अन्तःमिश्रण के इस दौर में जैसी मिलावटी-घुलावट है, वैसी पहले कभी नहीं थी। कला और साहित्य के रूपों में ही नहीं, उससे इतर इधर विविध क्षेत्रों में। अनुशासन में भी यह प्रक्रिया जारी है। ‘मोदी राग’ भारतीय राजनीति का नया राग है। अब ‘राग’ केवल संगीत में ही नहीं संगीत शास्त्र से निकल कर अन्य शास्त्रों में भी सर्वथा विपरीत ढ़ंग से विद्यमान है। अर्थशास्त्र में ‘विकास राग’, राजनीति में ‘राष्ट्रराग’ आदि इसी के अन्तर्गत आयेंगे। ‘मोदी राग’ भीड़ राग है, प्रशंसक राग है। इसे उत्तेजक राग भी कहा जा सकता है – ‘मोदी मोदी’, ‘हर-हर मोदी, घर-घर मोदी’।
भारतीय राजनीति के पहले अपने स्वर थे। उसकी ध्वनियां अंतर-ध्वनियां भी थी, पर नेहरू के समय भी नेहरू राग नहीं था। इंदु राग भी नहीं था। कांग्रेस राज में कांग्रेस राग मौजूद था, पर वह व्यक्ति से संबंधित ना होकर दल से संबंधित था। मोदी राग की अपनी अलग और धुन है। यह राग व्यक्ति भी गाता है – केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री, राज्यपाल, विधायक और सांसद। भीड़ जब मोदी-मोदी कहती है तो मोदी राग भीड़ राग में बदल जाता है।
543 लोकसभा की सीटों पर विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं। कोई एक राजनीतिक दल भी सभी संसदीय सीटों पर चुनाव नहीं लड़ रहा है। करोड़पति, अपराधी सभी चुनाव लड़ रहे हैं, पर भाजपा अध्यक्ष का सुर और स्वर अलग है। अभी उन्होंने अंग्रेजी साप्ताहिक पत्रिका ‘द वीक’ के ताजा अंक (14 अप्रैल 2019) में पत्रिका के विशेष संवाददाता अतुल शर्मा को एक प्रश्न के उत्तर में यह कहा है कि ‘ आप अपनी यह गलतफहमी ठीक करें कि संसदीय चुनाव प्रत्येक व्यक्ति लड़ रहा है। अमित शाह भी चुनाव नहीं लड़ रहा है। प्रत्येक सीट से नरेंद्र मोदी चुनाव लड़ रहे हैं। देश नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए वोट दे रहा है।’
भारत में संगीत में जो 300 राग हैं। वह सब एक दूसरे से भिन्न है। कई रागों की आपस में मैत्री भी है पर वहां कोई एक राग अन्य रागों को लील नहीं जाता। श्रोताओं की अपनी पसंद है। गायकों के अपने-अपने राग हैं। वहां न तो छीना झपटी है, ना हो मारामारी। बड़ी आसावरी है, बागेश्वरी है, बहार और भैरव है, भैरवी-भीमपलासी है, बिलावत है, दुर्गा, गौरी, गुजरी है, मारवा और मेघ मल्हार है। यहां राग सूची बताना और लिखना उद्देश्य नहीं है। निवेदन बस यह है कि संगीत में विभिन्न रागों के बीच उठापटक और लड़ाई नहीं है लेकिन राजनीति संगीत तो नहीं है। अब तो गायक और संगीतज्ञ भी निशाने पर हैं और उन्हें ‘कंसर्ट’ से रोका जा रहा है, जो पहले नहीं था।
मोदी राग की लय और धुन भिन्न है। इसमें भाजपा विलीन हो गई है। आर एस एस का राग भी इसमें समाहित है। इसमें अंतरलीन अनेक रागों की पहचान कठिन नहीं है। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पहले से इस राग की ध्वनियां निर्मित होने लगी थी, विशेषता 2002 के बाद, जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे। इस राग के निर्माण में ‘हिंदुत्व’ दर्शन के साथ कॉरपोरेटों और वैश्विक पूंजी के नियंता की एक बड़ी भूमिका है।
पिछले 5 वर्ष में यह राग पूर्णतः संमृद्ध और विकसित होकर अब ढलान पर है। इस राग का संबंध थैली, भाव-विचार शून्यता और व्यक्ति-सत्ता से है। यह एक नया सत्ता-राग है जो पूर्व सत्ता रागों से भिन्न है। इस राग में व्यक्ति विशेष और वह भी सर्वोच्च पद पर सत्तासीन व्यक्ति विशेष ही सर्वस्व है। भारतीय जनता पार्टी में जो ‘भारतीय’ और ‘जनता’ पद है उससे इस राग का कोई संबंध नहीं है। इसे भारतीय राग और जनराग या लोकराग नहीं कहा जा सकता क्योंकि इससे ‘लोक’ और ‘भारत’ दोनों गायब हैं।
प्रधानमंत्री ना तो ‘लोक’ के पर्याय हैं और ना भारत के। सचिन पायलट के विधानसभा क्षेत्र टोंक में प्रधानमंत्री ने कहा था – ‘मोदी है तो मुमकिन है’। कई बार कई भाषणों में उन्होंने यह कहा है कि वे देश नहीं झुकने देंगे और देश नहीं मिटने देंगे। जनता को आश्वस्त किया है कि वे निश्चिंत रहें। वे चौकीदार हैं और देश को लुटने नहीं देंगे। कांग्रेस उनके अनुसार लूट पार्टी है। उनसे प्रभावित-प्रेरित लोगों की संख्या कम नहीं है। उनके समक्ष लोकतंत्र की धड़कन-थिऱकन समाप्त हो गई है। अपने भाषण में पहली बार वोट डालने वाले मतदाताओं से उन्होंने यह कहा है कि इस बार आप वोट सिर्फ देश के लिए देंगे। पहला वोट केवल देश के लिए मजबूत सरकार बनाने के लिए दे। आपका वोट कमल पर बटन दबाने से सीधा मोदी के खाते में जाने वाला है। क्या भाजपा का खाता केवल मोदी का खाता है ?
पूरा राजनीतिक दल एक व्यक्ति विशेष में किन स्थितियों में विलीन हो जाता है। यह समाज वैज्ञानिकों के अध्ययन और शोध का विषय है। भारतीय राजनीति में इंदिरा गांधी को छोड़कर ऐसा कोई दूसरा उदाहरण नहीं है। देवकांत बरुआ ने ‘इंडिया इज इंदिरा’ कहा था पर अब ना तो बरुआ है और न इंदिरा गांधी। भारत और इंडिया अब भी है और कल भी रहेगा। नरेंद्र मोदी को विकास पुरुष के साथ संभव है ‘विकास अवतार’, ‘धर्म अवतार’, ‘भाजपा अवतार’ और ‘राष्ट्र अवतार’ या ‘ईश्वर अवतार’ मानने वाले भी हो पर यह सच है कि वह अवतार पुरुष नहीं हैं।
अभी गुजरात के जूनागढ़ में प्रधानमंत्री ने कहा – ‘‘कांग्रेस की टेप रिकॉर्डर पर ‘मोदी हटाआ, मोदी हटाओ’ एक ही गाना बजता है। कांग्रेस हर हिंदुस्तानी की भावना को चोट पहुंचा रही है’। क्या इस कथन से यह स्पष्ट नहीं होता कि ‘हर हिंदुस्तानी’ मोदी का समर्थक है। संगीत के श्रोताओं का राग-प्रेम अलग अलग है। वहां एक राग विशेष के प्रेमी भी अन्य राग सुनते और समझते हैं। उनका मान सम्मान करते हैं। मोदी राग के प्रेमियों के साथ ऐसा कुछ नहीं है। इस राग के निर्माण और विकास में संघ और संघ परिवार की, आडवाणी की, धन कुबेरों की, देश के भीतर और देश के बाहर के दक्षिणपंथियों की विशेष भूमिका रही है। स्वयं मोदी की भूमिका सबसे ऊपर है। उन्होंने इस राग का विस्तार, प्रचार प्रसार किया। इसे सेना तक से जोड़ दिया। जूनागढ़ में मतदाताओं से उन्होंने यह कहा ‘पहला वोट आपका पाकिस्तान के बालाकोट में वीर जवानों के नाम समर्पित हो सकता है। पहला वोट पुलवामा में शहीद हुए वीर सपूतों को समर्पित हो सकता है।’
