समकालीन जनमत
शिक्षा

सावित्रीबाई फुले पुस्तकालय की एक बरस की यात्रा

ममता सिंह

अग्रेसर,अमेठी । बरस भर पहले लगाया एक छोटा सा पौधा जिसके इतना फलने-फूलने की उम्मीद उसे लगाने वालों को भी नहीं थी, आज लहलहा रहा…

यह एक स्वप्न के सच होने जैसा सुखद दिन है जहाँ चारों ओर बच्चों की पुलक भरी आवाज़ें और उनकी उत्सुक निगाहें हैं…जिधर देखो उधर मुस्कुराते-खिलखिलाते,आत्मविश्वास से भरे चेहरे अपने नन्हें हाथों में किताबों को थामे डोल रहे..

सावित्री बाई फूले पुस्तकालय

सर्दियों की बेहद सर्द सुबह जहाँ सूरज भी देर से बिस्तर छोड़ता है,एक-एक करके बच्चे आने लगते हैं,मुंह से भाप छोड़ते यह बच्चे हमारे भी तन-मन में ऊष्मा भर देते हैं और हम जुट जाते हैं उनके साथ पुस्तकालय में…

अलस्सुबह शुरू हुआ पढ़ने का यह कारवां देर रात तक चलता रहता है,बस चेहरे बदलते रहते हैं…कोई -कोई बच्चे सुबह पुस्तकालय में पढ़कर तब विद्यालय जाते हैं… .भोजनावकाश में वह फिर दौड़कर आते हैं और दो-चार पन्ने पढ़ते हैं फिर छुट्टी होते ही सीधे पुस्तकालय..उनकी किताबों के प्रति जुनून को देखते हुए हमारी दीदी उनके लिए कुछ न कुछ अल्पाहार जैसे लाई-मूंगफली,बिस्किट आदि की व्यवस्था करती हैं..देर रात होने पर जब कइयों के माता-पिता उन्हें लेने आते हैं तब वह बेमन से घर जाते हैं…कभी पूछा नहीं पर सोचती हूँ कि शायद अब उनके सपनों में भी किताबें आती होंगी।

माता-पिता प्रसन्न हैं कि अब बच्चे छुट्टी होने के बाद गांव में,खेत में बेवजह नहीं घूमते..लड़ाई-झगड़ा नहीं करते,गाली-गलौज के लिए उनके पास अवकाश ही नहीं क्योंकि यह बच्चे अब अक्षरों की जादुई दुनिया में विचरते रहते हैं।

पर यह कायाकल्प हुआ कैसे! रातोंरात यह कोई चमत्कार हुआ या जादू… यह सब सम्भव हुआ कुछ जागती आंखों द्वारा देखे हुए सपने से जिनके प्रोत्साहन,सहयोग,समर्पण के बल पर सुदूर गांव में यह ज्ञान का दीप जला ।

पूर्णतः निःशुल्क इस पुस्तकालय में पढ़ने वालों के लिए लकड़ी की चौकियां और कुछ कुर्सियां हैं,छोटे बच्चे दरी पर बैठकर,लेटकर पढ़ते हैं..पुस्तकालय के गम्भीर,शांत वातावरण के विरुद्ध इस पुस्तकालय में ख़ूब शोर और गहमागहमी रहती है….अनुशासन यहां दूसरे ग्रह की चीज और डर बीते जमानों की बातें हैं…हर पढ़ने वाले को यह पुस्तकालय अपने घर जैसा प्रतीत होता है तभी प्रतियोगी परीक्षाओं के कुछ विद्यार्थी गर्मियों में देर रात पढ़ते-पढ़ते पुस्तकालय में ही सो जाते थे, इन्वर्टर की सुविधा होने से उनकी पढ़ाई निर्बाध रूप से चलती रहती है…! पुस्तकालय चौबीसों घण्टे खुला रहता है जिसका अधिकतम लाभ बच्चे और युवा उठा रहे…यहां गांव के वंचित तबके से लेकर मुख्यधारा तक सभी आय और आयु वर्ग के बच्चे एकसाथ पढ़ते हैं।

सबसे संतोषजनक बात महिलाओं द्वारा पुस्तकालय का उपयोग करना रहा…गाँव की उन काकियों-चाचियों ने किताबें ले जाना शुरू किया जिन्हें हम कभी जान भी नहीं पाये थे कि वह पढ़-लिख भी सकती हैं…यह एक गुलदस्ते में सभी रंगों-खुशबुओं से सजे फूलों सरीखा आह्लादकारी वातावरण होता है जब बच्चों के संग उनकी बुआ,माँ,दादियां पढ़ने और किताबें ले जाने आती हैं..दुनिया में इससे सुंदर दृश्य और भला क्या होता होगा..!

3 जनवरी 2018 को एक ऊंघता,अलसाया सा गांव जाग पड़ा जब दूर-दूर से मेहमान आने लगे,पहले लोग चौंके कि यह क्या हो रहा…खुसुर-पुसुर के बीच जब यह पता चला कि गांव में पुस्तकालय खुल रहा तब तो उनके हैरत की सीमा नहीं रही…ग्रामीणों के तमाम आशंकाओं,कयासों के बीच एक भव्य समारोह में जाने-माने वरिष्ठ कथाकार शिवमूर्ति के हाथों पुस्तकालय का उद्घाटन हुआ,अध्यक्षता सुल्तानपुर की यशस्वी पत्रिका ‘युगतेवर’ के सम्पादक कमल नयन पांडेय और संचालन गीतेश ने किया…

पहला सावित्रीबाई फुले व्याख्यान रामायन राम ने दिया और दर्जन भर से अधिक कवियों-वक्ताओं ने अपनी कविताएं और वक्तव्य प्रस्तुत किये…गांव वालों के लिए यह साहित्यिक कार्यक्रम बहुत ही शिक्षाप्रद और अनूठा रहा।

बच्चों में पढ़ने की ललक को देखते हुए उनके पठन-पाठन के स्तर को बढ़ाने और रुकावटों को दूर करने के लिए पुस्तकालय में पढ़ने और किताबें ले जाने वाले बच्चों के लिए सप्ताह में दो दिन भाषा, गणित,और सामान्य ज्ञान की कक्षाएं भी घर की बच्चियां चलाती हैं।

इन बच्चियों को स्वेच्छा से यह जिम्मेदारी उठाते देख मन सावित्रीबाई फुले के प्रति कृतज्ञता से भर उठता है कि यदि हमारी आदि माँ सावित्रीबाई ने विषम परिस्थितियों में जीवटता दिखाते हुए बच्चियों को पढ़ाने का कार्य न किया होता तो आज हम सब न पढ़ पाते,न ही पढ़ा पाते।

31 दिसम्बर 2018 तक इशू रजिस्टर बता रहा कि 1083 किताबें घरों में पहुंच चुकी हैं,पुस्तकालय में बैठकर पढ़ने वालों का कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।

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