समकालीन जनमत
ख़बर

सांप्रदायिक नफरत की राजनीति से लड़ते हुए सच्चे भारतीय राष्ट्रवाद को जिंदा रखना होगा : प्रो. राम पुनियानी

भोजपुर. ‘‘रोजी, रोटी, शिक्षा, स्वास्थ्य के मामलों को हल करना किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था की अनिवार्य शर्त है, पर पिछले पांच साल से भारत में उल्टी दिशा में गंगा बहाने की कोशिश की गई है। राम मंदिर, गोहत्या, लव जेहाद जैसे मुद्दे लोकतंत्र को कमजोर करते हैं। संविधान पूरे भारत के लोगों को परिवार का सदस्य बताता है, पर उस परिवार में धर्म और जाति के आधार पर नफरत की दीवारें खड़ी की जा रही हैं। ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ किसी भी लोकतंत्र के लिए जरूरी चीज है। किसी भी लोकतंत्र में शासक सरकार से अलग राय रखी जा सकती और उसकी आलोचना की जा सकती है। जहां ऐसा नहीं होता, उसे लोकतंत्र नहीं कहा जा सकता। हमारे यहां सरकार की आलोचना करने वालों को देशद्रोही कहा जा रहा है, जो लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है।’’
सांप्रदायिक सौहार्द के प्रति प्रतिबद्ध मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता, आईआईटी के पूर्व शिक्षक और चिकित्सा पदाधिकारी तथा चर्चित लेखक-विचारक प्रो. राम पुनियानी ने जन संस्कृति मंच द्वारा 18 अप्रैल को रेडक्राॅस सभागार में आयोजित संगोष्ठी ‘लोकसभा चुनाव 2019: भारतीय लोकतंत्र की चुनौतियां’ में ये बातें कहीं।
प्रो. राम पुनियानी ने कहा कि सांप्रदायिक राजनीति द्वारा फैलाए गए नफरत से लड़ते हुए सच्चे भारतीय राष्ट्रवाद को जिंदा रखना होगा। नौजवानों की नौकरियों के लिए लड़ना होगा। किसानों की आत्महत्याओं के सवालों को उठाना होगा, आदिवासियों, दलितों, महिलाओं की बराबरी के लिए काम करना होगा। अल्पसंख्यकों के प्रति फैलाए जा रहे नफरत के खिलाफ लड़ना होगा। लोगों को वैचारिक स्तर पर सेकुलर बनाना होगा। सभी धर्मों के नैतिक मूल्यों को आदर करना, आजादी के आंदोलन के सिद्धांतों का पालन और संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित मानवाधिकार संबधी मूल्यों के लिए संघर्ष करना जरूरी है। इसी से हमारा लोकतंत्र मजबूत होगा।
 
लोकतंत्र वही हो सकता है, जहां अल्पसंख्यक सुरक्षित हों
प्रो. पुनियानी ने कहा कि लोकतंत्र वही हो सकता है, जहां अल्पसंख्यक सुरक्षित हों। लेकिन भारत में ऐसा नहीं है। उन्होंने कहा कि सांप्रदायिकता से उनका तात्पर्य महज दंगों से नहीं, बल्कि उस सांप्रदायिक राजनीति से है, जो धर्म के आवरण में की जाती है। जो आइसबर्ग के नब्बे प्रतिशत छिपे हुए हिस्से की तरह होती है। उन्होंने कहा कि आज हिंदू राजा अच्छा और मुस्लिम राजा बुरा का जो प्रचार किया जा रहा है, वह तथ्यात्मक तौर पर गलत है। राजशाही यानी राजतंत्र का आधार धर्म नहीं था।
उन्होंने स्वामी विवेकानंद के विचारों का हवाला देते हुए जोर देकर कहा कि भारत में इस्लाम तलवार की जोर पर नहीं फैला, बल्कि वर्ण-व्यवस्था के अत्याचार और भेदभाव के कारण ज्यादातर लोगों ने इस्लाम को अपनाया। उन्होंने हिंदुत्ववादियों द्वारा प्रचारित इस्लाम विरोधी जहरीले विचारों का तार्किक तरीके से सिलसिलेवार खंडन किया। उन्होंने बताया कि हिंदू राजाओं और मुस्लिम बादशाहों की सेना में प्रमुख जिम्मेवारियों में मुसलमान और हिंदू थे। धर्म उनकी लड़ाइयों की बुनियाद में नहीं था, बल्कि सत्ता और संपत्ति थी।
समाज और मानवता से प्यार धर्म की पहचान है
प्रो. पुनियानी ने कहा कि धर्म के नाम पर खून की नदियां बहाने वालों से धर्म को नहीं समझा सकता। धर्म की असली परिभाषा संत कबीर, तुकाराम और ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया संतों और सूफियों से आती है। समाज और मानवता से प्यार धर्म की पहचान है। कबीर ने कहा भी था- पोथि पढ़ि पढ़ि जग मुआ पंडित भया न कोए/ ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडिए होए।
अंगरेजों ने सांप्रदायिक आधार पर बांटने का काम किया
प्रो. राम पुनियानी ने कहा कि 1857 की लड़ाई हिंदू मुस्लिम मिलकर लड़े। बहादुर शाह जफर के साथ कुंवर सिंह, तात्या टोपे, झांसी की रानी आदि थे। अंगरेजों ने इसके बाद फूट डालो राज करो का सहारा लिया। उनलोगों ने राजा को धर्म से जोड़ दिया। हिंदू-मुसलमानों को सांप्रदायिक आधार पर बांटने का काम किया।
 