‘देश की सेना’ को ‘मोदी की सेना’ कहने वालों का प्रेम देश के प्रति है या मोदी के प्रति ? राष्ट्र प्रेम जब व्यक्ति प्रेम में बदल जाए तो राष्ट्र के समक्ष संकट की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। लाल कृष्ण आडवाणी ने वर्षों तक का मौन तोड़कर अपने ब्लॉग में ‘नेशन फर्स्ट, पार्टी नेक्स्ट और सेल्फ लास्ट’ कहा। पहले की भाजपा में अंत में व्यक्ति भले रहता रहा हो पर मोदी-शाह की भाजपा में व्यक्ति ही पार्टी है, वही राष्ट्र है। आडवाणी ने इतिहास की, कल की भाजपा की बात कही, वर्तमान की भाजपा की नहीं। वर्तमान को ध्यान में रख कर ही उन्होंने ऐसा कहा पर इस वर्तमान के निर्माण में सबसे बड़ी भूमिका उनकी ही रही। उन्होंने ही हिंदुत्व को भारतीय राजनीति के केंद्र में ला दिया। आज जब वे ‘भारतीय लोकतंत्र के सार’ को ‘विविधता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ का सम्मान कहते है, राजनीतिक विरोधियों को, अपने से असहमत दलों और व्यक्तियों को अपना शत्रु नहीं मानते तो यह सब पुरानी बातें हैं।
भाजपा का वर्तमान युग मोदी- शाह युग है। वह अतीत में अटल-आडवाणी युग था। कोई युग एक दूसरे से सर्वथा अलग नहीं होता। अटल-अडवाणी के दौर से निकला है मोदी-शाह युग। पहले अटल-आडवाणी राग नहीं था। एक संघ राग था जो कम सुनाई देता था। आज विविध रूपों में लगभग सर्वत्र उसकी ध्वनिया तैर रही हैं, गूंज रही है – देश में सर्वाधिक और विदेश में कम ही सही, पर यह मौजूद है।
मोदी राग से खिन्न व्यक्ति किनारे किए जा चुके हैं। राष्ट्रीय स्तर पर आडवाणी, जोशी, सुमित्रा महाजन सब। यह राग 75 वर्ष से अधिक व्यक्तियों को अधिक सुहाता भी नहीं था। वह सब इस नवनिर्मित राग के साथ दिल से नहीं थे।
शत्रुघ्न सिन्हा ने इस राग की सदैव आलोचना की और अंत में कांग्रेस के प्रत्याशी बनकर पटना साहिब से चुनाव लड़ रहे हैं। रांची के रामटहल चैधरी ने टिकट न मिलने पर भाजपा से इस्तीफा दे दिया है और स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने की घोषणा की है। कहा है – अब भाजपा में यस मैन की राजनीति हो रही है जो मुझे कतई बर्दाश्त नहीं है। यहां तानाशाही रवैया हावी है।’ दलीय प्रेम और चुनाव प्रेम में अंतर है। मोदी राज के आज के आलोचक कल तक इस के प्रशंसक थे। राजनीति में एक राग ‘अवसरी’ भी है जो अवसर के अनुरूप गाया जाता है। ‘राग दरबारी’ की तर्ज पर एक राग ‘राग सरकारी’ भी है जिसे अफसर गाते है। राग सरकारी स्थाई राग नहीं है। राग मोदी, राग सरकारी, राग कारपोरेटी और राग हिंदुत्व के बीच एक संबंध भी है।
