समकालीन जनमत
देसवा

फूलमनहा में फूल का जनाज़ा

( पत्रकार मनोज कुमार के साप्ताहिक कॉलम ‘देसवा’ की छठवीं क़िस्त  )

तीन वर्ष पहले की बात है। मैं जब महरजगंज जिले के बृजमनगंज क्षेत्र के फूलमनहा गांव पहुंचा तो एक पुराने घर के बाहर ही दिनेश थापा मिल गए। वह हमें घर के बाहर से निकली सीढ़ियों से होते हुए एक कमरे में ले गए जहां उनकी पत्नी अस्मित अपनी छोटी बेटी दीपिका के साथ गुमसुम बैठी हुई थी।

किराए के इस एक कमरे में ही दिनेश थापा, उनकी पत्नी और दो बेटियां-मनीषा व दीपिका करीब पांच वर्ष से रह रहे थे। दिनेश थापा नेपाल के अछाम जिले के एक गांव के रहने वाले हैं। वह रोजगार के सिलसिले में इधर-उधर भटकते हुए यहां आ गए। कुछ दिन बाद उन्हें लेहड़ा बाजार और आस-पास के दुकानों में चौकीदारी का काम मिल गया। चौकीदारी के बदले उन्हें हर दुकान व घर से दो से चार रुपए महीना लेते थे। इस तरह उन्हें करीब तीन हजार रूपए मिल जाते थे।

दिनेश को जब किराए पर यह कमरा मिल गया तो वह गांव से पत्नी व दोनों बेटियों को भी ले आए। उन्होंने सरकारी प्राईमरी स्कूल में बड़ी बेटी नौ वर्षीय मनीषा का कक्षा दो में और छोटी बेटी पांच वर्षीय दीपिका का कक्षा एक में एडमिशन कराया। मनीषा की पढ़ाई शुरू में बाधित रही थी। इसलिए उसने यहां पर कक्षा एक से पढ़ाई शुरू की थी।

दिनेश को यह नहीं पता कि फूलमनहा से उनका गांव कितना किलोमीटर दूर है। वह बताते हैं कि उनका गांव कर्णाली नदी के किनारे है। उन्हें यहां से अपने गांव जाने में कुल तीन दिन लगते हैं जिसमें वह दो दिन बस से यात्रा करते हैं तो पूरा एक दिन पैदल चलते हैं। उन्होंने यहां आने के पहले हरियाणा व पंजाब में मजदूरी की थी। वह पहली बार अपने पूरे परिवार के साथ रह रहे थे। अभाव था लेकिन साथ रहने की खुशी थी।

सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन तभी वर्ष 2017 का मनहूस अगस्त महीना आया। दस अगस्त को बीआरडी मेडिकल कालेज में आक्सीजान कांड हुआ। आक्सीजन की कमी से 34 बच्चे मर गए। इस घटना के बाद भी इंसेफेलाइटिस व अन्य बीमारियों से बच्चों का मरना जारी रहा।

28 अगस्त को मनीषा जब स्कूल से लौटी तो उसे हल्का बुखार था। दिनेश एक मेडिकल स्टोर गए और बुखार की दवा दी लेकिन बुखार दिन ब दिन तेज होता गया। दिनेश ने एक प्रावइेट अस्पताल में भी दिखाया लेकिन फायदा नहीं हुआ। तीन दिन बाद 31 अगस्त की सुबह मनीषा को जोर से झटके आने लगे और वह बेहोश हो गई। उसे बृजमनगंज सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र ले जाया गया जहां चिकित्सकों ने जांच कर कहा कि मनीषा को इंसेफेलाइटिस हो गया है। डाॅक्टरों ने मनीषा को इलाज के लिए बीआरडी मेडिकल कालेज रेफर कर दिया।

 

बेटी को लेकर दिनेश मेडिकल कालेज पहुंचे और सुबह साढ़े ग्यारह बजे उसे भर्ती कर लिया गया। इसी बीच उसकी जांच हुई तो वह जेई पाजिटिव पायी गई। यानि उसे जापानी इंसेफेलाइटिस था जो कि मच्छरों के काटने से होता है।

बीआरडी मेडिकल कालेज में चार दिन तक चिकित्सक उसका उपचार करते रहे लेकिन चार सितम्बर की सुबह 10.45 बजे मनीषा ने दम तोड़ दिया।