आरएसएस मनुस्मृति के मूल्यों को नए रूप में वापस लाना चाहता है 
प्रो. राम पुनियानी ने कहा कि आरएसएस अपने को राष्ट्रवादी कहता है, पर वह मनुस्मृति के मूल्यों को नए रूप में वापस लाना चाहता है। स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का विरोधी कोई संगठन राष्ट्रवादी हो ही नहीं सकता। उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा कि आधुनिक उद्योग, खेती, सिंचाई प्रणाली, शिक्षा आदि से संबंधित प्रोजेक्ट नेहरू के मंदिर थे, पर आरएसएस और भाजपा के लिए मंदिर तो मस्जिदों के नीचे थे। मंदिर, गाय, लव जेहाद जैसे मुद्दे राष्ट्रवाद से संबंधित हो ही नहीं सकते। यूपी में आज लाचार-लावारिस गायें घूम रही हैं, फसलों को बर्बाद कर देती हैं, पर उनकी चिंता इन्हें नहीं है। इन्हें गाय से कोई प्रेम नहीं है।
उन्होंने कहा कि बाबा साहब अंबेडकर जो सावर्जनिक कुओं से पानी लेने के अधिकार और मंदिर में प्रवेश के अधिकार तथा शूद्र, दलित-स्त्रियों के लिए मनुस्मृति में वर्णित गुलामी के कानूनों के खिलाफ लड़ते रहे, उन्हें संविधान की ड्राफ्टिंग कमिटी का अध्यक्ष बनाया गया था। उनके सामने बराबरी को लाने की चुनौती थी। जबकि आरएसएस के सरसंघ चालक केएस सुदर्शन जैसों का कहना है कि भारतीय संविधान विदेशी मूल्यों पर बना है। क्या स्वतंत्रता, समता और बंधुता के मूल्य विदेशी है? ये तो सार्वभौम मानवीय मूल्य हैं।
अंत में कवि सिद्धार्थ बल्लभ, सामाजिक कार्यकर्ता सुशील कुमार, सुधीर सुमन आदि के सवालों के जवाब में उन्होंने कहा कि जातिवाद भी लोकतंत्र के लिए चुनौती है। अंबेडकर ने जाति-व्यवस्था को समाप्त करने की बात कही थी, इसके लिए अंतर्जातीय विवाह को बढ़ावा पर जोर दिया था। उन्होंने यह भी कहा कि दलित और स्त्री जाति-व्यवस्था में उत्पीड़ित रहे हैं, उनके लोकतांत्रिक आधिकार सुनिश्चित करने होंगे।
प्रो. पुनियानी ने कहा कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का संबंध वर्ण-व्यवस्था से है। इसका विरोध जरूरी है। मौजूदा चुनाव के संदर्भ में उन्होंने कहा कि आज बुरा, बहुत बुरा, निकृष्ट और उससे भी आगे भाजपा के बीच देश की जनता को चुनाव करना है। जाहिर है भाजपा-आरएसएस के एजेंडे का विरोध करना होगा।
शाहिद कमाल ने साझी संस्कृति को मजबूत बनाने के लिए अभियान चलाने की जरूरत से संबंधित प्रस्ताव रखे।
 
मौजूदा चुनाव पर भारतीय लोकतंत्र का भविष्य टिका हुआ है : नीरज सिंह 
कथाकार नीरज सिंह ने कहा कि मौजूदा चुनाव पर भारतीय लोकतंत्र का भविष्य टिका हुआ है। तानाशाही कभी भी विकल्प नहीं हो सकता। आजादी के संघर्ष में जो मूल्य अर्जित किए गए थे, जिन्हें संविधान बनाते समय उसमें पिरोया गया था। उसे पिछले पांच सालों में कमजोर करने की हरसंभव कोशिश की गई है। लेकिन धर्म-मजहब के आधार पर समाज और देश को बांटने की जो कोशिश चल रही है, उसके विरुद्ध लगातार संघर्ष चल रहा है। यह संघर्ष जारी रहेगा।
संचालन सुधीर सुमन ने किया। धन्यवाद ज्ञापन इप्टा के अंजनी शर्मा ने किया। इस मौके पर मंच पर वरिष्ठ आलोचक रामनिहाल गुंजन और प्रबुद्ध श्रोताओं में कवि-आलोचक जितेंद्र कुमार, प्रो. तुंगनाथ चौधरी, कथाकार सिद्धनाथ सागर, कवि बलभद्र, अरुण शीतांश, सुमन कुमार सिंह, रविशंकर सिंह, ऐपवा नेता सरोज चौबे, गया से आए कवि सत्येंद्र कुमार, कर्मचारी नेता यदुनंदन चौधरी, मदन प्रसाद, बालमुकुंद चौधरी, स्वतंत्र पत्रकार आशुतोष कुमार पांडेय, तनवीर आलम, रंगकर्मी श्रीधर, विजय मेहता, सूर्यप्रकाश, अमित कुमार मेहता, शिक्षक हरिनाथ राम, अभय पांडेय, अखिलेश कुमार, चित्रकार राकेश दिवाकर, प्रीति भारती, रुचि प्रिया, आस्था गुप्ता, स्वाति सुलोचना, आल बिहार प्रोग्रेसिव एडवोकेट ऐसोसिएशन के अमित कुमार बंटी, निर्मल राम, भाकपा-माले नेता अभ्युदय, सुरज कुमार सिंह, राजेंद्र यादव, अभय कुशवाहा, छात्र नेता सबीर, राजन, गांगुली यादव, चंदन आदि मौजूद थे।

Related posts

Fearlessly expressing peoples opinion