( पत्रकार मनोज कुमार के साप्ताहिक कॉलम ‘देसवा’ की दसवीं क़िस्त )
पांच वर्ष पहले सितम्बर महीने की नौ तारीख को गोरखपुर-बड़हलगंज मुख्य मार्ग पर 20 किलोमीटर चलने के बाद जब हम बेलीपार से पहले चारपान गांव जाने वाली सड़क पर मुड़े तो नीली समीज और सफेद सलवार पहनी कई लड़कियां स्कूल जाते दिखीं। आगे बढ़ने पर गांव का मुख्य द्वार दिखा। उसे पार करते हुए हम सरिता के घर पहुंचे।
सीमेंटेड व टिन शेड के दो कमरे वाले घर के बाहर आम के पेड़ के नीचे एक तख्ते पर कुछ लोग बैठे बातचीत कर रहे थे। सामने बड़ा सा भगौना चूल्हे पर रखे जाने का इंतजार कर रहा था। चूल्हे के इर्द-गिर्द कई महिलाएं बैठी हुईं थी। एक कमरे के दरवाजे पर खाद की बोरियों से बनाया गया पर्दा लटक रहा था। दरवाजे से हटकर चारा काटने की मशीन थी जिस पर कपडे़ सूखने के लिए रखे थे।
जब हम पहुंचे तभी एक महिला भी वहां पहुंची। उसे देखते हुए सभी महिलाएं लिपट कर रोने लगीं। सरिता के गुजरे दो दिन हो चुके थे। दो दिन पहले उसने उसने खुदकुशी कर ली थी।
सरिता कौड़ीराम के पास एक कालेज में बीए फाइनल ईयर में पढ रही थी। सरिता का बड़ा भाई परिवार का बोझ हल्का करने के लिए कुछ काम ढूंढने की कोशिश कर रहा था। उससे छोटे भाई और बहन भी पढ़ रहे थे।
उसके घर के सामने ही रहने वाले दो परिवारों के तीन लड़के सरिता को काफी समय से परेशान कर रहे थे। दोनों परिवारों का गांव में काफी दबदबा था। सरिता के घरवालों को गांव से बाहर जाने के लिए इन्हीं केघर के सामने से गुजरना होता था।
जब सरिता कालेज जाने के लिए निकलती तो ये लड़के रास्ते में खड़े हो जाते और उसे पूरे रास्ते छेड़ते। कालेज से लौटते वक्त भी यही सिलसिला चलता। इन लड़कों में से एक ने सरिता से एकतरफा प्रेम का दावा किया और कहा कि यदि उसने उसका कहना नहीं माना तो उसे मार डालेगा। उसे बदनाम कर देगा। उसके पूरे परिवार को बर्बाद कर देगा।
सरिता पढ़ाई के साथ-साथ एसएससी जीडी कांस्टेबल परीक्षा की तैयारी कर रही थी। उसने फिजिकल परीक्षा पास कर ली थी। वह पूरा ध्यान पढ़ाई में लगा रही थी लेकिन युवकों की छेड़खानी और पीछा करने से वह परेशान होती गयी। उसने माता-पिता से कुछ नहीं कहा लेकिन बड़े भाई सतीश से पूरी बात बतायी। बड़े भाई ने उससे कहा कि वह उनकी तरफ ध्यान न दे। पढ़ाई में मन लगाए। मै तुमको पढाउंगा।
लेकिन सरिता का उत्पीड़न जारी रहा। बात हद से आगे बढ़ी तो उसने परिवार वालों को बताया। घर वालों ने जब लड़कों के परिजनों से शिकायत की तो वे उनसे ही लड़ने लगे। लड़की के चरित्र पर सवाल उठाने लगे। सरिता के घर के आने-जाने वाले रास्ते को बंद कर दिया। सरिता और उसके घर वालों को खेत की पगडंडियों से होकर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।
स्थिति जब बदतर होने लगी तो सरिता का भाई थाने गया और शिकायत की। पुलिस ने कहा कि बातचीत कर मामला सुलझा ले। गांव के जो लोग सब जानते-समझते चुप थे, समझौता कराने के लिए दबाव बनाने लगे। तीन सितम्बर 2015 को समझौता हुआ। समझौते में लड़की के भाई की ओर से लिखा गया कि ‘ गांव के संभ्रांत व्यक्तियों के समझाने बुझाने पर हम आपस में सुलह-समझौता कर रहे हैं। यदि आगे कोई घटना होगी तो समझौते का दूसरा पक्ष जिम्मेदार होगा। ’
