साइन नहीं कर सकता ( जबकि ये थे, इन्होंने ही चपरासी को बताया था कि लड़की इसी कमरे में है)। ऊपर वाले और बगल के एक जने बोले कि हम इस समय आन ड्यूटी हैं, साइन नहीं कर सकते। फिर जो हमें बहू कहते थे वो और चार मुहल्ले के अन्य लोग साइन किए। लड़की राठौर के साथ थाने गई।

सबके जाने के बाद मैंने छात्र नेता कमलकृष्ण राय (शायद कमल उस समय छात्र संघ के अध्यक्ष थे) से सारी बात बताई। रात में कमलकृष्ण राय दो लोगों के साथ थाने गए तो पता चला कि अनाथालय की इंचार्ज को बुलाकर राठौर ने चेतावनी देते हुए लिखा पढ़ी में लड़की उनके सुपुर्द कर दी थी।
अगले दिन मैं, कुमुदिनी पति और माधुरी पाठक (शायद सरोज चौबे भी थी ) अनाथालय पहुंचे। यह अनाथालय शायद समाज कल्याण विभाग की देख देख में था। वहां के इंचार्ज से मिलने पर वो कहने लगीं – यहां से तो कोई लड़की नहीं भगी है। आप लोगों को कोई ग़लतफहमी हुई है। मैंने इंचार्ज से कहा – बाहर जो चपरासी बैठा है उसे बुलाइए, वो मेरे घर गया था और हाथ जोड़कर रो रहा था कि आपने मेरी नौकरी बचा ली। आज ये लड़की न मिलती तो मेरी नौकरी चली जाती। चपरासी आया तो मैंने कहा कि तुम कल मेरे घर नहीं आए थे। मैंने लड़की नहीं दिया कि अपने अधिकारी और पुलिस लेकर आओ तभी लड़की जाएगी और तुम पुलिस लेकर आए। कहने लगा नहीं तो, मैं कहीं नहीं गया था। मैं तो यहीं ड्यूटी पर था। मैं आपको नहीं जानता हूं , घर कैसे आऊंगा।
कुल मिलाकर अनाथालय के अधिकारी और थाने के बीच समझौता हो गया होगा। पता नहीं उस लड़की के साथ क्या सुलूक हुआ होगा।
बहुत दिनों तक मैं यही सोचती रही कि लड़की फिर वहीं क्यों भेज दी गई। लेकिन मैं कुछ नहीं कर पा रही थी। मन को यही संतोष देती कि अपने सामने तो किसी लड़की की इज्जत बर्बाद होते नहीं देख सकती, जो मुझसे हो सकता था मैंने किया। अगर समाज के और लोग भी ऐसा सोचते तो लड़की दुबारा उस नर्क (अनाथालय) में न जाती।

