जसम दिल्ली की ओर से घरेलू गोष्ठी श्रृंखला में भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित युवा कवि अदनान कफ़ील दरवेश के पहले काव्य-संग्रह ‘ठिठुरते लैम्प पोस्ट’ का काव्यपाठ एवं समीक्षा गोष्ठी संतनगर, बुराड़ी, दिल्ली में हुई। अदनान ने संग्रह की चुनिंदा कविताओं का पाठ किया जिसमें फजिर, शहर की सुबह, पुन्नू मिस्त्री, गमछा, चमकती कटार, कवि मन तूने क्या कर डाला, सन 1992 आदि मुख्य थीं।
अर्पिता राठौर, आशीष, मृत्युंजय, लक्ष्मण, तूलिका व दिनेश आदि ने अदनान के काव्य-विषय व रचना-शैली पर समीक्षात्मक चर्चा की। अर्पिता ने विस्तार से अपनी बात रखते हुए अदनान की कविता में आवाजों के महत्त्व को रेखांकित किया। आशीष ने कहा कि अदनान गहरी संवेदनाओं के कवि हैं, ग्रामीण परिवेश व मुस्लिम समाज के रोजमर्रा के जीवन का जैसा सहज चित्रण अदनान की कविताओं में दिखता है, वैसा अन्यत्र दुर्लभ है: पुरुवा झुर-झुर बह रही है/ मैं एक जोर की अंगड़ाई लेता हूँ और देखता हूँ:/ रसूलन बुआ/ बधने में पानी भर कर/ वजू बनाने जा रही हैं/ और अब्बा/ खटिया से पाँव लटकाए/ चप्पल टटोल रहे हैं।/ फजिर की अजान/ बस होने ही वाली है/ और मैं सोच रहा हूँ/ कि ऐसा कब से है/ और क्यूं है/ कि मेरे गाँव के तमाम-तमाम लोगों की घड़ियाँ/ आज भी/ फजिर की अजान से ही शुरू होती हैं। उन्होंने कहा कि अदनान की कविता में प्रतिरोध के स्वर जीवन से आये हैं, वहाँ विचारधारा मुखर नहीं है बल्कि वह जीवन में समाहित है। मृत्युंजय ने सन् 1992 को बाबरी मस्जिद के ध्वंस किये जाने की क्रूर भयावहता को उसके ध्वंस करने वालों के समूचे खतरनाक इरादे और एक कौम पर उसके भयावह प्रभाव को चित्रित करने के लिहाज से इस विषय पर लिखी गयी सफल कविताओं में से एक बताया। कविताओं पर आलोचनात्मक टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि अदनान को बिम्ब बनाने में महारत हासिल है। उनके यहां एक चित्र ओझल होने नहीं पाता कि दूसरा चित्र हमारी आखों के सामने तैरने लगता है। लेकिन कई बार जहाँ इन दृश्यों की अधिकता हो जाती है, तो वह कविता पर भारी पड़ती है। उन्होंने कहा कि जुबान की ताकत अदनान की कविता की ताकत है। उनकी कविताओं में हिंदुस्तानी और भाखा का मेल है जो उनकी बात को अधिक प्रभावपूर्ण तरीके से पाठकों के मर्म तक पहुँचाने में मददगार है। मुस्लिम ग्रामीण दुनिया अदनान के यहाँ बखूबी आयी है जो नॉस्टेल्जिया के रूप में है और उसमें छुपी है उदासी। मृत्युंजय ने अदनान के प्रतीकों को रेखांकित करते हुए कहा कि उनके संग्रह की शुरुआती कविताओं में गेहुँवन साँप, बीच में बाबरी ध्वंस की मार्मिक स्मृतियाँ और आखिर की कविताओं में मौत बारम्बार आती है।
बकौल दिनेश, हालांकि अदनान की कविताओं में उम्मीद भी है: देखना / वो तुम्हारी टैंको में बालू भर देंगे एक दिन / और तुम्हारी बंदूकों को / मिट्टी में गहरा दबा देंगे/ …वो तुम्हारी दीवारों में छेद कर देंगे एक दिन और आर-पार देखने की कोशिश करेंगे… एक दिन मेरी दुनिया के तमाम बच्चे चीटियों, कीटों, नदियों, पहाड़ों, समुद्रों और तमाम वनस्पतियों के साथ मिलकर धावा बोलेंगे और तुम्हारी बनाई हर चीज को खिलौना बना देंगे। पर उनमें दर्द और उदासी प्रमुख है। इतनी उदासी क्यों?
अदनान की शहर की सुबह कविता सुनकर श्रोताओं को महसूस हुआ कि ये वही शहर है जिनकी गलियों-सड़कों के अनुभवों से हम रोज गुजरते हैं: शहर खुलता है मजदूरों की कतारों से; जो लेबर-चौकों को आरास्ता करते हैं / शहर खुलता है एक शराबी की उनींदी आँखों में / नौकरी पेशा लड़कियों की धनक से खुलता है/ शहर गाजे-बाजे और लाल बत्तियों की परेडों से नहीं / बल्कि रिक्शे की ट्रिंग—ट्रिंग और दूध के कनस्तरों की उठा-पटक से खुलता है/ उनकी आँखों में बसी थकान से खुलता है /…शहर खुलता है एक कवि की धुएँ से भरी आँखों में / जिसमें एक स्वप्न की चिता / अभी-अभी जलकर राख हुई होती है…
अदनान की कविताओं पर बात रखते हुए रिसर्चर रमा शंकर सिंह ने कहा कि अदनान को एक कवि के रूप में देखना चाहिए, न कि मुस्लिम कवि के रूप में। उनकी कविताएं मुस्लिम संवेदना को व्यक्त करती हुई भी उससे अधिक विस्तृत हैं। अदनान भी चाहते होंगे कि एक कवि के रूप में ही पहचाने जाएँ।
अदनान को प्रत्यक्ष सुनने से कविताएँ और ज्यादा संवेदित और उद्वेलित करती हैं। जितनी गहरी संवेदना व गंभीर चिंताओं के स्वर उनकी कविता में दिखते हैं, उन्हें सुनना भी उसी गहराई को अनुभव करने जैसा था।
गोष्ठी में वक्ताओं के अलावा प्रसिद्ध कवि आर चेतनक्रांति, उमा राग, रमाशंकर सिंह, संजीव झा (एम.एल.ए. बुराड़ी), तूलिका, शालू यादव, अभिषेक और सूरज आदि मौजूद रहे। संयोजन व संचालन अनुपम ने किया।
◆रिपोर्ट: सिन्धुजा