लेकिन इस समझौते का कोई असर दूसरे पक्ष पर न पड़ना था न पड़ा। उसने अपनी हरकतें बदस्तूर जारी रखीं। आखिर एक शाम सरिता अपने कमरे में फंदे से लटकते पायी गयी। उसने एसएससी परीक्षा की तैयारी करने वाली किताब में सुसाइड नोट छोड़ रखा था।
सरिता की आत्महत्या की वजह बताते हुए डबडबायी आंखों से सतीश ने उसका सुसाइड नोट मुझे थमाया।
सेवा में
मैं जो कुछ करने जा रही हूं इसमें मेरे परिवार वालों कl कोई दोष नहीं है। मैं भी कुछ अपने मां और पिता का नाम रोशन करना चाहती थी लेकिन कुछ ऐसे दरिंदे हैं जो मुझे मरने को मजबूर कर दिये।
वास्तव में इन लोगों ने मेरे साथ अर्थात मेरे परिवार वालों को जितना ज्यादा दर्द दिया है कि मैं बर्दाश्त नहीं कर पा रही हूँ। इसी वजह मुझे अपने को खत्म करना पड़ रहा है। हरिलाल नेता और उसके परिवार वालों की वजह से मुझे इतना दुख झेलते हुए मुझे आज अपना अपना जान देना पड़ा। जो भी इस भरी हुई दुःख की कहानी को पढ़े मुझे उससे यही दुआ है कि मेरे परिवार वालों पर कोई आंच ना आने पाए। मेरे परिवार वालों ने इतना दर्द सहते हुए भी उन्होंने कुछ न बोला लेकिन उन्होंने हरिलाल नेता के परिवार वालों के सामने हाथ जोड़कर कहा कि मेरी आपसे यही प्रार्थना है कि मेरी लड़की को सताना छोड़ दो लेकिन फिर भी उन्होंने मेरा न पीछा न सताना। कुछ लोग जिंदगी में इतना दर्द दे जाते हैं जो कुछ लोग सह नहीं पाते। ठीक उसी तरह मेरे साथ ऐसा हुआ। हरिलाल के परिवार और सत्येंद्र ने मुझे दुःख दिया कि मैं मजबूर होकर अपने को खत्म कर रही हूँ।
जब मैं कॉलेज के लिए निकलती थी तब मेरे पीछे लग जाता था। मैं जब भी उससे कहती थी कि मुझे परेशान मत करो मैं अपने परिवार वालों से कह दूंगी तो तो विक्रम उर्फ सर्वेश कुमार दीपक मुझे धमकी देता रहता था कि तुमसे मैं प्यार करता हूं और अगर तूने मुझे अपना न माना तो मैं तुझे बदनाम कर दूंगा।
फिर भी मैं चाहती थी कि मैं कुछ पढ़ लिखकर कुछ बनूँ। मैं अपने परिवार वालों का नाम रोशन करूँ। मैं भी अपने देश के लिए कुछ करना चाहती थी लेकिन इन्होंने नहीं मुझे कुछ बनने दिया और ना ही मुझे जीने दिया।
मैं जब भी उसके सामने हाथ जोड़ती थी तब वह कहता था चाहे कुछ भी कर लो मैं पीछा ना छोड़ने वाला हूं। मैं उसे तंग आ चुकी थी।
विक्रम और हरिलाल ने मुझे जान से मारने की धमकी दी थी और बोला कि तूने अपने परिवार वालों से कुछ भी कहा तो मैं तेरे परिवार वालों को भी मार डालूंगा। इसी कारण मैं अपने परिवार वालों को कुछ ना बताती थी।
मन ही मन मैं अकेले में रो-रो कर अपना दर्द खत्म करने की कोशिश करती है।
फिर भी इन लोगों ने मुझे सताना बंद नहीं किया। मेरे परिवार वाले मेरी शादी करना चाहते थे और पढ़ाते भी थे लेकिन जब ये बात मैं विक्रम और सभी दीपक से बोले कि मेरी शादी होने वाली है तो विक्रम बोला कि देखते हैं कि तुम किससे शादी करती हो। मैं उसे और तुम्हें दोनों को गोली मार दूंगा। विक्रम बोलता था कि मैं तुझे बर्बाद कर डालूंगा। यही वजह है कि मुझे अपने परिवार वालों का साथ छोड़ना पड़ गया।