पाकिस्तान में अचानक ‘राग मोदी’ इमरान खान की विदेशी पत्रकारों के साथ हुई बातचीत में सुनाई पड़ा। इमरान खान ने प्रधानमंत्री मोदी की तुलना इस्राएली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतनयाहू से की क्योंकि दोनों के कैंपेन भय और राष्ट्रवादी भावना पर आधारित हैं। ठीक भारत में चुनाव के समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि दूसरों की तुलना में प्रधानमंत्री मोदी हमें बातचीत का एक बेहतर अवसर देंगे। 2013 के पाकिस्तान के चुनाव में जब नवाज शरीफ से भारत के बारे में ऐसा ही सवाल पूछा गया था उनका उत्तर था कि जो कोई ‘पावर’ में आएगा, उनसे दोनों देशों के बीच शांति कायम रहना हमारा लक्ष्य रहेगा।
पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सीनेटर शेरे रहमान ने अपने एक ट्वीट में यह कहा है कि भारत में चुनाव के दौर में इमरान खान का ऐसा कथन सही नहीं है क्योंकि भारत पाकिस्तान एक दूसरे से व्यापार करते हैं न कि एक व्यक्ति से। एक व्यक्ति के प्रमुख होने से ही व्यक्ति राग का जन्म होता है। पाकिस्तान में एक प्रमुख मत यह भी है कि मोदी के दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद पाकिस्तान के प्रति उनका रुख और कड़ा होगा।
मोदी और भाजपा के साथ अन्य अनेक राजनीतिक दल हैं। राजग सत्तारूढ़ गठबंधन है। दक्षिणपंथी राजनीतिक गठबंधन है। इस गठबंधन में ‘धनुष बाण’ लेकर जो शिव सेना का चुनाव चिन्ह है वह भी शामिल है और ‘तराजू’ के साथ शिरोमणि अकाली दल भी है। ‘बंगला’ चुनाव चिन्ह के साथ रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा है और ‘तीर’ के साथ नीतीश कुमार की जदयू है। भाजपा के साथी-सहयोगी दल कम नहीं है। यह सभी क्षेत्रीय दल मोदी राज से प्रभावित हैं पर सबका अपना-अपना राग भी हैं जो अधिक प्रभावी नहीं है। यह मानना गलत होगा कि मोदी राग में अन्य दलों और दल प्रमुखों के राग विलीन हो चुके हैं। उनकी अपनी सुविधा-राग हैं जो समय-समय पर अपने वाद्य यंत्रों के साथ प्रमुख राजनीतिक रागों से जुड़ जाते हैं।
मोदी राग सबको पसंद नहीं है। कवि, कलाकार, फिल्मकार, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी, संगीतकार, वैज्ञानिक, समाज वैज्ञानिक और बुद्धिजीवी सब इस राग के खिलाफ हैं। सबने मतदाताओं से अपील की है कि वे इस चुनाव में मोदी और भाजपा प्रत्याशी को खारिज करें। उन्हें वोट ना दें और लोकतंत्र, संविधान की रक्षा करें, देश बचाएं। लोकराग से भिन्न है मोदी राग। यहां व्यक्ति प्रमुख है। इस राग के साथ ही देश में संस्थाएं नष्ट होने लगीं। मीडिया ‘गोदी मीडिया’ बन गया। यह एक हाहाकारी राग है। इंदिरा गांधी के समय आपातकाल में इन्दु राग सुनाई पड़ा था। ऐसे राग की दिशाएं स्पष्ट हैं। मोदी राग फासीवाद की ओर ले जा रहा है। देश का भविष्य बड़ा है जिसकी हिफाजत के लिए मोदी राग और मोदी राज दोनों को मिटाना होगा और यह केवल, हां केवल मतदाताओं पर निर्भर करता है। स़त्रहवीं लोकसभा का चुनाव इसलिए महत्वपूर्ण है कि चुनाव के बाद मोदी राग सुनाई देगा या लोकराग ? लोकतंत्र का सच्चा राग ?
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