अंकुर होने वाला था, तो अंतिम समय में कटरा वाले मकान में मैं रहने आई थी। अगल बगल के लोग संगठन के बारे में कुछ जानते नहीं थे। लोग मकान मालिक के यहां गए कि जिन लड़कों को आपने अपना मकान किराए पर दिया है, वे सब ठीक नहीं लगते। उनके यहां एक ऐसी औरत आई है, जो कुछ ही दिनों में बच्चे को जनेगी। हमलोगों को तो कुछ गड़बड़ लग रहा है। वो औरत कौन है, आप जानते हैं? मकान मालिक ने कहा न जानता हूं न जानना चाहता हूं। कुछ दिनों बाद बगल वाले खुद मुझे बताए कि- शुरू में आप जब यहां आईं थीं तो आपके बारे में हमलोग गलत सोच बैठे थे।
जुलाई 1990 का दिन भी नहीं भूलता। रामजी राय पटना से आए हुए थे। घर से उनका भतीजा बब्लू भी आया था। सुबह घर जाने को बोला तो रामजी राय रोक लिए कि रात में मुझे भी पटना जाना है, साथ ही चलना। शाम 4 बजे माहेश्वर जी के साथ रामजी राय वी.एन.राय से मिलने चले गए। उन दिनों वी.एन.राय यहां SSP थे। उदय की तबीयत खराब चल रही थी। मैं कहीं गई थी। उदय खाना बना रहे थे। खाना बनाते बनाते उदय की तबियत ज्यादा खराब हो गई। अनिल अग्रवाल और महेन्द्र यहां थे। अनिल के स्कूटर से महेन्द्र के साथ डा. रमा मिश्रा के यहां दिखाया गया तो उन्होंने सुबह भर्ती कर देने को कहा। वहां से लौटकर आई तब तक रामजी राय नहीं लौटे थे। बब्लू कहने लगे चाचा आएंगे तो नहीं जाने देंगे। मेरा जाना जरूरी है चाची, मुझे जाने दीजिए। फिर मैं उदय से बोल कर गई कि रिक्शा पकड़ाकर आती हूं।
बाहर निकलते ही रिक्शा मिल गया। रिक्शेवाले को मैं बताने लगी कि सिविल लाइन्स साइड जाना है, तो बब्लू कहने लगे यहां साइड अलग अलग है क्या। मुझे लगा कि पहली बार आया है। घर वाले कहेंगे कि दोनों लोग थे तब भी स्टेशन नहीं छोड़े लोग। मैं आती जाती का रिक्शा तय करके बब्लू के साथ स्टेशन चली गई। स्टेशन जाने पर पता चला कि सभी ट्रेनें 6 घंटा लेट हैं। काउंटर पर बताया कि तूफ़ान प्लेटफार्म नं -5 पर खड़ी है। मैंने दौड़कर टिकट लिया और बब्लू को लेकर जाने लगी तो रिक्शा वाला पैसा मांगने लगा कि मेरा मालिक आ गया है मेरा हिसाब कर दीजिए। गुस्सा तो आया फिर भी मैंने पैसा दे दिया। जब तक प्लेटफार्म पर पहुंचते रिक्शावाला फिर आ गया कि मैं रुका हूं, मालिक को दूसरे रिक्शे से भेज दिया मैंने। बब्लू को ट्रेन में बैठाकर मैं बाहर आई तो रिक्शेवाले पूछने लगे कहां जाना है आइए। मैंने बोला पहले से रिक्शा तय है। तब तक ये रिक्शा वाला बोला, आइए बैठिए बहिन जी तो मैं बैठ गई। हमें लगा वही रिक्शावाला है, जिससे मैं आई थी।

स्टेशन से बाहर पत्थर गिरिजा की तरफ से रिक्शा वाला जा रहा था। जब चौराहे के पास रिक्शा पहुंचा तो एक विक्की पर सवार व्यक्ति जो हाईकोर्ट की तरफ जा रहा था, मेरा रिक्शा सिविल लाइन्स की तरफ मुड़ते देख कर रुक गया था। जब मेरा रिक्शा GGIC पार कर रहा था, तो विक्की वाला फिर मेरे रिक्शे से आगे मुझको देखते हुए निकला और अगले मोड़ पर फिर रुक गया। इस तरह पैलेस तक वह हर मोड़ पर रुकता और मेरा रिक्शा आगे जाए तो पीछे से आता। पैलेस के पास वह नहीं दिखा, लेकिन सुभाष चौराहे से पहले ही उसके गाड़ी पर एक और आदमी आ गया था। इधर रिक्शावाला हर मोड़ पर पूछता किधर जाना है, मैंने कहा कि चलते फिरते रास्ते से ही चलो। जब कई बार पूछा तो मैंने कहा की जहां से लाए थे वहीं चलना है, फिर बार बार क्यों पूछ रहे हो। उसने कहा कि मैं नहीं लाया था आप को। मैंने कहा कि चलिए तो आप ने कहा चल़ो। रिक्शा वाला कद काठी से उसी रिक्शे वाले की तरह था। अब चेहरा तो उतना ध्यान से नहीं देखा था हमने। सुभाष चौराहा पार करने के बाद शामियाना के पास एक स्कूटर पर डबल सवारी बकायदे मेरे रिक्शे में झांकते हुए और हंसते हुए आगे बढ़े, फिर दूसरे स्कूटर पर भी डबल सवारी मुझे झांक कर देखे और हंसते हुए आगे निकले। पीछे विक्की वाला डबल सवारी चल ही रहा था। मैंने रिक्शे वाले से कहा कि तुम देख रहे हो, हमें तो कुछ गड़बड़ लग रहा है। रिक्शा वाला बोला कुछ नहीं होगा आप डरिए मत, मैं हूं न। जब रिक्शा रोकने को मैं बोली तो रोक ही नहीं रहा था, कहे कि आप झूठे घबड़ा रही हैं। जब बार बार कहने पर भी रिक्शा नहीं रोका तो मैंने उसे डांटा, तो कहने लगा कंपनी गार्डेन की तरफ से चलिए तो कुछ नहीं होगा। जबकि उस समय आए दिन पेपर में निकलता था कि किसी महिला को कंपनी गार्डेन के भीतर कुदाकर सामान छीने और इज्जत लूटे। मैं रिक्शे पर से ही सुनाकर बोली कि इसके स्कूटर का नंबर नोट करती हूं तब पता लगेगा। बस स्टैंड पर रिक्शा रोकने को कही, रिक्शावाला रिक्शा रोक ही नहीं रहा था ( लग रहा था रिक्शावाला भी उन लोगों से मिला हुआ था ) तो मैं चलते रिक्शे पर खड़ी होकर उसकी पीठ पर एक घूसा मारी और चिल्लाई, तब जाकर रिक्शा रोका। आगे चौराहा था। उसके बाद कंपनी गार्डेन वाला रास्ता मुड़ता। इसलिए उससे आगे जाना ठीक नहीं था। रिक्शा रुकते ही एक स्कूटर कुछ दूर पीछे रुका, एक हनुमान मंदिर की तरफ, एक दाहिने मुड़ कर खड़ा था। मैंने रिक्शा मुड़वाया कि प्लाजा के पास पुलिस वालों को बताऊं या स्टेशन लौट जाऊं। लेकिन स्टेशन जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। रात के 11.30 बज चुका था। फिर मैंने सोचा कि प्लाजा पर काम नहीं बना तो बस स्टैंड ही लौट आऊंगी। जब मेरा रिक्शा मुड़ा तो तीनों वाहन सहित बस स्टैंड पर इकट्ठा हो गए। मैंने फिर उनके स्कूटर का नं. UMV-4175 उन लोगों को सुनाते हुए नोट किया। हल्के पीले रंग का स्कूटर था और विक्की का नं. मिटा हुआ था। तीनों वाहन फिर मेरे पीछे पीछे चले। जब मेरा रिक्शा प्लाजा के पास पुलिस बूथ के सामने रुका, तो वे सब पीछे शामियाने के पास रुक गए। मैं पुलिस बूथ पर गई तो कुछ पुलिस वालों का मुझे देखने का नजरिया ठीक नहीं लग रहा था। मैंने वहां के इंचार्ज पुलिस वाले से कहा कि मैं SSP के यहां फोन कर सकती हूं, तो बोले कि इसके लिए मैडम आपको कैंट थाना जाना होगा। मैंने उनसे कहा कि मैं अकेले कैंट थाना नहीं जा सकती। फिर मैंने SSP से कैसे परिचित हूं, बताते हुए उन्हीं लोगों से अपनी सारी स्थिति बताई। उसके बाद पुलिस वाले हमें वहीं बैठाकर हनुमान मंदिर तक उन लोगों को ढूढ़े। सब भाग गए। कहीं नहीं मिले तो पुलिस वाले ही बस स्टैंड से एक टैम्पू लाए और तीन पुलिस वाले मुझे घर छोड़े। पता नहीं पुलिस वाले हमारी स्थिति देखकर सहयोग किए कि SSP के परिचित होने के नाते सहयोग किए।
घर आए तो रामजी राय बैग टांगकर निकल रहे थे। मैंने कहा कि आपकी ट्रेन आठ घंटे लेट है सुबह आएगी। मैंने चाय पी और सारी घटना बताई। रामजी राय कहे कि इसीलिए मैं रात को अकेले जाने से मना करता हूं। रामजी राय की जरूरी मीटिंग थी, इसलिए 5 बजे वे पटना के लिए निकल गए और सुबह उदय को स्वरूपरानी अस्पताल में भर्ती करा दिया गया।

आज भी लड़कियों/औरतों के प्रति नजरिया नहीं बदला है। बल्कि और खतरनाक हो गया है। अब तो घर के अंदर घुसकर उठा ले जा रहे हैं और कुकर्म करने के बाद हत्या करके फेंक दे रहे हैं। कोई डर ही नहीं है उन्हें। सारे तन्त्र एक दूसरे से मिले हुए हैं। वो चाहे जो करें, लेकिन दूसरों के लिए सुबूत जैसे तैयार रखे रहते हैं।

( शेष अगली किश्त में जारी………)

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