कमरे में सन्नाटा था। दिनेशा थापा टुकड़ों-टुकड़ों में बेटी को खो देने की व्यथा को बयान कर रहे थे। वह बहुत धीरे बोल रहे थे और कुछ पूछने पर ही जवाब देते थे। बगल में बैठी उनकी पत्नी अस्मित एकदम खामोश थी। उसी गोद में दीपिका बैठी हुई थी। उसके हाथ में एक कंघी थी जिसे वह कभी इधर-उधर घुमाने लगती। बातचीत में कई बार उसने कुछ कहने की कोशिश की लेकिन फिर अचानक चुप हो गयी।

कमरे का सन्नाटा इतना चीख रहा था कि वहां रुकना मुश्किल हो रहा था। चलते हुए मैंने दिनेश से पूछा कि उनके पास मनीषा की कोई तस्वीर है। वह उठे और मनीषा की तस्वीर खोजने लगे। तभी खुशी अचानक बोल पड़ी-‘दीदी और हम एक साथ स्कूल जाते थे।’

दिनेश मनीषा की तस्वीर दिखाते हुए बोले कि दीपिका कभी-कभी घर से बाहर खेलने जाती है लेकिन अचानक गुमसुम हो जाती है। रात को अक्सर दीदी…दीदी कहते हुए उठ जाती है।

अचानक कमरे का सन्नाटा टूटा और अस्मित की सिसकी सुनाई दी। मेरी नजर उनके चेहरे पर गई तो देखा कि पथरायी आंखों से आंसू ढुलक रहे हैं।

कमरे से बाहर निकलकर हम सीढ़ियों से उतरते हुए बाहर आ गए। कई महिलाएं एक साथ खड़ी आपस में बतिया रही थीं। एक महिला बोली-बाबू गांव की रौनक चली गयी। खूब चंचल प्यारी फूल सी थी। जिस दिन मनीषा का शव मेडिकल कालेज से आया, पूरा गांव रोया। शाम को किसी के घर चूल्हा नहीं जला।

हम मनीषा की मौत के 13 दिन बाद फूलमनहा आए थे। गांव से लौटते हुए बार-बार लग रहा था कि शरीर के अंदर से कुछ रिक्त हो गया है। कुछ खो गया है। ऐसा क्यों लग रहा था ?

मुझे तभी किसी शायर की वो पंक्तियां याद आयीं जिसे बीआरडी मेडिकल कालेज में आक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत के बाद किसी ने मुझे भेजा था।

फूल देखे थे जनाज़ों पे अक्सर मैंने
मगर कल शहर में फूलों का ही जनाज़ा देखा

फूलमनहा गांव ने एक फूल का जनाज़ा जनाजा देखा था।

ठीक तीन वर्ष बाद इसी जिले के लक्ष्मीपुर ब्लाक के भैंसहिया पाठक गांव में 26 जुलाई 2020 को एक फूल का जनाजा निकला। अखिलेश की साढ़े आठ माह की बेटी शिवानी की 25 जुलाई को एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से मौत हो गयी। ठीक उसी तरह जैसे मनीषा की।

शिवानी 20 जुलाई को बीमार हुई। उसे उल्टी, दस्त व बुखार की शिकायत पर परिजन पहले एक प्राइवेट चिकित्सक के यहां इलाज के लिए ले गए। स्थिति में सुधार न होने पर 21 जुलाई को सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र फरेन्द्रा के ईटीसी पर बच्ची को इलाज के लिए ले आया गया। वहां पर प्राथमिक इलाज के बाद शिवानी को जिला संयुक्त चिकित्सालय भेज दिया गया जहां इंसेफेलाइटिस मरीजों को भर्ती करने के लिए पीडियाट्रिक इंटेसिव केयर यूनिट ( पीआईसीयू ) है। शिवानी यहाँ पर 23 जुलाई की रात भर्ती हुई और 25 जुलाई तक उसका इलाज हुआ लेकिन 25 जुलाई की शाम को उसकी मौत हो गयी।

पिछले चार दशक से पूर्वांचल इंसेफेलाइटिस के कारण हजारों फूलों का जनाजा निकलते देख रहा है।

मनीषा के जाने के बाद दिनेश, अस्मित और दीपिका एक वर्ष बाद फूलमनहा से अपने देस लौट गए। वहीं जिसके पास नेपाल की सबसे बड़ी नदी कर्णाली बहती है। कर्णाली नदी, जिसका पानी एक हजार किलोमीटर की यात्रा करते हुए बहराइच, अयोध्या, गोरखपुर होते हुए गंगा में मिल जाता है।

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