मेरी आप सब से यही विनती है कि मेरे परिवार पर कोई आंच न आये। मैं अपने परिवार वालों से बहुत प्यार करती थी और मेरे परिवार वाले भी मुझसे उतना ही ज्यादा करते थे। सत्येंद्र और विक्रम के परिवार वालों में कोई भी सदस्य ऐसा ऐसा नहीं जो इस बात को जानता न हो।
इसीलिए मेरी प्रार्थना यही है कि जो भी इस लेटर को पाए वह दोनों परिवार वालों को सजा जरूर दिलाए।
मैं अपना सपना तो पूरा ना कर सकी लेकिन मेरी आखिरी इच्छा जरूर पूरा आप लोग मिलकर करेंगे मेरी यही दुआ है आप सभी से।
वे मुझे हमेशा ब्लैकमेल करते रहे थे जिनकी वजह से मैं अपने परिवार वालों तथा अपना सपना पूरा न कर पायी। मेरा भाई मुझसे बहुत प्यार करता था। वह मेरा हौसला बढ़ाता रहता था। कहता था जाने दो। मैं अपने दम पर तुझे पढ़ाऊंगा। लेकिन शायद मैं इतनी बड़ी मुश्किलों का सामना ना कर पायी। मैं मरना नहीं चाहती लेकिन मैं मुश्किलों का सामना करते करते थक गई थी। विक्रम और सत्येंद्र के परिवार वालों ने मुझे मरने के लिए मजबूर कर दिए थे। इन्हें सजा जरूर मिलनी चाहिए। मैं अपने परिवार वालों से बहुत कुछ कहना चाहती थी लेकिन मेरे पास समय नहीं है। मां रोना मत।
सुसाइट नोट की आखिरी पंक्तियां पढ़ने में नहीं आ रही थीं। लगता था कि सरिता कुछ और भी लिखना चाहती थी लेकिन उसकी दुःख की कहानी लिखते-लिखते उसकी कलम की हिम्मत टूट गयी, स्याही सूख गयी।
सितम्बर महीने के दूसरे हफ्ते की सुबह नौ बजे का समय था। सरिता के आखिरी पत्र का हर हर्फ शरीर और आत्मा में गहन अंधकार घोल गया।
सतीश का हाथ पकडे़ मै उसके कमरे में गया। उसने घर का वह कोना दिखाया जहां सरिता अपने वजूद के साथ रहती थी। सरिता अपनी जगह पर एक सिलाई मशीन,एसएससी कांस्टेबल भर्ती परीक्षा-2015 की किताब और दीवार पर टंगा डा. अम्बडेकर का चित्र छोड़ गयी थी।
गांव से लौट रहा था। सड़क सन्नाटे से भरी थी।
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सरिता की आत्महत्या के बाद पुलिस ने केस दर्ज किया और पांच लोग गिरफ़्तार हुए। अभियुक्तों की दस महीने बाद जमानत हो गयी। तभी से अदालत में केस चल रहा है। पांच वर्ष हो गया है। तारीख पर तारीख पड़ रही है। अभियुक्तों ने जेल से छूटने के बाद सरिता के घर वालों का रास्ता बंद कर दिया। अब सरिता के घर वाले खेत की पंगडडियों से होकर आते-जाते हैं। सरिता का बड़ा भाई मजदूरी करने मुम्बई चला गया है। पिता बीमार रहते हैं। छोटे भाई और बहन पढ़ रहे हैं।
छोटे भाई ने कहा कि जिन लोगों की वजह से बहन ने जान दी, वे बहुत शक्तिशाली हैं। हम उनसे सीधे नहीं लड़ सकते। केस लड़ते रहेंगे। हमारा ध्यान अपनी शिक्षा पर है।
सरिता ने अपने सुसाइड नोट में लिखा था कि जो लोग इसे पाएं और पढ़ें वे मेरी मौत के जिम्मेदार लोगों को सजा जरूर दिलाएं। सरिता का पत्र बहुतों ने पढ़ा था। मैने भी पढ़ा था। हाथरस और बलरामपुर की लड़की की मौत के बारे में लिखते-पढते सरिता का पत्र आज फिर पढ़ रहा हूं। माफ करना सरिता ! तुम्हारी मौत के जिम्मेदारों को पांच वर्ष बाद भी हम सजा नहीं दिला पाए हैं।