Thursday, November 30, 2023
Homeसाहित्य-संस्कृतिकहानीव्यक्ति और समाज की मानसिक बुनावट को सामने लाती है फरजाना महदी...

व्यक्ति और समाज की मानसिक बुनावट को सामने लाती है फरजाना महदी की कहानी ‘ उल्टा जमाना ’

लखनऊ। जन संस्कृति मंच (जसम) की ओर से 19 नवंबर को आयोजित कहानी पाठ कार्यक्रम में युवा कथाकार फ़रज़ाना महदी ने ‘हंस’ के नवम्बर अंक में प्रकाशित अपनी कहानी ‘ उल्टा जमाना ‘ का पाठ किया। कार्यक्रम का आयोजन एकेडमी ऑफ मास कम्युनिकेशन, कैसरबाग, लखनऊ में किया गया जिसकी अध्यक्षता प्रसिद्ध कथाकार शिवमूर्ति ने की ।

कहानी पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में लखनऊ में अनेक युवा कथाकार आये हैं। वे अच्छी कहानी लिख रहे हैं। फ़रज़ाना महदी उनमें हैं। बदलाव नियम है लेकिन आज जो बदलाव हुआ है वह उल्टा है। समाज में प्रेम, भाईचारा व सहिष्णुता की जगह कट्टरता बढ़ी है। फ़रज़ाना महदी कथानक को कला के स्तर पर साधने में सफल हुए हैं। उनसे उम्मीद पैदा होती है।

कहानी पाठ के बाद इस पर चर्चा हुई जिसका आरम्भ असगर मेहदी ने किया। उनका कहना था कि इस कहानी की पृष्ठभूमि में उपमहाद्वीप की शिया कम्यूनिटी के भीतर जारी द्वन्द से बाहरी दुनिया को परिचित कराने का प्रयास है। कहानी के ज़रिए अनेक मुद्दे ज़ेर ए बहस आते हैं जिसमें सर्वप्रथम है उसूली शियाओं में सियासत और धर्म का घालमेल। कहानी का उद्देश्य सामन्तवादी परम्पराओं के पक्ष में रेजिमेंटेशन नहीं बल्कि धर्म को राजनैतिक हथियार बनाने की नीति के ख़िलाफ़ एक मुखर और सशक्त हस्तक्षेप है। इस ख़तरनाक हथियार के प्रति कहानी हमें सचेत करने की कोशिश है।

दयाशंकर राय ने कहा कि इधर कुछ सालों से मुल्क के बुनियादी ताने बाने से जिस तरह छेड़छाड़ कर उन्माद की संस्कृति को बढ़ावा दिया गया है उसने व्यक्ति और समाज के एक हिस्से की मानसिक बुनावट को काफी आक्रामक बनाया है। फरजाना महदी की यह कहानी ‘उल्टा जमाना’ समाज और व्यक्ति के अंदर हाल के परिवर्तनों के चलते बनी उस मानसिक बुनावट को बहुत ही सलीके से प्रस्तुत करती है। इसकी केन्द्रीय पात्र नसीम बानो प्रतिरोध की प्रतीक हैं।

सत्येन्द्र कुमार रघुवंशी ने कहानी की समीक्षा की तथा विस्तार से अपने विचार रखे। उनका कहना था कहानी ‘उल्टा जमाना’ वर्तमान समय में बढ़ती धार्मिक कट्टरता, सामाजिक असहिष्णुता और वैचारिक संकीर्णता को सामने ले आती है। इससे हमारे सामाजिक जीवन का सौन्दर्य और सन्तुलन छिन्न-भिन्न हुआ है। इस यथार्थ को कहानीकार ने बड़े ही मार्मिक और प्रभावशाली तरीक़े से प्रस्तुत किया है।

मोहम्मद अहसन ने कहा कि भारत की पहचान कृषि प्रधान देश की रही है। आज धर्म प्रधान देश की बन गई है। त्योहार धार्मिक से अधिक सांस्कृतिक रहे हैं। यह दौर है जब धार्मिक शुद्धता पर जोर है। फ़रज़ाना की कहानी इस विषय को एड्रेस करती है।

इस मौके पर अशोक चन्द्र, आशीष सिंह, के के वत्स, सबाहत आफरीन और सिम्मी अब्बास ने भी अपने विचार व्यक्त किए। उनका कहना था कि ऐसी कहानियों की बेहद जरूरत है जो समय व समाज के यथार्थ को सामने लायें और विभेद व विभाजन पैदा करने वाली ताकतों के विरुद्ध सजग व सचेत करें।

कार्यक्रम का संचालन अरविन्द शर्मा ने किया। इस अवसर पर सईदा सायरा, विमल किशोर, इशरत नाहीद, अशोक श्रीवास्तव, कलीम खान, राकेश कुमार सैनी, मोहम्मद कालिम खान, भगतसिंह यादव, कौशल किशोर आदि मौजूद थे जिन्होंने कहानी का आस्वादन किया तथा एक अच्छी कहानी के लिए फ़रज़ाना महदी को मुबारकबाद दिया।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments